Friday, December 27

एक और सम्पूर्ण विश्व जल संकट से जूझ रहा है वहीँ हम अपने जल संसाधनों को लापरवाही से ले रहे हैं और दूषित भी कर रहे हैं, जल विवाद ऐसे खड़े कर रखे हैं कि पानी समुद्र अथवा पडोसी देश की जमीन पर भले ही चला जाए परन्तु एक राज्य से दुसरे राज्य में नहीं जाना चाहिए इसके लिए हम सर्वोच्च न्यायालय भी जायेंगे और राजनैतिक रोटियां सकने के लिए लाशें बिछाने में भी गुरेज़ नहीं करंगे

भारत अपने इतिहास के सबसे गंभीर जल संकट का सामना कर रहा है. देश में करीब 60 करोड़ लोग पानी की गंभीर किल्लत का सामना कर रहे हैं. करीब दो लाख लोग स्वच्छ पानी न मिलने के चलते हर साल जान गंवा देते हैं. गुरुवार को नीति आयोग द्वारा जारी एक रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है.

नीति आयोग की जल संसाधन मंत्री नितिन गडकरी द्वारा जारी की गई ‘समग्र जल प्रबंधन सूचकांक (सीडब्ल्यूएमआई)’ रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि यह संकट आगे और गंभीर होने जा रहा है.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘2030 तक देश में पानी की मांग उपलब्ध जल वितरण की दोगुनी हो जाएगी. जिसका मतलब है कि करोड़ों लोगों के लिए पानी का गंभीर संकट पैदा हो जाएगा और देश की जीडीपी में छह प्रतिशत की कमी देखी जाएगी.’

स्वतंत्र संस्थाओं द्वारा जुटाए डाटा का उदाहरण देते हुए रिपोर्ट में दर्शाया गया है कि करीब 70 प्रतिशत प्रदूषित पानी के साथ भारत जल गुणवत्ता सूचकांक में 122 देशों में 120वें पायदान पर है.

रिपोर्ट के माध्यम से नीति आयोग ने कहा है, ‘अभी 60 करोड़ भारतीय गंभीर से गंभीरतम जल संकट का सामना कर रहे हैं और दो लाख लोग स्वच्छ पानी तक पर्याप्त पहुंच न होने के चलते हर साल अपनी जान गंवा देते हैं.’

रिपोर्ट में जल संसाधनों और उनके उपयोग की समझ को गहरा बनाने की आसन्न आवश्यकता पर जोर दिया गया है. 2016-17 अवधि की इस रिपोर्ट में गुजरात को जल संसाधनों के प्रभावी प्रबंधन के मामले में पहला स्थान दिया गया है. सूचकांक में गुजरात के बाद मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र का नंबर आता है.

रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर पूर्वी और हिमालयी राज्यों में त्रिपुरा शीर्ष पर रहा है जिसके बाद हिमाचल प्रदेश, सिक्किम और असम का नंबर आता है.

सरकार ने दावा किया कि सीडब्ल्यूएमआई जल संसाधनों के प्रभावी प्रबंधन में राज्य और केंद्रशासित प्रदेशों के प्रदर्शन में सुधार और आकलन का एक महत्वपूर्ण साधन है.

सीडब्ल्यूएमआई नीति आयोग द्वारा बनाया गया है 9 वृह्द क्षेत्रों के 28 संकेतकों के विभिन्न पहलुओं जैसे- भूजल, जल निकायों का पुनरोद्धार, सिंचाई, कृषि कार्य, पेयजल, नीतियां और शासन के सम्मिलित करते हुए बनाया गया है.

जांच के इरादे से, राज्यों को विभिन्न जल विद्युत हालातों के लिए उत्तरदायी दो समूहों में बांटा गया था, उत्तर-पूर्वी व हिमालयी राज्य और अन्य राज्य.

रिपोर्ट के अनुसार, झारखंड, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और बिहार जल प्रबंधन के मामले में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले राज्य रहे.

नितिन गडकरी ने कहा, ‘जल प्रबंधन एक बड़ी समस्या है और जिन राज्यों ने इस संबंध में अच्छा प्रदर्शन किया, उन्होंने कृषि क्षेत्र में भी अच्छा प्रदर्शन किया है.’

साथ ही उन्होंने कहा कि पानी की कमी नहीं है, पानी के नियोजन की कमी है. राज्यों के बीच जल विवाद सुलझाना, पानी की बचत करना और बेहतर जल प्रबंधन कुछ ऐसे काम हैं जिनसे कृषि आमदनी बढ़ सकती है और गांव छोड़कर शहर आए लोग वापस गांव की ओर लौट सकते हैं.