चंड़ीगढ़ 10 जून (राज वशिष्ठ )
सरकार के लेटरल रिक्रूटमेंट के कदम को विपक्ष संवैधानिक ढांचे पर प्रहार मान रहा है.. अपनी तीखी प्रतिक्रिया देते हुए पूर्व आईएएस और कांग्रेस नेता पीएल पुनिया ने सरकार के इस फैसले की कड़ी निंदा की और इसकी मंशा पर सवाल भी उठाया. नियुक्ति के लिए जारी विज्ञापन को लेकर उन्होंने कहा, ‘यह गलत है. इसमें इंडियन नेशनल का जिक्र किया गया है, इंडियन सिटीजन नहीं. तो क्या बाहर रहने वालों को भी बनाएंगे.’
उन्होंने कहा, ‘सरकार बीजेपी और संघ के लोगों को बैकडोर से घुसेड़ना चाहती है. सरदार पटेल ने अधिकारियों की इस श्रेणी को स्टील फ्रेम कहा था. उनका मानना था कि नेता और सरकारें आती जाती रहेंगी, लेकिन इस श्रेणी के अधिकारियों पर उसका कोई प्रभाव नहीं होना चाहिए, यह उनके विजन के साथ भी खिलवाड़ है.’
हम आजतक यह मानते आये हैं कि सरकार कोई भी हो, नेता कोई भी हो राष्ट्र IAS के हाथों ही से चलता है. किसी भी प्रदेश में मुख्य सचिव का पद सर्वाधिक गरिमामय और प्रभावशाली होता है और इसके पीछे होती है सालों की अथक मेहनत और एक बहुर्मुखी सोच जो अनुभव ही से आती है. सचिव का पद कोई थाली का प्रसाद नहीं जो किसी को भी बाँट दया जाय. कोई IAS पहिले कुछ वर्षों में मात्र एक प्रशिक्षु ही होता है, सालों का अनुभव, गूढ़ परिश्रम और बेदाग छवि उसे सचिव के पद पर स्थापित करती है. जैसा कि हमने रघुरमन के समय देखा, एक नितांत अजनबी जो भारतीय परिपेक्ष की तनिक भी जानकारी नहीं रखता, जिसे भारतीय सामजिक ढाँचे का सिर्फ पुस्तकों ही की मदद से पता है वः हमारे रह्स्त्र के शीर्षस्थ बैंक के शीर्षस्थ पद पर आसीन हो कर नीति निर्धारित करता रहा और फिर अब इंग्लैंड के शीर्षस्थ बैंक में कार्य रत है. हम ऐसे कैसे किसी भी व्यक्ति पर भरोसा कर सकते हैं. कल को अमर्त्य सेन जैसे कुशल अर्थशास्त्री जो बिना भारत को जाने हमारी अर्थव्यवस्था पर टीका टिप्पणी करते हैं अथवा आजादी गैंग जैसी किस भी संस्था की विचारधारा से युक्त व्यक्ति यदि ऐसे उच्च पद पर स्थापित होता है तब हमारा तो भगवान् ही सहारा.
आरजेडी के नेता और बिहार के पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने भी सरकार के इस कदम की आलोचना की है. उन्होंने ट्वीट करते हुए कहा कि यह मनुवादी सरकार यूपीएससी को दरकिनार कर बिना परीक्षा के नीतिगत और संयुक्त सचिव के महत्वपूर्ण पदों पर मनपसंद व्यक्तियों को कैसे नियुक्त कर सकती है? यह संविधान और आरक्षण का घोर उल्लंघन है. कल को ये बिना चुनाव के प्रधानमंत्री और कैबिनेट बना लेंगे. इन्होंने संविधान का मजाक बना दिया है.
हालांकि विख्यात आईएएस अशोक खेमका ने सरकार के इस फैसले का स्वागत करते हुए ट्वीट किया कि इससे सार्वजनिक सेवाओं में बाहर की प्रतिभाओं के इस्तेमाल किया जा सकेगा.
Lateral recruitments to the posts of Joint Secretary in Govt of India notified. May the best talents from outside nurture public services.
— Ashok Khemka (@AshokKhemka_IAS) June 10, 2018
सरकार की ओर से जारी की गई अधिसूचना के अनुसार इन पदों के लिए वही आवेदन कर सकते हैं, जिनकी उम्र 1 जुलाई तक 40 साल हो गई है और उम्मीदवार का किसी भी मान्यता प्राप्त यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएट होना आवश्यक है.
उम्मीदवार को किसी सरकारी, पब्लिक सेक्टर यूनिट, यूनिवर्सिटी के अलावा किसी निजी कंपनी में 15 साल का अनुभव होना भी जरुरी है. इन पदों पर चयनित होने वाले उम्मीदवारों की नियुक्ति तीन साल तक के लिए की जाएगी. सरकार इस करार को 5 साल तक के लिए बढ़ा भी सकती है.
नौकरशाही में लैटरल ऐंट्री का पहला प्रस्ताव 2005 में ही आया था, जब प्रशासनिक सुधार पर पहली रिपोर्ट आई थी, लेकिन तब इसे सिरे से खारिज कर दिया गया. फिर 2010 में दूसरी प्रशासनिक सुधार रिपोर्ट में भी इसकी अनुशंसा की गई. लेकिन इस संबंध में पहली गंभीर पहल 2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद हुई.