माया मोह से परे कांग्रेस भाजपा कि राह आसान करती हुई


बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने साफ कर दिया है, ‘कांग्रेस पार्टी के रवैये को देखते हुए अब हमारी पार्टी कांग्रेस पार्टी के साथ किसी भी कीमत पर मिलकर चुनाव नहीं लड़ेगी.’


बीएसपी सुप्रीमो मायावती ने साफ कर दिया है, ‘कांग्रेस पार्टी के रवैये को देखते हुए अब हमारी पार्टी कांग्रेस पार्टी के साथ किसी भी कीमत पर मिलकर चुनाव नहीं लड़ेगी.’ पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव से पहले बीएसपी सुप्रीमो मायावती का यह ऐलान सियासी हलचल मचाने वाला है. हलचल विपक्षी खेमे में कहीं ज्यादा है, क्योंकि इस ऐलान के बाद बीएसपी ने मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान में कांग्रेस के साथ किसी भी सहमति की संभावना को सिरे से खारिज कर दिया है.

लेकिन, इस ऐलान का मतलब सिर्फ विधानसभा चुनावों तक ही नहीं है. मायावती के इस ऐलान में दिख रही तल्खी से साफ है कि अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में भी वो कांग्रेस को पटखनी देने की पूरी कोशिश करेंगी यानी यूपी में भी लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के साथ गठबंधन की संभावना भी अब खत्म हो गई है.

मायावती की गुगली से कांग्रेस चित

 

मायावती ने कांग्रेस पर उनकी पार्टी बीएसपी को खत्म करने का आरोप लगाया है. उनके मुताबिक, कांग्रेस पार्टी के नेताओं के रवैये से लगता है कि वे लोग बीजेपी को सत्ता से हटाने के लिए गंभीर होने के बजाए, बीएसपी को ही खत्म करने में ज्यादा दिलचस्पी रखते हैं. मायावती का आरोप है कि बदनामी मोल लेने के बावजूद भी बीएसपी ने बीजेपी को सत्ता से दूर रखने के लिए कांग्रेस का साथ दिया लेकिन, बदले में कांग्रेस ने बीजेपी की तरह ही हमेशा दगा दिया है और पीठ में छुरा घोंपने का काम किया है.

मायावती के हमले में कांग्रेस को चारों खाने चित करने की तैयारी है क्योंकि जो कांग्रेस बीजेपी पर जातिवादी और साम्प्रदायिक होने का आरोप लगाती रही है, अब मायावती ने सीधे कांग्रेस पर भी वही आरोप लगा दिए हैं.

बीएसपी सुप्रीमो मायावती की तरफ से किया गया कांग्रेस पर वार बीजेपी के लिए राहत है, कांग्रेस के लिए बाधक है, जबकि, खुद बीएसपी सुप्रीमो मायावती के लिए एक अगले लोकसभा चुनाव से पहले खुल कर खेलने का मौका है, यानी बंधन मुक्त मायावती जो कि आने वाले दिनों में अपने हिसाब से सौदा भी कर सकें और हालात के हिसाब से सियासी गोटी भी फिट कर सकें.

बीजेपी के लिए राहत

बात पहले बीजेपी की करें तो पार्टी मायावती के इस कदम से राहत की सांस ले रही है. कम-से-कम उन प्रदेशों में बीजेपी के लिए फिलहाल राहत है जहां कांग्रेस के साथ उसकी सीधी टक्कर है. मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान में बीजेपी सत्ता में है और विधानसभा चुनाव में उसे एक साथ कई मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है.

एंटीइंकंबेंसी फैक्टर के अलावा एससी-एसटी एक्ट के विरोध में बीजेपी के परंपरागत वोटर रहे सवर्ण समाज के विरोध ने पार्टी को परेशान कर दिया है. ऐसे वक्त में कांग्रेस के साथ बीएसपी के गठबंधन से पूरा का पूरा माहौल बदल सकता था. लेकिन, ऐसा हो न सका. बीजेपी के लिए यह राहत भरी बात है. तीसरी ताकत के तौर पर मायावती का मैदान में उतरना इन राज्यों में बीजेपी को फायदा पहुंचाने वाला रहेगा.

2013 के विधानसभा चुनाव में मध्यप्रदेश में बीएसपी को 6.29 फीसदी, छत्तीसगढ़ में 4.30 फीसदी जबकि राजस्थान में 3.40 फीसदी था. ऐसे में कांग्रेस के साथ बीएसपी का वोट प्रतिशत जुड़ जाने पर यह आंकड़ा बीजेपी के लिए परेशान कर सकता था. खासतौर से छत्तीसगढ़ में और भी ज्यादा परेशानी हो सकती थी जहां कांग्रेस और बीजेपी के बीच वोट प्रतिशत का अंतर महज एक से डेढ़ फीसदी का ही रहा था.

महागठबंधन की कोशिशों को झटका

बात अगर कांग्रेस की करें तो कांग्रेस के लिए अब मायावती का रुख बड़ा बाधक बन सकता है. खासतौर से कांग्रेस ने जिस तरह महागठबंधन बनाने के लिए विपक्षी एकता की बात की थी, उससे देश भर में एक माहौल बनाने की कोशिश हो रही थी. यह कोशिश बीजेपी विरोधी सभी दलों को साथ रखकर चलने की थी. लेकिन, मायावती ने कांग्रेस की इन सभी उम्मीदों पर फिलहाल पानी फेर दिया है.

कांग्रेस के लिहाज से यूपी में एसपी-बीएसपी के साथ गठबंधन करना ज्यादा जरूरी था. लेकिन, न ही मायावती और न ही अखिलेश यादव की तरफ से कांग्रेस को लेकर उत्साह दिखाया जा रहा है. कांग्रेस अगर यूपी में महागठबंधन नहीं बना पाई तो फिर लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी एकता की उसकी कोशिश परवान नहीं चढ़ पाएगी. मायावती की गुगली से कांग्रेस इस वक्त बुरी तरह से फंस गई है, क्योंकि कांग्रेस के ही जातिवादी-साम्प्रदायिक तीर से मायावती ने उसे घेर दिया है.

मायावती 

अब, बात मायावती की करें तो वो कांग्रेस पर पूरी तरह से ठीकरा फोड़ रही हैं. मायावती को पता है कि उनपर सीबीआई और ईडी जैसी जांच एजेंसियों के डर से कांग्रेस से दूर रहने के का आरोप लगेगा. कांग्रेस इन आरोपों को लगाकर बीजेपी के साथ मायावती की मिली-भगत का आरोप लगाएगी, लिहाजा, पहले से ही कांग्रेस पर उनका प्रहार शुरू हो गया है.

लेकिन, हकीकत यही है कि मायावती ने बड़ा सियासी दांव खेला है. मायावती ने मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान विधानसभा चुनाव में अपनी उपेक्षा के बहाने कांग्रेस को कायदे से किनारे लगा दिया है. मायावती को इन राज्यों के विधानसभा चुनावों से कोई फर्क नहीं पड़ने वाला. लेकिन, यूपी में लोकसभा चुनाव से पहले उनकी तरफ से जो दांव खेला गया है, उससे कांग्रेस खेमे में हड़कंप है. अगर एसपी के साथ बीएसपी का गठबंधन बन भी जाता है तो उस हालात में चुनाव बाद भी मायावती अलग अपना फैसला लेने के लिए स्वतंत्र होगी. लेकिन, चुनाव से पहले गठबंधन बनने से मायावती के लिए गठबंधन का ठप्पा लगा रहेगा जिससे बीएसपी के मुकाबले फायदा कांग्रेस को ही होगा.

 

 

यूपी के डिप्टी CM केशव मौर्य का शिवपाल को ऑफर, कहा- BJP में कर सकते हैं अपनी पार्टी का विलय

कानपुर (उ.प्र.):

उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य ने सपा से अलग होकर हाल में समाजवादी सेक्युलर मोर्चा गठित करने वाले शिवपाल सिंह यादव को अपनी पार्टी का भाजपा में विलय करने की पेशकश की है।मौर्य ने बुधवार को यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा कि शिवपाल चाहें तो अपने मोर्चे का भाजपा में विलय कर सकते हैं। उनका स्वागत है। मगर फिलहाल भाजपा के पास किसी दल के साथ मिलकर चुनाव लड़ने की गुंजाइश नहीं है।

Justice Ranjan Gogoi is 46th CJ India.


President Ram Nath Kovind administered the oath to Justice Gogoi at a ceremony which took place in Rashtrapati Bhavan’s Darbar Hall.

Justice Gogoi’s father Sh. Keshab Chandra Gogoi was a Chief minister under the Indian National Congress regime in the state of Assam in the year 1982.


Justice Ranjan Gogoi took oath as the as the 46th Chief Justice of India on Wednesday as he succeeded Justice Dipak Misra.

President Ram Nath Kovind administered the oath to the 63-year-old Justice Gogoi at a ceremony which took place in Rashtrapati Bhavan’s Darbar Hall.

Justice Gogoi’s father Sh. Keshab Chandra Gogoi was a Chief minister under the Indian National Congress regime in the state of Assam in the year 1982.

Justice Gogoi will have a tenure of a little over 13 months and would retire on November 17, 2019.

He was appointed as a judge of the Supreme Court on April 23, 2012.

Born on November 18, 1954, Justice Gogoi was enrolled as an advocate in 1978. He practised in the Gauhati High Court on constitutional, taxation and company matters.

He was appointed as a permanent judge of the Gauhati High Court on February 28, 2001. On September 9, 2010, he was transferred to the Punjab and Haryana High Court.

He was appointed as Chief Justice of Punjab and Haryana High Court on February 12, 2011.

Justice Gogoi was one of the four Supreme Court judges who had revolted against CJI Misra earlier this year. The other three were Justice J. Chelameswar, Justice Madan B. Lokur and Justice Kurian Joseph.

In an unprecedented move, the four senior-most judges of the apex court had held a press conference in January this year raising, among other things, questions over assigning cases to different judges by the CJI.

Earlier in September, CJI Misra had recommended Justice Gogoi as his successor as per the established practice of naming for the post the senior-most judge after the CJI.

The appointment of members of the higher judiciary is governed by the Memorandum of Procedure, which says “appointment to the office of the Chief Justice of India should be of the senior-most judge of the Supreme Court considered fit to hold the office”.

The protocol stipulates that the law minister will, at an appropriate time, seek recommendation of the outgoing CJI for the appointment of a successor. Once the CJI makes the recommendation, the law minister puts it before the Prime Minister who then advises the President on the matter.

After President Ramnath Kovind signed warrants of Justice Gogoi’s appointment , a notification was issued announcing his appointment.

protesting farmers faced water cannons at the Delhi-Uttar Pradesh border

Police fire water cannons upon protesting farmers at the Delhi-Uttar Pradesh border on Tuesday, October 2, 2018.


The farmers were marching to Delhi from Haridwar.


Delhi police on Tuesday fired water cannons and teargas shells at protesting farmers as they tried to break barricades put up to stop them at the Delhi-Uttar Pradesh border.

The Delhi police had issued week-long prohibitory orders under section 144 on Monday, in anticipation of the Kisan Kranti Padyatra organised by the Bharatiya Kisan Union, arriving from Haridwar.

The rally was expected to make its way to Kisan Ghat in the city this afternoon. But organisers said that the police were not letting the march enter the city because of the large number of tractors they were bringing along with them.

Farmers marching towards Delhi as part of the Kisan Kranti Padyatra organised by the Bharatiya Kisan Union on Tuesday, October 2, 2018.

In East Delhi, the prohibitory orders issued by Deputy Commissioner of Police (East) Pankaj Singh under section 144 of the Criminal Procedure Code, will be in force until October 8.

It covers Preet Vihar, Jagatpuri, Shakarpur, Madhu Vihar, Ghazipur, Mayur Vihar, Mandawli, Pandav Nagar, Kalyanpuri and New Ashok Nagar police station limits.

In northeast Delhi, the prohibitory orders were issued by Deputy Commissioner of Police (Northeast) Atul Kumar Thakur and will be in force till October 4.

Leaders will have to pay for damage by cadre: SC

 

Leaders of outfits who instigate a mob to an act of vandalism, which results in death or loss of public and private property, will personally face criminal action and are liable to compensate the victims of the violence, the Supreme Court ruled on Monday.

A Bench of Chief Justice of India Dipak Misra and Justices A.M. Khanwilkar and D.Y. Chandrachud pinned the criminal liability squarely on leaders of outfits who “initiate, promote and instigate” mobs to destroy public and private property in the name of demonstrations, especially against cultural programmes, films and expressions of artistic freedom.”

The taxpayer is not responsible to cough up money to pay for the destruction caused by mobs, the Bench held.

Each and every person, who was part of the violence, would be booked under Sections 153A (promoting enmity), 295A (deliberate and malicious acts to outrage religious feelings), 298 (intent to wound religious feelings) and, lastly, 495 (mischief) of the Indian Penal Code. The offences would come alive if the call for violence was made through a spokesperson or through social media of a group or by any individual.

The Supreme Court ordered persons caught red-handed by the police to be arrested on the spot.

If any leader fails to appear in the police station concerned, he shall be proceeded against as a suspect and be even declared an “absconding offender”.

State governments should set up Rapid Response Teams, preferably district-wise, to respond to mob violence, install websites which report instances of mob violence and destruction of public and private properties, special helplines, employ non-lethal crowd-control devices, like water cannons to deter the mob

स्टेट क्राईम ब्रांच मानव तस्करी निरोधक सैल की टीम ने गुमशुदा बच्चे को उसके भाई बहिन से मिलवाया

क्राईम ब्रांच मानव तस्करी निरोधक सैल की टीम बच्चे को सैक्टर-2 बाल स्थित निकेतन में डाक्टर मधु शर्मा को सुपुर्द करते हुए।

पंचकूला 1 अक्तूबर:
स्टेट क्राईम ब्रांच मानव तस्करी निरोधक सैल की टीम ने, जिसमें एस आई मुकेश रानी, एएसआई राजेश कुमार व एचसी कर्मचंद है, गांव रामगढ़ पंहुचकर, एक लडक़ा, जिसकी उम्र करीब 9 वर्ष है, उससे पूछताछ की गई। पूछताछ के दौरान उस लडके ने बताया कि मेरे माता पिता की मृत्यु हो चुकी है और हम पंाच भाई बहन हैं। लडक़े ने  अपना नाम अर्जुन पुत्र धानेस गांव मनसा देवी बताया।
गौर तलब है कि इसी टीम ने पिछले दिनों दो अनाथ बच्चों को बाल स्नेहालय पंहुचाया था. आज मिला बच्चा इन्हीं 5 भाई बहिनों में तीसरा है. बाकी 2 कि भी तलाश जारी है.
टीम नेे बच्चे को अपने साथ लेकर डीडीआर चौकी में करवाई व मैडिकल करवाकर सीडब्लूसी को पेश करके सैक्टर-2 बाल स्थित निकेतन में डाक्टर मधु शर्मा को सुपुर्द किया। इससे पूर्व  भी टीम द्वारा 28 सितंबर को दो बच्चे इसी बाल निकेतन में पहुंचाए गए थे। यह तीनों सगे बहन भाई है। इनके माता पिता का साया इनके ऊपर से उठ गया है। टीम ने नागरिकों से आग्रह करते हुए कहा कि कोई भी लावारिश बच्चा यदि किसी को मिलता है तो पुलिस विभाग के मुकेश रानी के मोबाईल नम्बर म्8728922676 तथा राजेश के मोबाईल नम्बर 9417567221 पर सूचित करें।

Imran Khan a ‘chaprasi’ says Swamy; demands Pakistan is broken into four


Swamy added the roads would be cleared to build a grand Ram temple at Ayodhya in Uttar Pradesh


Subramanian Swamy, the Bharatiya Janata Party (BJP) Member of Parliament in Rajya Sabha on Sunday demanded that Pakistan is broken into four regions – Sindh, Balochistan, Pakhtun, and West Pakistan – and the first three must be handed over to India.

“This is the only solution to the India-Pakistan conflict,” said the former member of the Planning Commission of India while attending a seminar in Agartala, the capital city of Tripura reports IANS.

Swamy said that Pakistan was run by the military, the Inter-Services Intelligence (ISI), and terrorists. He also termed Pakistan’s new Prime Minister Imran Khan as a “chaprasi (peon).”

Swamy added the roads would be cleared to build a grand Ram temple at Ayodhya in Uttar Pradesh.

On Saturday, Minister of External Affairs Sushma Swaraj had tore into the Pakistani establishment in her address at the United Nations General Assembly (UNGA).

“World’s dreaded terrorists are called freedom fighters in Pakistan. Their nefarious acts are called heroism and they are hailed as heroes in the country,” Swaraj had said.

She also slammed Pakistani Prime Minister Imran Khan’s recent statement in which he accused India of “sabotaging” chances of dialogue.

कांग्रेस का एक ही नारा है- मोदी को हटाना है, अब चाहे पाकिस्तान हटा दे या माओवादी हटा दें: पात्रा


बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि भीमा कोरेगांव मामले में शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट का जो फैसला आया है, उससे पूरी तरह से कांग्रेस पार्टी का पर्दाफाश हो गया है


भीमा-कोरेगांव हिंसा मामले में कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी मामले में विपक्ष के हमलों के बीच शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद बीजेपी ने कहा कि शीर्ष अदालत के फैसले से कांग्रेस पार्टी का पर्दाफाश हो गया है. पार्टी ने कांग्रेस अध्यक्ष से सवाल किया कि राहुल गांधी आप बार-बार राष्ट्रद्रोहियों के साथ खड़े क्यों नज़र आते हैं?

बीजेपी प्रवक्ता संबित पात्रा ने कहा कि भीमा कोरेगांव मामले में शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट का जो फैसला आया है, उससे पूरी तरह से कांग्रेस पार्टी का पर्दाफाश हो गया है. उन्होंने कहा, ‘इस मामले में आया सुप्रीम कोर्ट का फैसला, राष्ट्रीय सुरक्षा और राष्ट्र हित की जीत है.’

पात्रा ने कहा कि ऐसे लोग जो राष्ट्रीय सुरक्षा के खिलाफ काम करते हैं, उन्हें यह चुनने की छूट नहीं है कि वे किस प्रकार की जांच का सामना करेंगे और कानून कब और कैसे काम करेगा.

बीजेपी प्रवक्ता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला देश की जीत है. यह फैसला कांग्रेस को कटघरे में खड़ा करने का काम करती है. उन्होंने कहा कि अपने निजी स्वार्थ के लिए राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी आज देश को कुचलने और राष्ट्रीय सुरक्षा के साथ खिलवाड़ करने के लिए भी तैयार हैं.

पात्रा ने सवाल किया, ‘राहुल जी आप बार-बार राष्ट्रद्रोहियों के साथ खड़े क्यों नज़र आते हैं?’ उन्होंने आरोप लगाया कि कांग्रेस का एक ही नारा है- मोदी को हटाना है, अब चाहे पाकिस्तान हटा दे या माओवादी हटा दें, लेकिन देश की जनता राष्ट्र सुरक्षा और मोदी के साथ है.

सुप्रीम कोर्ट ने भीमा-कोरेगांव हिंसा प्रकरण के सिलसिले में पांच कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के मामले में हस्तक्षेप करने से शुक्रवार को इनकार करने के साथ ही इन गिरफ्तारियों की जांच के लिए विशेष जांच दल (एसआईटी) गठित करने का आग्रह भी ठुकरा दिया. महाराष्ट्र पुलिस ने इन कार्यकर्ताओं को पिछले महीने गिरफ्तार किया था परंतु शीर्ष अदालत के अंतरिम आदेश पर उन्हें घरों में नजरबंद रखा गया था.

चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय खंडपीठ ने 2:1 के बहुमत के फैसले से इन कार्यकर्ताओं की तत्काल रिहाई के लिए इतिहासकार रोमिला थापर और अन्य की याचिकायें ठुकरा दीं.

इंतज़ार कीजिये : ‘शाम का भूला सुबह को घर आ गया’. अनवर


तारिक अनवर ने 1999 में सोनिया गांधी के विदेशी मूल के सवाल को मुद्दा बनाकर शरद पवार और पी ए संगमा के साथ कांग्रेस से अलग होकर एनसीपी का गठन किया था

तो क्या अब तारिक अनवर बतौर सांसद भी इस्तीफा देंगे या ….


बात पिछले 22 फरवरी की है. एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार पुणे में अपनी सक्रिय राजनीति की 50वीं वर्षगांठ बिलकुल यूनिक तरीके से मना रहे थे. आयोजनकर्ता ‘जगटीक मराठी ऐकेडमी’ ने एमएनएस चीफ राज ठाकरे को खुले मंच पर शरद पवार के साक्षात्कार के लिये आमंत्रित किया था. इस पब्लिक मेगा शो का नाम रखा गया था ‘फ्री एक्सचेन्ज विटविन टू जेनेरेशन’.

राज ठाकरे ने सीधा सवाल किया ‘राजनीति में सत्य बोलने का खामियाजा आपने कभी झेला है?’ शरद पवार ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया, ‘राजनीति में सच बोलना चाहिए. लेकिन सच बोलने से उस समय बचना चाहिए जब लगे कि ऐसा करने से व्यक्तिगत और समाज को क्षति होगी’.

मराठी मूल के पुणे वासी एक कलमजीवी ने इस वाकये को याद करते हुए बताया कि ‘शरद पवार का राफेल डील पर दिया गया बयान इसी सोच के परिप्रेक्ष्य में लोगों को देखना चाहिए. उनका बयान लॉन्ग रन में उनको व्यक्तिगत लाभ पहुंचाएगा और समाज की क्षति से बचाएगा’.

गुरुवार को एक मराठी न्यूज चैनल को दिए इंटरव्यू में पूर्व रक्षा मंत्री और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष शरद पवार ने कहा कि ‘देश की जनता को मोदी सरकार की नीयत पर कोई शक नहीं है और राफेल फाइटर विमान के तकनीकी पहलुओं पर चर्चा करने की विपक्ष की मांग उचित नहीं है’.

विषय वस्तु को आगे बढ़ाते हुए हम बिहार की धरती पर लाते हैं. क्योंकि शरद पवार ने शब्द बाण पुणे में छोड़ा परन्तु घायल हो गए कटिहार के 67 वर्षीय एनसीपी सांसद और राज्य के कद्दावर ‘सेक्युलर’ नेता तारिक अनवर. अपने संगठन के चीफ के ‘बयान’ से आहत तारिक अनवर ने बागी रूख अपनाते हुए सांसदी और राष्ट्रीय महासचिव पद से इस्तीफा करने की घोषणा कर दी.

कन्फर्म सूचना है कि तारिक अनवर 20 साल बाद दोबारा अपने पुराने राजनीतिक घर कांग्रेस में वापस जाएंगे और मीडिया में एक लिखित बयान देंगे कि ‘शाम का भूला सुबह को घर आ गया’. अनवर के करीबी बताते हैं कि कांग्रेस में जाने की बात बहुत पहले से चल रही है. उचित मौके का इन्तजार हो रहा था, जिसे शरद पवार ने अपने बयान से दे दिया.

तारिक अनवर ने 1999 में सोनिया गांधी के विदेशी मूल के सवाल को मुद्दा बनाकर शरद पवार और पी ए संगमा के साथ कांग्रेस से अलग होकर एनसीपी का गठन किया था. इन तीनों का तर्क था कि किसी विदेशी महिला को कांग्रेस का अध्यक्ष नहीं होना चाहिए. कांग्रेस ने अनुशासनात्मक कार्रवाई करते हुए तीनों को पार्टी से निलंबित भी कर दिया था.

तारिक अनवर सत्तर के दशक से ही सक्रिय राजनीति में हैं. 1975 से 1977 के बिहार यूथ कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर रहे. 1977 लोकसभा हार गए लेकिन 1980 और 1984 में कटिहार से जीते. इस कालखंड में यूथ कांग्रेस और सेवा दल के नेशनल अध्यक्ष भी रह चुके हैं. 1989 और 1991 लोकसभा में हारने के बाद 1996 में भारी मतों से जीते थे. बिहार प्रदेश कांग्रेस पार्टी के एक साल तक अध्यक्ष भी थे, जब भागवत क्षा आजाद बिहार के सीएम बने थे. यूपीए द्वितीय मंत्रिमंडल के सदस्य भी रहे हैं.

कांग्रेस के इनसाइडर बताते हैं कि तारिक अनवर को गांधी परिवार में मोह भंग अस्सी दशक के अंतिम समय में होना शुरू हो गया था. क्योंकि आश्वासन के बावजूद भी पीएम राजीव गांधी ने इनको बिहार का सीएम नहीं बनाया. अनवर के साथ दशकों तक काम किए एक नेता बताते हैं कि राजीव गांधी ने यहां तक कह दिया था कि बिहार के सीएम सत्येन्द्र नारायण सिंह आपको डिप्टी सीएम भी रखने को तैयार नहीं हैं. क्योंकि ऐसे प्रशासनिक दायित्वों के लिए आप परिपक्व नहीं हैं.

तारिक अनवर इतना तो समझते हैं कि एनसीपी का बिहार में कोई वजूद नहीं है. अगले महाभारत के लिए सारे दल तैयारी में लग गए हैं. कहते हैं कि आरजेडी के एक बड़े नेता ने भी तारिक अनवर को शरद पवार को तलाक देकर कांग्रेस में जाने सलाह दी थी. बकौल एक एनसीपी लीडर ‘ लोकसभा क्षेत्र मैक्सिमम वोटर्स दबाव बनाए हुए थे कि जितना जल्दी हो सके सांसद महोदय कांग्रेस में चले जाएं’.

बहरहाल, तारिक अनवर के जाने से शरद पवार के राजनीतिक हेल्थ पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ेगा क्योंकि महाराष्ट्र में कटिहार के सांसद का एक प्रतिशत भी लोगों के बीच प्रभाव नहीं है. वैसे, बिहार में ऐसे लोग भी हैं, जो तारिक अनवर के उपर विश्वासघाती होने का आरोप लगाते हैं. जनता दल यू के प्रवक्ता राजीव रंजन सिंहा तो यहां तक कहते हैं कि शरद पवार ने तारिक अनवर जैसे जमीन रहित व्यक्ति को दो बार राज्यसभा भेजा लेकिन बदले में इन्होंने उस उपकार को ठेंगा दिखा दिया.

The Supreme Court today refused to constitute a Special Investigation Team in Koregaon case

 

The Supreme Court today refused to constitute a Special Investigation Team (SIT) to look into the arrests of lawyers and activists made in connection to the Bhima Koregaon violence.

The judgment was delivered by the Bench of Chief Justice of India Dipak Misra, Justice AM Khanwilkarand Justice DY Chandrachud.

Justice Khanwilkar delivered the majority opinion on behalf of himself and CJI Misra. Justice Chandrachud dissented from the majority.

The majority opinion held that the Court’s earlier order calling for house arrest of the activists and lawyers, will continue to operate for four more weeks.

Justice Khanwilkar held that accused persons do not have a say in which investigating agency should probe the case. He held that this was not a case of arrest merely because of political dissent. Therefore, the plea for an SIT was not entertained, with the accused given the liberty to pursue other appropriate remedies.

However, Justice Chandrachud did not agree with the views of the majority, stating that technicalities should not be allowed to override substantive justice.

Chandrachud J made some scathing observations against the Pune police for their conduct in the matter thus far. He also berated the police for conducting a press conference immediately after the Court had passed an interim order.

He also highlighted the manner in which a letter alleged to have been written by Sudha Bharadwaj was flashed on Republic TV, after the police selectively disclosing details of the probe to the media. This, Justice Chandrachud held, cast a cloud over the fairness of the investigation.

“Voices of opposition cannot be muzzled because it is dissent. Deprivation of liberty cannot be compensated later”, Chandrachud J held.

The acts of the Maharashtra police, he said, raises questions as to whether the investigation can be carried out fairly. Therefore, Chandrachud J felt that an SIT should be constituted to probe the matter.

The verdict was passed in the petition filed by Romila Thapar and four other activists challenging the raids and arrests made by the Maharashtra Police of Sudha BharadwajGautam NavlakhaVaravara RaoVernon Gonsalves, and Arun Ferreira, in connection with the Bhima Koregaon incident.

The Supreme Court had directed the Pune Police to keep the activists/lawyers under house arrest “in their own homes” till further orders, thereby protecting their liberty.

It was contended by the State of Maharashtra that the raids were conducted based on evidence gathered from the computer systems and emails of other accused persons arrested in the same case.

The Court had warned against “cooked up evidence” against the activists in question and had asserted that an SIT will be formed to look into the validity of these raids if the evidence is found to be “cooked up”.

The State of Maharashtra maintained that there was a larger ploy at play in this case and claimed that the arrested activists have links with banned terror outfits some of them “having committed serious offences”.

The Court had remarked that liberty of people cannot be stifled based on conjectures and had asserted that it would “look at the case with hawk’s eyes”.

The Court had demanded for the entire case diary to ascertain the validity of the raids and arrests in the case even as the State of Maharashtra’s submission from the beginning was that the petitioners, in this case, were “strangers” to the case and had no locus standi to challenge the arrests where they were not personally aggrieved.