शफ्फाफ सफ़ेद कुर्ते, पायजामे जिन्हें पंजाबी में तम्बी बुलाते हैं, पहन कर कलफ लगी पगड़ियों वाले किसान हड़ताल पर हैं. सूती सफ़ेद कपडे जिन पर मक्खी के बैठने का भी दाग नहीं है वह किसान हड़ताल पर है. ग़रीब ग्वालों का दूध सड़कों पर बिखेरा जा रहा है, छीन कर, सब्ज़ी वालों की सब्जियां ठेलों से उठा कर आने जाने वाली बड़ी गाड़ियों के पहियों तले रौंदा जा रहा है. सब्जियां भी इस बुरी तरह से फैंकी जा रहीं हैं कि कोई जानवर भी उन्हें खाने की जुर्रत न करे, ज़रुरत भले ही कितनी हो.
एक गाँव में मुश्किल से दो या तीन किसान परिवार ही सब्ज़ी उगाते हैं. यह एकड़ या दो एकड़ जमीन पर भरे पूरे परिवार वाले छोटे किसान होते हैं जिनकी प्रतिदिन की पैदावार एक ठेले के बराबर होती है.यह परिवार कमरतोड़ मेहनत कर दो तीन महीनों ही में सारे साल की कमाई करने का जुगत भिड़ाते हैं. यह लोग लम्बी देरी की फसलों में हाथ नहीं डाल सकते. पंजाबी की कहावत “रोजाना खूह पट्टना ते पानी पीना” इन पर मुफीद बैठती है. यह आन्दोलन सिर्फ अमीर ज़मींदारों का मौज मस्ती का सामान है.
यही आन्दोलन करना है तो चावल या गेंहू की कटाई के समय करो. नहीं, उस समय नहीं, क्योंकि आप बड़े किसान हैं और उस समय आपकी छमाही कमाई का समय है तब आप यह हिम्मत नहीं दिखाएँगे अब जब दो तीन महीने छोटे किसानों की कमाई का समय था तो आपने आन्दोलन की भेंट चढ़ा दिए. इस ग़रीब विरोधी आन्दोलन का विरोध किया जाना चाहिए इन्हें कहा जाए कि आन्दोलन छ: महीने चलाओ और कोई भी किसान अपने खेतों से कोई भी दाना मंडी में नहीं ले कर जाएगा. चावल या गेहूं पैदावार अनुसार मंडी का मुंह नहीं देखेगा अगली फसल की बिजाई पर देखा जाएगा. यकीन मानिए ऐसा कभी भी नहीं होगा क्योंकि इन ज़मींदारों के अपने अपने हित सामने आ जाते हैं इनकी कोठियां दानों और नोटों से भर जातीं हैं यह लम्बी डकार मार कर फिर साठी के दिनों में आ जमेंगे ग़रीब किसानों के मुंह से निवाला छीनने.
मुफ्त की बिजली पानी, 100 किस्मों की सब्सिडियां डकार, धरती पानी हवा को दूषित कर गरीबों को भूखा मारने इनकी फौज निकल पड़ी है. अपने तो खातों में सीधे सीधे पैसा डलवा लेते हैं पर जो रोज़ कमाने वाला है उसे बेघर करने की सोचते हैं, इनके कर्जे तो सरकार भी माफ़ कर देती है पर आत्महत्या गरीब किसान ही करता है.
यकीं मानिए जीरी लगाने की आखिरी तारीख 20 जून है यह आन्दोलन किसी भी बहाने से 10 तारीख से आगे नहीं बढेगा, उससे पाहिले ही समाप्त कर दिया जाएगा यह कह कर कि आन्दोलन में भितरघात हो गयी है या फिर कोई नया पर लचर बहन ले कर इसे टाल दिया जाएगा.
हड़ताल करनी है तो लीडरान के घरों को घेरो, दूध उनके घरों में उन्ढेलो, सब्जियां उनके घरों में बिखेरो, पाहिले ही से मरने की राह पड़े दिहाड़ीदार मजदूर किसानों और ग्वालों के परिवारों उनके बच्चों के मुंह से निवाला न छीनों. “मरियां नूं होर न मारो”