Sunday, December 22

दिनेश पाठक ,

वरिष्ठ अधिवक्ता राजस्थान उच्च न्यायालय,एवं
विश्व हिन्दू परिषद के विधि प्रमुख

 

 

संघ के कार्यक्रम मे पूर्व राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी के जाने का समाचार जैसे ही सार्वजनिक हुआ वैसे ही राजनीतिक गलियारो मे तूफान मच गया ! हृर वर्ष की भांति इस वर्ष भी आर एस एस के तीसरे वर्ष के शिक्षा वर्ग का समापन होता है हर साल देश का एक प्रबुद्ध व्यक्ति इसके समापन पर अपना सम्बोधन देता है जो विभिन्न विचारधारा के होते है लेकिन पहली बार ऐसा हुआ देश के पूर्व राष्ट्रपति को वहां जाने से रोकने का प्रयास किया!

इस कार्यक्रम के समापन पर इस साल देश के पूर्व राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी को आमन्त्रित किया और उन्होने सहज भाव से इसे स्वीकार किया प्रणव मुखर्जी वरिष्ठतम राजनेताओ मे से एक है उनकी विद्वता पर आजतक तक किसी ने चाहे वो बीजेपी हो चाहे आर एस एस चाहे वामपंथी ने कोई सवाल नही उठाया लेकिन पहली बार कांग्रेस ने ही नेताओ ने उनके इस कार्यक्रम मे जाने का विरोध किया और बयानबाजी और टिवटर के जरिये ये कहने की कोशिश की कि प्रणव दा का वहां जाना गलत है और वो सही निर्णय नही कर पाये ! ये कांग्रेस की एक तरह से असहिष्णुता थी कि आर एस एस एक अछूत है वहां जाकर प्रणव दा को बोलने की आजादी को रोकने का प्रयास विरोध करके किया ! जिसका आज प्रणव मुखर्जी ने संघ के कार्यक्रम मे पहुचकर जो सम्बोधन किया ,के जरिये कांग्रेस के ऐसे नेताओ को करारा जबाव दिया जो उनके जाने पर हो हल्ला मचाये हुये थे!

संघ शिक्षा वर्ग तृतीय वर्ष के समापन पर मुख्य अतिथि डा. प्रणव मुखर्जी जी के सम्बोधन के कुछ मुख्य बिन्दु इस प्रकार रहे

-मैं राष्ट्र और देशभक्ति पर बोलने आया हूँ।
-देश और देशभक्ति समझने आया हूँ।
-मैं भारत के बारे में बात करने आया हूँ।
-hensang व fahiyan ने हिंदुओं की बात कही है ।
-देशभक्ति का मतलब देश के प्रति आस्था।
-सबने कहा है कि हिन्दु धर्म एक उदार धर्म है
-राष्ट्रवाद किसी भी देश की पहचान है ।
-हम अलग अलग सभ्यताओं को शामिल करते रहे हैं।
-भारतीय राष्ट्रवाद में एक वेश्विक भावना रहा है।
-विविधता हमारी सबसे बड़ी ताक़त हैं,हम विविधता का सम्मान करते हैं।
-भेदभाव नफ़रत से भारत को ख़तरा।
-सहिष्णुता हमारी सबसे बड़ी पहचान हैं।
-आज राष्ट्रीय दृष्टिकोण की आवश्यकता हैं
-१८०० वर्षों तक भारत ज्ञान का केंद्र रहा है ।
-नेहरु ने कहा की सबका साथ ज़रूरी
-राष्ट्रवाद किसी धर्म भाषा में बँटा नहीं है।
– हम सबकी पहचान भारतीय हैं।
-भारत की राष्ट्रीयता वसुधेव कुटुम्बकम पर आधारित हैं।
-विचारों में समानता के लिए संवाद ज़रूरी हैं
-शांति की और बढ़ने से समृद्धि बढ़ेगी।
-लोकतंत्र कोई उपहार नहीं संघर्ष का नतीजा हैं।
-विचारों के आदान प्रदान से देश उन्नत होगा
-भारत अर्थव्यवस्था में आगे लेकिन happiness index में पीछे हैं।
-भारतमाता हमसे सुख शांति व समृद्धि की माँग कर रही हैं।
-आपसी नफ़रत से देश को नुक़सान होगा।
-बातचीत से हर समस्या का समाधान सम्भव हैं।
– देशभक्ति में देश के सभी लोगों का योगदान हैं।
-दुनिया का सबसे पहला राज्य भारत हैं।
-विविधता में एकता भारत को ख़ास बनाती हैं।१२२ भाषायें, १६०० बोलियाँ
– आर्थिक विकास को असली विकास में बदलना हैं।

खास बात यह रही कि प्रणव दा और मोहन भागवत के समबोधन मे बहुत कुछ समानता थी जो बाते प्रणव दा ने कही वही बाते लगभग उनसे पूर्व मोहन भागवत ने अपने सम्बोधन मे कही ! उन्होने भारत मे रहने वाले हर व्यक्ति को भारतपुत्र बताया उन्होने कहा संघ सर्वसमाज के लिये काम करता है

प्रणव दा ने अपने सम्बोधन मे ऐसा कुछ नही कहा जिससे कांग्रेस भयभीत थी और अपने ही सबसे बरिष्ठ और विद्वान व्यक्ति को कोस रहे थे उन्होंने अपने सम्बोधन मे भारत की बात की राष्ट्रवाद की बात की उन्होने भारत को पहला राज्य बताया ! हिन्दु के उदार होने तथा गुप्तकाल मौर्य काल अशोक की चर्चा की लेकिन अपने सम्बोधन मे कही अकबर की चरचा नही की!उन्होने याद दिलाया कि भारत की राष्ट्रीयता वसुधैच कुटुम्बकम पर आधारित है