श्रावण-भादों माह के हर शनिवार को लगते हैं नागनी माता के मेले
जिला स्तरीय नागनी मेला 04 अगस्त को बड़े हर्षोल्लास से आयोजित किया जा रहा है
हिमाचल देवी- देवताओं व ऋषि-मुनियों की पावन स्थली है। यहां पर सारा साल अनेकों मेलों व त्यौहारों का आयोजन किया जाता है। इन सभी का महात्म्य किसी न किसी देवी- देवता के नाम से जुड़ा हुआ है। ये मेले सिर्फ हिमाचल में नहीं अपितु समूचे भारतवर्ष में अपनी एक अलग पहचान रखते हैं। इन्हीं में से एक है नूरपुर नागनी माता मंदिर का मेला ।बसांप -बिच्छू व अन्य जहरीले जीव- जंतुओं के काटने का उपचार यहां पर मात्र पानी पिलाकर व मिट्टी जिसे शक्कर प्रसाद के नाम से जाना जाता है, का लेप लगाकर किया जाता है । पठानकोट -मंडी राष्ट्रीय राजमार्ग पर बसे एक छोटे से गांव नागनी (भड़वार) में श्रावण व भादों (जुलाई-अगस्त) मास के दौरान हर शनिवार को मेला लगता है। दो माह तक लगने वाले इन मेलों में हजारों की संख्या में श्रद्धालु हिमाचल प्रदेश के अलावा पड़ोसी राज्यों पंजाब, हरियाणा व जम्मू- कश्मीर से नागनी माता के दर्शनों के लिए यहां पहुंचते हैं।
विश्वास है कि सर्पदंश का जो रोगी एक बार माता नागनी की शरण में पहुंच जाता है, वह ठीक हो कर ही घर जाता है। यह सारा चमत्कार नागनी माता के स्थान से निकलने वाली जलधारा के पानी तथा मिट्टी(शक्कर) का माना जाता है ।जो प्यास के नाम से उसे पिलाया जाता है और मिट्टी का लेप डंक वाली जगह पर किया जाता है। यही एकमात्र उपचार यहां पर होता है। अब नागनी माता का यह मंदिर लोगों की आस्था का प्रमुख केंद्र बन चुका है । लोगों में इस मंदिर के प्रति अटूट आस्था को देखते हुए प्रदेश सरकार ने भी नागनी मेले को कुछ वर्ष पूर्व जिला स्तरीय मेले का दर्जा दे दिया था। इस वर्ष भी जिला स्तरीय नागनी मेला 04 अगस्त को बड़े हर्षोल्लास से आयोजित किया जा रहा है।
इस मंदिर के अस्तित्व में आने को लेकर एक दंतकथा प्रचलित है। जिसके अनुसार कालांतर में इस जगह पर एक घना जंगल था। यहां पर राजा जगत सिंह का साम्राज्य था। यहां पर बहने वाली जलधारा का पानी लोग पीने व नहाने के लिए प्रयोग में लाते थे तथा इस जगह को अपना पूजा स्थल मानते थे। यहां पर बामी मिट्टी के टिल्ले थे जिस पर अक्सर लोग दूध व जल चढ़ाते थे। उसके बाद एक कोढ़ी यहां पर आकर रहने लगा। वह भगवान से कोढ़ मुक्ति के लिए लगातार प्रार्थना करता था। बताते है कि उसकी साधना सफल होने पर नागनी माता ने उसे स्वप्न में दर्शन दिए तथा उसे नाले में दूध की नदी दिखाई दी। सुबह उठकर उसने वास्तविक रूप में इस जगह पर दूध की नदी बहती देखी जोकि वर्तमान में मंदिर के साथ बहते नाले के रूप में है। माता ने कहा कि इस नदी में नहाने व यहां की मिट्टी शरीर पर लगाने से उसका कुष्ठ रोग दूर हो जायेगा। । उसने यहां पर स्नान किया व मिट्टी का लेप अपने जख्मों पर किया जिसके बाद उसका कोढ़ रोग ठीक हो गया। उसी ने ही अपने साथ घटित इस घटना बारे सभी को अपनी आपबीती बताई। जिसके बाद इस स्थान पर अब तक सर्पदंश के अलावा चर्मरोग के लाखों मरीज ठीक हो चुके हैं।
मंदिर की स्थापना को लेकर प्रचलित दंतकथा के अनुसार एक सपेरे ने माता नागनी के मंदिर में आकर उसे धोखे से अपने पिटारे में बंद कर लिया। जब माता ने रात को राजा जगत सिंह को दर्शन दिए तो उसने सपेरे से उसे छुड़ाने की प्रार्थना की। जब वह सपेरा नूरपुर के कंडवाल में रुका तो राजा ने उस सपेरे से नागिन को मुक्त करवाया व भड़वार में पुनः उसको उसके अपने असली स्थान पर पहुंचाया। नागनी माता को नागों की देवी सुरसा माता के नाम से भी जाना जाता है।
मेलों के दौरान या बीच- बीच में श्रद्धालुओं को नागनी के रूप में मांँ के साक्षात दर्शन जलधारा में, मंदिर के गर्भगृह में या प्रांगण में होते रहते हैं। कभी उनका रंग तांबे जैसा होता है और कभी स्वर्ण तो कभी दूधिया और कभी पिण्डी के ऊपर बैठी नागनी दिखाई देती है।
बताते हैं कि यहां के राजपूत घराने के पुराने वाशिंदे जोकि ठाकुर मैहता परिवार से संबंध रखते थे, ही इस मंदिर के मुख्य आराधक थे । इन परिवारों की कम से कम 60 पीढ़ियां अब तक इस मंदिर में पुजारी के रूप में अपना दायित्व निभा चुकी हैं। वर्ष 1868 से इन परिवारों के नाम राजस्व रिकॉर्ड में भी मंदिर में पुजारी का मालिकाना हक है। आज भी इस खानदान के 32 परिवार बारी- बारी से मंदिर में पूजा-अर्चना का जिम्मा संभाल रहे हैं।
मार्च, 1971 में स्व0 श्री धजा सिंह के मार्गदर्शन में मंदिर प्रबन्धकारिणी कमेटी का गठन किया गया जोकि इस मंदिर समिति के संस्थापक सदस्य व प्रधान थे। उनके मार्गदर्शन व सभी परिवारों के सहयोग से मंदिर के उत्थान के लिए पूरी समर्पण की भावना से मंदिर का विकास करवाया गया । उनके निधन के बाद भी मंदिर कमेटी ने विकास कार्यों को निरंतर जारी रखा है। कमेटी द्वारा मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं के लिए सभी प्रकार की मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध करवाई जा रही हैं।
मंदिर के पास से निकलने वाली जलधारा से 4 किलोमीटर की परिधि में पड़ने वाले भड़वार, नागनी, मिंजग्रा, खुशीनगर आदि गाबों को पेयजल आपूर्ति की जाती है। जिससे इस क्षेत्र की हज़ारो की आबादी को प्रतिदिन माँ के आशीर्वाद से पवित्र व स्वछ जल पीने को मिलता है। मां का ही चमत्कार है कि प्रतिदिन हजारों लीटर पानी की जलापूर्ति होने के बावजूद भी भीषण गर्मी पड़ने पर भी यहां कभी पानी की कमी नहीं आती है।
नागनी माता के मेले के दौरान एसडीएम नूरपुर, डॉ सुरिंदर ठाकुर की अगुवाई में नूरपुर प्रशासन, मंदिर कमेटी तथा ग्राम पंचायत, नागनी के सहयोग से मेले में आने वाले श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए सभी आवश्यक प्रबंध पूरे कर लिए गए हैं। नायब तहसीलदार , नूरपुर को मेला अधिकारी नियुक्त किया गया है ताकि श्रद्धालुओं को किसी प्रकार की असुविधा न हो।
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