उपेंद्र कुशवाह अभी पर्दा उठाना बाकी है
कुशवाहा की ना-नुकूर और सख्त और साफ लहजे में नीतीश कुमार के प्रति दिखाई गई तल्खी से सवाल खड़ा होने लगता है कि क्या एनडीए को छोड़ कर कुशवाहा अब दूसरे गठबंधन की तरफ तो हाथ नहीं बढ़ाने वाले हैं.
राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री उपेंद्र कुशवाहा का न्यूज 18 के साथ साक्षात्कार में दिया बयान बिहार की सियासी उथल-पुथल को बयां करने वाला है. अपने साक्षात्कार के दौरान आरएलएसपी अध्यक्ष ने कहा ‘नीतीश कुमार 15 सालों से बिहार के मुख्यमंत्री के पद पर हैं और अब समय आ गया है कि वो किसी और को मौका देने पर विचार करें.’
कुशवाहा ने कहा है ‘15 साल का वक्त किसी नेता को अपनी क्षमता साबित करने का लंबा वक्त होता है, लिहाजा अब समय आ गया है उन्हें अब एक और कार्यकाल की दावेदारी छोड़ देनी चाहिए.’
उपेंद्र कुशवाहा मौजूदा वक्त में बिहार में एनडीए के सहयोगी हैं. केंद्र सरकार में मंत्री भी हैं. लिहाजा उनकी तरफ से नीतीश कुमार के खिलाफ इस तरह का बयान आना एनडीए की सेहत के लिहाज से माकूल नहीं लग रहा है. आईए समझने की कोशिश करते हैं आखिरकार कुशवाहा ने ऐसा बयान क्यों दिया और इस बयान की टाइमिंग कितनी सटीक है ?
अभी इसी महीने की बारह तारीख को बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह पटना में थे. उस दिन पटना में नीतीश कुमार के साथ उनकी मुलाकात के बाद जो संकेत मिला उसमें साफ हो गया कि बिहार में लोकसभा चुनाव में बीजेपी नीतीश कुमार को पूरा सम्मान भी देगी और सीट शेयरिंग में भी उचित स्थान देगी.
गौरतलब है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में नीतीश कुमार की जेडीयू अलग होकर चुनाव लड़ी थीं, जिसके चलते रामविलास पासवान और उपेंद्र कुशवाहा की एनडीए में एंट्री हो गई थी. एलजेपी ने सात जबकि कुशवाहा की उस वक्त नई-नवेली पार्टी आरएलएसपी ने भी तीन सीटों पर चुनाव लड़ा था. एलजेपी ने छह और कुशवाहा की पार्टी ने सभी तीन सीटों पर चुनाव जीता था.
लेकिन, अब हालात बदल गए हैं. नीतीश कुमार की एनडीए में वापसी के बाद उपेंद्र कुशवाहा को लग रहा है कि उनकी हैसियत अब पहले की तुलना में घट रही है. बल्कि बीजेपी की तरफ से आ रहे संकेतों से भी एहसास होता रहा है कि नीतीश की घर वापसी के बाद बीजेपी के साथ-साथ उसके पुराने सहयोगियों को भी कुछ सीटों पर ‘त्याग’ करना होगा. बस यही बात कुशवाहा को अखर रही है.
उपेंद्र कुशवाहा की तरफ से आ रहे बयानों में बार-बार बीजेपी के बजाए नीतीश कुमार पर निशाना ज्यादा रहता है. कुशवाहा को लगता है कि नीतीश कुमार के एनडीए में इंट्री के चलते ही उनके बढ़ते कद पर विराम लगाने की कोशिश की जा रही है.
उनकी पार्टी के नेताओं की तरफ से आ रहे बयान से भी यह साफ हो जाता है. पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष नागमणि ने पहले ही साफ कर दिया है कि उनकी पार्टी आरएलएसपी नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू से बड़ी पार्टी है.
पिछले लोकसभा चुनाव में आरएलएसपी को तीन जबकि जेडीयू को महज दो सीटों पर ही जीत मिली थी. इसके अलावा नागमणि हर बार वोट बैंक और जातीय समीकरण के लिहाज से भी यह बताने की कोशिश करते रहते हैं कि नीतीश कुमार की तुलना में कुशवाहा की ताकत कहीं ज्यादा बड़ी है.
आरएलएसपी का दावा है कि नीतीश कुमार के पास महज एक से डेढ़ फीसदी का ही वोट बैंक बचा है, जबकि आरएलएसपी का वोट प्रतिशत दस फीसदी से भी ज्यादा है. ऐसा मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के जातीय समीकरण के हिसाब से आरएलएसपी दावा करती है.
नीतीश कुमार ने बिहार में विकास के साथ-साथ सामाजिक समीकरण को भी ठीक तरीके से साधा है. लव-कुश समीकरण के सहारे नीतीश कुमार ने बिहार के वड़े वोट बैंक को साध कर रखा है. लव मतलब कूर्मी समुदाय का वोट और कुश मतलब कुशवाहा यानी कोईरी समुदाय का वोट.
अब उपेंद्र कुशवाहा इसी समीकरण में बिखराव कर अपने लिए जमीन तलाश रहे हैं. कुशवाहा और उनकी पार्टी के लोगों की भी यही दलील है कि कुशवाहा समुदाय का वोट बैंक नीतीश कुमार के लव यानी कूर्मी समुदाय के वोट बैंक से ज्यादा है. हालाकि अभी भी नीतीश कुमार के पास दोनों समुदायों में अच्छी पकड़ है.
लेकिन, उपेंद्र कुशवाहा और उनकी पार्टी के लोगों का दावा है कि इस बार उनकी पार्टी जिधर होगी उधर ही कुशवाहा समुदाय होगा. इसी वोट बैंक को मुद्दा बनाकर उपेंद्र कुशवाहा बीजेपी पर दबाव बनाने में लगे हैं.
लेकिन, बीजेपी इस बात को समझ रही है कि अभी भी बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार प्रदेश में बड़े नेता हैं और उनको साथ लेकर आरजेडी को मात दी जा सकती है. लिहाजा बीजेपी ने नीतीश कुमार को बाकी सहयोगी दलों की तुलना में ज्यादा महत्व दिया है.
ऐसे में गठबंधन के भीतर कुशवाहा की तरफ से अपने ही सहयोगी दल के मुख्यमंत्री को कुर्सी छोड़ने की नसीहत उनके अगले कदम को लेकर भी इशारा कर रही है. उपेंद्र कुशवाहा के दिल में मुख्यमंत्री पद पर बैठने की चाहत है. इसको लेकर उनकी पार्टी के लोग खुलकर बोलते भी रहे हैं. लेकिन, नीतीश कुमार के एनडीए में आने से कुशवाहा की यह चाहत आगे परवान चढ़ पाएगी ऐसा मुमकिन नहीं लग रहा है.
यही वजह है कि अब कुशवाहा की तरफ से खुलकर नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोला जा रहा है. ऐसे वक्त में उपेंद्र कुशवाहा के अगले कदम को लेकर भी अटकलें लगती रहती हैं.
कुशवाहा की ना-नुकूर और सख्त और साफ लहजे में नीतीश कुमार के प्रति दिखाई गई तल्खी से सवाल खड़ा होने लगता है कि क्या एनडीए को छोड़ कर कुशवाहा अब दूसरे गठबंधन की तरफ तो हाथ नहीं बढ़ाने वाले हैं. आरजेडी के नेतृत्व वाले महागठबंधन में इस तरह की संभावना दिख भी जाती है, क्योंकि कुशवाहा को ज्यादा सीटें मिलने पर वो नीतीश के बजाए लालू के साथ रहना ज्यादा पसंद करेंगे.
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