बिहार में शराब बंदी फेल, चुनावी मुद्दा हो सकता है


पिछले दो वर्ष में शराब की खपत में कई गुना वृद्धि हुई है. बिक्री और गुप्त रूप से घर में बनाने का धंधा कुकुरमुत्ते की रफ्तार में बढ़ रहा है


हिंदू पौराणिक कथा में रक्तबीज नामक राक्षस का जिक्र आता है. इसके जिस्म से जब एक बूंद रक्त जमीन पर गिरता था तो सैकड़ों राक्षस पैदा हो जाते थे. अभी बिहार में उस नरभक्षी राक्षस की तुलना शराबबंदी से की जा रही है क्योंकि शराबबंदी के सारे प्रयास फेल हैं. सरकारी दावा मात्र दिखावा है. पिछले दो वर्ष में शराब की खपत में कई गुना वृद्धि हुई है. बिक्री और गुप्त रूप से घर में बनाने का धंधा कुकुरमुत्ते की रफ्तार में बढ़ रहा है.

कठोर हकीकत है कि शराबबंदी नीतीश कुमार की गले की फांस बन गई है. न निगलते बन रहा है और न ही उगलते. इनको गुमान था कि मां दुर्गा ने चामुंडा अवतार में जिस विधि का प्रयोग करके रक्तबीज का वध किया और उसके खून को जमीन पर गिरने नहीं दिया, कुछ वैसा ही कमाल करके हम भी बिहार को पूर्णरूप से दारू मुक्त कर देंगे. लेकिन लड़ाई हारे हुए योद्धा की तरह अब जनता के बीच कह रहे हैं कि ‘मर्डर रोकने का तो सख्त कानून देश में बना है फिर भी खून तो होते ही रहते हैं.’

हाल में इंस्पेक्टर से डीएसपी बने एक पुलिस अधिकारी ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि ‘प्रदेश में दारू की खपत पहले से 10 गुणा बढ़ गई है. मेरी अपनी सोच है कि अगले चुनाव में शराबबंदी बहुत बड़ा मुद्दा बनेगा- सगुण नहीं बल्कि निर्गुण रूप में.’ उसन ईमानदारी से उदाहरण सहित बताया कि कैसे जनता से लेकर अधिकारी और नेता शराबबंदी के खिलाफ तेज गति से लेकिन बिना शोरगुल के गोलबंद हो रहे हैं.

जनता से लेकर अधिकारी और नेता शराबबंदी के खिलाफ गोलबंद

सरकारी आंकड़े बताते हैं कि पिछले दो वर्षों में शराबबंदी को सफल बनाने के लिए करीब 6 लाख छापेमारी की गई जिसमें 1 लाख 21 हजार लोग हिरासत में लिए गए. 30 लाख लीटर अंग्रेजी और देशी शराब जब्त हुई. शराबबंदी सफल बनाने के लिए नीतीश कुमार सरकार ने सख्त कानून बनाए. दो बूंद पीने पर भी 5 साल जेल और 10 लाख रुपए तक जुर्माना. ‘पियक्कड़’ के परिवार के महिला, पुरूष को भी जेल. बस में कोई यात्री एक बोतल के साथ पकड़ाया तो बस भी सीज.

पटना हाईकोर्ट ने सरकार से पूछा ‘अगर रेलगाड़ी में कोई यात्री एक बोतल के साथ अरेस्ट होगा तो आप ट्रेन भी जब्त करेंगे?’ कोर्ट में सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले वरीय अधिवक्ता सिर नीचे झुकाकर जमीन देखने लगे.

जेल व्यवस्था चरमराई

प्रदेश में कुल 58 जेल हैं. दारू कैदियों की संख्या बढ़ने के कारण लगभग 30 जेलों में काफी भीड़ हो गई है. बेतिया कारा में 630 कैदी रखने की क्षमता है. वहां 1580 शराबबंदी कानून तोड़क कैदी पहुंच गए हैं. जेल के अंदर की अराजक स्थिति का अनुमान सहज लगाया जा सकता है. भोजन, खाना, पानी, सोने, बैठने की कुप्रबंधता के खिलाफ कैदियों ने कारा में 26 जून को आमरण अनशन कर दिया था. प्रशासन के बहुत समझाने पर शांत हुए थे. कचहरी के वकील और ताईद भी बंदी कानून की डंक झेल रहे गरीबों को खूब चूस रहे हैं.

दारूबंदी केस में अरेस्ट किए गए लोगों में 95 प्रतिशत अनुसूचित जाति और अति पिछड़ा समाज से आते हैं. दारू पीेने, रखने, बेचने और बनाने के धंधे में भी इसी समाज के बच्चे, महिलाएं, युवक इत्यादि ज्यादा सक्रिय हैं. तथाकथित उच्च वर्ग और मंडल के बाद नवधनाढ्य अवतार में आए बहुत सारे सबल लोग चंडीगढ़, वाराणसी, रांची, दिल्ली और कोलकाता में रहकर दारूबंदी कानून का अपने तरीके से मखौल उड़ा रहे हैं. जितने भी रसूखदार पकड़े जाते हैं उनके खिलाफ पुलिस सख्त नहीं है. मुजफ्फरपुर का एसएसपी सबूत के साथ पकड़ में आया. क्या कार्रवाई की गई, ये पुलिस भी बताने से परहेज करती है. ‘सर ये हाई प्रोफाईल मामला है. काहे हमको फंसा रहे हैं?’ ये जवाब है केस देख रहे एक पुलिस अफसर का.

नेता और जनता देख रहे हैं कि कानून के आड़ में कितने पुलिस जुर्म हुए और कितने दारोगा करोड़पति बन गए. सोमवार को पटना जिला के पालीगंज थाना का अनुसूचित जाति मुसहर के सैकड़ों पुरूष और महिलाओं ने घेराव किया. इनका आरोप है कि पुलिस वाले दारू के नाम पर आए दिन उन्हें परेशान करते रहते हैं.

दारूबंदी के कारण गांजा पीने वालों की संख्या में बेतहाशा वृद्धि हुई है. बीबीसी हिंदी ने नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के जोनल डायरेक्टर टी एन सिंह के हवाले से एक सप्ताह पहले लिखा है कि ‘बिहार में गांजे की आवक और खपत दोनों बढ़ी है. गांजा के कारोबार से जुड़े लोग अब ज्यादा सक्रिय हो गए हैं, जिसकी पुष्टि हमारे जब्ती के आंकड़े करते हैं.’ नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो के आंकड़े बताते हैं कि साल 2016 में 496.03 किलो गांजा जब्त हुआ था, जबकि 2017 फरवरी तक 688.47 किलो गांजा जब्त हो चुका है.

शराबबंदी के बाद सबसे खतरनाक तरीके से कफ सीरप, अलप्रेक्स, नाईट्रोसिन, वेलियम, प्राक्सीवौन टैब्लेट की खपत बढ़ गई है. कई डाक्टरों और नशा मुक्ति केंद्र संचालिकाओं ने फ़र्स्टपोस्ट हिंदी को बताया कि ‘हमलोग के पास गांजा, फार्टवीन और मार्फिन इन्जेक्शन इस्तमाल करने वाले बहुत रोगी आ रहे हैं.’ दारू पियक्कड़ इसलिए अस्पताल या डी-एडीक्शन सेंटर में आने से डरते हैं कि डॉक्टर उन्हें पुलिस से पकड़वा देंगे.

नेता पहले ही कर रहे हैं विरोध

बहरहाल, धीरे धीरे हर दल के नेतृत्व ने यह महसूस करना शुरू कर दिया है कि शराबबंदी का असर चुनाव पर पड़ेगा. आरजेडी के कई नेता तो खुलकर बोल रहे हैं कि महाभारत 2019 में अगर केंद्र से नरेंद्र मोदी सरकार का नवीनीकरण नहीं होगा तो सबसे पहला काम होगा नीतीश सरकार की बर्खास्तगी और शराबबंदी कानून का खात्मा. बंद कमरे में बीजपी और जनता दल यू के भी कई वरिष्ठ नेता और मंत्री स्वीकारते हैं कि बंदी कानून अव्यावहारिक और चुनाव हराने वाला है. ‘हमने तो पिछले चुनाव में 15 लाख का दारू अपने वोटरों के बीच बांटा था तब जीते’. ऐसा कहना एक मंत्री का है.

वैसे, नीतीश कुमार सरकार ने जब अप्रैल 5, 2016 को शराबबंदी कानून लागू किया था तो केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बंदी कानून को तुगलकी फरमान कहा था. राम विलास पासवान और उपेंद्र कुशवाहा ने भी अपने बयान में कहा था कि शराबबंदी के नाम पर गरीब लोगों को परेशान किया जा रहा है. बीजेपी के सीनियर नेता शहनवाज हुसैन ने तो यहां तक कह दिया था कि ‘नीतीश कुमार ने बिना किसी से राय मशविरा किए अपने मन से अटपटा कानून थोप दिया है.’

पटना के एक लोकल टीवी चैनल ने हाल ही में शराबबंदी के मौजूदा हालात पर जनता के बीच जाकर एक सर्वे किया है, जिसमें 90 प्रतिशत भागीदारों ने माना है कि बंदी फेल है. आसानी से मिलता है. गरीब परेशान किए जा रहे हैं. अमीरों और अफसरों की चांदी है.

इसी बीच, खबर ये भी आ रही है कि नीतीश कुमार सरकार बंदी कानून को लोचदार बनाने पर विचार कर रही है. जुलाई 22 से शुरू हो रही विधानसभा के मॉनसून सत्र में बिल भी लाया जा सकता है, ऐसी चर्चा है. हो सकता है नीतीश कुमार को ये अहसास हो गया है कि वो चामुंडा का अवतार कभी नहीं ले सकते हैं. हर कोण से ये दिख रहा है कि शराबबंदी ‘निर्गुण’ आकार में अगले चुनाव का प्रमुख मुद्दा बनेगा.

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