Saturday, December 21

सारिका तिवारी

आखिर अखिलेश यादव ने सर्वोच्च नयायालय की फटकार के बाद  बंगला नम्बर 4 खाली कर ही दिया. यह बात अलग है कि अगले ही दिन मिडिया ने उनके उजड़े चमन की तस्वीर सर – ए – आम कर दी. अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में अखिल्लेश ने इस बंगले की रूपरेखा बदलने के लिए लगभग 50 करोड़ रूपये खर्च किये थे, पर मोहभंग होते हिब्न्गले को इस तरह से उजाड़ने की एक प्रदेश के रहे मुख्यमंत्री और व्यस्क मानसिकता के मालिक से उम्मीद नहीं थी.

कभी ऐसा दीखता था बंगला नम्बर 4 

एसी, कूलर, टीवी,  मंहगे नलके, साज़-ओ-सामान तक तो ठीक था पर फर्श उखाड़ने दीवारें तोड़ने की नौबत क्यों पड़ी. चलो मान लिया कि टाइल और ईंटें मन पसंद थीं ले गए, पर साइकिल ट्रैक उखाड़ने के पीछे का मनोविज्ञान यह तो कतई समझ से बाहर है. जिसके बाद अब राज्य संपत्ति विभाग का कहना है कि वो अन्य पूर्व मुख्यमंत्रियों के खाली बंगलों में हुए नुक़सान की भी जांच करने वाला है और इसके लिए सूची बना रहा है.

हालांकि शुरू में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के लोग ये कह रहे थे कि वो सिर्फ़ अपना ही सामान ले गए हैं लेकिन अब पार्टी तोड़-फोड़ और सामान ग़ायब होने के लिए राज्य सरकार को दोषी ठहरा रही है.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अखिलेश यादव ने दो जून को यह बंगला खाली कर दिया था. बंगले में टूट-फूट का मामला सामने आने के बाद अब राज्य संपत्ति विभाग अब अन्य पूर्व मुख्यमंत्रियों के खाली बंगलों भी हुए नुक़सान की सूची बना रहा है.

हालांकि बताया जा रहा है कि अन्य बंगलों में कुछ सामान ज़रूर इधर-उधर हुए हैं लेकिन इस क़दर तोड़-फोड़ नहीं हुई है जैसी कि अखिलेश यादव के बंगले में हुई है.

राज्य संपत्ति विभाग के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि इन बंगलों के सामान की सूची बनानी शुरू कर दी गई है और इनका रिकॉर्ड से मिलान कराया जाएगा. किसी भी किस्म की गड़बड़ी मिलने पर आवंटियों को नोटिस जारी किया जाएगा.

जिन पूर्व मुख्यमंत्रियों ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बंगले खाली किए थे उनमें मुलायम सिंह यादव, कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह और मायावती शामिल हैं. इन सभी ने आवास खाली करने के बाद चाबी राज्य संपत्ति विभाग को सौंप दी है.

पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी का सरकारी आवास अभी खाली नहीं हुआ है.

समाजवादी पार्टी के नेता सुनील साजन कहते हैं, “अखिलेश यादव की छवि को ख़राब करने के लिए बीजेपी षडयंत्र कर रही है. जब चाबी पहले ही सौंप दी गई थी तो एक हफ़्ते बाद मीडिया को क्यों दिखाया गया?”

“मीडिया को दिखाने के लिए राज्य संपत्ति विभाग के अधिकारी नहीं बल्कि मुख्यमंत्री के ओएसडी लेकर आए. इसी से समझा जा सकता है कि सरकार की नीयत क्या थी.”

सुनील साजन इसे फूलपुर, गोरखपुर, कैराना और नूरपुर के उपचुनाव से जोड़ते हैं और कहते हैं कि बीजेपी हताशा में ऐसा कर रही है.

समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता सुनील सिंह यादव ने कहा है कि “अखिलेश जी की छवि को धूमिल करने के उद्देश्य से भाजपा व प्रशासन के लोगों की ये एक घटिया चाल है.”

ख़ुद अखिलेश यादव ने भी इन सबके लिए राज्य संपत्ति विभाग के अधिकारियों पर निशाना साधा है. उन्होंने नाम तो नहीं लिया लेकिन इस तरह से आरोप लगाया जैसे वो जानते हों कि राज्य संपत्ति विभाग का कौन सा अधिकारी ये सब कर रहा है.

वहीं बीजेपी ने सरकारी मकान में की गई इस तरह की तोड़-फ़ोड़ पर चिंता जताई है. पार्टी प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी का कहना है कि ऐसा अखिलेश यादव ने सिर्फ़ इसलिए किया ताकि लोग ये न जान सकें कि वो सरकारी पैसे से कितनी ऐशो-आराम की ज़िंदगी जीते थे.

राकेश त्रिपाठी कहते हैं, “अखिलेश यादव जानते थे कि उन्हें दोबारा मुख्यमंत्री नहीं बनना है इसलिए पहले ही करोड़ों रुपये ख़र्च करके अपने लिए सरकारी बंगला आवंटित करा लिया. अब, जब सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद उन्हें बंगला छोड़ना पड़ रहा है तो लोग जान न जाएं कि वो इतनी शानो-शौकत से रहते थे, इसलिए उसे तहस-नहस करा दिया.”

लखनऊ के विक्रमादित्य मार्ग स्थित चार नंबर का सरकारी बंगला अखिलेश यादव को बतौर मुख्यमंत्री आवंटित किया गया था. इस बंगले को अखिलेश यादव ने अपने मुख्यमंत्री रहते ही आवंटित करा लिया था और बताया जाता है कि इसके सौंदर्यीकरण पर क़रीब चालीस करोड़ रुपये ख़र्च किए गए थे.

लेकिन पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व मुख्यमंत्रियों को बंगले आवंटित करने को ग़ैरक़ानूनी क़रार दिया तो उन्हें ये बंगला खाली करना पड़ा.

हालांकि पहले अखिलेश यादव ने सुप्रीम कोर्ट से इसके लिए दो साल का समय भी मांगा था लेकिन जब समय नहीं मिला तो उन्हें खाली करना पड़ा.

जानकारों का कहना है कि क़ीमती सामान उठा ले जाने की बात तो समझ में आती है लेकिन जिस बंगले को सजाने में करोड़ों रुपये ख़र्च हुए हों, उसे कोई खंडहर बनाकर भला क्यों जाएगा.

बंगले के भीतर महंगी इटालियन टाइल्स लगी थीं जो उखड़ी हुई हैं, एसी, नल और नल की टूटियां तक ग़ायब हैं. तोड़-फोड़ सिर्फ़ बंगले के अंदर ही नहीं की गई है बल्कि बाहर भी दिखाई पड़ रही है.

बंगले की इमारत के बाहर बने साइकिल ट्रैक की पूरी फर्श टूटी पड़ी मिली और हमेशा हरा-भरा रहने वाले बगीचे से कुर्सियां और बेंच नदारद थीं.

इसके अलावा बैडमिंटन कोर्ट की फर्श, दीवारें, नेट और टाइल्स भी उखाड़ दिए गए हैं. पूरे बंगले में जो सबसे ज्यादा सुरक्षित बचा है वो है मंदिर. संगमरमर के बने इस मंदिर को किसी भी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाया गया है.

बहरहाल, इस मामले में अभी राजनीतिक बयानबाज़ी जारी है और सोशल मीडिया में बंगले की दुर्दशा पर अफ़सोस और ग़ुस्सा भी जताया जा रहा है.

राज्य संपत्ति विभाग की ओर से अभी कोई आधिकारिक बयान तो नहीं आया है लेकिन बताया जा रहा है कि राज्य संपत्ति विभाग नुकसान का आकलन करके उसकी भरपाई का नोटिस भेजने की तैयारी में है.

कुछ तो पर्दादारी है.