Sunday, June 8

 

उपराष्‍ट्रपति एम• वेंकैया नायडू ने कहा है कि देश में बुनियादी शिक्षा केवल भारतीय भाषाओं में ही दी जानी चाहिए। श्री नायडू मंगलवार 07 अगस्त 2018 को ओपी जिंदल यूनिवर्सिटी के सातवें दीक्षांत समारोह को संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर हरियाणा के राज्‍यपाल कप्‍तान सिंह सोलंकी, दिल्‍ली उच्‍च न्‍यायालय की कार्यवाहक मुख्‍य न्‍यायाधीश न्‍यायमूर्ति गीता मित्‍तल तथा अन्‍य गणमान्‍य लोग भी उपस्थित थे।

उपराष्‍ट्रपति ने कहा कि शिक्षा का उद्देश्‍य सिर्फ बच्‍चों में कौशल विकास और ज्ञान बढ़ाकर उन्‍हें वर्तमान और भविष्‍य की चुनौतियों का मुकाबला करने में सक्षम बनाना ही नहीं होना चाहिए बल्‍कि इसके जरिए उनमें मानवीय मूल्‍य, सहनशीलता, नैतिकता और सद्भावना जैसे गुणों का समावेश भी किया जाना चाहिए।

लोगों के जीवन में शिक्षा के महत्‍व पर प्रकाश डालते हुए उपराष्ट्रपति ने कहा कि इसके जरिए लोगों की प्रतिभाओं को उजागर कर उनके समग्र व्‍यक्तित्‍व का विकास किया जाना चाहिए। उन्‍होंने कहा कि‍ दृढ़ नैतिक मूल्‍यों वाला व्‍यक्ति कभी भी अपनी सत्‍यनिष्‍ठा के साथ समझौता नहीं करेगा। शिक्षा वह मजबूत आधार है जिसपर किसी भी देश और उसके जनता की प्रगति निर्भर करती है।

उपराष्‍ट्रपति ने कहा कि शिक्षा प्रणाली के जरिए सिर्फ उत्‍कृष्‍टता के नए मनादंड ही नहीं तय किए जाने चाहिए बल्कि दूसरों के प्रति सद्भाव और साझेदारी का दृष्टिकोण भी विकसित किया जाना चाहिए। उन्‍होंने कहा कि‍ शिक्षा एक व्‍यापक सोच का सृजन करती है और प्रकृति के साथ चलने की जरुरत पर बल देती है। उन्‍होंने कहा कि‍ आज के भौतिकतावादी और वैश्‍वीकरण के दौर में ‘हमें ऐसी ही शिक्षा की आवश्‍यकता है’।

श्री नायडू ने कहा कि समय आ गया है कि भारत एक बार फिर से अपनी क्षमताओं को पहचान कर दुनिया में ज्ञान और नवाचार का बड़ा केन्‍द्र बनकर उभरे। उन्‍होंने कहा कि‍ शिक्षा प्रणाली में व्‍यापक सुधार कर ‘हमें अकादमिक उत्‍कृष्‍टता के लिए एक अनुकूल माहौल बनाना होगा’।