आपातकाल, सिख दंगों और मुस्लिम तुष्टीकरण को भुला दें तो सिर्फ पिछले 4 साल से ही लोकतन्त्र खतरे में है


खड़गे ने कहा है कि ‘एक चायवाला इसलिये देश का प्रधानमंत्री बन सका क्योंकि कांग्रेस ने लोकतंत्र को बचाए रखा’. वाकई खड़गे का ये खुलासा इस देश की स्वस्थ राजनीति और मजबूत लोकतंत्र का प्रतीक है.


मल्लिकार्जुन खड़गे लोकसभा में कांग्रेस की तरफ से नेता प्रतिपक्ष हैं. वो अपने बयानों और भाषणों से देश की सियासत में बड़ी अहमियत रखते हैं. हाल ही में उन्होंने बड़ा खुलासा किया है. उन्होंने साल 2014 का चुनाव जीतकर नरेंद्र मोदी के पीएम बनने पर बड़ा खुलासा किया है. खड़गे ने कहा है कि ‘एक चायवाला इसलिये देश का प्रधानमंत्री बन सका क्योंकि कांग्रेस ने लोकतंत्र को बचाए रखा’. वाकई खड़गे का ये खुलासा इस देश की स्वस्थ राजनीति और मजबूत लोकतंत्र का प्रतीक है.

खड़गे ने जिस लोकतंत्र की दुहाई देते हुए एक चायवाले को देश का पीएम बनने का मौका दिया वो काबिल-ए-तारीफ है. लोकतंत्र को ही बचाने के लिये कांग्रेस ने यूपीए सरकार के वक्त अर्थशास्त्री डॉ. मनमोहन सिंह को भी मौका दिया था तो साल 2014 में ये मौका मोदी को मिला. खड़गे के बयान के बाद लोकतंत्र को बचाने के लिये कांग्रेस के योगदान को कम नहीं आंका जा सकता है. इसी लोकतंत्र को बचाने के लिये ही कांग्रेस सिमटते-सिमटते 44 सीटों पर आ गई. इसके बावजूद ये पूछा जाता है कि कांग्रेस ने पिछले 70 साल में देश के लिये क्या किया?

खड़गे जिस लोकतंत्र को बचाने के लिये कांग्रेस की पीठ थपथपा रहे हैं तो उसी पार्टी के सिपाही मणिशंकर अय्यर ने ही सबसे पहली आहुति भी दी थी. कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर की पहल को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है. कांग्रेस के सम्मेलन के वक्त ही मणिशंकर अय्यर ने सबसे पहले कहा था कि, ‘मोदी जी अगर चाय बेचना चाहें तो वो यहां आकर चाय बेच सकते हैं लेकिन एक चायवाला देश का पीएम नहीं बन सकता’.

मणिशंकर अय्यर की ही भावुक अपील ने देश की सियासत का नक्शा ऐसा बदला कि देश के कई राज्यों में कांग्रेस को ढूंढना पड़ गया. अय्यर ने ही नब्ज़ को टटोलते हुए जनता के भीतर एक चायवाले को लेकर सहानुभूति भरने का सबसे पहले काम किया. लोकसभा चुनाव के बाद अय्यर ने गुजरात विधानसभा चुनाव के वक्त भी लोकतंत्र को बचाने के लिये नया बयान दिया. बाद में उसी लोकतंत्र को ही बचाने के लिये कांग्रेस को अपने मजबूत सिपाही की राजनीतिक कुर्बानी भी देनी पड़ी. मणिशंकर अय्यर फिलहाल पार्टी से निलंबित चल रहे हैं. लेकिन लोकसभा और गुजरात विधानसभा चुनाव के वक्त उनका योगदान कांग्रेस कभी भूल नहीं सकेगी.

खड़गे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं. उन्होंने दो लोकतंत्र एक साथ देखे हैं. एक कांग्रेस का आंतरिक लोकतंत्र तो दूसरा देश के संविधान से सजा हुआ लोकतंत्र. आंतरिक लोकतंत्र के वो एक बड़े गवाह हैं. कर्नाटक में अच्छी पकड़ रखने वाले खड़गे के कर्नाटक का सीएम बनने की पूरी संभावना थी. विधानसभा चुनाव के नतीजों में उनकी धाक जमी थी. लेकिन खड़गे को सीएम बनने का मौका नहीं मिल सका. उनकी जगह सिद्धारमैया को सीएम बना दिया.

शायद यहां भी कांग्रेस ने लोकतंत्र को ही बचाने के लिये खड़गे से राजनीतिक त्याग मांगा. हालांकि बीजेपी कांग्रेस पर ये आरोप लगाती है कि कांग्रेस ने खड़गे के साथ इंसाफ नहीं किया और राहुल के करीबी माने जाने वाले सिद्धारमैया को कर्नाटक की कमान सौंपी. जबकि देखा जाए तो कांग्रेस ने खड़गे को कर्नाटक का सीएम न बना कर उनका कद ही बढ़ाया है. लोकसभा में खड़गे कांग्रेस के लिये सबसे बड़ी तोप भी हैं तो सबसे मजबूत ढाल भी. पीएम मोदी और बीजेपी के हमलों को वो ही सदन में बैठकर झेलते भी हैं और आरोपों का जवाब भी देते हैं. उनकी हिंदी पर पकड़ और हिंदी में धारा-प्रवाह भाषण की कला हिंदी पट्टी के नेताओं को शर्मिंदा कर जाती है.

लोकतंत्र को बचाने के लिये ही कांग्रेस ने मल्लिकार्जुन खड़गे को संसद के लिये स्थायी तौर पर अपना सेनापति बनाया है ताकि कर्नाटक का मोह कहीं आड़े नहीं आए. लोकतंत्र बचाने के लिये ही इस बार कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बहुमत न मिलने के बावजूद कांग्रेस ने जेडीएस को समर्थन दे कर सरकार बनवाई है. हालांकि जम्मू-कश्मीर में बीजेपी के पीडीपी से समर्थन वापस लेने के बाद कांग्रेस को लोकतंत्र खतरे में नहीं दिखा तभी उसने पीडीपी को सरकार बनाने के लिये समर्थन देने का कोई प्रस्ताव नहीं दिया.

कांग्रेस लगातार बीजेपी पर मार्गदर्शक नेताओं की अनदेखी और अवहेलना के आरोप लगाती है. कांग्रेस कहती है कि बीजेपी के भीतर आवाज दबा दी जाती है. जबकि इसके ठीक उलट कांग्रेस के आंतरिक लोकतंत्र की तस्वीर आईने की तरह साफ है. यहां विरोध की कोई आवाज ही नहीं पनपती तो उसे दबाने का आरोप भी कोई नहीं लगा सकता.

कांग्रेस के आंतरिक लोकतंत्र का ही ये नायाब मॉडल है कि यहां एक सुर में उपाध्यक्ष रहे राहुल गांधी की अध्यक्ष पद पर ताजपोशी को कोई और आवाज चुनौती नहीं दे सकी. ये न सिर्फ पार्टी का मजबूत आंतरिक लोकतंत्र है बल्कि अनुशासन भी! निष्ठा के साथ अनुशासन के कॉकटेल से कांग्रेस के लोकतंत्र को मजबूत होने में कई दशकों का समय लगा है.

यूपीए सरकार में जब डॉ. मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया गया तो वो भी लोकतंत्र बचाने के लिये ही भावनात्मक और व्यावहारिक फैसला लिया गया था. मनमोहन सिंह राज्यसभा के नामित सदस्य थे. कभी चुनाव लड़ा नहीं था क्योंकि कभी सोचा भी नहीं था कि पीएम बनने का ऑफर इस तरह से आएगा. उस वक्त कांग्रेस के तमाम दिग्गज और पुराने चेहरों की निष्ठा और सियासी अनुभव पर मनमोहन सिंह का मौन आवरण भारी पड़ा था और वो सर्वसम्मति से पीएम बने थे. उस दौर में प्रणब मुखर्जी जैसे बड़े नाम भी लोकतंत्र को बचाने की रेस में दूर दूर तक नहीं थे. मनमोहन सिंह के नाम पर पीएम पद के प्रस्ताव को सर्वसम्मति, ध्वनिमत, पूर्ण बहुमत के साथ देश हित और लोकतंत्र बचाने के लिये अनुमोदित किया गया.

जब कभी पार्टी या देश का लोकतंत्र कांग्रेस ने खतरे में देखा तो उसने बड़े फैसले लेने में देर नहीं की. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सीताराम केसरी के हाथों में जब कांग्रेस और देश एकसाथ कमजोर दिखे और लोकतंत्र खतरे में महसूस हुआ तो कांग्रेस ने उन्हें ‘उठाकर’ हटाने का फैसला ‘भारी मन’ से लेने में देर नहीं की. यहां तक कि देश को आर्थिक उदारवाद के रूप में प्रगति की नई राह दिखाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की आवाज भी ‘सम्मोहित’ नहीं कर सकी.

आज कांग्रेस की ही तरह देश के तमाम दिग्गज नेता अपनी अपनी क्षेत्रीय पार्टियों के साथ लोकतंत्र बचाने में जुटे हुए हैं. लोकतंत्र को लेकर उनकी निष्ठा ही कांग्रेस के साथ महागठबंधन के आड़े आ रही है.

एनसीपी चीफ शरद पवार महागठबंधन की संभावनाओं को खारिज करते सुने जा सकते हैं तो टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी और टीआरएस नेता केसी राव लोकतंत्र बचाने के लिये तीसरे मोर्चे की तैयारी करते दिख रहे हैं.

बहरहाल खड़गे ने भी पीएम मोदी को ‘चायवाला’ कह कर देश की सियासत में चाय का उबाल ला दिया है. खड़गे से पूछा जा सकता है कि क्या वो देश के लोकतंत्र को बचाने के लिये साल 2019 में भी चायवाले को देश का पीएम बनने देंगे?

अगर एक बार कांग्रेस ‘देशहित’ में इतना बड़ा फैसला ले सकती है तो दूसरी बार भी लोकतंत्र की खातिर कांग्रेस को पीएम मोदी को दूसरा मौका देना चाहिये.

कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने ये आरोप भी लगाया कि पिछले चार साल से देश में अघोषित आपातकाल है. खड़गे जी ने 1975 की घोषित इमरजेंसी भी देखी है. उनसे पूछा जाना चाहिये कि क्या अघोषित इमरजेंसी में जितनी बेबाकी से वो और तमाम सियासी-गैर सियासी लोग अपनी बात, अपना विरोध और मोदी हमला जारी रखे हुए हैं क्या वो 1975 की इमरजेंसी में संभव होता?

बहरहाल लोकतंत्र को बचाने के लिये कांग्रेस के भीतर एक आवाज प्रियंका गांधी को भी लाने की काफी समय से गूंज रही है. लेकिन कांग्रेस फिलहाल इस आवाज को अनसुना कर रही है. लोकतंत्र को बचाने के लिये कांग्रेस को अपने सारे ऑप्शन्स भी खुले रखने चाहिये.

क्या मुस्लिम तुष्टीकरण के चलते हुई स्वामी परिपूर्णानन्द की गिरफ्तारी?


काकीनाड़ा श्री पीठम के प्रमुख स्वामी परिपूर्णानंद को हिन्दू विरोधी बयान देने वाले लोगों के खिलाफ एक मार्च की अगुवाई करनी थी


तेलंगाना के हैदराबाद में एक आध्यात्मिक नेता को उनकी प्रस्तावित 40 किलोमीटर लंबी पदयात्रा से पहले सोमवार को नजरबंद कर दिया गया. यह यात्रा बोडुप्पल से यदादरी तक जानी थी.

पुलिस ने बताया कि काकीनाड़ा श्री पीठम के प्रमुख स्वामी परिपूर्णानंद को हिंदू  विरोधी बयान देने वाले लोगों के खिलाफ एक मार्च की अगुवाई करनी थी , लेकिन पुलिस ने यात्रा निकालने के लिए घर से बाहर निकलने पर ही रोक लगा दी. इस यात्रा के लिए पुलिस ने इजाजत नहीं दी थी.

पुलिस ने बताया कि इसके बाद स्वामी के समर्थक और विभिन्न हिन्दू संगठनों के सदस्य उनके घर के पास इकट्ठा हो गए. उन्होंने बताया कि परिपूर्णानंद ने हाल में हिंदू देवताओं के खिलाफ कथित टिप्पणी करने के लिए तेलुगू अभिनेता और फिल्म आलोचक काथी महेश की गिरफ्तारी की मांग की थी और कहा था कि अभिनेता ने हिंदुओं की भावनाओं को आहत किया है.

पुलिस ने बताया कि राज्य के किसी भी हिस्से में अभिनेता के बयान के खिलाफ प्रदर्शन करने की इजाजत नहीं दी गई है. अतिरिक्त पुलिस आयुक्त एम वेंकटेश्वरलु ने कहा, ‘परिपूर्णानंद को सिर्फ नजरबंद किया गया है.’

उन्होंने बताया कि मुद्दे पर प्रदर्शन करने की कोशिश करने पर विभिन्न संगठनों के 20 सदस्यों को एहतियाती तौर पर हिरासत में लिया गया है. परिपूर्णानंद को सोशल मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर कथित रूप से हिन्दू देवताओं के खिलाफ हालिया बयानों और अभियानों के खिलाफ पदयात्रा निकालनी थीं.

उन्होंने सरकार से किसी भी धर्म के देवता की निंदा करने और अपमानित करने वाले तत्वों को कड़ी सजा देने वाला कानून तुरंत बनाने की मांग की थी.नजरबंदी की निंदा करते हुए बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष के लक्ष्मण ने कहा कि प्रदर्शन करना और पदयात्रा निकालना संवैधानिक अधिकार है. उन्होंने कहा, ‘राज्य सरकार द्वारा हिंदू विरोधी टिप्पणी पर कथित रूप से कड़ा रूख नहीं अपनाने की वजह  से धार्मिक नेताओं को सड़कों पर आना पड़ा.’

डॉ हाथी का किरदार निभाने वाले कवि कुमार आज़ाद नहीं रहे


डा. हंसराज हाथी का किरदार निभाने वाले मशहूर कलाकार कवि कुमार आजाद का आज सुबह मुम्बई में कार्डियक अरेस्ट के चलते निधन हो गया


सब टीवी के पॉपुलर शो ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ में डा. हंसराज हाथी का किरदार निभाने वाले मशहूर कलाकार कवि कुमार आजाद का आज सुबह मुम्बई में कार्डियक अरेस्ट के चलते निधन हो गया. रिपोर्ट्स के मुताबिक आज सुबह कवि कुमार आजाद ने अपने शो के सेट पर जानकारी भिजवाई कि उनकी तबियत ठीक नहीं है और वो आज शूटिंग के लिए नहीं आ पाएंगे.

बताया जा रहा है कि कवि कुमार आजाद की तबियत पिछले तीन दिनों से ठीक नहीं थी. पिछली रात उन्हें कोमा में शिफ्ट किया गया था. रिपोर्ट्स के मुताबिक आजाद को मीरा रोड स्थित वोकहार्ड हॉस्पिटल में एडमिट किया गया था. जहां उन्होंने अंतिम सांस ली. कवि कुमार आजाद के आकस्मिक निधन की खबर मिलते ही फिल्म सिटी में चल रहे शो के शूट को कैंसिल कर दिया गया है.

खबरों की मानें तो उनका वजन करीब २१५ किलो था जिसकी वजह से वह परेशान थे और वजन कम करने के लिए इलाज करा रहे थे. आजाद जिंदादिल इंसान थे और उनके इस तरह से चले जाने पर उनके साथी कलाकार गमजदा हैं.

परमीश वर्मा पर हमला करने वाले गैंगस्टर दिलप्रीत बाबा हुआ गिरफ्तार

मशहूर सिंगर परमीश वर्मा पर हमला करने वाले गैंगस्टर दिलप्रीत बाबा को गिरफ्तार कर लिया गया है। उसे तीन गोलियां लगीं और वह बुरी तरह से घायल हो गया। चंडीगढ़ क्राइम ब्रांच की पुलिस ने पंजाब के गैंगस्टर दिलप्रीत बाबा को सेक्टर 43 बस स्टैंड के पीछे की सड़क पर से पकड़ा है।

क्राइम ब्रांच के इंचार्ज इंस्पेक्टर अमनजोत सिंह व उनकी टीम ने गैंगस्टर को पकड़ना चाहा, पर वह भागने की फिराक में था। इंस्पेक्टर अमनजोत ने पीछा करते हुए गैंगस्टर की कार को पीछे से टक्कर मारी। इस दौरान दोनों तरफ से करीब तीन राउंड फायरिंग की गयी। इसमें गैंगस्टर को तीन गोलियां लगीं।

एक गोली उसकी जांघ में जा धंसी और वह लहूलुहान हो गया। मौके पर पहुंची थाना पुलिस, ऑपरेशन सेल, पीसीआर और क्यूआरटी टीमों ने पूरे इलाके को सील कर दिया और फिर गैंगस्टर को गिरफ्तार कर लिया गया। फिलहाल उसे इलाज के लिए अस्पताल ले जाया गया है।

जो मुस्लिम दाढ़ी रखते हैं लेकिन मूंछ नहीं रखते, वह चरमपंथी और डरावने हैं : रिजवी


सोशल मीडिया पर शेयर किए गए एक वीडियो में रिजवी ने कहा कि बिना मूंछ के मुस्लिम डरावने लगते हैं


मुस्लिमों द्वारा दाढ़ी के साथ मूंछ न रखने को लेकर यूपी शिया बोर्ड चीफ वसीम रिजवी ने विवादित बयान दिया है. उन्होंने कहा कि जो मुस्लिम दाढ़ी रखते हैं लेकिन मूंछ नहीं रखते, वह चरमपंथी और डरावने हैं.

उन्होंने कहा कि इस्लाम में दाढ़ी रखना एक रिवाज है लेकिन जो लोग दाढ़ी के साथ मूंछ नहीं रखते वह चरमपंथी हैं और देश-विदेश में आतंक का चेहरा हैं. सोशल मीडिया पर शेयर किए गए एक वीडियो में रिजवी ने कहा कि बिना मूंछ के मुस्लिम डरावने लगते हैं. ऐसे मुसलमान चरमपंथी और इस्लामी कट्टरपंथी हैं और दुनिया भर में आतंक फैलाने के लिए जाने जाते हैं, दाढ़ी के साथ मूंछ न रखना लोगों के बीच भय की भावना को जगाना है.

रिजवी ने कहा कि शरियत के नाम पर ऐसे मुस्लिम लोगों की निजी जिंदगी में फतवा जारी कर दखल देते हैं. जबकि इस्लाम में ऐसा कुछ नहीं है. केरल में एक लड़की के बिंदी लगाने पर मदरसे से निकाले जाने के मुद्दे पर रिजवी ने कहा कि शादी के बाद बिंदी लगाना इस देश का रिवाज है और ऐसे रिवाजों को नुकसान नहीं पहुंचाया जाना चाहिए.

रिजवी ने सरकार से मांग करते हुए कहा कि फतवा जारी करने वालों के खिलाफ राजद्रोह का मामला दर्ज किया जाना चाहिए. संविधान के अलावा आम आदमी के लिए अलग से नियम-कानून की कोई जरूरत नहीं है. बता दें कि जान से मारने की धमकी मिलने के बाद रिजवी को यूपी सरकार ने वाई श्रेणी की सुरक्षा उपलब्ध करवाई थी.

अप्रैल में रिजवी ने पीएम मोदी से मांग की थी कि उनकी सुरक्षा को बढ़ा दिया जाए. अंडरवर्ल्ड से जुड़े एक शख्स की गिरफ्तारी के बाद रिजवी ने यह मांग की थी. उन्होंने कहा था कि राम मंदिर के मुद्दे पर अपनी राय की वजह से वह चरमपंथियों के निशाने पर हैं.

शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती और गजपति राजा दिब्यसिंह देव ने गैर-हिंदुओं को प्रवेश की अनुमति देने के प्रस्ताव पर अपना विरोध दर्ज कराया है


12 वीं सदी में निर्मित इस मंदिर में अभी सिर्फ हिंदुओं के प्रवेश की अनुमति है. इसे श्री मंदिर के नाम से भी जाना जाता है


शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती और गजपति राजा दिब्यसिंह देव ने श्री जगन्नाथ मंदिर में गैर-हिंदुओं को प्रवेश की अनुमति देने के प्रस्ताव पर अपना विरोध दर्ज कराया है. राजा दिब्यसिंह देव को भगवान जगन्नाथ का पहला सेवक माना जाता है.

12 वीं सदी में निर्मित इस मंदिर में अभी सिर्फ हिंदुओं के प्रवेश की अनुमति है. मंदिर में गैर – हिंदुओं के प्रवेश पर चर्चा तब शुरू हुई जब सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को श्री जगन्नाथ मंदिर प्रबंधन को निर्देश दिया कि वह सभी दर्शनाभिलाषियों को भगवान की पूजा अर्चना करने दें, भले ही वे किसी भी धर्म के हों.

विश्व हिंदू परिषद ने भी रविवार को विरोध जताते हुए कहा कि वह इस बाबत सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करेगी ताकि न्यायालय अपने प्रस्ताव पर फिर से विचार करे.

गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने एक विज्ञप्ति में कहा कि सनातन धर्म की सदियों पुरानी परंपरा का उल्लंघन कर श्री मंदिर में सभी को प्रवेश की अनुमति देना हमें स्वीकार्य नहीं है.

गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य श्री जगन्नाथ मंदिर में पंडितों की शीर्ष संस्था मुक्ति मंडप के प्रमुख होते हैं.

गजपति राजा दिब्यसिंह देव ने कहा कि वार्षिक रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा को मंदिर से बाहर ले जाया जाता है ताकि वे विभिन्न धर्मों के भक्तों को आशीर्वाद दे सकें और ‘स्नान उत्सव’ के दौरान भी लाखों लोग उन्हें देखते हैं.

गजपति राजा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का प्रस्ताव एक अंतरिम आदेश की तरह है. उन्होंने कहा कि मंदिर प्रबंध समिति रथ यात्रा के बाद इस मुद्दे पर चर्चा करेगी और श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन उसी अनुरूप कदम उठाएगा.

वीएचपी की ओडिशा इकाई के कार्यवाहक अध्यक्ष बद्रीनाथ पटनायक ने पीटीआई-भाषा को बताया कि मंदिर को लेकर कोई भी कदम उठाने से पहले पुरी के गजपति राजा दिव्यसिंह देब और पुरी के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती से विचार-विमर्श किया जाना चाहिए.

12 वीं सदी में निर्मित इस मंदिर में अभी सिर्फ हिंदुओं के प्रवेश की अनुमति है. इसे श्री मंदिर के नाम से भी जाना जाता है.

विहिप नेता ने श्री जगन्नाथ मंदिर में वंशानुगत सेवादार प्रथा को खत्म करने के शीर्ष न्यायालय के प्रस्ताव को भी स्वीकार नहीं किया.

पटनायक ने कहा, ‘राज्य सरकार से अपील की जाएगी कि वह इस मामले में अपना मौजूदा रुख कायम रखे और यदि वह ऐसा करने में नाकाम रही तो हम सुप्रीम कोर्ट की बड़ी पीठ में पुनर्विचार याचिका दायर करेंगे.’

सुप्रीम कोर्ट ने जगन्नाथ मंदिर प्रबंधन को निर्देश दिया था कि वह सभी दर्शनाभिलाषियों, चाहे वे किसी भी धर्म-आस्था को मानने वाले क्यों न हों, को मंदिर में पूजा करने की अनुमति दे. हालांकि, न्यायालय ने कहा था कि गैर-हिंदू दर्शनाभिलाषियों को ड्रेस कोड का पालन करना होगा और एक उचित घोषणा – पत्र देना होगा.

ट्रिपल तलाक की याचिकाकर्ता शायरा बानो ने संकेत दिया कि वह बीजेपी जॉइन कर सकती हैं


घरेलू हिंसा और ट्रिपल तलाक की पीड़िता बानो तलाक-ए-बिद्दत और निकाह हलाला के खिलाफ 2016 में सुप्रीम कोर्ट गई थीं. उन्होंने अपनी याचिक 5 अन्य लोगों के साथ दायर की थी


ट्रिपल तलाक की याचिकाकर्ता शायरा बानो ने संकेत दिया कि वह बीजेपी जॉइन कर सकती हैं. शायरा बानो ने ट्रिपल तलाक और यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने के लिए केंद्र सरकार की सराहना की है. शायरा बानो ने सबसे पहले ट्रिपल तलाक के खिलाफ पहली याचिका दायर की थी.

बानो ने कहा ‘हमारी सरकार एक समान नागरिक संहिता और बहुविवाह के प्रभावों के बारे में सोचने के बारे में चिंतित है. मुसलमानों के प्रति बीजेपी सरकार की चिंता को देखते हुए मैंने फैसला किया है कि अगर मुझे बीजेपी में शामिल होने का मौका मिलता है तो मैं निश्चित रूप से इसमें शामिल हो जाऊंगा,’

घरेलू हिंसा और ट्रिपल तलाक की पीड़िता बानो तलाक-ए-बिद्दत और निकाह हलाला के खिलाफ 2016 में सुप्रीम कोर्ट गई थीं. उन्होंने अपनी याचिक 5 अन्य लोगों के साथ दायर की थी. इसमें इशरत जहां, भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन, गुलशन परवीन, आफरीन रहमान और अतिया साबरी का नाम शामिल है.

क्या है निकाह हलाला ?

निकाह हलाला को समझना जरूरी है. अगर कोई पुरुष तीन सिटिंग में पत्नी को तलाक देता है तो तलाक मान लिया जाता है. लेकिन फिर पूर्व पत्नी से दोबारा शादी करना चाहता है तो निकाह हलाला की प्रकिया से गुजरना होगा. ये मुसलमानों के सभी मसलकों में माना जाता है, इस्लामिक कानून के जानकारों की राय है कि ये इसलिए है कि समाज में तलाक जैसी बीमारी ना फैलने पाए. पुरुष महिला को तलाक देने से पहले सोचे समझे. निकाह हलाला एक सबक के तौर पर देखा जाना चाहिए. हालांकि सवाल ये उठता है कि सिर्फ महिला को ही इस तरह के कष्ट से क्यों गुजरना पड़ता है? पुरूष को सजा के तौर पर क्या मिल रहा है?

 

के. चंद्रशेखर राव ने देश में एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराए जाने का समर्थन किया है


टीआरएस सांसद ने कहा, ‘निर्वाचित प्रधानमंत्री हर साल विधानसभा चुनावों के लिए चुनाव प्रचार अभियान में अपना काफी वक्त लगाते रहे है.’


तेलंगाना के मुख्यमंत्री और टीआरएस के प्रमुख के. चंद्रशेखर राव ने देश में एक साथ लोकसभा और विधानसभा चुनाव कराए जाने का समर्थन किया है.

विधि आयोग के अध्यक्ष को (साथ चुनाव कराने के प्रस्ताव के पक्ष में) राव का पत्र सौंपने के बाद करीमनगर के टीआरएस सांसद बी विनोद कुमार ने मीडिया से कहा , ‘कई लोग मानते हैं कि विधानसभाओं एवं संसद का एक साथ चुनाव कराना भाजपा या मोदी का एजेंडा है. लेकिन विधि आयोग ने काफी पहले ही प्रक्रिया शुरु कर दी थी.’

टीआरएस सांसद ने कहा, ‘निर्वाचित प्रधानमंत्री हर साल विधानसभा चुनावों के लिए चुनाव प्रचार अभियान में अपना काफी वक्त लगाते रहे है.’

उनका कहना था कि यह 2014 में लोकसभा और कुछ राज्यों में चुनाव के बाद 2015, 2016, 2017 और 2018 में विभिन्न राज्यों में हुए चुनावों से स्पष्ट होता है.

उन्होंने कहा, ‘तेलंगाना राष्ट्र समिति और के सी आर (राव इस नाम से लेाकप्रिय हैं) का मत है कि एक बार चुनाव हो जाने से राज्यों एवं देश के विकास में मदद मिलेगी.’

उन्होंने कहा , ‘हमारी राय से आज स्पष्ट रुप से अध्यक्ष को अवगत करा दिया गया.’ एक साथ चुनाव करवाने से ‘नष्ट’ होगा संसदीय लोकतंत्र: आप

आम आदमी पार्टी के वरिष्ठ नेता आशीष खेतान ने कहा कि उनकी पार्टी का यह दृढ़ता से मानना है कि एक साथ चुनाव कराए जाने से भारत का संसदीय लोकतंत्र एवं संघवाद ‘नष्ट’ होगा.

खेतान ने विधि आयोग और उसके सदस्यों से मुलाकात की. उन्होंने कहा कि आप इस मामले में पार्टी के रूख को लेकर आयोग को एक विस्तृत पत्र सौंपेगे.

विधि आयोग ने 14 जून को सभी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों से इस मुद्दे पर उनकी राय मांगी थी.

खेतान ने ट्वीट कर कहा, ‘विधि आयोग के अध्यक्ष एवं सदस्यों से मुलाकात की. बताया कि ‘आप’ इस बात पर दृढ़ता से विश्वास करती है कि एकसाथ चुनाव करवाने से हमारा संसदीय लोकतंत्र एवं संघवाद नष्ट हो जाएगा तथा इसका मतलब होगा हमारे संविधान के बुनियादी ढांच को क्षत-विक्षत करना. हम जल्द ही आयोग को एक विस्तृत पत्र सौंपेगे.’

General Bipin Rawat, visited Amritsar here today on Sunday to review the security

Amritsar, July 8, 2018:

The Chief of Army Staff, General Bipin Rawat, visited Amritsar here today on Sunday to review the security situation and operational preparedness of the formations guarding the sensitive frontiers of the Western Theatre in the State of Punjab.

In a official release, he was received by Lt Gen Surinder Singh, , Army Commander of Western Command and  Lt Gen Dushyant Singh, Corps Commander of the Vajra Corps.

This was the first visit of the Chief to the historical city of Amritsar since he took over the reins of the Indian Army. The General visited the Headquarter of Panther Division where Lt Gen Dushyant Singh briefed him on operational preparedness of the Vajra Corps in view of prevailing situation in the region. The General also interacted with all the Formation Commanders responsible for the defense of Punjab.

He appreciated the high standards of military preparedness and level of coordination with BSF in safeguarding the interest of nation in the areas under the command of Vajra Corps.

The Army Chief was accompanied by his wife Mrs Madhulika Rawat, President Army Welfare Wife Association and both of them interacted with service personnel, veterans and families of soldiers and lauded their contribution towards the service of the nation.

2 SHOs among 6 Punjab cops suspended for being soft against drug trade

Chandigarh, July 8, 2018:

Adopting strict attitude towards involvement of cops in drug peddling, 6 more Punjab police cops including two SHOs have been suspended for not taking keen interest in anti-drug campaign.

SSP Sangrur Mandeep Singh told Babushahi.com that ‘SHO City 2 Malerkotla, SI Nirmal Singh was suspended and transferred to the district Police Lines Sangrur for not taking keen interest in anti-drug campaign. He was also not taking action against Satta operators in Malerkotla city area.

Another SHO Sherpur police station Rakesh Kumar was suspended with immediate effect and transferred to the district Police Lines for not taking effective action against drug peddlers and loose control over subordinates, added the SSP.

He further told that similar action was taken against four police personnel of Sherpur Police Station ASI Darshan Singh 2139 / SGR, Driver HC Nirmal Singh 1120 / SGR, HC Deepak Kumar 658 / SGR and HC Karnail Singh 300 / SGR for not sharing information and lack of interest in the campaign against drug trade despite having knowledge of  drug peddlers in the Sherpur area.