अपने ही जाल में उलझी आ आ पा


केजरीवाल अपनी हार का ठीकरा कभी ईवीएम पर तो कभी बीजेपी पर फोड़ते रहे हैं लेकिन क्या उनकी पार्टी की लगातार हार उनके दिल्ली सरकार चलाने के तरीके पर सवालिया निशान तो नहीं है?


आम आदमी पार्टी हरियाणा में चुनाव लड़ेगी और उसने अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार भी चुन लिया है. पंडित नवीन जयहिंद मुख्यमंत्री उम्मीदवार होंगे. इस खबर ने आम आदमी पार्टी की हरियाणा विंग को जरूर खुश कर दिया लेकिन आम आदमी यानी आपके और हमारे लिए ये खबर बस अखबार में लिखे चंद शब्द थे.

राजनीति कुछ ऐसी ही होती है. अन्ना हजारे आंदोलन से निकली, भ्रष्टाचार को खत्म करने और व्यवस्था को साफ करने का आंदोलन कर के अरविंद केजरीवाल जब आम आदमी पार्टी बनाकर सक्रिय राजनीति में घुसे तो लोगों ने हाथों हाथ ले लिया.

2013 से आम आदमी पार्टी ने जिस तरह से धमाकेदार एंट्री की, उससे दिल्ली की दोनों पार्टियां हिल गई. इस पार्टी ने लोगों में ऐसी उम्मीद जताई कि आम आदमी को लगा कि देश में सारे बदलाव कर ये पार्टी एक आदर्श भारत का निर्माण करेगी. आम आदमी पार्टी का उबरने का सबसे बड़ा खामियाजा कांग्रेस पार्टी को भुगतना पड़ा था, क्योंकि केंन्द्र और राज्य में उन्हीं की सरकार थी इसलिए केन्द्र में यूपीए और राज्य में शीला दीक्षित की कांग्रेस सरकार पर जब आम आदमी पार्टी ने आरोपों की झड़ी लगाई तो लोगों ने खूब ताली बजाई. और कांग्रेस के वोटर्स आम आदमी पार्टी के सपोर्टर्स बन गए.

दिल्ली की जनता के विश्वास पर आप अध्यक्ष अरविंद केजरीवाल भी कुछ ज्यादा ही उत्साहित हो गए और दिल्ली में 2013 में 70 में से 28 सीटों पर विजय प्राप्त की, लेकिन राजनीति में घुसते ही उन्हें अपने आप से भी कुछ ज्यादा उम्मीदें हो गई थीं. इसलिए 2013 में जीती हुई आप ने अपनी ही सरकार के खिलाफ विपक्ष की भूमिका निभाई. और 49 दिनों में सरकार से इस्तीफा भी दे दिया.

आम आदमी पार्टी की भारत विजय यात्रा

अति उत्साहित अरविंद केजरीवाल को दिल्ली के नेता से देश के नेता बनने की जल्दबाजी थी. और वो इस जल्दबाजी में भारत विजय यात्रा पर निकल पड़े. 2014 में आम आदमी पार्टी ने लोकसभा में 434 उम्मीदवार खड़े किए. खुद अरविंद केजरीवाल बीजेपी के प्रधानमंत्री उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी को चुनौती देने के लिए वाराणसी पहुंच गए. उनको उम्मीद थी कि इतने सारे उम्मीदवारों को खड़े करने के बाद वो इतने वोट जमा कर लेंगे कि चुनाव आयोग उन्हें राष्ट्रीय पार्टी घोषित कर देगा. लेकिन उनकी अपनी जल्दबाजी ने उन्हें जमीन पर लाकर पटक दिया.

पंजाब में जरूर उनके चार उम्मीदवार चुनकर आ गए और वहां पर वो क्षेत्रीय पार्टी के रूप में स्थापित हो गई. दिल्ली में करीब 32 फीसदी वोट पाने के बावजूद उनकी पार्टी ने एक भी सीट पर विजय हासिल नहीं की और लोकसभा चुनाव में उनके 414 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई.

पार्टी की हार के बाद उनके अपने लोगों ने उन पर सवालिया निशान खड़े करने शुरू कर दिए. वैसे भी आम आदमी पार्टी के संस्थापक सदस्यों ने केजरीवाल की भारत विजय यात्रा पर पहले भी सवाल उठाए थे. लेकिन यहीं पर पार्टी में टूट साफ दिखने लगी.

दिल्ली की नंबर वन पार्टी

केजरीवाल ने 2015 में दिल्ली विधानसभा में फिर हाथ आजमाया और इस बार रिकॉर्ड तोड़ वोट मिले. दिल्ली विधानसभा में 70 में से 67 सीटों पर कब्जा कर आप दिल्ली की नंबर वन पार्टी बन गई. बीजेपी को उसने तीन सीटों पर समेट दिया और 15 साल दिल्ली में राज करने वाली कांग्रेस का तो खाता भी नहीं खुला.

इस हैरतंगेज चुनाव परिणाम की उम्मीद तो केजरीवाल को भी नहीं थी और फिर वो उसी रौ में बह गए. दिल्ली की जीत ने उन्हें ये बता दिया कि दिल्ली में लोगों की उम्मीदे अभी भी हैं लेकिन उन्हें ये नहीं समझ आया कि दिल्ली की शहरी पढ़ी-लिखी जनता ने उन्हें वोट दिया है. बदलाव की राजनीति का सपना संजोकर देश के सियासी फलक पर तेजी से उभरी आम आदमी पार्टी के लिए साल 2015 भले ही दिल्ली की सत्ता लेकर आया लेकिन जीत के बावजूद केजरीवाल अपनी पार्टी में बगावती सुर को संभाल नहीं पाए.

संस्थापक सदस्यों ने केजरीवाल पर पार्टी को मूल दिशा से भटकाने का आरोप लगाया. केजरीवाल ने पार्टी की दिशा तो नहीं बदली लेकिन विरोध के स्वर को दबाना शुरू कर दिया. नतीजा संस्थापक सदस्य जैसे योगेन्द्र यादव, प्रशांत भूषण, किरण बेदी, आनंद कुमार, शाजिया इल्मी ने पार्टी छोड़ दी. किरण बेदी और शाजिया ने बीजेपी का दामन थामा जबकि योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण ने अपनी पार्टी स्वराज्य इंडिया बनाई.

दिल्ली में सरकार बनाते ही आप फिर अपने फॉर्म में आ गई. केजरीवाल ने पहले दिल्ली के लेफ्टिनेंट गर्वनर और फिर केन्द्र की मोदी सरकार पर हमला साधा. एल.जी पर उन्होंने सरकार को काम नहीं करने देने का आरोप लगाया. हर बात पर एल.जी और केन्द्र सरकार से लड़ाई ने केजरीवाल को बात-बात पर लड़ने वाले नेता की छवि दी, लेकिन सरकार में रहने के बावजूद काम नहीं करने का दोषारोपण केन्द्र सरकार पर लगातार डालना लोगों को समझ नहीं आ रहा था.

साथ ही प्रधानमंत्री मोदी पर उनके हमले लगातार बढ़ते चले गए और ये हमले राजनीतिक के साथ-साथ निजी होते चले गए. ये बात लोगों को हजम नहीं हो रही थी. हर बात पर आरोप लगाने वाली आप सरकार से लोगों का भी मोहभंग होने लगा था.

देश को नई दिशा और दशा देने का सपना संजोकर देश के सियासी फलक पर तेजी से उभरी आम आदमी पार्टी के लिए साल 2017, संगठन में विस्तार के लिहाज से बहुत फायदेमंद साबित नहीं हुआ. दिल्ली में सरकार बनाने के बाद केजरीवाल फिर दिल्ली के बाहर किला फतह करने निकल पड़े. गोवा और पंजाब में सरकार बनाने निकली आप ने सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए.

उन्होंने 2017 में गोवा विधानसभा में 39 सीटों में से 38 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे साथ ही पंजाब में क्षेत्रीय पार्टी के तौर पर विधानसभा चुनाव में लोक इंसाफ पार्टी के साथ गठबंधन कर 117 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े कर दिए. आप को ये पूरी उम्मीद थी कि वो पंजाब में सरकार बना लेगी यही वजह थी कि 2017 में पार्टी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी. बात यहां तक होने लगी कि अरविंद केजरीवाल दिल्ली की सत्ता या तो अपनी पत्नी नहीं तो मनीष सिसोदिया को देकर पंजाब में मुख्यमंत्री का पद संभालेंगे. लेकिन नतीजे उनके पक्ष में नहीं आए.

गोवा विधानसभा में उनके सभी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई. जमानत जब्त यानी उनके नेता अपने क्षेत्र में छह फीसदी वोट लेने में भी सफल नहीं हुए. वहीं पंजाब में कांग्रेस की सरकार बनी. आप को 22 सीटें मिली. पंजाब की हार ने पार्टी को बहुत बड़ा झटका दिया. पंजाब में अपनी जीत को सौ फीसदी मानने वाली आम आदमी पार्टी ने चुनाव में मिली हार ने तोड़ कर रख दिया. वोट शेयर के मामले में भी आप पंजाब में तीसरे नंबर पर रही. इस नतीजे ने आम आदमी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं का मनोबल तोड़ कर रख दिया. और यही वजह थी कि वो दिल्ली में आने वाले एमसीडी चुनाव में अपनी पूरी ताकत से खड़ी नहीं हो पाई.

एमसीडी में उन्हें हार का सामना करना पड़ा और बीजेपी ने तीनों एमसीडी पर कब्जा कर लिया, दो साल पहले तक प्रचंड बहुमत वाली आप सरकार को एमसीडी चुनाव मुंह की खानी पड़ी. अपने लोकलुभावन वादों के चलते आम आदमी पार्टी सत्ता में तो आ गयी, लेकिन दो साल पूरे होने के बावजूद पार्टी उन वादों को पूरा करने की दिशा में आगे नहीं बढ़ पाई थी.

अपने द्वारा किये तमाम वादे जैसे महिला सुरक्षा के लिए पूरी दिल्ली में सीसीटीवी लगवाना और राष्ट्रीय राजधानी को वाईफाई जोन में तब्दील कर देना इत्यादि जैसे वादों के साथ-साथ दिल्ली में नए स्कूल, कॉलेज और अस्पताल खोलना, संविदा कर्मचारियों को स्थायी करना जैसे मुद्दों पर आम आदमी पार्टी बचती नजर आयी. केन्द्र सरकार और एलजी पर लगातार आरोपों की झड़ी लगाती रही.

दिल्ली में भी उनका सफर बहुत आसान नहीं रहा. उनके पार्टी में विरोध के स्वर लगातार गूंज रहे हैं. राजनीति में नौसिखिए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 21 विधायकों को संसदीय सचिव बनाया था, जो लाभ का पद है. पंजाब चुनाव के दौरान एक ने इस्तीफा दे दिया था. लेकिन 20 विधायकों पर तलवार लटक रही है.

कायदे से कानून कहता है कि संसद या फिर किसी विधानसभा का कोई भी सदस्य अगर लाभ के किसी भी पद पर होता है तो उसकी सदस्यता जा सकती है. हालांकि फिलहाल उन्हें हाईकोर्ट ने अपना पक्ष रखने का मौका दिया है लेकिन मामला गंभीर है. हालांकि आप की सरकार को खतरा नहीं है लेकिन उनकी छवि पर ये बहुत बड़ा झटका है.

राज्यसभा चुनाव ने अरविंद केजरीवाल के लिए मुसीबतें बढ़ा दीं. उनके करीबी नेताओं को उम्मीद थी कि केजरीवाल राज्यसभा की तीन सीटों पर उनके नाम को आगे बढ़ाएंगे. लेकिन केजरीवाल ने दो बाहरी उम्मीदवारों को चुना. पार्टी में से सिर्फ संजय सिंह को चुना गया. ये उनके करीबी लोगों के लिए बड़ा झटका था.

केजरीवाल का माफीनामा

अरविन्द केजरीवाल ने सोनिया गांधी और कांग्रेस पार्टी और बीजेपी और मोदी पर लगातार निशाना साधा. आरोप की झड़ी लगाते चले गए लेकिन कार्रवाई के नाम पर कुछ नहीं किया. लेकिन ये सारे आरोपों की झड़ी ने उन पर कोर्ट केस की झड़ी लगा दी. केसों के निबाटारा करने के लिए अरविन्द केजरीवाल ने लोगों से माफी मांगनी शुरू की.

पंजाब में अकाली दल के नेता बिक्रम मजीठिया को ड्रग्स माफिया कहने पर हुए मानहानि केस में माफी मांगने के बाद केजरीवाल अब तक नितिन गडकरी, वित्त मंत्री अरुण जेटली और कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल से माफी मांग चुके हैं. एक समय पर केजरीवाल ने भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए इन नेताओं के खिलाफ आखिरी सांस तक लड़ाई लड़ने का दावा किया था.

हालांकि उनका तर्क था कि कोर्ट के चक्कर लगाने में सरकार का पैसा खर्च हो रहा है लेकिन सूत्रों का मानना था कि वो कोर्ट में अपने आरोप सिद्ध नहीं कर पा रहे थे. बताया जाता है कि सुप्रीम कोर्ट ने नेताओं के केस की फास्ट ट्रैक सुनवाई का आदेश है. ऐसे में आपराधिक मानहानि का केस झेल रहे केजरीवाल को चिंता है कि अगर उन्हें इस चक्कर में सजा मिल गई तो उनकी भविष्य की राजनीति प्रभावित होगी.

आईएस थप्पड़

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल फिर विवादों में फंसे जब उन पर उनके मुख्य सचिव मुख्यमंत्री निवास पर आप नेताओं द्वारा मारपीट का आरोप लगाया. ये केजरीवाल की छवि पर बहुत बड़ा झटका था. उनके नेताओं पर बाकायदा पुलिस कार्रवाई हुई और अफसरों ने अपनी सुरक्षा की मांग की. बदले में अरविंद केजरीवाल ने फिर एनजीओ मार्का राजनीति की कोशिश की और एलजी ऑफिस के वेटिंग रूम में धरने पर बैठ गए.

दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने की मांग करने लगे और साथ ही आईएस अफसरों पर असहयोग आंदोलन का आरोप लगाया. नौ दिन चले इस पूरे धरने में केजरीवाल फिर बैकफुट पर आए जब आईएएस अफसर संगठन ने केजरीवाल से ही सुरक्षा की गारंटी मांग ली. एसी कमरे में धरने पर बैठे केजरीवाल के इस आंदोलन ने आम लोगों का साथ नहीं मिला. हालांकि कार्यकर्ताओं ने धरना प्रदर्शन सब किया लेकिन हाईकोर्ट ने केजरीवाल के धरने को गलत ठहराया.

अब जब केजरीवाल ने फिर दिल्ली से बाहर कदम रखने की बात कही तो इस बार हरियाणा चुना. केजरीवाल खुद हरियाणा से हैं. उन्हें उम्मीद है कि हरियाणा में लोग उनके काम को देख रहे हैं. उनके धुर विरोधी योगेन्द्र यादव ने लोकसभा का चुनाव भी हरियाणा से लड़ा था. हरियाणा में विधानसभा चुनाव नवंबर 2019 में होंगे.

केजरीवाल को उम्मीद है कि हरियाणा का वैश्य समाज उनका साथ देगा. हालांकि उनकी उम्मीदें अभी तक बहुत रंग नहीं लाई हैं. दिल्ली के अलावा हर जगह हारने वाली आम आदमी पार्टी भविष्य में क्या करेगी ये तो देखने वाली बात है. केजरीवाल अपनी हार का ठीकरा कभी ईवीएम पर तो कभी बीजेपी पर फोड़ते रहे हैं लेकिन क्या उनकी पार्टी की लगातार हार उनके दिल्ली सरकार चलाने के तरीके पर सवालिया निशान तो नहीं है.

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