मुलायम से भी नहीं संभली घर की तकरार, शिवपाल की नयी पार्टी अक्तूबर में


अब तक शिवपाल यादव मुलायम सिंह के साथ शांति वार्ता कर रहे थे लेकिन लगता है कि इनके बीच बात बनी नहीं है


समाजवादी पार्टी से अलग होकर अपनी नई पार्टी बनाने की घोषणा कर चुके शिवपाल यादव अब आखिरकार अक्टूबर के मध्य में लॉन्च करेंगे. अब तक वो यादव परिवार के साथ शांति वार्ता कर रहे थे लेकिन लगता है कि इनके बीच बात बनी नहीं है.

सूत्रों के मुताबिक, उत्तर प्रदेश राजनीति के यादव परिवार में शांति वार्ता पर बात बन नहीं पाई है और शिवपाल सिंह यादव आखिरकार अपनी नई पार्टी समाजवादी सेक्युलर मोर्चा अक्टूबर में लॉन्च कर देंगे.

शिवपाल यादव ने कुछ दिनों पहले ही अपनी नई पॉलिटिकल पार्टी समाजवादी सेक्युलर मोर्चा के नाम की घोषणा की थी और उन सभी को अपनी पार्टी जॉइन करने का न्योता भेजा था, जिन्हें लगता है कि समाजवादी पार्टी में उन्हें सम्मान नहीं मिलता.

इसके बाद सूत्रों के हवाले से खबर आई थी कि शिवपाल के इस घोषणा के बाद समाजवादी पार्टी के पूर्व अध्यक्ष और मार्गदर्शक मुलायम सिंह यादव ने उनसे बातचीत कर मामला सुलझाने की कोशिश की. वो चाहते थे कि उनके भाई शिवपाल और बेटे अखिलेश यादव के बीच का विवाद खत्म हो जाए. हालांकि, लगता है कि ये दोनों नेता ही झुकने के मूड में नहीं हैं. कहा जा रहा है कि शिवपाल सिंह ने शर्त रखी है कि वो पार्टी में तभी रुकेंगे जब उनको और उनके साथियों को पार्टी में समुचित आदर मिलेगा.

खबर थी कि जब शिवपाल यादव ने अपने पार्टी के नाम की घोषणा की थी, उस वक्त ये खबर भी आई थी कि उन्होंने खुद मुलायम सिंह यादव तक इसमें शामिल होने का न्योता दिया था, जिसे मुलायम ने नकार दिया था. उधर लग रहा है कि अखिलेश यादव भी इस मामले को पूरी तरह से सुलटाने के मूड में हैं.

शिवपाल सिंह ने भी गुरुवार को ऐसी बात कही, जिससे लगता है कि अब वो पीछे मुड़कर देखने वाले नहीं हैं. उन्होंने कहा कि उनकी नई राजनीतिक पार्टी 2019 के लोकसभा चुनावों में अहम भूमिका निभाएंगी. हम बीजेपी के खिलाफ सेक्युलर मोर्चे को मजबूत करेंगे.

शिवपाल धड़े के सूत्रों ने जानकारी दी है कि इस नई पार्टी को मैदान में ले जाने की सारी तैयारियां पूरी हो चुकी हैं. नामों पर चर्चा की जा रही है और जल्दी ही पार्टी के लिए प्रवक्ता चुन लिए जाएंगे. अक्टूबर के मध्य तक रजिस्ट्रेशन तक का काम पूरा कर लिया जाएगा.

हालांकि समाजवादी पार्टी के नेता इन खबरों पर कोई टिप्पणी नहीं कर रहे और यादव परिवार भी हाथ खड़े कर चुका लगता है, ऐसे में इस डेवलपमेंट से बीजेपी को काफी खुशी होगी. इस सबमें सबसे ज्यादा फायदा बीजेपी को पहुंचेगा.

जन्माष्टमी पर भगवान कृष्ण पर पूर्व मुख्य संसदीय सचिव की अभद्र टिप्पणी पर कांग्रेस चुप


गौरतलब है अभी कुछ दिन पहिले ही सुरजेवाला ने कांग्रेस्स के डीएनए में ब्राह्मण होने की बात काही थी, अब यह….. 


हिमाचल प्रदेश की पूर्व कांग्रेस सरकार में मुख्य संसदीय सचिव रहे नीरज भारती वक्त-वक्त पर अपनी अभद्र टिप्पणियों के लिए चर्चा में रहते हैं. वो फिर अपनी एक फेसबुक पोस्ट को लेकर विवादों में आ गए हैं. जन्माष्टमी के मौके पर एक फेसबुक पोस्ट में भारती ने कृष्ण पर अपमानजनक पोस्ट किया है.

भारती ने जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण भगवान की एक फोटो फेसबुक पर शेयर की, जिसमें वह पेड़ पर बैठे हैं और नीचे नग्न अवस्था में गोपियों को नहाते हुए दिखाया है. इस फोटो के साथ भारती ने लिखा, ‘आज इसका जन्मदिन है क्या?’

भारती की इस पोस्ट पर भारतीय जनता पार्टी के सांसद अनुराग ठाकुर ने भारती पर निशाना साधा और साथ ही राहुल गांधी को भी लपेटे में ले लिया. ठाकुर ने राहुल से सवाल किया.

बीजेपी के संसद में मुख्य सचेतक ठाकुर ने फेसबुक पर लिखा, ‘आपकी मानसरोवर यात्रा ढोंग है. आपकी सुरक्षा के तहत ऐसे अपमानजनक पोस्ट लोगों की धार्मिक भावनाओं पर हमला हैं.’ ठाकुर ने अपने इस पोस्ट के साथ भारती की पूर्व हिमाचल प्रदेश मुख्यमंत्री वीरभद्र के साथ की दो तस्वीरें भी पोस्ट कीं.

उत्तर प्रदेश के हमीरपुर से सांसद अनुराग ठाकुर ने कहा कि ऐसे पोस्ट कांग्रेस की एंटी हिंदू की छवि को उजागर करते हैं.

न्यूज एजेंसी पीटीआई से कांगड़ा के सुपरिटेंडेंट ने कहा है कि उन्हें इस बारे में अभी तक कोई शिकायत नहीं मिली है, अगर मिलती है तो भारती पर उचित कार्रवाई करेंगे.

भारती के अभद्र टिप्पणी के मामले में कांग्रेस ने अपना पल्ला झाड़ा है. कांग्रेस के प्रवक्ता नरेश चौहान का कहना है कि कांग्रेस इस तरह की टिप्पणियों का समर्थन नहीं करती है. कांग्रेस पार्टी इस मामले से खुद को अलग करती है और यह उनका निजी मामला है. कांग्रेस की विचारधारा ऐसी नहीं है.

नीरज भारती पर पहले ही पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पर अपमानजनक टिप्पणी करने के चलते एफआईआर दर्ज करवाया जा चुका है. इस पोस्ट पर बीजेपी लीडर प्रतिभा बाली ने उनसे सवाल किया तो उन्होंने उनका भी अपमान किया. इसके अलावा वह फेसबुक पर अपनी विवादित पोस्ट के जरिए पीएम नरेंद्र मोदी, स्मृति ईरानी, बाबा रामदेव और श्री श्री रविशंकर पर भी अभद्र टिप्पणियां कर चुके हैं.

जहां नम्रता, सत्य, लज्जा और धर्म हैं वहीं कृष्ण हैं, जहां कृष्ण हैं वहीं विजय है


धार्मिक विश्वासों को छोड़ दें तो एक किरदार के रूप में कृष्ण के जीवन के तमाम पहलू बेहद रोचक हैं


जनमाष्टमी यानी कृष्ण के जन्म का उत्सव. कृष्ण के जन्म से दो बिल्कुल कड़ियां अलग जुड़ती हैं. एक ओर मथुरा की काल कोठरी है जहां वासुदेव और देवकी जेल में अपनी आठवीं संतान की निश्चित हत्या का इंतजार कर रहे हैं. दूसरी तरफ गोकुल में बच्चे के पैदा होने की खुशियां हैं. कृष्ण के जन्म का ये विरोधाभास उनके जीवन में हर जगह दिखता है. धार्मिक विश्वासों को छोड़ दें तो एक किरदार के रूप में कृष्ण के जीवन के तमाम पहलू बेहद रोचक हैं. और समय-समय पर उनके बारे में जो नई कहानियां गढ़ी गईं उन्हें समझना भी किसी समाजशास्त्रीय अध्ययन से कम नहीं है.

अब देखिए वृंदावन कृष्ण की जगह है, लेकिन वृंदावन में रहना है तो ‘राधे-राधे’ कहना है. ऐसा नहीं हो सकता कि आप अयोध्या में रहकर सिया-सिया, लुंबिनी में यशोधरा-यशोधरा या ऐसा कुछ और कहें. यह कृष्ण के ही साथ संभव है. कान्हा, मुरली और माखन के कथाओं में कृष्ण का बचपन बेहद सुहावना लगता है. लेकिन कृष्ण का बचपन एक ऐसे शख्स का बचपन है, जिसके पैदा होने से पहले ही उसके पिता ने उसकी हत्या की जिम्मेदारी ले ली थी. वो एक राज्य की गद्दी का दावेदार हो सकता था तो उसको मारने के लिए हर तरह की कोशिशें की गईं. बचपन के इन झटकों के खत्म होते-होते पता चलता है कि जिस परिवार और परिवेश के साथ वो रह रहा था वो सब उसका था ही नहीं.

कहानियां यहीं खत्म नहीं होतीं. मथुरा के कृष्ण के सामने अलग चुनौतियां दिखती हैं. जिस राज सिंहासन को वो कंस से खाली कराते हैं उसे संभालने में तमाम मुश्किलें आती हैं. अंत में उन्हें मथुरा छोड़नी ही पड़ती है. महाभारत युद्ध में एक तरफ वे खुद होते हैं दूसरी ओर उनकी सेना होती है. वो तमाम योद्धा जिनके साथ उन्होंने कई तैयारियां की होंगी, युद्ध जीते होंगे. अब अगर कृष्ण को जीतना है तो उनकी सेना को मरना होगा. इसीलिए महाभारत के कथानक में कृष्ण जब अर्जुन को ‘मैं ही मारता हूं, मैं ही मरता हूं’ कहते हैं तो खुद इसे जी रहे होते हैं.

महाभारत से इस्कॉन तक कृष्ण

अलग-अलग काल के साहित्य और पुराणों में कृष्ण के कई अलग रूप हैं. मसलन महाभारत में कृष्ण का जिक्र आज लोकप्रिय कृष्ण की छवि से बिलकुल नहीं मिलता. भारतीय परंपरा के सबसे बड़े महाकाव्य में कृष्ण के साथ राधा का वर्णन ही नहीं है. वेदव्यास के साथ-साथ श्रीमदभागवत् में भी राधा-कृष्ण की लीलाओं का कोई वर्णन नहीं है. राधा का विस्तृत वर्णन सबसे पहले ब्रह्मवैवर्त पुराण में मिलता है. इसके अलावा पद्म पुराण में भी राधा का जिक्र है. राधा के शुरुआती वर्णनों में कई असमानताएं भी हैं. कहीं दोनों की उम्र में बहुत अंतर है, कहीं दोनों हमउम्र हैं.

इसके बाद मैथिल कोकिल कहे जाने वाले विद्यापति के पदों में राधा आती हैं. यह राधा विरह की ‘आग’ में जल रही हैं. 13वीं 14वीं शताब्दी के विद्यापति राधा-कान्हा के प्रेम के बहाने, शृंगार और काम की तमाम बातें कह जाते हैं. इसके कुछ ही समय बाद बंगाल से चैतन्य महाप्रभु कृष्ण की भक्ति में लीन होकर ‘राधे-राधे’ का स्मरण शुरू करते हैं. यह वही समय था जब भारत में सूफी संप्रदाय बढ़ रहा था, जिसमें ईश्वर के साथ प्रेमी-प्रेमिका का संबंध होता है. चैतन्य महाप्रभु के साथ जो हरे कृष्ण वाला नया भक्ति आंदोलन चला उसने भक्ति को एक नया आयाम दिया जहां पूजा-पाठ साधना से उत्सव में बदल गया.

अब देखिए बात कृष्ण की करनी है और जिक्र लगातार राधा का हो रहा है. राधा से शुरू किए बिना कृष्ण की बात करना बहुत मुश्किल है. वापस कृष्ण पर आते हैं. भक्तिकाल में कृष्ण का जिक्र उनकी बाल लीलाओं तक ही सीमित है. कृष्ण ब्रज छोड़ कर जाते हैं तो सूरदास और उनके साथ बाकी सभी कवि भी ब्रज में ठहर जाते हैं. उसके आगे की कहानी वो नहीं सुनाते हैं. भक्तिकाल के कृष्ण ही सनातन परंपरा में पहली बार ईश्वर को मानवीय चेहरा देते हैं. भक्तिकाल के बाद रीतिकाल आता है और कवियों का ध्यान कृष्ण की लीलाओं से गोपियों और राधा पर ज्यादा जाने लगता है. बिहारी भी जब श्रृद्धा के साथ सतसई शुरू करते हैं, तो ‘मेरी भव बाधा हरो राधा नागरि सोए’ ही कहते हैं. इन सबके बाद 60 के दशक में इस्कॉन जैसा मूवमेंट आता है जो उस समय दुनिया भर में फैल रहे हिप्पी मूवमेंट के साथ मिलकर ‘हरे कृष्णा’ मूवमेंट बनाता है.

ईश्वर का भारतीय रूप हैं कृष्ण

कृष्ण को संपूर्ण अवतार कहा जाता है. गीता में वे खुद को योगेश्वर भी कहते हैं. सही मायनों में ये कृष्ण हैं जो ईश्वर के भारतीय चेहरे का प्रतीक बनते हैं. अगर कथाओं के जरिए बात कहें तो वे छोटी सी उम्र में इंद्र की सत्ता और शोषण के खिलाफ आवाज उठाते हैं. जीवन भर युद्ध की कठोरता और संघर्षों के बावजूद भी उनके पास मुरली और संगीत की सराहना का समय है. वहीं वह प्रेम को पाकर भी प्रेम को तरसते रहते हैं. यही कारण है कि योगेश्वर कृष्ण की ‘लीलाओं’ के बहाने मध्यकाल में लेखकों ने तमाम तरह की कुंठाओं को भी छंद में पिरोकर लिखा है. उनका यह अनेकता में एकता वाला रूप है जिसके चलते कृष्ण को हम बतौर ईश्वर अलग तरह से अपनाते हैं.

तमाम जटिलताएं

इसमें कोई दो राय नहीं कि कृष्ण की लीलाओं के नाम पर बहुत सी अतिशयोक्तियां कहीं गईं हैं. बहुत कुछ ऐसा कहा गया है जो, ‘आप करें तो रास लीला…’ जैसे मुहावरे गढ़ने का मौका देता है. लेकिन इन कथाओं की मिलावटों को हटा देने पर जो निकल कर आता है वो चरित्र अपने आप में खास है. अगर किसी बात को मानें और किसी को न मानें को समझने में कठिनाई हो तो एक काम करिए, कथानकों को जमीन पर जांचिए. उदाहरण के लिए वृंदावन और मथुरा में कुछ मिनट पैदल चलने जितनी दूरी है. मथुरा और गोकुल या वृंदावन और बरसाने का सफर भी 2-3 घंटे पैदल चलकर पूरा किया जा सकता है. इस कसौटी पर कसेंगे तो समझ जाएंगे कि कौन-कौन सी विरह की कथाएं कवियों की कल्पना का हिस्सा हैं.

कृष्ण के जीवन में बहुत सारे रंग हैं. कुछ बहुत बाद में जोड़े गए प्रसंग हैं जिन्हें सही मायनों में धार्मिक-सामाजिक हर तरह के परिवेश से हटा दिया जाना चाहिए. राधा के वर्णन जैसी कुछ ऐसी चीज़ें हैं जो महाभारत और भागवत में नहीं मिलती मगर आज कृष्ण का वर्णन उनके बिना संभव नहीं है. इन सबके बाद भगवद् गीता है जो सनातन धर्म के एक मात्र और संपूर्ण कलाओं वाले अवतार की कही बात. जिसमें वो अपनी तुलना तमाम प्रतीकों से करते हुए खुद को पीपल, नारद कपिल मुनि जैसा बताते हैं. आज जब तमाम चीजों की रक्षा के नाम पर हत्याओं और अराजकता एक सामान्य अवधारणा बनती जा रही है. निर्लज्जता, झूठ और तमाम तरह की हिंसा को कथित धर्म की रक्षा के नाम पर फैलाया जा रहा है, ऐसे में कृष्ण के लिए अर्जुन का कहा गया श्लोक याद रखना चाहिए यतः सत्यं यतो धर्मो यतो ह्लीराजर्वं यतः. ततो भवति गोविंदो यतः कृष्णोस्ततो जयः यानी जहां नम्रता, सत्य, लज्जा और धर्म हैं वहीं कृष्ण हैं, जहां कृष्ण हैं वहीं विजय है. अंतिम बात यही है कि कृष्ण होना सरस होना, क्षमाशील होना, नियमों की जगह परिस्थिति देख कर फैसले लेना और सबसे ज़रूरी, निरंकुशता के प्रतिपक्ष में रहना है.

श्री कृष्ण के नामकरण पर पधारे महर्षि गर्ग ने कुंडली विचार जो भविष्यवाणियाँ कीं वह अक्षरश: सत्य थीं

जगत के पालनहार का कृष्ण अवतार विधि का विधान था और वे स्वयं दुनिया का भाग्य लिखते हैं, उनके भाग्य को कोई नहीं पढ सकता। लेकिन जैसे ही मानव योनि में अवतार आया तो वे संसार के बंधन में पड़ जाता है और इस कारण उसे दुनिया के लोकाचार को भी निभाना पडता है। जन्म से मृत्यु तक सभी संस्कार करने पडते हैं।

इन्हीं लोकाचारों में श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव पर महर्षि गर्ग पधारे और उनका नामकरण संस्कार किया। उनका नाम कृष्ण निकाल कर उनके जीवन की अनेकों भविष्यवाणी ज्योतिष शास्त्र के अनुसार की थी जो अक्षरशः सही रही। इस आधार पर श्रीकृष्ण की कुंडली में ग्रह क्या बोलते हैं का यह संक्षिप्त विश्लेषण प्रस्तुत किया जा रहा है।

भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी के दिन रोहिणी नक्षत्र के संयोग में भगवान श्रीकृष्ण ने अवतार लिया। सोलह कला सम्पूर्ण महान योगी श्रीकृष्ण का नामकरण व अन्नप्राशन संस्कार गर्ग ऋषि ने कुल गुरू की हैसियत से किया तथा कृष्ण के जीवन की सभी भविष्यवाणियां की जो अक्षरशः सही रहीं। भाद्रपद मास की इस बेला पर हम गर्ग ऋषि को प्रणाम करते हैं।

अष्टमी तिथिि की मध्य रात्रि में जन्मे कृष्ण का वृषभ लग्न में हुआ। चन्द्रमा अपनी उच्च राशि वृषभ में बैठे व गुरू, शनि, मंगल, बुध भी अपनी-अपनी उच्च राशियों में बैठे थे। सूर्य अपनी ही सिंह राशि में बैठे।

योग साधना, सिद्धि एवं विद्याओं की जानकारी के लिए जन्म जन्म कालीन ग्रह ही मुख्य रूप से निर्भर करते हैं। अनुकूल ग्रह योग के कारण ही कृष्ण योग, साधना व सिद्धि में श्रेष्ठ बने। गुरू अष्टमेश बनकर तृतीय स्थान पर उच्च राशि में बैठ गुप्त साधनाओं से सिद्धि प्राप्त की तथा पंचमेश बुध ने पंचम स्थान पर उच्च राशि कन्या में बैठ हर तरह की कला व तकनीकी को सीखा।

चन्द्रमा ने कला में निपुणता दी। मंगल ने गजब का साहस व निर्भिकता दी। शुक्र ने वैभवशाली व प्रेमी बनवाया। शनि ने शत्रुहन्ता बनाया व सुदर्शन चक्र धारण करवाया। सूर्य ने विश्व में कृष्ण का नाम प्रसिद्ध कर दिया।

जन्म के ग्रहों ने कृष्ण को श्रेष्ठ योगी, शासक, राजनीतिज्ञ, कूटनीतिज्ञ, चमत्कारी योद्धा, प्रेमी, वैभवशाली बनाया। श्रीकृष्ण की कुंडली में पांच ग्रह चन्द्रमा, गुरू, बुध, मंगल और शनि अपनी उच्च राशि में बैठे तथा सूर्य व मंगल अपनी स्वराशि में हैं।

रोहिणी नक्षत्र में जन्म लेने वाला बुद्धि और विवेक का धनी होता है। यही चन्द्रमा का अति प्रिय नक्षत्र और चन्द्रमा की उपस्थिति व्यक्ति को जातक मे आकर्षण बढा देती है। ऐसे व्यक्ति सभी को प्रेम देते हैं और अन्य लोगों से प्रेम लेते हैं। श्रीकृष्ण को इस योग ने सबका प्रेमी बना दिया और वे भी सबसे प्रेम करते थे।

जन्म कुंडली का पांचवा स्थान विद्या, बुद्धि और विवेक तथा प्रेम, संतान, पूजा, उपासना व साधना की सिद्धि का होता है। यहां बुध ग्रह ने उच्च राशि में जमकर इन क्षेत्रों में कृष्ण को सफल बनाया तथा राहू के संयोग से बुध ग्रह ने परम्पराओं को तुड़वा ङाला और भारी कूटनीतिकज्ञ को धराशायी करवा डाला।

स्वगृही शुक्र ने उन्हें वैभवशाली बनाया तो वहां उच्च राशि में बैठे शनि ने जमकर शत्रुओं का संहार करवाया। भाग्य व धर्मस्थान में उच्च राशि में बैठे मंगल ने उनका भाग्य छोटी उम्र में ही बुलंदियों पर पहुंचा दिया। मारकेश व व्ययेश बने मंगल ने धर्म युद्ध कराकर व्यवस्था में आमूल-चूल परिवर्तन कराया।

अष्टमेश गुरू को मारकेश मंगल ने देख उनके पांव के अगूठे में वार करा पुनः बैकुणठ धाम पहुंचाया। अष्टमेश और मारकेश का यह षडाष्ठक योग बना हुआ है और मारकेश मंगल ग्रह को पांचवी दृष्टि से राहू देख रहा। यह सब ज्योतिष शास्त्र के ग्रह नक्षत्रों का आकलन मात्र है। सत्य क्या था यह तो परमात्मा श्रीकृष्ण ही बता सकते हैं।

Opp. Pits Stalin Against Modi


Since the Opposition parties are yet to find out a suitable candidate, leaders like Farooq Abdullah and Azad had said Stalin should lead the country,” said A Saravanan, the DMK spokesman


The demand from regional party satraps to lead a united Opposition in the upcoming Lok Sabha elections and the gradual fade away of sibling rivalry has clearly gave an edge to M K Stalin, the 65-year-old president of the DMK and he seems to be on course of leaping to the stature of a king maker in the national politics.

Though Bengal chief minister Mamata Banerjee is currently leading the race, Stalin could be the regional parties’ answer to Prime Minister Narendra Modi for the 2019 Lok Sabha elections, if the words of some of the leaders ~ who addressed the public meeting held at Chennai on Thursday in memory of former chief minister of Tamil Nadu late M Karunanidhi ~ are any indication.

In the meeting Farooq Abdullah, leader of the National Conference and former chief minister of Jammu & Kashmir, urged Stalin to unite and lead the secular forces in the country against the BJP.

“Who is going to lead the flock? Stalin, I tell you. Lead us to the nation that Gandhi could not take us and Karunanidhi could not take us. Please take my children and grandchildren to an India where we can live with honour and dignity and walk with freedom,” said Abdullah who also alleged that the country was undergoing a regime of dictatorship.

The way regional parties pictured Stalin’s importance in the national politics, one could easily analyse that he will be a catalyst of a maha gat bandhan taking shape in Tamil Nadu.

Ghulam Nabi Azad, the Leader of the Opposition in the Rajya Sabha and the senior leader of the Congress also declared that Stalin would be the ideal person to take on the BJP. “Under the leadership of Stalin, we will fight oppression and discrimination of the worst kind India has ever faced,” said Azad.

The words of these two leaders were played again and again by Kalaignar TV, the channel owned by the Karunanidhi family. Former Prime Minister Deve Gowda too paid rich compliments to Stalin, though he did not endorse the candidature of the latter for the post of Prime Minister.

Barring the BJP, leaders of all political parties who were present were vying with one another in praising Stalin and attacking Narendra Modi, though indirectly.

“Yes, it was an endorsement of Stalin as the Prime Ministerial candidate. He has all the qualities to be the Prime Minister of the country. Since the Opposition parties are yet to find out a suitable candidate, leaders like Farooq Abdullah and Azad had said Stalin should lead the country,” said A Saravanan, the DMK spokesman

तरुण सागर जी के ब्रह्मलीन होने की खबर सुनकर आहत हूं: अनिल विज

 

 

अम्बाला- जैन मुनि तरुण सागर जी के निधन पर हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज ने व्यक्त किया शोक।

अम्बाला- विज ने कहा समाज को सही दिशा दिखाने में हमेशा याद किया जायेगा तरुण सागर जी का योगदान।

अम्बाला- विज ने कहा- तरुण सागर जी के ब्रह्मलीन होने की खबर सुनकर आहत हूं।

यादव परिवार विवाद सीज़न 2

 

 

यूपी के यादव परिवार में एक बार फिर आपसी रार शुरू हो गई है. विधानसभा चुनाव से पहले समाजवादी पार्टी की कमान को लेकर पहली खींचतान हुई थी. मौजूदा विवाद पार्टी में रसूख को लेकर उठा है. शिवपाल यादव ने अपने बड़े भाई मुलायम सिंह यादव को दो दिन में कोई फैसला लेने की मोहलत दी है.

मान-सम्मान न मिलने की पीड़ा जाहिर की थी

मुलायम सिंह यादव और शिवपाल यादव ने पार्टी में मान-सम्मान न मिलने को लेकर सार्वजनिक तौर पर अपनी पीड़ा जाहिर की थी. उसके ठीक बाद ही ‘समाजवादी सेक्युलर मोर्चा’ का विवाद सामने आ गया. सूत्रों की मानें तो शिवपाल यादव को मनाने की हर कोशिश नाकामयाब हो चुकी है. पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव भी अपनी बात पर अड़े हुए हैं. वह वक्त आने पर शिवपाल को कोई पद देने की बात कह रहे हैं.

मुलायम का रुख साफ नहीं

वहीं कई मौकों पर शिवपाल दोबारा मुलायम सिंह यादव को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए जाने की बात पर सब कुछ सामान्य हो जाने की बात कह चुके हैं. बड़ी बात ये है कि 2016 से लेकर ताजा विवाद होने तक मुलायम सिंह का रुख साफ नहीं हुआ है. किसी भी मौके पर उन्होंने न तो अखिलेश यादव के समर्थन में कोई संकेत दिया है और न ही कभी शिवपाल यादव के लिए खुलकर बोले हैं.

सैफई में बड़े कार्यक्रम की तैयारी

सूत्रों का कहना है कि शिवपाल यादव इस बार आरपार के मूड में हैं. मुलायम सिंह अपनी स्थिति शुक्रवार और शनिवार तक साफ कर दें, ये संकेत भी शिवपाल दे चुके हैं. कुछ इन्हीं कारणों के चलते उन्होंने लखनऊ और सैफई छोड़ दिल्ली में डेरा डाल दिया है. हालांकि वह मुजफ्फरनगर में एक कार्यक्रम में भाग ले रहे हैं. सूत्रों की मानें तो मुलायम सिंह की हां-ना पर निर्भर रहने वाले एक बड़े कार्यक्रम की तैयारी सैफई में चल रही है.

कार्यक्रम शिवपाल यादव के स्वागत समारोह की तैयारी में किया जा रहा है. समारोह शिवपाल यादव का शक्ति प्रदर्शन भी माना जा रहा है. डॉ. बीआर आंबेडकर विश्वविद्वालय, आगरा में प्रोफेसर और राजनीति के जानकार मोहम्मद अरशद का कहना है कि मुलायम सिंह अगर किसी के भी पक्ष में बोलते हैं तो उससे नुकसान पार्टी को ही होगा.

मुलायम पर करता है सब निर्भर

अखिलेश के समर्थन में जाते हैं तो शिवपाल परिवार की डोर से मुक्त हो जाएंगे और खुलकर निर्णय लेने के लिए आज़ाद होंगे. वहीं अगर बेटे का साथ नहीं देंगे तो सपा कमजोर पड़ जाएगी और विरोधियों के हाथ अखिलेश को घेरने का नया हथियार मिल जाएगा. मालूम हो कि दिसंबर 2016 से फरवरी 2017 तक यादव परिवार का विवाद पार्ट-1 हुआ था. माना जाता है कि इस विवाद की वजह से समाजवादी पार्टी को यूपी विधानसभा चुनाव में काफी नुकसान हुआ. इसलिए पूरा यादव परिवार चाहता है कि विवाद का पार्ट-2 इतना ज्यादा न बढ़ जाए कि उसकी कीमत 2019 के लोकसभा चुनाव में भुगतनी पड़े.

Maoist crackdown: Kiren Rijiju slams Rahul Gandhi over his tweet on RSS


Congress spokesperson Jaipal Reddy also condemned the raids and arrests saying no human rights activists should be arrested without a case.


Congress president Rahul Gandhi hit out at the Central government on Tuesday over the arrest of prominent activists for suspected Maoist links, saying there was place for only one NGO — the RSS — in the “new India”.

In a major crackdown in connection with the Bhima-Koregaon riots case of January 2018, the Maharashtra Police raided the homes of various activists in several states on Tuesday  and arrested at least five of them.

“There is only place for one NGO in India and it’s called the RSS. Shut down all other NGOs. Jail all activists and shoot those that complain. Welcome to the new India,” Gandhi said in a tweet with the hashtag Bhima Koregaon.

Earlier, Congress spokesperson Jaipal Reddy condemned the raids and arrests saying no human rights activists should be arrested without a case.

“I condemn those arrests in unqualified terms. No human rights activist should be arrested. For that matter, no Indian can be arrested without proper case.

“I defend the rights of everybody, more particularly human rights protesters. They are selfless NGOs, activists, who are obliged to fight the enveloping darkness of dictatorial tendencies,” he told reporters when asked about the arrests of some activists by the Pune police.

The raids took place at 10 places in Mumbai and Pune in Maharashtra, Goa, Telangana, Chhattisgarh, Delhi, and Haryana.

Those arrested include Vernon Gonsalves, Arun Ferreira, Sudha Bharadwaj, and Gautam Navlakha.

Activists Sudha Bharadwaj and Gautam Navlakha have been put under house arrest, while others will be produced before a court in Pune today.

शिवपाल यादव ने समाजवादी सेक्यूलर मोर्चा बनाया, आज छोड़ सकते हैं समाजवादी पार्टी


समाजवादी पार्टी के बड़े नेता शिवपाल सिंह यादव बुधवार को पार्टी छोड़ सकते हैं


लखनऊ:

समाजवादी पार्टी में फिर घमासान के आसार लग रहे हैं। इसमें नई बात यह निकलकर आ रही है कि मुलायम सिंह यादव के छोटे भाई शिवपाल यादव ने गत दिनों अपने भतीते पर नाराजगजी व्यक्त करते हुए कहा है कि डेढ साल से पार्टी की जिम्मेदारी के इंतजार कर रहा हूं। लेकिन मेरी अनदेखी की जा रही है। समाजवादी पार्टी के पूर्व अध्यक्ष शिवपाल यादव ने अब समाजवादी सेक्युलर मोर्चा बना दिया है। उन्होंने एलान किया है कि वे इस मोर्चे में उन लोगों को जोडेंगे जो समाजवादी पार्टी में अपने आप को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं।

उन्होंने कहा है कि वे नेताजी को सम्मान नहीं दिए जाने से बहुत आहत हो गए हैं और सेक्युलर मोर्चे के सहारे वे छोटे-छोटे दलों को भी जोड़ेने का प्रयास करेंगे। शिवपाल यादव द्वारा समाजवादी सेक्युलर मोर्चा बनाने के फैसले पर अखिलेश यादव ने कहा है कि इसके पीछे भाजपा का हाथ है। शिवपाल की नाराजगी पर उन्होंने तंज कसते हुए कहा कि मैं भी बहुत लोगों से नाराज हूं, मैं कहां जा सकता हूं। वहीं दूसरी ओर भाजपा ने अखिलेश यादव पर पलटवार करते हुए कहा कि चुनावों में हार मिलने के कारण अखिलेश हताश हो गए हैं इसी वजह से ऐसी बयानबाजी कर सुर्खियां बना रहे हैं। उल्लेख है कि भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की सहयोगी सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी (एसबीएसपी) के अध्यक्ष और योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री ओम प्रकाश राजभर ने भी हाल ही दिनों में शिवपाल सिंह से मुलाकात की थी। इससे राजनीति सरगर्मियां तेज हो रही है। इससे राजनीतिज्ञ अनुमान लगा रहा हैं कि राजभर भी इस मोर्चे में अपनी भागीदारी निभा सकते हैं।

मुलायम सिंह यादव ने शिवपाल यादव को गत वर्ष भरोसा दिलाया था कि पार्टी में उन्हें बड़ी जिम्मेदारी दी जाएगी। गत वर्ष सपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में उनके जगह पर प्रो.रामगोपाल यादव को प्रधान महासचिव तो बना दिया गया था। शिवपाल को कोई जिम्मेदारी नहीं दी गई थी। इससे वे बहुत नाराज थे।

Teen Murti Bhavan row exposes the insecurity of a Dynasty whose insidious power play is reaching the end game

 

By all accounts, the move to build a museum for prime ministers to encourage shared memories in a democracy ought to be non-controversial. It is one of those essential yet dull tasks performed by governments that no one gives much attention to except students, chroniclers, researchers or academicians. News about such tasks find no mention in TV debates and notifications are usually buried in the inside pages of newspapers.

Yet, for months now, a controversy has been brewing over the building of a museum for all prime ministers of India on the premises of the Teen Murti Estate in New Delhi — that also houses the Nehru Memorial Museum and Library (NMML). It reached a crescendo with former prime minister Manmohan Singh shooting off an indignant letter last Friday to his successor Narendra Modi, accusing the government of indulging in “revisionism” and trying to “obliterate” India’s first prime minister Jawaharlal Nehru’s legacy.

The debate is fascinating in more ways than one. It delves into the inner workings of a Dynasty that has never relinquished its control over the levers of power in independent India. It explains how the Dynasty exerted this control over its ‘subjects’ through an elaborate, intricate and symbiotic power edifice built over decades and nurtured for generations. Finally, the controversy also captures the insecurities of the Dynasty as for the first time in seven decades, it feels an ebb in its power and appears scared of the prospect.

On the face of it, the controversy is needless. First, the proposed museum for all prime ministers will be set up on the premises of the Teen Murti Estate. There will be no reconstruction of the Teen Murti Bhavan which used to be Nehru’s residence and has now been converted into a museum. The estate is situated over 25 acres of prime Lutyens’ land.

A report in The Indian Express quoted A Surya Prakash, a member of the NMML Executive Council, as saying, “Teen Murti Estate and Teen Murti Bhavan (Nehru’s residence and now the museum) are distinct entities. Often, an attempt is made to imply that these are the same. The library was constructed later on the premises, then the planetarium came, some land was also given to Delhi Police. There is scope for adding more in the complex.”

File image of former prime minister Jawaharlal Nehru

The decision has irked the Congress. Its leaders and council members Mallikarjun Kharge and Jairam Ramesh have said that “this is the legacy of Nehru and associated with the freedom movement. It cannot be destroyed”. They have slammed the move as “diabolical, intended only to obliterate Jawaharlal Nehru”, according to the report.

It isn’t clear how constructing a museum on the Teen Murti Estate, that also houses other buildings, is a “diabolical act”. It is also unclear how a memorial to other prime ministers “obliterates Nehru’s legacy”. Is the Teen Murti Estate a private property? Does it belong to the Nehru-Gandhi family?

The NMML is actually an autonomous body under the ministry of culture. The prime minister is the president of NMML and the home minister is vice-president. The property belongs to the Union government. The decision, taken in July in a general body meeting chaired by Union Home Minister Rajnath Singh, complies with procedures. What explains Congress’s angst?

It is useful to remember that the Teen Murti Bhavan was earmarked as the official residence of prime ministers in 1948. Before that, it was the official abode of the Commander-in-Chief of the Indian Armed Forces. Nehru, as economist Sanjaya Baru writes in Daily O, moved into the colonial mansion only after Mahatma Gandhi’s death and one year into his premiership, leaving behind his “regular” Lutyens’ bungalow ostensibly because he sought a fancier address than his Cabinet colleagues.

“Once the Mahatma was gone, Nehru would have felt liberated enough to move into the grand palace of the Commander-in-Chief, located a stone’s throw from the Viceroy’s palace – Rashtrapati Bhavan…,” writes Baru, who was the media advisor of Manmohan Singh in UPA 1. His decision to “live in Teen Murti House was perhaps also an attempt to elevate himself above the rest of the Congress leadership in the public eye. From primus inter pares (first among equals), Nehru made himself numero uno.”

The real question is not why a museum for all prime ministers is being constructed on the premises, but why was the official residence of prime ministers of India converted into a museum for its first occupant. Is Nehru the only prime minister of India worthy of his office? While the British left Indian shores, did they transfer the mantle of ‘colonial masters’ to the ‘First Family’ of India?

It is hard to disagree when Baru says that if first occupancy is qualification enough for an official residence to be turned into a memoriam, the Americans should have turned the White House into George Washington’s museum or the British should have turned 10 Downing Street into a memoriam for Robert Walpole. “It was Sarvepalli Radhakrishnan, as President, MC Chagla, as minister for education and culture, and Indira Gandhi as minister for information and broadcasting, who took the decision,” writes Baru.

Incidentally, as NMML director Shakti Sinha reminds us in The Hindu, “even after it became a museum in his memory, the Union Cabinet, on August 9, 1968, decided that it should once again become the residence of the PM. The NMML agreed to shift the museum to Patiala House, but it did not happen.”

If anything, the travesty lay in the fact that an abode meant for all prime ministers was turned into a memoriam for one, and the decision didn’t generate any debate. This points to the way the primacy of the Dynasty was hammered into the collective psyche of a nation. Its deification was taken as “normal”.

This was a different form of colonialism, where exclusive occupancy of a rarefied zone becomes a signifier for political power and social influence. The exclusivity was slowly institutionalised. The Dynasty used this ‘denial of access’ mechanism to lay the building blocks of the edifice that would help sustain its political sway over several decades — even during times of distress.

To quote from Swapan Dasgupta’s piece in The Pioneer on how this happens: “Despite all the ups and downs of politics, the Gandhis have remained the first family of Lutyens’ Delhi. Some even consider them the owners of the place. Others come and go, maybe even rename Government-owned bungalows to indicate long occupancy, but it is only the Gandhis who have remained permanent residents for four generations. Around them has developed a durbar comprising politicians, bureaucrats, fixers, socialites, journalists, academics and others whose occupations remain a source of enduring mystery.”

It is in this context that we must place Congress’s outrage against Centre’s move for greater democratisation. The party is feeling threatened because construction of a building inside the sanctum sanctorum of its power destroys the ‘denial of access’ mechanism that it had built and guarded ferociously for all these years. The memoriam for all prime ministers inside Teen Murti Estate, in this sense, becomes a symbolical break-in. It reduces the halo that the Dynasty had built around itself (by self-certification methods such as conferring of Bharat Ratnas) and exposes it to plebian scrutiny.

The real danger to the Dynasty lies not in the fact that it is going through a political ebb. Rather, for the first time in history, the blocks of the power edifice are being dismantled. As the legacies of other prime ministers are also brought into gradual focus, soon the new generation may seek a re-evaluation of the ‘Nehru deification’ phenomenon. The emperor’s nakedness may finally become stark.

Congress’s second objection is that NMML is running a BJP agenda and trying to change the “nature and character” of the library and museum. In his letter, Manmohan writes, “The museum itself must retain its primary focus on Jawaharlal Nehru and the freedom movement because of his unique role having spent almost ten years in jail between the early 1920s and mid-1940s. No amount of revisionism can obliterate that role and his contributions.”

NMML director Shakti Sinha,in reply,  says: “Even in the present set-up, less than 2 per cent of the books, documents and other items in our repository are about Jawaharlal Nehru. When we expand the repository to include other PMs, we will be adding to Nehru as well in the process. Nowhere are we obliterating Nehru, we will make it Nehru-plus.”

Sinha has also given an account of the upgradation work that will be carried out.

On the context of Congress’s fear about the museum “losing its focus”, BJP leader Bhupender Yadav has tweeted an MOA clause:

The details make Congress’s fear seem misplaced. Its outrage, however, arises from a deeper anxiety. In marketing policy parlance, ‘brand recall’ and ‘brand recognition’ are key considerations in moulding consumer behaviour. Companies see red when their products suffer a slip in brand awareness. They spend billions in ensuring ‘top of the mind recall’ among consumers.

The Dynasty, through its relentless promotion of the Nehru-Gandhi brand, has so far ensured a high degree of brand awareness among the electorate. Among other things, this has also helped it cement political power. A greater democratisation, fears the party, may drown out the brand awareness of Congress, more so because its current offering has resisted all efforts at repackaging. This distress has reflected in the way it has forced mild-mannered Manmohan Singh — who slept through countless scams under his watch — to suddenly rediscover his voice on NMML issue.

If Nehru’s legacy is indeed “indelible”, no amount of conspiracies from the BJP will be able to diminish his brightness. Why is the Congress unduly worried?