Saturday, December 7


क्षेत्रीय पार्टियों ने आशंका जताई है कि एक साथ चुनाव कराने पर राष्ट्रीय पार्टियां और राष्ट्रीय मुद्दे चुनावी माहौल में ज्यादा हावी हो जाएंगे और इसका नुकसान छोटी पार्टियों को उठाना पड़ेगा


देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ कराने को लेकर गंभीर विचार-विमर्श जारी है. कई पार्टियों ने इसके समर्थन में हामी भरी है तो कांग्रेस और लेफ्ट जैसी पार्टियों ने इसमें दिलचस्पी नहीं दिखाई है.

तेलंगाना के मुख्यमंत्री और तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) अध्यक्ष के. चंद्रशेखर राव ने एकसाथ चुनाव कराए जाने का समर्थन किया है और इस बाबत विधि आयोग को पत्र भी लिखा है.

समाजवादी पार्टी के नेता राम गोपाल यादव ने भी अपना समर्थन जाहिर करते हुए कहा कि उनकी पार्टी एक देश-एक चुनाव के पक्ष में है लेकिन यह 2019 से शुरू होना चाहिए. यादव ने मांग की कि कोई जनप्रतिनिधि अगर पार्टी बदलता है या खरीद-फरोख्त में लिप्त पाया जाता है तो उसके खिलाफ एक हफ्ते में कार्रवाई का प्रावधान होना चाहिए.

तृणमूल कांग्रेस, सीपीआई ओर डीएमके ने पुरजोर विरोध जताया है

इस बीच, क्षेत्रीय पार्टियों ने आशंका जताई है कि लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ कराने पर राष्ट्रीय पार्टियां और राष्ट्रीय मुद्दे चुनावी माहौल में ज्यादा हावी हो जाएंगे और इसका नुकसान छोटी पार्टियों को उठाना पड़ेगा. तृणमूल कांग्रेस और सीपीआई ने विधि आयोग की बैठक में हिस्सा तो लिया लेकिन दोनों पार्टियों ने एक साथ चुनाव कराने के विचार का जोरदार विरोध किया. दक्षिण की पार्टी डीएमके के कार्यकारी अध्यक्ष एमके स्टालिन भी इसके विरोध में हैं. उनके मुताबिक एकसाथ चुनाव कराया जाना संविधान के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है.

उधर, एनडीए की सहयोगी पार्टी शिरोमणि अकाली दल (एसएडी) ने एक साथ चुनाव कराने का समर्थन करते हुए कहा कि इससे पार्टियों के खर्च में कमी आएगी और विकास कार्यों को रोकने वाली आदर्श आचार संहिता की अवधि कम होगी. एसएडी का प्रतिनिधित्व पार्टी के राज्यसभा सदस्य नरेश गुजराल ने किया. उन्होंने लोकसभा और विधानसभा चुनाव साथ कराने के लिए किसी विधानसभा का कार्यकाल बढ़ाए जाने की स्थिति में राज्यसभा चुनावों पर पड़ने वाले प्रभाव का मुद्दा उठाया.

बीजेपी नेता सुब्रह्मणियम स्वामी ने एक साथ चुनाव कराए जाने के प्रस्ताव का समर्थन किया है और कहा है कि यह विपक्षी पार्टियों के ऊपर है कि वे इसका समर्थन करते हैं विरोध.स्वामी ने कहा, यह कांग्रेस और सीपीएम पर निर्भर करता है कि वे इसका समर्थन करते हैं या नहीं. उन्होंने कहा, बार-बार चुनावों पर इतना ज्यादा पैसा खर्च करने का क्या मतलब.

टीएमसी और सीपीआई ने इस प्रस्ताव को ‘अव्यावहारिक और अलोकतांत्रिक’ बताया है

तमिलनाडु में सत्ताधारी एआईएडीएमके ने कहा कि यदि जरूरी ही है तो एक साथ चुनाव 2024 में कराए जाएं और उससे पहले कतई नहीं. सूत्रों ने बताया कि पार्टी का यह भी मानना है कि तमिलनाडु विधानसभा को अपना कार्यकाल पूरा करने की इजाजत दी जानी चाहिए और लोकसभा चुनाव अपने कार्यक्रम के अनुसार कराए जाने चाहिए.

टीएमसी ने एक साथ चुनाव कराने के प्रस्ताव को ‘अव्यावहारिक और अलोकतांत्रिक’ बताया है. सीपीआई, एआईडीयूएफ और गोवा फॉरवर्ड पार्टी ने भी ऐसी ही राय जाहिर की है.

कांग्रेस ने कहा कि वह इस बाबत अपने कदम पर फैसला करने से पहले अन्य विपक्षी पार्टियों से विचार-विमर्श करेगी.

विधि आयोग का क्या है प्रस्ताव?

विधि आयोग के एक प्रस्ताव में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव साथ कराने की सिफारिश की गई है लेकिन कहा गया है कि यह चुनाव दो चरणों में कराए जाएं और इसकी शुरुआत 2019 से हो. आयोग के दस्तावेज के मुताबिक, एक साथ चुनाव का दूसरा चरण 2024 में होना चाहिए. इस दस्तावेज में संविधान और जन प्रतिनिधित्व कानून में संशोधन का प्रस्ताव किया गया है ताकि इस कदम को प्रभावी बनाने के लिए विधानसभाओं के कार्यकाल में विस्तार किया जाए या कमी की जाए.

पहले चरण में उन राज्यों को शामिल किया जाएगा जहां 2021 में विधानसभा चुनाव होने हैं. उत्तर प्रदेश, गुजरात, कर्नाटक, दिल्ली और पंजाब जैसे राज्य दूसरे चरण में शामिल होंगे. इन राज्यों में लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव कराने के लिए इनकी विधानसभाओं के कार्यकाल बढ़ाने होंगे.