Thursday, February 6

 

काश्मीर के मुख्यमंत्री के रूप में महबूबा मुफ़्ती हों या ओमर अब्दुल्ला दोनों ही कश्मीरी विस्थापितों के लिए कुछ भी करने से गुरेज करते रहे। अलगाववादियों या यह कहें के विभाजन करियों के दबाव में आ कर कभी उन्होने कश्मीरी पंडितों के लिए की ब्यान भी नहीं दिया करना तो दूर की कौड़ी रही। यही हालात देश के विभाजन के बाद घाटी ओर जम्मू क्षेत्र में सीमा पार से आए शरणार्थियों के लिए राजी सरकारों के रहे। 1947 से आज तक यह परिवार राजी ओर राष्ट्र के योगदान में एक अग्रणी भूमिका निभा रहे हैं, परंतु यह हिन्दू परिवार हैं इसी कार्न इनकी कोई सुनवाई राजी में आज तक नहीं हुई। अब मोदी सरकार ने इनकी सुध ली तो घाटी के नुमाइंदों के यह बात अच्छी नहीं लगी। भाजपा – पीडीपी गठबंधन टूटने की वजहों में यह भी एक हो सकती है।

जम्मू- कश्मीरः पश्चिमी पाकिस्तान से पलायन कर जम्मू- कश्मीर पहुंचे शरणार्थियों के लिए 2000 करोड़ रुपये के पैकेज के बाद अब इस मामले में एक और विवाद उठ खड़ा हुआ है। इन शरणार्थियों को डोमिसाइल सर्टिफिकेट यानि मूल निवास प्रमाण पत्र जारी करने के खिलाफ अलगावादियों ने प्रदर्शन का ऐलान किया है। वहीं अलगावादियों के साथ-साथ राज्य के कई विपक्षी दल भी सरकार के इस फैसले का विरोध कर रहे हैं। उनका कहना है कि सरकार का यह कदम ना सिर्फ इन शरणार्थियों को कश्मीर में बसाने की कोशिश है, बल्कि इससे उन्हें राज्य की स्थाई नागरिकता दे दी जाएगी।

इन आरापों के बाद सरकार ने साफ किया कि इन शरणार्थियों को डोमिसाइल नहीं, बल्कि केवल पहचान पत्र दिए गए हैं, ताकि 1947 के बाद जम्मू कश्मीर आए इन पाकिस्तानी शरणार्थियों को नौकरियां मिलने में आसानी हो। राज्य की महबूबा सरकार की ओर से जारी बयान में डोमिसाइल सर्टिफिकेट देने की खबरों को गलत बताया है। राज्य सरकार के पूर्व प्रवक्ता एवं शिक्षा मंत्री नईम अख्तर ने बयान में कहा, ‘ऐसा लग रहा है कि जान-बूझकर एक मुहिम चलाई जा रही है, जिसका मकसद राज्य सरकार की छवि और राज्य के हालात को बिगाड़ना है।