मौत के नौवें दिन भी आयुष का शव बगैर पोस्टमार्टम सेक्टर-16 अस्पताल में पड़ा

आयुष के मौत के नौवें दिन भी चंडीगढ़ पुलिस के तानाशाही के कारण आयुष का शव बगैर पोस्टमार्टम सेक्टर-16 अस्पताल में पड़ा है । चंडीगढ़ की आवाज के चेयरमैन अविनाश सिंहशर्मा एवं महामंत्री कमल किशोर शर्मा आज डीआईजी चंडीगढ़ के पास जाकर मिले और आयुष के पोस्टमार्टम करवाने में मदद की गुहार लगाई ‌। वहीं पर SP हेड क्वार्टर ईश सिघल  बैठे थे । दोनों को अविनाश सिंह शर्मा ने स्पष्ट बताया कि मृतक आयुष की मां ममता को इंसाफ दिलाने में हम लोग मदद कर रहे हैं‌ । ममता FIR दर्ज करवाने पर अड़ी है । वह संबंधित दोषियों को सजा दिलवाना चाहती है । ममता को प्रेस को अपनी बात रखने वाला वीडियो डीआईजी एवं SP हेड क्वार्टर ईश सिंघल को दिखाया दोनों वीडियो देखकर संतुष्ट हुएकि  ममता FIR दर्ज करवा कर इंसाफ चाहती है । उसे मालूम है कि बिना FIR पोस्टमार्टम अगर हो गया । तो न्याय मिलना मुश्किल हो जाएगा । कांग्रेस एवं भाजपा दोनों राजनीतिक पार्टीको यह बात अच्छी तरह से मालूम है । कि कुत्तों की नसबंदी , वैक्सीन, रखरखाव के नाम पर जो भी पूर्व में भाजपा के हो या कांग्रेस के मेयर घोटालों में फंसेंगे । इसी कारण चंडीगढ़पुलिस मामले को रफा-दफा करने का विचार पूर्व से बना चुकी है । इसी कारण वह FIR लिखने से टालमटोल कर रही है । ममता को बड़े वकीलों ने समझा दिया है कि अगर इंसाफ चाहिएतो FIR के बाद ही पोस्टमार्टम करवाना । ममता आयुष को इंसाफ दिलवाने की लड़ाई लड़ रही है । जो अब हाईकोर्ट चंडीगढ़ में जा चुका है। जब डीआईजी ,एसपी हेड क्वार्टर सिंघल सेमिलकर निकले। अविनाश सिंह शर्मा के घर  सेक्टर 45/C 2207 चंडीगढ़ से कॉल आया कि सेक्टर 19 पुलिस क़रीब 6 पुलिसकर्मी घर के आउट गेट को पार करके अन्दर आकर  घर के कमरे  के बाहर  के  दरवाजे को खोलने के लिए बार बार पीट रहे थे । हमारे लोगों को धमकियां दे रहे थे । कि ममता को मदद करना बंद कर दो ‌। अविनाश सिंह शर्मा एवं कमल किशोरशर्मा को बोल दो कि ममता को मदद करना बंद कर दे नहीं तो अविनाश सिंह शर्मा एवं कमल किशोर शर्मा को बोल दो कि चंडीगढ़ पुलिस झूठे मुकदमे बनाकर दोनों और उनके साथियोंको बंद कर देगी काफी देर देर तक गेट में धक्का देते रहे ‌फिर चले गए ।अब तो चंडीगढ़ पुलिस गुंडागर्दी पर उतर आई है। उपरोक्त घटना की सूचना लिखित रुप से पत्र के द्वारा मेल केद्वारा राष्ट्रपति भारत , मुख्य न्यायाधीश भारत , प्रधानमंत्री भारत , गृह मंत्री भारत , मुख्य न्यायाधीश पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट चंडीगढ़ , गृह सचिव चंडीगढ़, डीआईजी चंडीगढ़ को भेज दिया गया है |

2008 के हाउसिंग स्कीम के तहत सफल उम्मीदवारों को मकान दिया जाए: राजा राम

 

चंडीगढ़: 25 जून, 2018

आज कोआर्डिनेशन कमेटी ऑफ गवर्नमेंट एंड एम सी इंपलाइज एंड वर्कर यूटी चंडीगढ़ के बैनर तले हॉर्टिकल्चर वर्कर यूनियन की गेट मीटिंग सेक्टर 23 गवर्नमेंट नर्सरी में हुई जिसमें मीटिंग को संबोधित करते हुए श्री अश्विनी कुमार कन्वीनर कोआर्डिनेशन कमेटी, श्री राजाराम जनरल सेक्रेटरी हॉर्टिकल्चर वर्कर्स यूनियन, कमल कुमार चेयरमैन, श्री लालजी प्रधान, श्री यूनस वाइस प्रेसिडेंट, श्री छाँगा सिंह, श्रीकलोंजी, ने कहां की चंडीगढ़ प्रशासन मानी हुई मांगों को लागू नहीं कर रहा है और रहती हुई मांगों को मान नहीं रहा है इसलिए  कोआर्डिनेशन कमेटी फैसला लिया की 4 जुलाई 2018 को डीसी ऑफिस के सामने समूची लीडरशिप धरने पर बैठेगी और दिनांक 13 जुलाई 2018 को गवर्नर हाउस को कूच करेगी और नेताओं ने कहा कि कॉन्ट्रैक्ट और आउट सोर्स मुलाजिमों के लिए सुरक्षित पॉलिसी बनाई जाए ताकि उनका शोषण रुक सके, चंडीगढ़ मुलाजिमों का स्टेटस तय किया जाए और उनको सेंटर रूल सेंटर पे स्केल दिया जाए, मृतक के वारिसों को नौकरी दी जाए और खाली पड़ी हुई पोस्टों को जल्दी भरा जाये, डीसी रेट जल्दी बढ़ाया जाए,  2008 के हाउसिंग स्कीम के तहत सफल उम्मीदवारों को मकान दिया जाए

Probation cops visited Gurudwara Sahib

Auckland :

Photo feature by Ranjit Ahluwalia, DF Head(Aus,Nz,Fizi)

The newly recruited on probation cops visited the Sikh Gurudwara sahib and several religious centres as per their curriculum and training program.


Their they were made aware of the religious practices and we also taught that how to deal with the believers of the particular community while keeping in mind that their sentiments and their religious norms are not hurt or violated.


They were also told about the religious symbols of Sikhs and their significance
The probationary cops were accompanied by their senior officers .


They also interacted with the members of the community.

आई जी नैय्यर हसनैन खान का चला चाबुक,सब्ज़ी लूटने वाले दो थाना अध्यक्ष निलंबित

पटना IG ZONE नैय्यर हसनैन खा का चला चाबुक , दो थाना अध्यक्ष सहित 9 लोगो पे गिरी गाज अगमकुआ एव बाईपास थानाध्यक्ष निलंबित

रंगदारी में पुलिस द्वारा सब्जी की वसूली करने के मामले में जोनल आईजी नैय्यर हसनैन खां ने बडी कार्रवाई करते हुये अगमकुंआ एवं बाईपास थानाध्यक्ष को निलंबित कर दिया हैं ।

साथ ही इस मामले से जुड़े और 9 लोगों को निलंबित कर दिया हैं और पुरे अगमकुंआ थाने के पुलिस को लाईन हाजिर कर दिया गया हैं । आईजी एन एच खां ने तीनों केस का सुपरविजन करने की जिम्मेदारी एसएसपी को सौंपा हैं एवं तीन दिनों के अंदर रिपोर्ट मांगा हैं ।

वही बेऊर जेल में बंद पंकज U रिमांड होम भेजने के प्रक्रिया को पालन करने का निर्देश दिया गया हैं ।वही तत्कालीन एसडीपीओ हरि मोहन शुक्ला द्वारा समय के अंदर सुपरविजन नहीं करने की बात स्वीकार किया हैं । हरि मोहन शुक्ला से शो -कॉज मांगा गया । पुलिस मुख्यालय डीएसपी पर कार्रवाई का निर्णय लेगी

तेजस्वी की नसीहत कांग्रेस की फजीहत

 

बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने एक साक्षात्कार में कहा है कि उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में अन्य दलों को ड्राइविंग सीट पर रखना चाहिए जहां कांग्रेस सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी नहीं है. तेजस्वी ने 2019 में बीजेपी से मुकाबला करने के लिए अहंकार को दूर रखने की जरूरत पर बल दिया है. तेजस्वी ने संविधान बचाने के वास्ते सभी विपक्षी दलों को साथ आने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि विपक्ष अगर एक साथ आए तो जीत सकता है.

तेजस्वी यादव के बयान में कांग्रेस के लिए नसीहत भी है और एक बड़ा संदेश भी. संदेश साफ है कि यूपी-बिहार जैसे राज्यों में कांग्रेस काफी कमजोर है. कांग्रेस यूपी में एसपी, बीएसपी के मुकाबले तीसरे नंबर की विपक्षी दल की हैसियत में है जबकि बिहार में कमोबेश यही हाल है. बिहार में भी कांग्रेस पिछले कई सालों से लगातार आरजेडी के पीछे-पीछे ही चल रही है.

अब जबकि 2019 के चुनाव के पहले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी सभी विपक्षी दलों को साथ लाने की तैयारी कर रहे हैं, तो आरजेडी ने उन्हें हैसियत भी बताने की कोशिश की है. राहुल गांधी और तेजस्वी यादव के बीच केमेस्ट्री बहुत अच्छी रही है. दोनों बीजेपी को रोकने के लिए बिहार में साथ मिलकर चलने पर सहमत हैं, लेकिन, तेजस्वी यादव का बयान उस कड़वी सच्चाई को बयां कर रहा है जिसे मानने से कांग्रेस के कई नेता आनाकनी कर जाते हैं.

हकीकत तो यही है कि बिहार में कांग्रेस के पास अभी न कोई बड़ा नेता है और न ही कार्यकर्ताओं की बड़ी फौज. वैशाखी के सहारे कांग्रेस पिछले दो दशकों से भी ज्यादा वक्त से अपनी सियासत कर रही है. अब लोकसभा चुनाव से पहले कांग्रेस को फिर से ड्राइविंग सीट छोड़ने की नसीहत देकर तेजस्वी यादव ने बिहार में अपना दावा ठोक दिया है.

कांग्रेस के पास ड्राइविंग सीट छोड़ने के अलावा दूसरा कोई विकल्प भी नहीं है. कांग्रेस को भी पता है कि यूपी, बिहार, बंगाल समेत कई दूसरे राज्यों में उसकी हैसियत कम हो गई है. फिर भी विपक्षी दलों के भीतर नंबर वन की हैसियत यानी मुख्य विपक्षी दल की हैसियत वो खोना नहीं चाहती.

कांग्रेस की रणनीति के मुताबिक, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और गुजरात जैसे प्रदेशों में जहां उसकी सीधी लड़ाई बीजेपी से है वहां वो सभी सीटों पर लड़ना चाहती है, लेकिन, यूपी-बिहार जैसे प्रदेशों में भी वो एक सम्मानजनक समझौता चाहती है जिससे देश भर में विपक्षी दलों की सीटों में उसकी सीटों की तादाद सबसे ज्यादा रहे. इससे चुनाव बाद परिणाम आने की सूरत में मोदी विरोध के नाम पर जुटे सभी दलों में कांग्रेस का दबदबा बना रहेगा और सबसे बड़े दल के नाते बडी कुर्सी पर भी दावा किया जा सकेगा.

लेकिन, कांग्रेस की इस रणनीति से दूसरे क्षेत्रीय दल राजी नहीं होते दिख रहे हैं. अगर ऐसा होता तो साल भर पहले ही यूपी विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी के साथ गलबहियां करने वाले अखिलेश यादव कांग्रेस के साथ चुनाव से पहले गठबंधन से आनाकानी नहीं करते दिखते.

अखिलेश यादव को भी पता है कि यूपी विधानसभा चुनाव के वक्त भी कांग्रेस से गठबंधन का उन्हें कोई खास फायदा नहीं हुआ था, लिहाजा कांग्रेस से ज्यादा मायावती से हाथ मिलाने को लेकर उनकी आतुरता ज्यादा दिख रही है. 90 के दशक में पिता मुलायम सिंह यादव की तरह एसपी- बीएसपी गठबंधन की तर्ज पर गठबंधन बनाने को लेकर अखिलेश की दिलचस्पी ज्यादा दिख रही है.

लगता है कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की तरफ से कर्नाटक चुनाव के दौरान खुद को प्रधानमंत्री बनने के बारे में दिए गए बयान पर भी अखिलेश यादव ज्यादा असहज दिख रहे हैं. क्योंकि एसपी चाहती है कि चुनाव से पहले नहीं बल्कि बाद में प्रधानमंत्री पद को लेकर कोई फैसला हो.

उधर, पश्चिम बंगाल में भी कांग्रेस के लिए मुश्किल है क्योंकि ममता बनर्जी कांग्रेस को ज्यादा तवज्जो देने के मूड में नहीं लग रही हैं. दूसरी तरफ, तेलंगाना में के.सी.आर भी कांग्रेस से दूरी बनाए हुए हैं. ऐसे में कांग्रेस के लिए यूपीए -3 को चुनाव पूर्व एक आकार देना मुश्किल हो रहा है. मोदी विरोध के नाम पर सभी पार्टियां एक हो भी जाएं तो भी उनके भीतर के अंतरविरोध चुनाव से पहले कई राज्यों में परेशानी का सबब बन रहे हैं.

इस हालात में कांग्रेस को भी यह बात समझनी होगी कि ड्राइविंग सीट पर यूपी और बिहार में उसे एसपी-बीएसपी और आरजेडी को ही रखना होगा. तेजस्वी की नसीहत को मानना कांग्रेस के लिए जरूरी भी है और मजबूरी भी. क्योंकि इस नसीहत को नजरअंदाज करने पर मुश्किल कांग्रेस को ही होगी.

शिया मुस्लमान होंगे 2019 में भाजपा के साथ


बुक्कल नवाब ने बताया कि शिया मुसलमान राम मंदिर निर्माण के पक्ष में हैं


राष्ट्रीय शिया समाज (आरएसएस) ने आगामी लोकसभा चुनाव में बीजेपी का साथ देने का ऐलान किया है. आरएसएस के अध्यक्ष बीजेपी विधान परिषद सदस्य बुक्कल नवाब ने बताया कि शिया मुसलमान अगले लोकसभा चुनाव में बीजेपी और पीएम मोदी का साथ देंगे. हम अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के पक्ष में हैं.

उन्होंने कहा कि बीजेपी को छोड़कर दूसरा कोई भी दल शिया मुसलमानों के हितों का ख्याल नहीं रखता है, लिहाजा इस बार भी यह कौम बीजेपी और मोदी का साथ देगी. बीजेपी का सहयोग करने के कारण के बारे में पूछे जाने पर नवाब ने कहा कि पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी की कोशिशों की वजह से ही लखनऊ में शिया मुसलमानों के जुलूस पर लगा 20 साल पुराना प्रतिबंध खत्म हुआ था.

उन्होंने कहा कि बीजेपी ने ही केन्द्रीय मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी, प्रदेश के राज्यमंत्री मोहसिन रजा, राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष ग़यूरुल हसन, उत्तर प्रदेश अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष हैदर अब्बास जैसे शिया मुसलमानों को अहम ओहदों पर बैठाया.

हनुमान मंदिर में घंटा अर्पण करते हुए बुक्कल नवाब

नवाब ने आरोप लगाया कि प्रदेश की पूर्ववर्ती सपा और बसपा सरकारों ने शिया मुसलमानों को प्रताड़ित किया. बसपा प्रमुख मायावती के राज में खुद उन्हें जेल में डाला गया था. वहीं, सपा के शासनकाल में उसके नेता आजम खां ने शिया समुदाय को सताने की हर मुमकिन कोशिश की. बाकी सियासी पार्टियों के रवैये को देखते हुए शिया समुदाय ने इस बार बीजेपी का साथ देकर उसकी जीत सुनिश्चित की.

इस बीच, ऑल इंडिया शिया पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता मौलाना यासूब अब्बास ने अगले लोकसभा चुनाव में शिया मुसलमानों द्वारा बीजेपी का साथ दिए जाने के बुक्कल नवाब के बयान पर कहा कि वह अभी इस बारे में कुछ नहीं कहना चाहते. यह एक संवेदनशील मामला है और वह उलेमा से राय लेकर ही इस बारे में कुछ कह सकेंगे.

शिया धर्मगुरु मौलाना कल्बे जव्वाद ने कहा कि बुक्कल नवाब और उनके साथियों ने जो फैसला लिया है, वह उनकी निजी राय है. बाकी शिया समाज ने वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में किसी दल को समर्थन देने का अभी तक कोई फैसला नहीं लिया है.

उन्होंने कहा कि उलेमा के साथ बैठक करके सलाह-मशविरे के बाद ही इस बारे में कोई निर्णय लिया जाएगा. वर्ष 2016 में गठित हुए अपने संगठन का सूक्ष्म नाम आरएसएस रखे जाने के औचित्य के बारे में पूछे जाने पर बुक्कल नवाब ने कहा कि यह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का ही एक अवतार है.

प्रधान मंत्री पद की दावेदारी गठबंधन पर पड़ेगी भारी

 

साल 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को रोकने के लिए कांग्रेस की उम्मीदें केवल एक ही सहारे पर टिकी हुई हैं. वो सहारा है महागठबंधन. कांग्रेस को लगता है कि महागठबंधन के समुद्र मंथन से ही सत्ता का अमृत पाया जा सकता है. महागठबंधन का वैचारिक आधार है-मोदी विरोध. महागठबंधन की बात बार-बार दोहराकर कांग्रेस इसकी अगुवाई का भी दावा कर रही है ताकि भविष्य में पीएम पद को लेकर महाभारत न हो. लेकिन दूसरे राजनीतिक दलों में गूंजने वाली अलग-अलग प्रतिक्रियाएं महागठबंधन के वजूद पर अभी से ही सवालिया निशान लगा रही हैं.

एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार चुनाव से पहले महागठबंधन की कल्पना को व्यावहरिक ही नहीं मानते हैं. उनका मानना है कि क्षेत्रीय दलों की मजबूती की वजह से महागठबंधन व्यावहारिक नहीं दिखाई देता है. पवार का राजनीतिक अनुभव और दूरदर्शिता उनके इस बयान से साफ दिखाई देता है.

जिन क्षेत्रीय दलों की मजबूती को कांग्रेस एक महागठबंधन में देखना चाहती है दरअसल यही मजबूती ही क्षेत्रीय दलों को चुनाव बाद के गठबंधन में सौदेबाजी का मौका देगी. क्षेत्रीय दलों की यही ताकत उन्हें चुनाव बाद एकजुट होने की परिस्थिति में उनके फायदे के लिये ‘सीधी बात’ कहने का आधार देगी और सत्ता में भागेदारी का बराबरी से अधिकार भी देगी.

शरद पवार ये मानते हैं कि हर राज्य में अलग-अलग पार्टियों की अपनी स्थिति और भूमिका है. कोई पार्टी किसी राज्य में नंबर 1 है तो उसकी प्राथमिकता राष्ट्रीय स्तर पर अपनी स्थिति को और मजबूत करने की होगी. जाहिर तौर पर ऐसी स्थिति में कोई भी पार्टी चुनाव पूर्व महागठबंधन के फॉर्मूले में कम से कम अपने गढ़ में तो ऐसा कोई समझौता नहीं करेगी जिससे उसके वोट प्रतिशत और सीटों का नुकसान हो.

वहीं इस महागठबंधन के आड़े आने वाला सबसे बड़ा व्यावहारिक पक्ष ये है कि बीजेपी के खिलाफ एकजुट होने वाले क्षेत्रीय दल लोकल स्तर पर एकजुटता कैसे दिखा पाएंगे? वो पार्टियां जो अबतक एक दूसरे के खिलाफ आग उगलकर चुनाव लड़ती आई हैं वो राष्ट्रीय स्तर पर कैसे एकता दिखा सकेंगी? उन सभी के किसी न किसी रूप में वैचारिक मतभेद हैं जिनका किसी न किसी रूप में समझौते पर असर पड़ेगा.

सबसे बड़ी चुनौती जमीनी स्तर पर काम करने वाले कार्यकर्ताओं को लेकर होगी जिनके लिए महागठबंधन के बाद एक साथ काम कर पाना आसान नही होगा क्योंकि कई राज्यों में वैचारिक मतभेद से उपजा खूनी संघर्ष भी इतिहास में कहीं जिंदा है.

बड़ा सवाल ये है कि सिर्फ मोदी को रोकने के लिए क्या पश्चिम बंगाल में टीएमसी और वामदल आपसी रंजिश को भुलाकर कांग्रेस के साथ आ सकेंगे? क्या तमिलनाडु में डीएमके और आआईएडीएमके, बिहार में लालू-नीतीश, यूपी में अखिलेश-मायावती और दूसरे राज्यों में गैर कांग्रेसी क्षेत्रीय दलों के साथ कांग्रेस का गठबंधन साकार हो सकेगा?

महागठबंधन को साल 2015 में पहली कामयाबी बिहार में तब मिली जब लालू-नीतीश की जोड़ी ने बीजेपी के विजयी रथ को रोका. इसी फॉर्मूले का नया अवतार साल 2018 में यूपी में तब दिखा जब बीजेपी को हराने के लिए पुरानी रंजिश भूलकर एसपी-बीएसपी गोरखपुर-फूलपुर के लोकसभा उपचुनाव में साथ आए तो फिर कैराना में रालोद के साथ गठबंधन दिखा. यूपी-बिहार के गठबंधन के गेम से ही कांग्रेस उत्साहित है और वो महागठबंधन का सुनहरा ख्वाब संजो रही है.

लेकिन एक दूसरा सवाल ये भी है कि अपने-अपने राज्यों के क्षत्रप आखिर कांग्रेस के नेतृत्व में महागठबंधन से जुड़ने को अपना सौभाग्य क्यों मानेंगे? खासतौर से तब जबकि हर क्षेत्रीय दल का नेतृत्व खुद में ‘पीएम मैटेरियल’ देख रहा हो.

कांग्रेस राहुल के नेतृत्व में महागठबंधन की अगुवाई करना चाहती है. जबकि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में गैर-बीजेपी दलों के हित में जारी महागठबंधन की अपील को ठुकरा चुकी हैं. ममता बनर्जी तीसरे मोर्चे की कवायद में ज्यादा एक्टिव दिखाई दे रही हैं. वो दूसरी क्षेत्रीय पार्टियों और क्षेत्रीय नेताओं के लगातार संपर्क में हैं. बीजेपी को हराने के लिए वो हर बीजेपी विरोधी नेता से हाथ मिलाने को तैयार हैं. उन्होंने गुजरात चुनाव में बीजेपी की नजदीकी जीत के बाद हार्दिक-अल्पेश-जिग्नेश की तिकड़ी की तारीफ की और हार्दिक पटेल को पश्चिम बंगाल का सरकारी मेहमान तक बना डाला.

हाल ही में उन्होंने दिल्ली के सीएम केजरीवाल के एलजी ऑफिस में धरने के वक्त तीन अलग राज्यों के सीएम के साथ पीएम से मुलाकात की. ये मुलाकात साल 2019 को लेकर कांग्रेस के लिए भी बड़ा इशारा था. एक तरफ कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी दिल्ली में केजरीवाल के धरने को ड्रामा बता रहे थे तो दूसरी तरफ ममता बनर्जी की अगुवाई में चार राज्यों के सीएम केजरीवाल का सपोर्ट कर रहे थे.

महागठबंधन से पहले किसी विचारधारा या फिर मुद्दे पर कांग्रेस और गैर-कांग्रेसी दलों में एकता दिखाई नहीं दे रही है. ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि किसी भी कीमत पर मोदी और बीजेपी को साल 2019 में सत्ता में आने से रोकने के लिए महागठबंधन की नींव पड़ भी गई तो इमारत बनाने के लिए ईंटें कहां से आएंगी?

मोदी को रोकने के लिए महागठबंधन तो बन सकता है लेकिन महागठबंधन के नेतृत्व को लेकर कांग्रेस आम सहमति कैसे बना पाएगी? साल 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस राहुल गांधी को पीएम के तौर पर प्रोजेक्ट कर चुकी है. यहां तक कि खुद राहुल गांधी भी कर्नाटक चुनाव प्रचार के वक्त कह चुके हैं कि वो देश का पीएम बनने को तैयार हैं. जबकि मुंबई में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में जब राहुल से महागठबंधन के नेतृत्व पर सवाल पूछा गया तो वो जवाब टाल गए.

पीएम बनने की महत्वाकांक्षा आज के दौर में हर क्षेत्रीय पार्टी के अध्यक्ष के मन में है और यही महागठबंधन की महाकल्पना के साकार होने में आड़े भी आएगी. क्योंकि क्षेत्रीय दल सिर्फ सीटों तक की सौदेबाजी को लेकर महागठबंधन के समुद्र मंथन में नहीं उतरेंगे बल्कि वो पीएम पद को लेकर भी बंद दरवाजों  से लेकर खुले मैदान में शक्ति-परीक्षण के जरिये सौदेबाजी करने का मौका नहीं चूकेंगे

महागठबंधन पर बात न बन पाने की सूरत में कांग्रेस के पास यही विकल्प बचता है कि या तो वो गैर कांग्रेसी दलों को पीएम पद सौंपने पर राजी हो जाए या फिर यूपीए 3 के नाम से अपने प्रगतिशील गठबंधन के दम पर लोकसभा चुनाव में उतरे और चुनाव बाद महागठबंधन को लेकर फॉर्मूला बनाए.

सिर्फ विधानसभा चुनाव और उपचुनावों से लोकसभा चुनाव का मूड नहीं भांपा जा सकता है. यूपीए ने भी साल 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले उपचुनावों में जीत हासिल की थी. वहीं इस साल 15 सीटों पर हुए उपचुनावों में महागठबंधन को सिर्फ चार सीटों पर ही जीत मिली है. ऐसे में महागठबंधन को लेकर बनाई जा रही हवा कहीं हवा-हवाई न साबित हो जाए.

क्षेत्रीय दलों को सिर्फ एक ही बात की चिंता है कि साल 2019 में भी कहीं ‘मोदी लहर’ की वजह से उनके राजनीतिक वनवास की मियाद पांच साल और न बढ़ जाए. यही डर उन्हें महागठबंधन में लाने को मजबूर कर सकता है लेकिन सत्ता में भागीदारी का लालच उन्हें पीएम पद की तरफ भी आकर्षित करता है. तभी पीएम पद की बाधा-रेस महागठबंधन में सबसे बड़ा अड़ंगा डालने का काम कर सकती है क्योंकि इस मुद्दे पर चुनाव से पहले कोई भी पार्टी राजी होने को तैयार नहीं होगी.

कांग्रेस ये कभी नहीं चाहेगी कि वो पीएम पद के बारे में चुनाव बाद उभरे राजनीतिक हालातों के बाद फैसला करे. वो ये चाहेगी कि इस मामले में तस्वीर अभी से एकदम साफ रहे और पूरा चुनाव राहुल बनाम मोदी ही लड़ा जाए.

बहरहाल सिर्फ मोदी-विरोध के नाम पर अलग-अलग राज्यों में विपक्षी दलों के सियासी समीकरण साधना भी इतना आसान नहीं है क्योंकि ये जातीय समीकरणों में भी उलझे हुए हैं. सिर्फ मोदी-विरोध का एक सूत्रीय कार्यक्रम देश की सभी विपक्षी पार्टियों के लिए साल 2019 के लोकसभा चुनाव में आत्मघाती साबित हो सकता है. साल 2014 के लोकसभा चुनाव हारने के बाद कांग्रेस की अंदरूनी रिपोर्ट को बाकी विपक्षी दलों को किसी ऐतिहासिक दस्तावेज की तरह जरूर पढ़ना चाहिये और ये भी समझना चाहिये कि कि उनका सियासी इस्तेमाल सिर्फ कांग्रेस के प्रतिशोध तक ही तो सीमित नहीं है. फिलहाल कांग्रेस के लिए महागठबंधन बना पाना उसी तरह असंभव दिखाई दे रहा है जिस तरह अपने बूते साल 2019 का लोकसभा चुनाव जीतना.

मदरसों के आधुनिकीकरण की और बढ़ती सरकार


इसके तहत मदरसों की जियो टैगिंग और उनका किसी भी मदरसा बोर्ड या राज्य बोर्ड से संबद्ध होना अनिवार्य कर दिया जाएगा


एमएचआरडी देश में मदरसा शिक्षा व्यवस्था में गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा प्रदान करने की स्कीम (एसपीक्यूईएम) के तहत सुधार और बदलाव करने की योजना पर काम कर रही है. इसके तहत मदरसों का किसी भी मदरसा बोर्ड या राज्य बोर्ड से संबद्ध होना अनिवार्य कर दिया जाएगा. एचआरडी मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि राज्यों ने अपने प्रस्तावों को पेश कर दिया है, इसका अध्ययन किया जा रहा है और बजट को देखते हुए मदरसा शिक्षा व्यवस्था में सुधार की व्यापक योजना को लागू किया जाएगा.

सूत्र ने बताया कि ‘एसपीक्यूईएम का उद्देश्य मदरसा शिक्षा की गुणवत्ता को बढ़ाना है और छात्रों को औपचारिक विषयों में राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली के मानकों को प्राप्त करने में सक्षम बनाना है. इसके साथ ही साथ सरकार मदरसों को मदरसा बोर्ड या राज्य स्कूल बोर्डों से अनिवार्य रूप से संबद्ध बनाने की योजना भी बना रही है.’

इस सुधार के तहत सरकार देश के मदरसों को जीपीएस के आधार पर चिह्नित करने की योजना पर भी काम कर रही है. सूत्र ने बताया कि ‘इसके लिए मंत्रालय मदरसों का पता लगाने के लिए विशेष पहचान को अनिवार्य कर सकती है ताकि जीपीएस के जरिए उनके लोकेशन का पता लगाया जा सके.’

पिछले साल मंत्रालय ने एपीक्यूएम योजना में शामिल मदरसों से कहा था कि वो अपना जीपीएस लोकेशन दें. जिस मदरसे ने जीपीएस लोकेशन नहीं दिया, उनके शिक्षकों का वेतन रोक दिया गया. कुछ मदरसे सरकार के इस कदम का विरोध कर सकते हैं क्योंकि वे इसे अपने स्वायत्ता में ‘सरकारी हस्तक्षेप’ मानते हैं.

इस योजना की मौजूदा विशेषताएं मदरसे को विज्ञान, गणित, भाषा, सामाजिक अध्ययन आदि जैसे औपचारिक विषयों के सिलेबस के मानदंड को बेहतर करके और शिक्षकों को ज्यादा वेतन देने के माध्यम से क्षमताओं को मजबूत करने में सक्षम बनाती हैं. इससे पहले भी मदरसों को नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपेन स्कूल से संबद्ध करके और शिक्षण सामग्री को को बेहतर करके मदरसों को बेहतर बनाने की कवायद की जा चुकी है. इसके जरिए इस तरह के मदरसों में पढ़ने वालों बच्चों को 5वीं, 6ठी, 10वीं और 12वीं के सर्टिफिकेट लेने में आसानी हुई. मुस्लिम-बहुल इलाकों में शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए सरकार नई एकीकृत योजना में और स्कूल खोलने की योजना बना रही है, जिसे ‘समग्र शिक्षा अभियान’ कहा जा रहा है.

डीडीसीए की चुनावी ऐय्यारियां

 

कभी कोई दावा करता है कि चेतन चौहान अपने ग्रुप से अलग उस ग्रुप को सपोर्ट करने लगे हैं, जो मदन लाल के खिलाफ है. कभी भारतीय ओलिंपिक संघ के अध्यक्ष दावा करते हैं कि बीसीसीआई के कार्यवाहक अध्यक्ष सीके खन्ना ने उनका मोबाइल नंबर ‘क्लोन’ कर लिया है. उस नंबर से मैसेज भेजे जा रहे हैं.

कभी कोई एक ग्रुप कहीं पार्टी का आयोजन करता है, तो दूसरा ग्रुप म्यूजिकल नाइट पर उतर आता है. यह दिल्ली एवं जिला क्रिकेट संघ यानी डीडीसीए के इलेक्शन की दास्तां है. यहां मीडिया में बड़ा नाम और चैनल के मालिक रजत शर्मा एक तरफ हैं. सुप्रीम कोर्ट के वकील विकास सिंह दूसरी तरफ और क्रिकेटर मदन लाल तीसरी तरफ. तीन ग्रुप चुनाव मैदान में हैं.

 

एक को बंसल ग्रुप कहा जाता है. दावे किए जा रहे हैं कि इस ग्रुप को अरुण जेटली का समर्थन हासिल है. हालांकि जेटली खुद डीडीसीए से दूर रहने का फैसला कर चुके हैं. लेकिन उनके वर्षों से मित्र रजत शर्मा इसी ग्रुप से अध्यक्ष पद के दावेदार हैं. एक समय डीडीसीए के कोषाध्यक्ष रहे बत्रा इसी ग्रुप के पक्ष में दूसरे ग्रुप पर आरोप लगा रहे हैं और कानूनी कार्रवाई की धमकी दे रहे हैं.

इस कहानी में सब कुछ है. एक्शन, ड्रामा, सस्पेंस… लेकिन इन सबसे बड़ी बात की भविष्य की बीसीसीआई इसमें है. 27 जून से 30 जून तक होने वाले इलेक्शन में ग्रुप देखकर ही समझा जा सकता है कि भविष्य किस ओर जा रहा है.

 

अंदाजा लगाइए. उपाध्यक्ष पद पर उम्मीदवार हैं शशि खन्ना, जो डीडीसीए के महारथी कहे जाने वाले सीके खन्ना की पत्नी है. सीके खन्ना वही हैं, जिनके पास प्रॉक्सी के जमाने में हर चुनाव की चाबी होती थी. प्रॉक्सी यानी वोटर्स को खुद को वोट डालने की जरूरत नहीं. उसने अपना वोट डालने का अधिकार किसी और को दे दिया. ये सारे अधिकार सीके खन्ना और उनके समर्थकों के पास होते थे. इस बार प्रॉक्सी नहीं है. इसके बावजूद सीके खन्ना की ताकत को कम आंकना ठीक नहीं है.

ताकत कम न आंकने की वजह परिवार हैं. वोटर्स परिवारों में हैं. चुनाव की घोषणा के वक्त प्रेस कांफ्रेंस करने वाले विकास सिंह ने तब कहा था कि कुछ परिवारों के पांच से आठ वोट हैं. उनका यह कमेंट बताता है कि परिवारवाद से बचना आसान नहीं. जिस परिवार के पांच से आठ वोट हैं, उनमें सीके खन्ना भी शामिल हैं.

दूसरी तरफ स्नेह बंसल हैं. उनके भाई राकेश बंसल उपाध्यक्ष पद के लिए खड़े हैं. बंसल डीडीसीए अध्यक्ष रहे हैं. पूर्व डायरेक्टर बृज मोहन गुप्ता के पुत्र आलोक मित्तल और संयुक्त सचिव रवि जैन के पुत्र अपूर्व जैन डायरेक्टर पद के लिए हैं. महिला डायरेक्टर में भी रिश्तेदारों का दबदबा है.

पूर्व उपाध्यक्ष चेतन चौहान इस समय बता रहे हैं कि डीडीसीए से उनका कोई मतलब नहीं है. वो उत्तर प्रदेश में मंत्री हैं. लेकिन उनके भाई पुष्पेंद्र चौहान संयुक्त सचिव के दावेदार हैं. यह कुछ वैसा ही है, जैसे पंचायत चुनाव में महिला आरक्षण होने के बाद सरपंचों ने अपनी पत्नी के जरिए कमान संभालने का फैसला किया था. या लालू यादव ने अपनी जगह राबड़ी देवी को मुख्यमंत्री बनाया था.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले और लोढ़ा कमेटी की सिफारिशों के बाद तमाम प्रशासक अब अयोग्य हैं. उनकी जगह उनके रिश्तेदार चुनाव लड़ रहे हैं. हिमाचल में अनुराग ठाकुर के भाई की एंट्री हो गई है. इस तरह पूर्व सचिव निरंजन शाह के बेटे ने भी बीसीसीआई में दस्तक दे दी है. डीडीसीए चुनाव उसी सिलसिले को आगे बढ़ाने का या यूं कहें कि भविष्य की तस्वीर तय करने का काम कर सकता है.

सिर्फ दो ऐसे क्रिकेटर मैदान में हैं, जिन्हें लोग जानते हैं. पहले, मदन लाल, जो सीके खन्ना ग्रुप की तरफ से उम्मीदवार हैं. वही सीके खन्ना, जिन्हें ज्यादातर पूर्व क्रिकेटर डीडीसीए की बरबादी का जिम्मेदार मानते हैं. दूसरे क्रिकेटर सुरिंदर खन्ना हैं. वो उस पोस्ट (डायरेक्टर, क्रिकेट) के लिए हैं, जो सिर्फ पूर्व क्रिकेटरों के लिए है. उसके बावजूद सुरिंदर खन्ना ही अकेला ऐसा नाम हैं, जिन्हें क्रिकेट सर्किल में जाना जाता है.

ऐसे में अगर क्रिकेटर की जीत होती है, तो महज इस वजह से, क्योंकि वो उसी खेमे का हिस्सा हैं, जिसे लेकर वो सालों से आवाज उठाते रहे हैं. मदन लाल को उन्हीं सीके खन्ना की मदद लेनी पड़ी. यही बताता है कि किसी फेडरेशन का हिस्सा बनने के लिए क्रिकेटर को क्या चाहिए. दूसरा, क्रिकेट में करप्शन दूर करने के लिए लोढ़ा कमेटी की सिफारिशें परिवारवाद का करप्शन दूर नहीं कर पाई है. अब वोटिंग भले ही प्रॉक्सी न हो, लेकिन पदों पर प्रॉक्सी उम्मीदवार हैं. यही डीडीसीए का पैटर्न है. यही बीसीसीआई का पैटर्न होगा.

ज्ञान चाँद गुप्ता ने सम्पर्क अभियान के तहत अपनी सरकार के 4 सालों का लेखा जोखा दिया

ज्ञान चाँद गुप्ता (फाइल फोटो)

 

स्थानीय विधायक एवं मुख्य सचेतक ज्ञानचंद गुप्ता ने कहा कि नये समाज एवं राष्ट्र का निर्माण करने के लिए समाज और देश के लिए उल्लेखनीय उपलब्धियां हासिल करने वाले प्रमुख लोगों का योगदान बहुत जरूरी है, इसलिए देश में समाज के लिए सराहनीय कार्य करने वाले 40 हजार और हरियाणा प्रदेश में 2 हजार लोगों से संपर्क का समर्थन अभियान के तहत घर जाकर मुलाकात की जा रही है। इस दौरान समाज के प्रमुख लोगों को केन्द्र सरकार की चार साल की उपलब्धियों का लेखा-जोखा भी दिया जा रहा है।

विधायक एवं मुख्य सचेतक ज्ञानचंद गुप्ता ने सेक्टर 12 में समाज और देश के लिए सराहनीय कार्य करने वाले सेवानिवृत लै० कर्नल एसएस गुलेरिया एवं उनकी धर्मपत्नी व सुप्रसिद्ध पंजाबी लोक गायिका डौली गुलेरिया के मकान नंबर 865 स्थित निवास पर पहुंचे। विधायक के उनके घर पहुंचने पर दोनो ने परंपरा अनुसार सादगी के साथ स्वागत किया। विधायक ने सबसे पहले सेवानिवृत लै० कर्नल एसएस गुलेरिया व उनकी धर्मपत्नी व सुप्रसिद्ध पंजाबी लोक गायिका डौली गुलेरिया को केन्द्र सरकार के चार वर्ष के लेखा-जोखा से संबंधित एक बुकलेट भेंट की। लै० कर्नल एसएस गुलेरिया ने आश्वासन देते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं एवं कार्यक्रमों के दूरगामी परिणाम सामने आ रहे हैं।

उल्लेखनीय है कि सुप्रसिद्ध पंजाबी लोक गायिका डौली गुलेरिया का प्रसिद्ध लोकगीत अंबरसरे दे पापड़ वे मैं खांदी ना, तू करना आकड़ वे मैं सहंदी ना, काफी लोकप्रिय हुआ। इनके तीन पुत्र-पुत्रियां हैं जिनमें सुनैनी शर्मा, दिलप्रीत गुलेरिया व अमनप्रीत गुलेरिया शामिल हैं जो अपने व्यवसाय व नौकरी में लगे हुए हैं।
इससे पूर्व विधायक ने संपर्क का समर्थन अभियान के तहत समाज के लिए सराहनीय कार्य करने वाले उद्यौगपति एवं सामाजिक कार्यकर्ता ब्रिज लाल गुप्ता, सेवानिवृत आईएएस धर्मवीर, अहसास अदब सोसायटी के प्रधान बीडी कालिया हमदम, भवन विद्यालय स्कूल की प्रधानाचार्या शषि बैनर्जी, सेवानिवृत आईपीएस वीके कपूर, इंडियन एयर फोर्स के सेवानिवृत कर्नल आरएस कौशल, सेवानिवृत आईएएस एसडी भांबरी, सेवानिवृत शिक्षाविद् प्रो० एके सहजपाल, भवन एवं मैट्रो रेलवेज में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले एसपी सिंगला इत्यादि के निवासों पर पहुंच पर उन्हें केन्द्र सरकार के चार वर्ष के लेखा-जोखा से संबंधित एक बुकलेट भेंट की। इस अवसर पर वरिष्ठ भाजपा कार्यकर्ता डीपी सोनी भी विधायक के साथ उपस्थित रहे।