Sunday, December 22

भारतीय बैंकिंग की दो शिखर महिलाएं इन दिनों संकट के दौर से गुजर रही हैं. एक्सिस बैंक की सीईओ शिखा शर्मा ने बैंक छोड़ने का मन बना लिया और आईसीआईसीआई बैंक की सीईओ चंदा कोचर वीडियोकॉन को दिए गए लोन में पति और देवर की भूमिका के खिलाफ जांच की वजह से संदेह के घेरे में हैं.

एक्सिस बैंक के लगातार बढ़ते एनपीए, कुछ लोन के डायवर्जन और नोटबंदी के दौरान कुछ बैंक अधिकारियों की भूमिकाओं के बाद एक्सिस बैंक बोर्ड में शिखा शर्मा के खिलाफ माहौल बनना शुरू हो गया था और अब उन्होंने खुद इससे अलग होने का मन बना लिया है. दूसरी ओर चंदा कोचर के सीईओ बने रहने के मामले में आईसीआईसीआई बोर्ड के बंटने की खबरें आ रही हैं. दिलचस्प यह है कि दोनों ने दिग्गज बैंकर और आईसीआईसीआई बैंक के सीईओ रह चुके के वी कामथ की शागिर्दी में बैंकिंग के गुर सीखे हैं.

एक्सिस बैंक में शिखा शर्मा की भूमिका का विश्लेषण करते हुए ब्लूमबर्ग क्विंट की बैंकिंग, फाइनेंस और इकोनॉमी एडिटर ईरा दुग्गल लिखती हैं- एक्सिस बैंक में शिखा शर्मा की एंट्री तूफानी थी. साल 2000 से ही यूटीआई बैंक के चेयरमैन रहे पीजे नायक किसी बाहरी शख्स को एक्सिस बैंक का सीईओ बनाने के पक्ष में नहीं थे. लेकिन बोर्ड शिखा शर्मा के पक्ष में था. काफी हंगामा हुआ और आखिर बोर्ड की जीत हुईं तो शिखा सीईओ बन गईं. 2009 में उन्होंने सीईओ के तौर पर एक्सिस बैंक की सीईओ की कमान संभाली.

लेकिन 2018 में उनकी होने वाली विदाई भी इसी तरह हंगामाखेज साबित हुई है. रिजर्व बैंक ने चौथी बार उन्हें सीईओ बनाए जाने पर एतराज जताया. इसके बाद से ही उनके बाहर जाने की खबरें उड़ने लगी थीं. बहरहाल, अपने 9 साल के कार्यकाल में शिखा ने एक्सिस बैंक की ग्रोथ में खासी अहम भूमिका निभाई. लेकिन यह ग्रोथ बैंक की एसेट क्वालिटी में गिरावट की कीमत पर आई. 2011 में बैंक ने इन्फ्रास्ट्रक्चर सेक्टर को बड़े पैमाने पर लोन देना शुरू किया लेकिन 2015 तक ये फंस गए. 2016 में बैंक का एनपीए बढ़ गया और ऑडिट रिपोर्ट से पता चला कि एसेट क्वालिफिकेशन में भी डायवर्जन हुआ. एक्सिस बैंक की छवि को नोटबंदी के दौरान काफी धक्का लगा. बैंक के कई अधिकारी नोट बदलने के आरोप में पकड़े गए. इसके अलावा कोटक-एक्सिस बैंक मर्जर की अफवाहों ने भी शिखा शर्मा को आलोचनाओं के घेरे में ला दिया.

वित्त वर्ष 2017 में बैंक ने 21,280 करोड़ रुपये का बैड लोन घोषित किया था लेकिन आरबीआई ने पाया कि बैड लोन 26,913 करोड़ रुपये का था. 5,633 करोड़ और इसके पिछले वित्त वर्ष में 9,480 करोड़ रुपये का डायवर्जन आरबीआई को नागवार गुजरा था. रिजर्व बैंक शिखा शर्मा के नेतृत्व में बैंक के कामकाज से खुश नहीं था और आखिरकार बोर्ड में भी उन्हें पहले जैसा समर्थन मिलने की खबरें नहीं आ रही थीं. बहरहाल, शिखा शर्मा नए कार्यकाल के सात महीने के बाद ही बैंक छोड़ने की इजाजत मांगी है. साफ है कि शुरुआत में सफल पारी खेलने के बाद शिखा शर्मा लगातार बिगड़ते हालातों को संभाल नहीं पाई और उन्हें एग्जिट रूट ढूंढना पड़ा.

  • आरबीआई शिखा की चौथी पुनर्नियुक्ति से नाखुश एक्सिस बैंक के एनपीए में भारी इजाफा
  • बैड लोन के क्लासिफिकेशन में डायवर्जन
  • इन्फ्रास्ट्रक्चर सेक्टर में दिए बड़े लोन फंसे
  • नोटबंदी के दौरान बैंक अफसरों की भूमिका से बदनामी
  • कोटक-एक्सिस मर्जर के अफवाहों से भी शिखा पर घेरा

शिखा शर्मा ने जून में ही अपना पद छोड़ने का मन बनाया था. लेकिन बोर्ड से मशविरे के बाद उन्होंने इस साल दिसंबर में बैंक छोड़ने का मन बनाया है ताकि कामकाज के स्मूद ट्रांजिशन में कोई दिक्कत न आए. एक्सिस बैंक का बोर्ड नए सीईओ की नियुक्ति की प्रक्रिया जल्द ही शुरू करेगा.

इस मामले के जानकार एक दूसरे शख्स ने बताया कि शिखा शर्मा ने पिछले साल ही यह कर बैंक छोड़ने का इरादा जताया था कि उन्हें एक्सिस से बाहर ज्यादा वेतन पर नई भूमिका मिल रही है. लेकिन बैंक ने उन्हें एक्सिस में बने रहने लिए मना लिया. हालांकि आरबीआई की ओर से उनकी दोबारा नियुक्ति को मंजूरी में देरी की वजह से शिखा दोबारा बोर्ड में इस आवेदन के साथ आईं कि उनकी छुट्टी मंजूर की जाए. आखिरकार बोर्ड ने इसे मंजूरी दे दी और उन्हें नए सीईओ की नियुक्ति तक पद पर बने रहने को कहा.

पिछले साल एक्सिस बैंक ने इगॉन झेंडर को कंस्लटेंट के तौर पर नियुक्त किया था. उन्हें नए सीईओ की पहचान करनी थी. शुरुआती खोजबीन के बाद आखिरकर शिखा शर्मा को ही दोबारा नियुक्त करने का फैसला किया गया. शिखा की दोबारा नियुक्ति से पहले कहा जा रहा था कि जून 2018 में उनका कार्यकाल खत्म हो रहा है और वह इस पद पर आगे नहीं रहेंगी. लेकिन उन्हें दोबारा बहाल कर बोर्ड ने यह अनिश्चितता खत्म कर दी थी. हालांकि अब शिखा शर्मा ने खुद ही बैंक से अलग होने का फैसला किया है.