अविश्वास प्रस्ताव लाने वाले अब इससे खुद को दूर रखना चाहते हैं


टीडीपी सांसद जेसी दिवाकर रेड्डी ने कहा है कि वो केंद्र और आंध्र प्रदेश में उनकी ही पार्टी की सरकार से ऊब चुके हैं


मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश करने वाली टीडीपी के सांसद ही अब इससे खुद को दूर रखना चाहते हैं. टीडीपी सांसद जेसी दिवाकर रेड्डी ने कहा है कि वो केंद्र और आंध्र प्रदेश में उनकी ही पार्टी की सरकार से ऊब चुके हैं. पत्रकारों से बातचीत करते हुए उन्होंने कहा कि मैं संसद सत्र में शामिल नहीं होने वाला, आप कह सकते हैं कि मैं पार्टी की व्हिप का उल्लंघन कर रहा हूं. मैं केंद्र और टीडीपी सरकार से परेशान हो चुका हूं. मैं पूरे पॉलिटिकल सिस्टम से परेशान हो चुका हूं.

उन्होंने आगे कहा कि ये महज एक रूटीन है. सरकार वैसे भी गिरने वाली नहीं है. मैं न हिंदी बोल सकता हूं और न हीं अंग्रेजी. ऐसे में मेरे होने न होने कोई फर्क नहीं पड़ता. आपको बता दें कि छह बार विधायक रह चुके रेड्डी 2014 के चुनाव से पहले ही कांग्रेस छोड़ चंद्रबाबू नाडयू की पार्टी में शामिल हुए थे और ये पहली बार नहीं है, जब उन्होंने कोई विवादित बयान दिया हो.

इससे पहले टीडीपी सांसद ने कहा था कि उन्होंने सोनिया गांधी को सलाह दी थी कि वो अपने बेटे राहुल गांधी की ब्राह्मण लड़की से शादी करा दें. ताकि वो ब्राह्मणों के समर्थन से प्रधानमंत्री बन सकें. आपको बता दें कि बुधवार को टीडीपी ने संसद के मॉनसून सत्र के पहले दिन केंद्र सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश किया था जिसे लोकसभा स्पीकर ने स्वीकार भी कर लिया और अब इस पर शुक्रवार को इसपर चर्चा होनी है.

इंडिया इस इन्दिरा, पोता बोला आई’एम काँग्रेस


मसीहाई अंदाज अपनाने की जगह राहुल अगर राजनीति के मैदान में राजनीतिक तौर-तरीकों के साथ पेश आएं तो उनकी आगे की राह आसान होगी


क्रांतिकारियों का एक खास लक्षण होता है- वे खुद को धोखे में रखते हैं. मार्क्सवादी काट के क्रांतिकारियों में यह लक्षण कुछ ज्यादा ही उभरकर सामने आता है. और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अपनी राजनीति में इस लक्षण को साकार करने को एकदम से बेताब नजर आ रहे हैं.

बात की सच्चाई जाननी हो तो जरा उनके नए-नवेले ट्वीट पर गौर फरमाइए. ट्वीट अपने फिक्र और अंदाज में एकदम मसीहाई तेवर वाला है. ट्वीट में लिखा है, ‘मैं कतार में खड़े आखिरी आदमी के साथ हूं, उनके साथ जो शोषित, पीड़ित और वंचित हैं चाहे वे किसी भी जाति, धर्म या विश्वास के मानने वाले हों. मैं उन्हें खोजता हूं जो दुखी हैं और मैं उन्हें गले लगाता हूं. मेरा काम डर और नफरत को खत्म करना है. मुझे सभी जिंदा चीजों से प्यार है. मैं कांग्रेस हूं.’

अब वे यहां ‘मैं कांग्रेस हूं’ की जगह ‘मैं बुद्ध हूं/ मैं गीता हूं/ मैं ईसा मसीह हूं/ मैं पैगम्बर हूं’ सरीखा कोई भी वाक्य लिख सकते थे, बात वही रहती.


Rahul Gandhi

@RahulGandhi

I stand with the last person in the line. The exploited, marginalised and the persecuted. Their religion, caste or beliefs matter little to me.

I seek out those in pain and embrace them. I erase hatred and fear.

I love all living beings.


इस ट्वीट में यों तो कुछ भी गलत नहीं है सिवाय इसके कि ख्यालों का एक निहायत ही बेईमान इजहार है और इजहार एक ऐसी पार्टी के मुखिया ने किया है जो देश की सबसे पुरानी पार्टी है- एक ऐसी पार्टी जिसने देश की आजादी के वक्त तक सत्य और अहिंसा को अपना रहबर बनाया था. महात्मा गांधी को यह बात जरा भी पसंद ना थी कि कोई भाषा का इस्तेमाल अपनी मंशा को छुपाने के लिए करे.

जहां तक ट्वीट का सवाल है, राहुल को बेशक हक है कि वे अपने को धोखे में रखें, उनके इस हक पर किसी को क्या ऐतराज होगा भला. लेकिन लोगों को भुलावा देने के लिए उन्होंने साधु-संन्यासियों वाले मुहावरे का इस्तेमाल किया है सो ऐसे मुहावरे की कारगर काट करना जरूरी है. देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु का व्यक्तित्व विराट था. सो नेहरु और कांग्रेस के अन्य महान नेताओं की विरासत को देखते हुए इसमें कोई शक नहीं कि पार्टी उन दिनों जाति और समुदाय की सीमाओं से परे थी. गांधी से प्रभावित नेहरु का राजनीतिक दर्शन तंग दायरों की कैद से सचमुच आजाद था.

नेहरु-युग के बाद के वक्त में जाति कठोर सियासी सच्चाई बनकर उभरी और इसके बाद से ही कांग्रेस संप्रदायों की खींचतान में ऐसे उलझी कि देश की सियासी रंग-रेखा ही बदल गई. पार्टी का नेतृत्व अगड़ी जाति के एक मजबूत धड़े के इर्द-गिर्द सिमट गया और यह धड़ा दशकों तक दलित और अल्पसंख्यकों का हमदर्द होने का दिखावा करता रहा. लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग पर कांग्रेस के असर को राममनोहर लोहिया से दमदार चुनौती मिली. तमिलनाडु और केरल में कांग्रेस की जमीन अन्नादुरै और सीपीएम के हाथ में खिसक गई, दोनों ने वंचित और अल्पसंख्यक तबके को अपनी ओर खींच लिया.

सन् 1970 के दशक से कांग्रेस का सियासी सफर दरअसल समाज में मौजूद आपसी अलगाव को अपने हक में भुनाने का सफर रहा है. सन् 1970 और 1980 के दशक में देश में दंगे हुए लेकिन ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिलता कि दंगाई भीड़ के खिलाफ इंदिरा गांधी या कांग्रेस का कोई अन्य नेता डटकर खड़ा हुआ हो जबकि गांधी और नेहरु अपनी जान की परवाह ना करते हुए हत्यारी भीड़ के मुकाबिल खड़े होते थे. आजादी के तुरंत बाद नोआखाली (बंगाल, अब बांग्लादेश) और दिल्ली में ऐसा ही हुआ था.

जांति और संप्रदाय को बांटकर सत्ता का खेल

अपने सांप्रदायिक रंगों में एकदम जाहिर देश का पहला चुनाव 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुआ. राहुल के पिता राजीव गांधी को इसका भरपूर फायदा हुआ. इसका बाद इसी चलन पर एक और आजमाइश हुई और अयोध्या में 1987 में रामजन्मभूमि मंदिर का ताला खोल दिया गया. इसके पीछे जाहिर सी मंशा हिन्दुओं को अपने पीछे लामबंद करने की थी और मान लिया गया था कि मुस्लिम तो किसी और पार्टी के पीछे जाएंगे नहीं. लेकिन पार्टी की उम्मीद झूठी साबित हुई. बहरहाल, इस घटना से यह साफ जाहिर हो गया कि कांग्रेस समाज को जाति और संप्रदाय के दायरों में बांटकर पूरे पागलपन के साथ सत्ता का खेल खेलने में लगी है.

लेकिन आज तस्वीर बदल चुकी है. कांग्रेस को सत्ता के खेल में अन्य राजनीतिक दलों, खासकर क्षेत्रीय दलों ने पटखनी दी है और समाजविज्ञानी रजनी कोठारी का वह सूत्रीकरण गलत साबित हुआ है कि जाति की सियासत जातियों का राजनीतीकरण करेगी. उत्तर भारत में क्षेत्रीय दलों की जाति की राजनीति के कारण जाति और समुदायों का हद दर्जे का लठैती भरा सशक्तीकरण हुआ है और शायद ही कोई पार्टी बची है जिसने अपने को इस रोग से बचाकर रखा हो. यहां तक कि हिंदुत्व की राजनीति भी जाति के कामयाब गठजोड़ के बूते आगे बढ़ रही है. हां, यह बात भी सही है कि यूपी और बिहार में मायावती, मुलायम सिंह यादव, लालू प्रसाद यादव और नीतीश कुमार जैसे कद्दावर नेताओं का उभार दलित और ओबीसी जातियों के दावेदारी के कारण मुमकिन हो पाया है.

बीजेपी भी हिंदू समाज को गोलबंद करने के लिए जाति की जोड़-तोड़ की राह पर

बीजेपी भी इसी राह पर है, उसने हिंदुत्व की राजनीति का दामन थामा है साथ ही वह जाति समूहों को अपने पाले में खींचने की जी-तोड़ कोशिश करती है. बीजेपी ने हिंदू समाज को गोलबंद करने के एक ताकतवर उपाय के तौर पर मैदान में ओबीसी के नेता उतारे हैं. ठेठ यही कारण है जो मोदी को लेकर बना ‘चायवाला’ का मुहावरा हमेशा यह जताने के लिए इस्तेमाल होगा कि बीजेपी जितनी ओबीसी जातियों की पार्टी है उतनी ही अगड़ी जातियों की भी. मौजूदा सियासी चौहद्दी के भीतर बीजेपी मानकर चल रही है कि मुस्लिम राजनीतिक तस्वीर से बाहर हैं, भले ही पार्टी ने इस बात को खुले तौर पर जाहिर नहीं किया हो.

ऐसी कठोर सच्चाई को भांप कांग्रेस उत्तर भारत में जातिवादी राजनीति करने वाले समूहों के साथ हाथ मिलाने को मजबूर हुई है. राहुल के मन में मायावती, अखिलेश और लालू यादव के प्रति प्यार उमड़ा है तो उसकी वजह ये है कि इन नेताओं का कुछ जाति समूहों पर अख्तियार चलता है. गुजरात और कर्नाटक में राहुल गांधी ने ‘नरम हिंदुत्व’ की राह पकड़ी, मंदिरों के चक्कर काटे और जाति का संतुलन साधने के लिए जिग्नेश मेवाणी और हार्दिक पटेल के साथ दोस्ती गांठी. राहुल का ट्वीट भले ही किसी पैगंबर के मुंह से निकला हुआ प्रवचन जान पड़ता हो लेकिन उस प्रवचन के पीछे की बदसूरत सच्चाई यही है.

मसीहाई अंदाज अपनाने की जगह राहुल अगर राजनीति के मैदान में राजनीतिक तौर-तरीकों के साथ पेश आएं तो उनकी आगे की राह आसान होगी. राहुल को भले पता ना हो लेकिन लोग जानते हैं कि राजनीति कोई पुण्य कमाने का खेल नहीं है.

 Exams set to return for Class 5, Class 8: NAS report

 Exams set to return for Class 5, Class 8: NAS report, recent board results reveal students aren’t learning much

New Delhi, July 19, 2018: The Lok Sabha on Wednesday passed the amendment seeking revocation of ‘no detention’ policy in classes 5 and 8, enabling states now to allow schools to fail the child if he/she fails in either or both classes and withhold their promotion to the next standard.

Human Resource Development Minister Prakash Javadekar moved the ‘The Right of Children to Free and Compulsory Education (Second Amendment) Bill, 2017’, which sought for regular examination in classes 5 and 8.

While the original Act stipulated that no child admitted in a school shall be held back in any class or expelled from school till the completion of elementary education, the amended Act will now have provisions not only for examination in both these classes, but will also extend powers to the state to hold back children, if they fail in re-examination– also provisioned in the amended Bill.

Moving the Bill, Javadekar said that the amendment was necessary to improve the “learning outcomes” and that the demands for repeal of ‘no detention’ policy was made by many states and Union Territories in recent years which observed students scoring “poor marks”.

“I am very happy that 24 members took part on its (Bill’s) discussion and most spoke in its favour. I have sent you all the results of National Achievement Survey for your districts, you will see how grave the situation is. It has deteriorated between 2012 and 2016.

“What is its cause? The cause is that there’s no accountability anymore. Neither on part of teacher, nor on student,” the Minister said.

He said that the ‘no detention’ has taken to be meant as an exemption from studying and that it has led to a “broken” schooling system.

“This (no detention policy) turned out be like an exemption from studying. That is why this was supported by most states, parents, students association.. In CABE (Central Advisory Board of Education) all but four-five states supported the amendment…. I brought everyone in confidence by leaving the decision to the states.

“If a class 4 student doesn’t know the sums of class 2, then its a broken school system. We have to change this,” he said.

In situation of a student failing the exam, the Bill, he said, provisions for two more attempts at clearing it and remedial training.

अविश्वास प्रस्ताव के जरिए इसे मोदी बनाम राहुल की लड़ाई बनाने की कोशिश कर सकते हैं

 

 

विपक्ष लंबे वक्त से अविश्वास प्रस्ताव की मांग कर रहा था. लेकिन जिस तत्परता के साथ नरेंद्र मोदी सरकार ने अविश्वास प्रस्ताव को स्वीकार किया उससे हर कोई हैरान है. खास कर विपक्षी दल को हैरानी ज्यादा हो रही है. बुधवार को सुबह ठीक साढ़े दस बजे, प्रधानमंत्री संसद भवन पहुंचे और उन्होंने ऐलान किया कि सरकार विपक्ष द्वारा उठाए गए सभी मुद्दों पर चर्चा और बहस के लिए तैयार है.

इसके बाद दो घंटे से भी कम समय के अंदर ही तेलुगू देशम पार्टी के अविश्वास प्रस्ताव को स्पीकर सुमित्रा महाजन ने मंजूरी दे दी. पिछली बार बजट सत्र के दौरान टीडीपी के सांसद अविश्वास प्रस्ताव की मांग करते रहे लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिली थी.

आमतौर पर संसद में सत्र के पहले हफ्ते सांसद नए जोश के साथ आते हैं. इस दौरान यहां शोर शराबा भी खूब होता है. ऐसे में जिस तरीके से सरकार अविश्वास प्रस्ताव का सामना करने के लिए तैयार हो गई है, सत्ता की गलियारों में अटकलों का बाज़ार भी गर्म हो गया है.

पिछली बार विपक्षी दलों ने आरोप लगाया था कि अविश्वास प्रस्ताव से बचने के लिए आखिरी सेशन में पहली पंक्ति में बैठे (treasury bench) सरकार के बड़े नेताओं और मंत्रियों ने हंगामा खड़ा किया था. अगर ऐसा एक बार फिर से मॉनसून सत्र में होता तो इससे विपक्षी दलों को ही फायदा होता. उन्हें एक बार फिर से ये कहने का मौका मिल जाता कि मोदी सरकार अविश्वास प्रस्ताव से बचने की कोशिश कर रही है.

सत्र की शुरुआत में अविश्वास प्रस्ताव पर वोटिंग से सभी दलों को राजनीतिक मुद्दों पर बहस करने का मौका मिल जाएगा. इसी तरह सरकार को भी सारे पेंडिंग मुद्दों पर बहस करने का मौका मिल जाएगा. इसके अलावा मॉनसून सत्र चलने में भी कोई परेशानी नहीं होगी.

4 साल के कामों  को दिखाने के लिए बीजेपी के पास अच्छा मौका

राजनीतिक तौर पर बीजेपी भी इस मौके का इस्तेमाल अपने पिछले चार साल के प्रदर्शन को दिखाने के लिए भी कर सकती है. इसके अलावा वो नए सहयोगियों की तलाश कर सकती है. साथ ही वो विपक्ष की कमजोरियों को भी भांप सकती है. इतना ही नहीं बीजेपी इस मौके को इस्तेमाल ये बताने के लिए भी कर सकती है कि 2019 का चुनाव मोदी बनाम विपक्ष की लड़ाई है.

ये ध्यान रखना दिलचस्प होगा कि अविश्वास प्रस्ताव से पहले, बीजेपी के सांसद और प्रधानमंत्री, भाषण के जरिए इसे मोदी बनाम राहुल की लड़ाई बनाने की कोशिश कर सकते हैं. पिछले एक महीने से इस बात के संकेत भी मिल रहे हैं. शुक्रवार को लोकसभा में इसका और भी प्रमाण मिल जाएगा.

आखिर में सबसे अहम बात, विश्वास मत के बाद अगस्त के तीसरे हफ्ते में बीजेपी ने अपने राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाई है. इस बैठक ने 2019 में होने अगले आम चुनावों की टाइमिंग को लेकर भी अटकलें बढ़ा दी है.

पंजाब पुलिस में कामकाज का ढंग बदलेगा


चंडीगढ़। पंजाब सरकार ने आज गुरूवार को पुलिस कर्मचारियों की नई तबादला नीति जारी कर दी है। नई तबादला नीति के मुताबिक अब एसएचओ तथा मुंशी एक थाने में अधिक से अधिक तीन साल तथा कांस्टेबल और हैड कांस्टेबल पांच वर्ष तक तैनात रह सकेंगे।

नशे की समस्या से जूझ रही सरकार के सामने आये तथ्यों के बाद ऐसे फैसले लेने को मजबूर होना पड़ा। नशे के मामले में तस्करों तथा मौत के सौदागरों से साठगांठ सामने आई है तथा अधिकारी और कर्मचारियों को निलंबित तक करना पड़ा। ऐसा मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिह के निर्देश पर पुलिस के कामकाज में पारदर्शिता लाने तथा निचले रैंक के कर्मचारियों के कथित गठजोड़ को तोड़ने के लिये किया गया है।

नई नीति के तहत यह भी फैसला किया गया है कि कोई भी थाना प्रभारी एसएचओ अपने गृह उप मंडल में तैनात नहीं किया जायेगा। प्रवक्ता के अनुसार अपराधियों तथा निचले रैंक के कर्मियों की साठगांठ की मिली शिकायतें को गंभीरता से लेते हुये पुलिस महानिदेशक सुरेश अरोड़ा को नयी तबादला नीति बनाने को कहा था।

नई तबादला नीति में व्यवस्था की गई है कि आपराधिक मामला दर्ज होने के बाद निचले स्तर का कोई भी पुलिसकर्मी उस जिले में तैनात नहीं रहेगा।रेंज के आई.जी./डी.आई.जी. तुरंत उसे रेंज के किसी अन्य जिले में तैनात करेंगे।नई नीति के अनुसार किसी पुलिस थाने के एसएचओ इंचार्ज का न्यूनतम सेवाकाल एक साल होगा।

एसएचओ के लिए सब-इंस्पेक्टर पद की तैनाती की स्वीकृति दी गई है, वहीं रेगुलर सब-इंस्पेक्टर से कम रैंक का अधिकारी एसएचओ के तौर पर तैनात नहीं किया जायेगा। जहां एसएचओ के लिए इंस्पेक्टर का पद स्वीकृत किया हुआ है, वहां रेगुलर इंस्पेक्टर रैंक से नीचे के अधिकारी को एसएचओ के तौर पर तैनात किया जायेगा।

नई नीति के अनुसार एम.एच.सी. /ए.एम.एच.सी. (मुंशी /अतिरिक्त मुंशी) की तैनाती की मियाद एक पुलिस थाने में तीन साल होगी। उसके बाद अन्य पद के लिए उसका तबादला किया जायेगा। सीआईए इंचार्ज और स्पैशल स्टाफ के इंचार्ज की मियाद आम तौर पर एक साल होगी । इस नीति के अनुसार एक पुलिस थाने में तैनात अतिरिक्त रैंक (अपर सबॉर्डीनेट) की मियाद आम तौर पर तीन साल होगी जो सम्बन्धित एसएसपी /कमिशनर ऑफ पुलिस की तरफ से पाँच साल तक तक बढ़ाई जा सकती है। निचले रैंक के (कांस्टेबल और हैड कांस्टेबल) की तैनाती की एक पुलिस थाने में आम मियाद तीन साल होगी ।

एनडीए एकजुट है : अनंत कुमार


केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार ने इस तरह की सभी अटकलों को खारिज करते हुए साफ कर दिया है कि शिवसेना अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ में वोट करेगी।

शिव सेना ने अभी तक कोई आधिकारिक ब्यान नहीं दिया है।


 

 

मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पर शुक्रवार को संसद में चर्चा होनी है. लेकिन इससे पहले फिर से एक बार खबरे सामने आने लग गई हैं कि एनडीए में शामिल और महाराष्ट्र में बीजेपी के साथ गठबंधन की सरकार चला रही शिवसेना बीजेपी के खिलाफ वोट कर सकती है. हालांकि केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार ने इस तरह की सभी अटकलों को खारिज करते हुए साफ कर दिया है कि शिवसेना अविश्वास प्रस्ताव के खिलाफ में वोट करेगी.

उन्होंने कहा कि पूरा एनडीए एकटुज है. सोनिया गांधी के आंकड़े कमजोर हैं. आपको बता दें कि इस समय एनडीए के पास 535 लोकसभा सदस्यों में से 313 सदस्य हैं. जिसमें की 274 सांसद तो खुद बीजेपी के पास हैं, जो कि टेस्ट पास करने के 268 के आंकड़े से काफी ज्यादा है. वहीं शिवसेना से जुड़े सूत्रों ने समाचार एजेंसी एएनआई को संकेत दिए हैं कि अविश्वास प्रस्ताव पर शिवसेना सरकार का समर्थन कर सकती है. सूत्र ने कहा कि शिवसेना या तो संसद में निष्पक्ष रहेगी फिर सरकार का साथ देगी. अंतिम फैसला कल लिया जाएगा.

इससे पहले संसद के मानसून सत्र के पहले ही दिन बुधवार को लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने सरकार के खिलाफ विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव नोटिस को चर्चा और मतविभाजन के लिए स्वीकार कर लिया. अब इस पर शुक्रवार को चर्चा होगी. कांग्रेस की वरिष्ठ नेता सोनिया गांधी ने संसद भवन परिसर में संवाददाताओं के सवाल के जवाब में कहा था कि किसने कहा कि हमारे पास संख्या नहीं है.’ वहीं पार्टी महासचिव केसी वेणुगोपाल ने संवाददाताओं से कहा था, ‘हम खुश हैं कि लोकसभा अध्यक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव के नोटिस को स्वीकार कर लिया है.

रानी का वंश, जी रहा भुला दिये जाने का दंश

युवराज, उनकी परिषद ओर सिपाह सालार


एक परिवार के चलते कितने ही राजवंशों को भुला चुका है देश।

स्वतन्त्रता संग्राम के गद्दार आज भी सत्ता का सुख भोग रहे हैं।


झांसी के अंतिम संघर्ष में महारानी की पीठ पर बंधा उनका बेटा दामोदर राव (असली नाम आनंद राव) सबको याद है. रानी की चिता जल जाने के बाद उस बेटे का क्या हुआ?
वो कोई कहानी का किरदार भर नहीं था, 1857 के विद्रोह की सबसे महत्वपूर्ण कहानी को जीने वाला राजकुमार था जिसने उसी गुलाम भारत में जिंदगी काटी, जहां उसे भुला कर उसकी मां के नाम की कसमें खाई जा रही थी.

अंग्रेजों ने दामोदर राव को कभी झांसी का वारिस नहीं माना था, सो उसे सरकारी दस्तावेजों में कोई जगह नहीं मिली थी. ज्यादातर हिंदुस्तानियों ने सुभद्रा कुमारी चौहान के कुछ सही, कुछ गलत आलंकारिक वर्णन को ही इतिहास मानकर इतिश्री कर ली.

1959 में छपी वाई एन केलकर की मराठी किताब ‘इतिहासाच्य सहली’ (इतिहास की सैर) में दामोदर राव का इकलौता वर्णन छपा.

महारानी की मृत्यु के बाद दामोदार राव ने एक तरह से अभिशप्त जीवन जिया. उनकी इस बदहाली के जिम्मेदार सिर्फ फिरंगी ही नहीं हिंदुस्तान के लोग भी बराबरी से थे.

आइये, दामोदर की कहानी दामोदर की जुबानी सुनते हैं –

15 नवंबर 1849 को नेवलकर राजपरिवार की एक शाखा में मैं पैदा हुआ. ज्योतिषी ने बताया कि मेरी कुंडली में राज योग है और मैं राजा बनूंगा. ये बात मेरी जिंदगी में सबसे दुर्भाग्यपूर्ण ढंग से सच हुई. तीन साल की उम्र में महाराज ने मुझे गोद ले लिया. गोद लेने की औपचारिक स्वीकृति आने से पहले ही पिताजी नहीं रहे.

मां साहेब (महारानी लक्ष्मीबाई) ने कलकत्ता में लॉर्ड डलहॉजी को संदेश भेजा कि मुझे वारिस मान लिया जाए. मगर ऐसा नहीं हुआ.

डलहॉजी ने आदेश दिया कि झांसी को ब्रिटिश राज में मिला लिया जाएगा. मां साहेब को 5,000 सालाना पेंशन दी जाएगी. इसके साथ ही महाराज की सारी सम्पत्ति भी मां साहेब के पास रहेगी. मां साहेब के बाद मेरा पूरा हक उनके खजाने पर होगा मगर मुझे झांसी का राज नहीं मिलेगा.

इसके अलावा अंग्रेजों के खजाने में पिताजी के सात लाख रुपए भी जमा थे. फिरंगियों ने कहा कि मेरे बालिग होने पर वो पैसा मुझे दे दिया जाएगा.

मां साहेब को ग्वालियर की लड़ाई में शहादत मिली. मेरे सेवकों (रामचंद्र राव देशमुख और काशी बाई) और बाकी लोगों ने बाद में मुझे बताया कि मां ने मुझे पूरी लड़ाई में अपनी पीठ पर बैठा रखा था. मुझे खुद ये ठीक से याद नहीं. इस लड़ाई के बाद हमारे कुल 60 विश्वासपात्र ही जिंदा बच पाए थे.

नन्हें खान रिसालेदार, गनपत राव, रघुनाथ सिंह और रामचंद्र राव देशमुख ने मेरी जिम्मेदारी उठाई. 22 घोड़े और 60 ऊंटों के साथ बुंदेलखंड के चंदेरी की तरफ चल पड़े. हमारे पास खाने, पकाने और रहने के लिए कुछ नहीं था. किसी भी गांव में हमें शरण नहीं मिली. मई-जून की गर्मी में हम पेड़ों तले खुले आसमान के नीचे रात बिताते रहे. शुक्र था कि जंगल के फलों के चलते कभी भूखे सोने की नौबत नहीं आई.

असल दिक्कत बारिश शुरू होने के साथ शुरू हुई. घने जंगल में तेज मानसून में रहना असंभव हो गया. किसी तरह एक गांव के मुखिया ने हमें खाना देने की बात मान ली. रघुनाथ राव की सलाह पर हम 10-10 की टुकड़ियों में बंटकर रहने लगे.

मुखिया ने एक महीने के राशन और ब्रिटिश सेना को खबर न करने की कीमत 500 रुपए, 9 घोड़े और चार ऊंट तय की. हम जिस जगह पर रहे वो किसी झरने के पास थी और खूबसूरत थी.

देखते-देखते दो साल निकल गए. ग्वालियर छोड़ते समय हमारे पास 60,000 रुपए थे, जो अब पूरी तरह खत्म हो गए थे. मेरी तबियत इतनी खराब हो गई कि सबको लगा कि मैं नहीं बचूंगा. मेरे लोग मुखिया से गिड़गिड़ाए कि वो किसी वैद्य का इंतजाम करें.

मेरा इलाज तो हो गया मगर हमें बिना पैसे के वहां रहने नहीं दिया गया. मेरे लोगों ने मुखिया को 200 रुपए दिए और जानवर वापस मांगे. उसने हमें सिर्फ 3 घोड़े वापस दिए. वहां से चलने के बाद हम 24 लोग साथ हो गए.

ग्वालियर के शिप्री में गांव वालों ने हमें बागी के तौर पर पहचान लिया. वहां तीन दिन उन्होंने हमें बंद रखा, फिर सिपाहियों के साथ झालरपाटन के पॉलिटिकल एजेंट के पास भेज दिया. मेरे लोगों ने मुझे पैदल नहीं चलने दिया. वो एक-एक कर मुझे अपनी पीठ पर बैठाते रहे.

हमारे ज्यादातर लोगों को पागलखाने में डाल दिया गया. मां साहेब के रिसालेदार नन्हें खान ने पॉलिटिकल एजेंट से बात की.

उन्होंने मिस्टर फ्लिंक से कहा कि झांसी रानी साहिबा का बच्चा अभी 9-10 साल का है. रानी साहिबा के बाद उसे जंगलों में जानवरों जैसी जिंदगी काटनी पड़ रही है. बच्चे से तो सरकार को कोई नुक्सान नहीं. इसे छोड़ दीजिए पूरा मुल्क आपको दुआएं देगा.

फ्लिंक एक दयालु आदमी थे, उन्होंने सरकार से हमारी पैरवी की. वहां से हम अपने विश्वस्तों के साथ इंदौर के कर्नल सर रिचर्ड शेक्सपियर से मिलने निकल गए. हमारे पास अब कोई पैसा बाकी नहीं था.

सफर का खर्च और खाने के जुगाड़ के लिए मां साहेब के 32 तोले के दो तोड़े हमें देने पड़े. मां साहेब से जुड़ी वही एक आखिरी चीज हमारे पास थी.

इसके बाद 5 मई 1860 को दामोदर राव को इंदौर में 10,000 सालाना की पेंशन अंग्रेजों ने बांध दी. उन्हें सिर्फ सात लोगों को अपने साथ रखने की इजाजत मिली. ब्रिटिश सरकार ने सात लाख रुपए लौटाने से भी इंकार कर दिया.

दामोदर राव के असली पिता की दूसरी पत्नी ने उनको बड़ा किया. 1879 में उनके एक लड़का लक्ष्मण राव हुआ.दामोदर राव के दिन बहुत गरीबी और गुमनामी में बीते। इसके बाद भी अंग्रेज उन पर कड़ी निगरानी रखते थे। दामोदर राव के साथ उनके बेटे लक्ष्मणराव को भी इंदौर से बाहर जाने की इजाजत नहीं थी।


इनके परिवार वाले आज भी इंदौर में ‘झांसीवाले’ सरनेम के साथ रहते हैं. रानी के एक सौतेला भाई चिंतामनराव तांबे भी था. तांबे परिवार इस समय पूना में रहता है. झाँसी के रानी के वंशज इंदौर के अलावा देश के कुछ अन्य भागों में रहते हैं। वे अपने नाम के साथ झाँसीवाले लिखा करते हैं। जब दामोदर राव नेवालकर 5 मई 1860 को इंदौर पहुँचे थे तब इंदौर में रहते हुए उनकी चाची जो दामोदर राव की असली माँ थी। बड़े होने पर दामोदर राव का विवाह करवा देती है लेकिन कुछ ही समय बाद दामोदर राव की पहली पत्नी का देहांत हो जाता है। दामोदर राव की दूसरी शादी से लक्ष्मण राव का जन्म हुआ। दामोदर राव का उदासीन तथा कठिनाई भरा जीवन 28 मई 1906 को इंदौर में समाप्त हो गया। अगली पीढ़ी में लक्ष्मण राव के बेटे कृष्ण राव और चंद्रकांत राव हुए। कृष्ण राव के दो पुत्र मनोहर राव, अरूण राव तथा चंद्रकांत के तीन पुत्र अक्षय चंद्रकांत राव, अतुल चंद्रकांत राव और शांति प्रमोद चंद्रकांत राव हुए।

दामोदर राव चित्रकार थे उन्होंने अपनी माँ के याद में उनके कई चित्र बनाये हैं जो झाँसी परिवार की अमूल्य धरोहर हैं। लक्ष्मण राव तथा कृष्ण राव इंदौर न्यायालय में टाईपिस्ट का कार्य करते थे।
अरूण राव मध्यप्रदेश विद्युत मंडल से बतौर जूनियर इंजीनियर 2002 में सेवानिवृत्त हुए हैं। उनका बेटा योगेश राव सॅाफ्टवेयर इंजीनियर है। वंशजों में प्रपौत्र अरुणराव झाँसीवाला, उनकी धर्मपत्नी वैशाली, बेटे योगेश व बहू प्रीति धन्वंतरिनगर इंदौर में रह रहे हैं।

कांग्रेस के चाटुकारों ने तो सिर्फ नेहरू परिवार की ही गाथा गाई है इन लोगों को तो भुला ही दिया गया है जिन्होंने असली लड़ाई लड़ी थी अंग्रेजो के खिलाफ आइए इस को आगे पीछे बढ़ाएं और लोगों को सच्चाई से अवगत कराए

आज का पांचांग

विक्रम संवत – 2075
अयन – दक्षिणायन
गोलार्ध – उत्तर
ऋतु – वर्षा
मास – आषाढ
पक्ष – शुक्ल
तिथि – सप्तमी
नक्षत्र – हस्त
योग – शिव
करण – विणिज

राहुकाल:-
1:30PM – 3:00PM
🌞सूर्योदय – 05:36 (चण्डीगढ)
🌞सूर्यास्त – 19: 21 (चण्डीगढ)
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चोघड़िया मुहूर्त- एक दिन में सात प्रकार के चोघड़िया मुहूर्त आते हैं, जिनमें से तीन शुभ और तीन अशुभ व एक तटस्थ माने जाते हैं। इनकी गुजरात में अधिक मान्यता है। नए कार्य शुभ चोघड़िया मुहूर्त में प्रारंभ करने चाहिएः-
दिन का चौघड़िया (दिल्ली)
चौघड़िया प्रारंभ अंत विवरण
शुभ 05:35 07:18 शुभ
लाभ 12:27 14:10 शुभ
अमृत 14:10 15:53 शुभ
शुभ 17:36 19:19 शुभ
रात्रि का चौघड़िया (दिल्ली)
चौघड़िया प्रारंभ अंत विवरण
अमृत 19:19 20:36 शुभ
लाभ 00:27 01:44 शुभ
शुभ 03:01 04:18 शुभ
अमृत 04:18 05:35 शुभ

कौन कहता है कि हमारे पास संख्या बल नहीं है: सोनीया


अविश्वास प्रस्ताव की मंजूरी के बाद अब 20 जुलाई को संसद के दोनों सदनों में इस पर चर्चा होगी

क्या मोदी का हश्र भी अटल जी जैसा होगा? परिस्थितियाँ ठीक वैसी ही हैं, और तकरीबन उन्ही राज्यों मे विधान सभा चुनाव हैं 


संसद का मॉनसून सत्र आज यानी बुधवार से शुरू हो गया है और10 अगस्त तक जारी रहेगा. मॉनसून सत्र के पहले दिन ही कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी पार्टियों ने केंद्र सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पेश कर दिया. इस प्रस्ताव को लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन ने चर्चा के लिए मंजूर कर लिया है. लेकिन अब सवाल ये है कि क्या प्रस्ताव लाने के लिए विपक्ष के पास पर्याप्त संख्याबल है. इस सवाल पर यूपीए की चेयरपर्सन सोनिया गांधी ने कहा, ‘ कौन कहता है, हमारे पास नंबर नहीं है?’

अविश्वास प्रस्ताव पर 20 जुलाई को होगी चर्चा

अविश्वास प्रस्ताव की मंजूरी के बाद अब 20 जुलाई को इस पर चर्चा होगी. हालांकि प्रस्ताव के मंजूर होते ही सबकि नजरें अब उन पार्टियों पर हैं जो एनडीए में होते हुए भी सरकार को धोखा दे सकती हैं.

मोदी सरकार पर क्या पड़ेगा असर?

केंद्र की मोदी सरकार का यह पहला अविश्वास प्रस्ताव है. अगर आंकड़ों की बात करें, तो विपक्ष के अविश्वास प्रस्ताव से एनडीए सरकार को कोई खतरा नहीं है. मौजूदा वक्त में नरेंद्र मोदी सरकार के पास एनडीए के सभी सहयोगी दलों को मिलाकर लोकसभा में 310 सांसद हैं. ऐसे में विपक्ष का अविश्वास प्रत्साव सिर्फ एक सांकेतिक विरोध के तौर पर ही माना जाएगा. यह भी रेकॉर्ड में आ जाएगा कि मोदी सरकार बिना अविश्वास प्रस्ताव के पाँच साल काम नहीं कर पायी।

लोकसभा में सीटों की स्थिति

अभी लोकसभा में बीजेपी के  273 सांसद हैं. कांग्रेस के 48, एआईएडीएमके के 37, तृणमूल कांग्रेस के 34, बीजेडी के 20, शिवसेना के 18, टीडीपी के 16, टीआरएस के 11, सीपीआई (एम) के 9, वाईएसआर कांग्रेस के 9, समाजवादी पार्टी के 7, इनके अलावा 26 अन्य पार्टियों के 58 सांसद है. पांच सीटें अभी भी खाली हैं.

ऐतिहासिक तथ्य है कि अटल सरकार को भी आखिरी कुछ महीनों मे सोनिया गांधी ने अविश्वास प्रस्ताव से गिराया ओर पुन: सत्ता हासिल कि। उस समय भी 4 राज्यों मे चुनाव होने बाकी थे। सोनिया जी को इतिहास कि पुनरावृत्ति कि उम्मीद भी हो सकती है।

जब आडवाणी राजनीति में तो मैं क्यों हट जाऊँ: दिग्विजय सिंह

कांग्रेस वर्किंग कमेटी (सीडबल्यूसी) से बाहर किए जाने के बाद मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने कहा है कि वह चाहे कहीं भी रहें, नफरत की राजनीति के खिलाफ लड़ते रहेंगे.

उन्होंने भावुक अंदाज में कहा कि पार्टी ने मुझे बहुत कुछ दिया है और मुझ पर विश्वास भी किया है. उन्होंने सीडब्ल्यूसी में बदलाव के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि उनकी विचारधारा नफरत और हिंसा के खिलाफ है और ऐसी ताकतों से वह अपनी अंतिम सांस तक लड़ते रहेंगे.

मंगलवार को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कांग्रेस वर्किंग कमेटी के 23 सदस्यों की लिस्ट जारी की थी. इसके साथ ही 18 स्थायी आमंत्रित सदस्य और 10 विशेष आमंत्रित सदस्य भी शामिल किए गए.

राहुल गांधी ने यह फैसला ऐसे वक्त लिया है, जब मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. हालांकि, राज्य के एक और दूसरे बड़े नेता कमलनाथ भी इस लिस्ट से गायब हैं. लेकिन उन्हें मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी की जिम्मेदारी सौंपी जा चुकी है. ऐसे में पहले ही राहुल के पसंदीदा नेताओं की फेहरिस्त से बाहर चल रहे दिग्विजय सिंह का सीडबल्यूसी से आउट होने उनके राजनीतिक कद को बड़ा झटका देने वाला कदम माना जा रहा है. हालांकि, दिग्विजय सिंह ने कहा है कि उन्हें नेताओं से कॉर्डिनेट कर चुनाव में जीत सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी दी गई है.

राजनीति से रिटायर हो जाने के सवाल पर दिग्विजय सिंह ने कहा कि चुनाव के बाद आगे की रणनीति पर काम किया जाएगा. साथ ही उन्होंने बीजेपी के वयोवृद्ध नेता लालकृष्ण आडवाणी का जिक्र करते हुए कहा कि जब आसपास आडवाणी जी हों तो मुझे क्यों रिटायर हो जाना चाहिए. उन्होंने स्पष्ट कहा कि वह अपनी अंतिम सांस तक पार्टी के लिए काम करेंगे.