हम पैट्रोलियम मंत्रालय की दया पर नहीं है : सर्वोच्च न्यायालय
पीठ ने यह टिप्पणियां उस वक्त कीं जब शीर्ष अदालत को सूचित किया गया कि इस मंत्रालय ने रविवार को ही पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को पेट कोक के आयात पर प्रतिबंध लगाने के मुद्दे से अवगत कराया है
सुप्रीम कोर्ट ने औद्योगिक इकाइयों में पेट कोक के इस्तेमाल से संबंधित मामले में नाराजगी के साथ फटकार लगाई कि क्या पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय खुद को भगवान या सुपर सरकार मानता है. और सोचता है कि बेरोजगार जज उसकी दया पर हैं. जस्टिस मदन बी लोकूर और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने यह तीखी टिप्पणियां उस वक्त कीं जब शीर्ष अदालत को सूचित किया गया कि इस मंत्रालय ने रविवार को ही पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को पेट कोक के आयात पर प्रतिबंध लगाने के मुद्दे से अवगत कराया है. यह कोक औद्योगिक ईंधन के रूप में इस्तेमाल होता है.
शीर्ष अदालत ने इस रवैये पर कड़ा रूख अपनाते हुए पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय पर इस लापरवाही के लिए 25 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया. अदालत दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु प्रदूषण की समस्या को लेकर पर्यावरणविद् अधिवक्ता महेश चन्द्र मेहता द्वारा 1985 में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा था.
शीर्ष अदालत ने दिल्ली सरकार पर भी एक लाख रूपए का जुर्माना किया क्योंकि उसने राजधानी में अनेक रास्तों पर यातायात अवरूद्ध होने की समस्या को दूर करने के लिए कोई समयबद्ध स्थिति रिपोर्ट पेश नहीं की. पीठ ने कहा कि दस मई के अदालत के आदेश के अनुसार दिल्ली सरकार को छह सप्ताह के भीतर इस बारे में हलफनामा दाखिल करना था लेकिन उसने न तो ऐसा किया और न ही उसकी ओर से कोई वकील उपस्थित हुआ. पीठ ने कहा कि दिल्ली सरकार इन आदेशों के प्रति गंभीर नहीं है.
पीठ ने पेट्रोलियम एंव प्राकृतिक गैस मंत्रालय के खिलाफ ये तल्ख टिप्पणियां उस वक्त कीं जब अतिरिक्त सालिसीटर जनरल एएनएस नाडकर्णी ने उसे सूचित किया कि इस मंत्रालय से उसे कल ही जवाब मिला है. इस पर नाराजगी व्यक्त करते हुये पीठ ने कहा, ‘क्या पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय भगवान है? क्या वे भगवान हैं? उनसे कह दीजिये कि वे पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय की बजाए अपना नाम बदल कर भगवान कर लें.’
पीठ ने कहा, ‘क्या पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय सुपर सरकार है? क्या वह भारत सरकार से ऊपर है? हमें बताएं कि पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय की क्या हैसियत है? वे किसी भी आदेश का पालन क्यों नहीं कर रहे हैं?’
नाडकर्णी ने जब यह कहा कि उनका हलफनामा तैयार है और इसे आज ही दाखिल कर दिया जाएगा तो जस्टिस लोकुर ने पलट कर कहा, ‘यदि वे (पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय) आदेशों पर अमल नहीं करना चाहते हैं तो वे पालन नहीं करें. और क्या वे सोचते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के बेरोजगार जज उन्हें समय देंगे. क्यों हमें उनकी दया पर रहना होगा.’
पीठ ने अतिरिक्त् सालिसीटर जनरल को दिन में हलफनामा दाखिल करने की अनुमति देते हुए कहा, ‘हम पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को जवाब भेजने के लिए अपने हिसाब से वक्त लगाने के पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के रवैये से आश्चर्यचकित हैं. यह विलंब सिर्फ पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय की ‘सुस्ती’ के कारण हुआ है.’
पीठ ने इस मंत्रालय पर 25 हजार रुपए लगाते हुए कहा कि यदि जुर्माने की राशि सुप्रीम कोर्ट सेवा प्राधिकरण में 13 जुलाई तक जमा नहीं कराई गई तो वह जुर्माने की राशि बढ़ा देगी. अदालत इस मामले में अब 16 जुलाई को आगे सुनवाई करेगा.
इससे पहले, संक्षिप्त सुनवाई के दौरान न्याय मित्र की भूमिका निभा रही वकील अपराजिता सिंह ने कहा कि पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय को पेट कोक के आयात पर प्रतिबंध लगाने तथा प्राकृतिक गैस की आपूर्ति के बारे में जवाब देना था.
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