यूपी शिक्षक भर्ती: सपा शासन में हुई 12460 शिक्षकों की भर्ती भी रद्द


गुरुवार को सुनाए अपने फैसले में कोर्ट ने कहा कि चयन प्रकिया नियमों को दरकिनार कर की गई थी। अतः कानूनन यह दूषित है और रद्द करने लायक  है।


हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के फैसले की गाज समाजवादी पार्टी के शासनकाल में हुए 12 हजार 460 सहायक अध्यापकों के चयन पर गिरी है। न्यायालय ने बोर्ड ऑफ बेसिक एजूकेशन द्वारा किए गए इन चयनों को रद्द कर दिया है। इन भर्तियों के लिए 21 दिसंबर 2016 को विज्ञापन जारी कर चयन प्रक्रिया शुरू की गई थी।

न्यायालय ने यह भी निर्देश दिया है कि उक्त भर्तियां यूपी बेसिक एजूकेशन टीचर्स सर्विस रूल्स 1981 के नियमों का पूरी तरह पालन करते हुए नए सिरे से काउंसलिग करा के पूरी की जाएं। नई चयन प्रकिया के लिए वही नियम लागू किए जाएंगे जो कि पूर्व में प्रकिया प्रारम्भ करते समय बनाए गए थे। न्यायालय नई प्रकिया पूरी करने के लिए तीन माह का समय दिया है।

यह आदेश न्यायमूर्ति इरशाद अली की एकल सदस्यीय पीठ ने तमाम अभ्यर्थियों की ओर से दाखिल दर्जनों याचिकाओं की एक साथ सुनवाई करते हुए दिया है। याचिकाओं में 26 दिसंबर 2016 के उस नोटिफिकेशन को खारिज किए जाने की मांग की गई थी, जिसके तहत उन जिलों में जहां कोई रिक्ति नहीं थी, वहां के अभ्यर्थियों को काउंसलिंग के लिए किसी भी जिले को प्रथम वरीयता के तौर पर चुनने की छूट दी गई थी।

याचियों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता जेएन माथुर की दलील थी कि 26 दिसंबर 2016 के नोटिफिकेशन द्वारा नियमों में उक्त बदलाव भर्ती प्रकिया प्रारम्भ होने के बाद किया गया जबकि नियमानुसार एक बार भर्ती प्रकिया प्रारम्भ होने के बाद नियमों में बदलाव नहीं किया जा सकता। वहीं राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता राघवेंद्र सिंह का तर्क था कि नियमों में बदलाव इस लिए किया गया था ताकि काउंसलिंग में अधिक संख्या में अभ्यर्थियों को शामिल किया जा सके।

गौरतलब  है कि होई कोर्ट ने 19 अप्रैल 2018 के एक अंतरिम आदेश जारी कर पहले ही सफल अभ्यर्थियों को नियुक्त पत्र देने पर रोक लगा दी थी। गुरुवार को सुनाए अपने फैसले में कोर्ट ने कहा कि चयन प्रकिया नियमों को दरकिनार कर की गई थी। अतः कानूनन यह दूषित है और रद्द करने लायक  है।

मैं भी चाहती हूं कि अयोध्या में बने राम मंदिर: अपर्णा यादव


अपर्णा यादव ने कहा कि कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हुए हमें जनवरी तक मामले की सुनवाई शुरु होने का इंतजार करना चाहिए


राम मंदिर मुद्दे को लेकर मुलायम सिंह यादव की छोटी बहू अपर्णा यादव ने बयान दिया है. गुरुवार को अपर्णा यादव ने संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि उन्हें भी राम मंदिर बनने का इंतजार है.

उन्होंने कहा कि मुझे सुप्रीम कोर्ट पर विश्वास है. मेरा विचार है कि अयोध्या में राम मंदिर बनना चाहिए. अपर्णा यादव गुरुवार को बाराबंकी के देवा शरीफ पहुंची थी. यहां उन्होंने यह भी कहा कि कोर्ट के फैसले का सम्मान करते हुए हमें जनवरी तक  मामले की सुनवाई शुरु होने का इंतजार करना चाहिए.

एक रिपोर्ट के मुताबिक जब उनसे पूछा गया कि क्या मस्जिद नहीं बनना चाहिए, तो उन्होंने कहा कि, ‘मैं तो मंदिर के पक्ष में हूं, क्योंकि रामायण में भी राम जन्मभूमि का उल्लेख आता है.’ वहीं जब उनसे बीजेपी का साथ देने के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि, ‘ मैं राम के साथ हूं.’

वहीं चाचा शिवपाल के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि 2019 के चुनाव में शिवपाल के अलग होने से असर पड़ेगा क्योंकि पार्टी को मजबूत करने में उनका भी अहम योगदान रहा है. उन्होंने ये भी कहा कि अगर उन्हें चुनाव लड़ने का मौका मिला तो अखिलेश या शिवपाल में से वह अपने चाचा शिवपाल और नेता जी मुलायम सिंह यादव को चुनेंगी.

कानून या फिर बिल लाकर महज माहौल बनाने की तैयारी हो रही है या फिर मंदिर बनेगा


पार्टी की रणनीति देखकर यही लग रहा है कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव का परिणाम ही राम मंदिर मुद्दे पर अगले कदम और अगली रणनीति तय करेगा.


बीजेपी सांसद राकेश सिन्हा ने अयोध्या में राम मंदिर निर्माण के लिए प्राइवेट मेंबर बिल लाने का ऐलान कर दिया है. राज्यसभा सांसद सिन्हा ने प्राइवेट मेंबर बिल लाने की बात कहते हुए कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, आरजेडी अध्यक्ष लालू प्रसाद यादव, सीपीएम महासचिव सीताराम येचुरी और बीएसपी सुप्रीमो मायावती समेत कई विपक्षी पार्टी के नेताओं को चुनौती देते हुए उनका स्टैंड पूछा है.


Prof Rakesh Sinha

@RakeshSinha01

जो लोग @BJP4India @RSSorg को उलाहना देते रहते हैं कि राम मंदिर की तारीख़ बताए उनसे सीधा सवाल क्या वे मेरे private member bill का समर्थन करेंगे ? समय आ गया है दूध का दूध पानी का पानी करने का .@RahulGandhi @yadavakhilesh @SitaramYechury @laluprasadrjd @ncbn


बीजेपी सांसद राकेश सिन्हा की तरफ से किए गए इस ऐलान के बाद से मंदिर मुद्दे पर सियासत गरमा गई है. आखिरकार राकेश सिन्हा ने इस तरह का बयान क्यों दिया. क्या राकेश सिन्हा ने अपनी मर्जी से बयान दिया या फिर उनके पीछे बीजेपी की भी सोच है या फिर संघ के लाइन को ही आगे बढ़ाते हुए सिन्हा ने एक कदम आगे बढ़ा दिया है.

सिन्हा को संघ का समर्थन!

दरअसल, राकेश सिन्हा संघ विचारक हैं. मीडिया में सघ की बात प्रमुखता से रखने वाले राकेश सिन्हा को संघ के आलाकमान का वरदहस्त प्राप्त है. संघ के समर्थन की बदौलत ही उन्हें राज्यसभा भेजा गया है. ऐसे में उनकी तरफ से प्राइवेट मेंबर बिल के जरिए अयोध्या में राम मंदिर के मुद्दे पर रास्ता साफ करने के लिए कदम उठाए जाने के पीछे संघ का ही हाथ माना जा रहा है.

गौरतलब है कि सरसंघचालक मोहन भागवत ने विजयादशमी की अपनी सालाना बैठक में साफ-साफ शब्दों में सरकार से अयोध्या विवाद के समाधान करने और वहां राम मंदिर का मार्ग प्रशस्त करने के लिए रुकावटों को दूर करने के लिए कानून बनाने की मांग कर दी है. संघ परिवार के मुखिया की तरफ से आए इस बयान के बाद भगवा ब्रिगेड इस मुद्दे पर अब और आक्रामक हो गया है.

वीएचपी और साधु-संतों का कड़ा रुख

विश्व हिंदू परिषद यानी वीएचपी के अलावा साधु-संतों ने भी अपना रुख कड़ा कर लिया है. संतों की उच्चाधिकार समिति की बैठक में पहले ही इस बात का ऐलान किया जा चुका है कि राम मंदिर निर्माण के लिए कानून बनाने की मांग को लेकर देश भर में जनजागरण कार्यक्रम चलाने के अलावा उनकी तरफ से सांसदों को उनके ही संसदीय क्षेत्र में मिलकर उन्हें ज्ञापन सौंपा जाएगा. वीएचपी के साथ मिलकर साधु-संतों की योजना हर राज्य मे गवर्नर से भी मिलने की है. आखिर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलकर भी कानून बनाने की मांग की जाएगी.

दूसरी तरफ, संतों के एक वर्ग ने 3 और 4 नवंबर को दिल्ली के तालकटोरा स्टेडियम में राम मंदिर निर्माण के लिए माहौल बनाने के लिए एक सम्मेलन करने जा रहा है. यह सम्मेलन अखिल भारतीय संत समिति की तरफ से कराया जा रहा है जिसका नेतृत्व जगद्गुरू रामानंदाचार्य हंसदेवाचार्य जी कर रहे हैं. संतों की मांग है कि सरकार कानून बनाकर या फिर अध्यादेश के जरिए अयोध्या में भव्य मंदिर निर्माण का रास्ता साफ करे.

दरअसल, सुप्रीम कोर्ट की तरफ से राम मंदिर-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद मामले की सुनवाई अगले साल जनवरी तक टाल देने के बाद आरएसएस, वीएचपी और कई दूसरे हिंदू संगठनों की तरफ से केंद्र की मोदी सरकार पर राम मंदिर के लिए अध्यादेश लाने का दबाव बनाया जा रहा है.

भागवत के बयान से भगवा ब्रिगेड को मिला मौका

खासतौर से मोहन भागवत के बयान ने बीजेपी के उन नेताओं को भी खुलकर बोलने का मौका दिया है जो इस मुद्दे पर प्रखर रहे हैं. केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह से लेकर यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ और डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य ने भी राम मंदिर के मुद्दे पर बयान देकर माहौल गरमा दिया है.

बीजेपी के राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा के अलावा बीजेपी के यूपी के अंबेडकर नगर से लोकसभा सांसद हरिओम पांडे ने भी प्राइवेट मेंबर बिल लाने की बात कही है. प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी कहा है कि इस बार अयोध्या में दीवाली के दौरान वे राम मंदिर निर्माण से जुड़ी अच्छी खबर लेकर जाएंगे.

उधर, शिवसेना ने भी इस मसले पर सहयोगी बीजेपी पर दबाव बढ़ा दिया है. शिवसेना पहले से ही राम मंदिर मुद्दे को लेकर बीजेपी सरकार पर निशाना साध रही है. शिवसेना अध्यक्ष उद्धव ठाकरे 25 नवंबर को अयोध्या भी जा रहे हैं.शिवसेना नेता संजय राउत का कहना है कि ठाकरे अयोध्या पहुंचकर मोदी जी और बीजेपी सरकार को राम मंदिर निर्माण के लिए याद दिलाएंगे. शिवसेना का मानना है कि अगर कोर्ट के फैसले का इंतजार करेंगे तो हमें एक हजार साल इंतजार करना पड़ेगा. ऐसे में जल्द से जल्द कानून के जरिए सरकार इस मसले पर आगे बढ़े.

विपक्षी दलों का बीजेपी पर हमला

लेकिन, विपक्षी दलों की तरफ से इस मुद्दे पर बीजेपी पर प्रहार हो रहा है. विपक्षी दल अगले चुनाव को ध्यान में रखकर मूल मुद्दे से ध्यान हटाने की कोशिश के तौर पर मंदिर मुद्दे को देख रहे हैं. बीजेपी सांसद राकेश सिन्हा के ऐलान पर नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला ने कहा है कि राम या अल्लाह वोट करने नहीं आएगें, जनता को ही वोट करना होगा.

उधर, कांग्रेस ने इस मुद्दे पर बीजेपी पर राजनीति करने का आरोप लगाया है. कांग्रेस प्रवक्ता आलोक शर्मा ने कहा है कि ‘कांग्रेस का स्टैंड क्लीयर है, हम सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मानेंगे. राकेश सिन्हा यह नौटंकी बंद करें.’ॉ

सरकार के लिए सहयोगियों को साधना मुश्किल

लेकिन, बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती अपनी ही सहयोगी दलों से है. सहयोगी जेडीयू प्रवक्ता नीरज कुमार का कहना है कि, ‘अगर न्यायपालिका समाधान का रास्ता खोज रही हो तो उस पर ज्यादा भरोसा करना चाहिए.’

संघ परिवार, साधु-संतों, सहयोगी शिवसेना के अलावा अपनी ही पार्टी के सांसदों की मांग के बाद बीजेपी पर भी राम मंदिर मुद्दे को लेकर दबाव बन रहा है. लेकिन, जेडीयू जैसी सहयोगी की तरफ से आ रहे बयान और गठबंधन की राजनीति की मजबूरी को बीजेपी भी समझ रही है. पार्टी प्रवक्ता संबित पात्रा के इस बयान में इस बात की झलक भी मिल रही है.

पात्रा ने इस मसले पर कहा, ‘प्राइवेट मेंबर बिल पार्लियामेंट की संपत्ति होती है, भविष्य में इस विषय पर बिल संसद में आएगा, इसपर मैं अभी से टिप्पणी करूं यह उचित नहीं होगा. मगर इसमें कोई संशय नहीं है कि जहां तक राम मंदिर निर्माण का सवाल है बीजेपी एक मात्र ऐसी पॉलिटिकल पार्टी है जिसने 1989 के पालनपुर के कांक्लेव में यह प्रतिज्ञा की है कि मंदिर का निर्माण हमारा लक्ष्य है, यह हमारा ध्येय है, हमारा लक्ष्य है और यह हमेशा ध्येय रहेगा.’

संबित पात्रा के बयान से साफ है कि बीजेपी के सांसद भले ही प्राइवेट मेंबर बिल की बात करें लेकिन, अभी पार्टी की तरफ से इस मुद्दे को गरमाए रखने से उसे ही फायदा होगा. पार्टी की तरफ से पात्रा ने आधिकारिक तौर पर इस बिल के पक्ष में कुछ नहीं कहा, लेकिन, उनकी तरफ से विपक्षी दलों को राम विरोधी दिखाना बीजेपी की रणनीति को दिखा रहा है.

विपक्ष पर पात्रा का प्रहार

पात्रा ने विपक्षी दलों को कठघड़े में खड़ा करते हुए कहा, ‘अगर आप एक सूची बनाएं और एक तरफ यह लिखें की मंदिर बनाने वाले और दूसरी तरफ लिखें मंदिर नहीं बनाने वाले, तो मंदिर बनाने वालों में विश्व हिंदू परिषद, संघ, बीजेपी और साधु-संतों का नाम आएगा. लेकिन, मंदिर नहीं बनाने वालों में पहले कांग्रेस का नाम आएगा, जिसने राम के वजूद को ही नकारा है. समाजवादी पार्टी का नाम आएगा, बीएसपी का नाम आएगा और इसके अलावा वो तमाम विपक्षी पार्टी जो हमारी उलाहना करने का काम कर रही हैं उन सबका नाम आएगा.’

हालांकि सूत्र बता रहे हैं कि संघ परिवार की तरफ से मुद्दा गरमाए जाने के बावजूद बीजेपी की तरफ से इस मुद्दे पर आगे बढ़ना आसान नहीं होगा, क्योंकि पार्टी को अपने सहयोगियों को भी साधना है. पार्टी की रणनीति देखकर यही लग रहा है कि पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव का परिणाम ही राम मंदिर मुद्दे पर अगले कदम और अगली रणनीति तय करेगा.

राम मंदिर पर प्राइवेट बिल ला सकती है बीजेपी: राकेश सिन्हा


राकेश सिन्हा ने एक ट्वीट किया है. जिसमें राम मंदिर पर प्राइवेट मेंबर बिल लाने के बारे में कहा गया है


नयी दिल्ली, 1 नवम्बर, 2018:

चुनावी मौसम के बीच एक बार राम मंदिर का मुद्दा गरमा गया है. राम मंदिर को लेकर बीजेपी पर कांग्रेस लगातार निशाना साधती रही है. इस बीच सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर पर सुनवाई जनवरी तक के लिए टाल दी है. अब इस मुद्दे पर बीजेपी को विपक्ष लगातार घेर रहा है.

राज्यसभा सांसद और संघ विचारक राकेश सिन्हा ने एक ट्वीट किया है. जिसमें राम मंदिर पर प्राइवेट मेंबर बिल लाने के बारे में कहा गया है. सिन्हा ने पूछा है कि अगर बीजेपी राम मंदिर पर प्राइवेट मेंबर बिल लेकर आती है तो कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, लालू यादव, सीताराम येचुरी और मायावती का स्टैंड क्या होगा? सिन्हा ने विपक्ष के नेताओं को इस पर अपना स्टैंड साफ करने के लिए कहा है.


Prof Rakesh Sinha

@RakeshSinha01

Will @RahulGandhi @SitaramYechury @laluprasadrjd Mayawati ji support Private member bill on Ayodhya? They frequently ask the date ‘तारीख़ नही बताएँगे ‘ to @RSSorg @BJP4India ,now onus on them to answer


सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर मुद्दे पर सुनवाई अगले साल जनवरी तक के लिए टाल दी है. मामले की सुनवाई टलने के बाद साधु-संतों में भी नाराजगी देखने को मिल रही है.

मंगलवार को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए अध्यादेश लाने के विकल्प को नकारा नहीं है. उन्होंने कहा कि अगर इस मुद्दे को सर्वसम्मति से हल नहीं किया जा सकता है, तो फिर दूसरे विकल्पों को भी खंगाला जा सकता है.

राहुल गांधी ग्रामोफोन की तरह अटक गए हैं, लोग उनके दावों का मजाक उड़ाते हैं: मोदी


डिजिटल इंडिया का विपक्ष की आलोचना के बारे में एक सवाल के जवाब में मोदी ने कहा कि कांग्रेस के लोग जिन जिन मुद्दों पर जोर जोर से झूठ बोलने लगे तब समझना चाहिए कि हम अपने काम में सफल रहे हैं


कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के दावों पर तंज कसते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बुधवार को कहा कि ग्रामोफोन की तरह उनकी पिन अटक गई है जिसके कारण वह ऐसी बचकानी बाते कर रहे हैं और लोग उनके दावों का मजाक उड़ाते हैं.

मोदी ने कहा कि इनको समझ नहीं आ रहा है कि वक्त बदल गया है, जनता को मूर्ख समझना बंद करें. ‘इस प्रकार की बचकानी बातें किसी के गले नहीं उतरती है और लोग मजाक उड़ाते हैं.’

बीजेपी के एक कार्यकर्ता द्वारा कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के आरोपों के बारे में पूछे जाने पर प्रधानमंत्री ने कहा कि इसकी चिंता न करें. पहले ग्रामोफोन के रिकार्ड में पिन अटक जाती है तो कुछ ही शब्द बार बार सुनाई देती है. ऐसे ही कुछ लोग भी होते हैं जिनकी पिन अटक जाती है. एक ही चीज दिमाग में भर जाती है जो बार बार एक ही बात बोलते हैं. ऐसे में इन बातों का मजा उठाना चाहिए, आनंद लेना चाहिए.

मोदी ने कहा, ‘चुनाव की आपाधापी में इन चीजों का आनंद उठाएं.’

प्रधानमंत्री ने ‘मेरा बूथ, सबसे मजबूत’ कार्यक्रम के तहत नरेंद्र मोदी ऐप के जरिए मछलीशहर, महासमंद, राजसमंद, सतना, बैतूल के बीजेपी कार्यकर्ताओं से संवाद के दौरान कांग्रेस पर निशाना साधते हुए कहा कि जितना कीचड़ उछालोगे, उतना कमल खिलेगा. कांग्रेस को सच नहीं, झूठ पर भरोसा है.

सत्ता में आने पर मध्यप्रदेश में मोबाइल फोन बनाने के बारे में कांग्रेस अध्यक्ष के बयान के संबंध में पूछे जाने पर मोदी ने सवाल किया, ‘मोबाइल का आविष्कार क्या 2014 के बाद हुआ था? 2014 के पहले भी मोबाइल थे, जिन लोगों ने इतने साल राज किया, उनके समय में सिर्फ दो ही मोबाइल फैक्टरियां क्यों थीं?’

कांग्रेस पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि जिन लोगों ने इतने साल शासन किया उनके समय में सिर्फ दो मोबाइल फैक्टरियां थी और पिछले चार सालों में 100 से ज्यादा कंपनियां मोबाइल फोन बना रही हैं.

वन रैंक, वन पेंशन लागू करने के राहुल गांधी के बयान के संदर्भ में प्रधानमंत्री ने कहा कि आज ये लोग वन रैंक, वन पेंशन की बातें कर रहे हैं. दशकों से यह मामला लंबित था, तब क्यों कुछ नहीं किया. ‘जब हमने वन रैंक, वन पेंशन लागू कर दी, तब जाकर वे कह रहे हैं कि हम देंगे.’

कांग्रेस पर निशाना साधते हुए उन्होंने कहा कि इतने दशकों तक इनकी सरकार रही, सेना के जवान 40 सालों से मांग कर रहे थे, उसे सुनने की फुर्सत नहीं थी. जब हमने इसे कर दिया तब परेशान हो रहे हैं.

उल्लेखनीय है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने हाल ही में उनसे मिलने गए सेवानिवृत्त सैनिकों के एक समूह से कहा कि सत्ता में आने पर कांग्रेस ’वन रैंक, वन पेंशन’ (ओआरओपी) के मु्द्दे पर किए अपने सभी वादों को पूरा करेगी. इससे पहले राहुल ने भोपाल में आयोजित कार्यकर्ता संवाद के दौरान कहा था, ‘आपके हाथ में जो मोबाइल है, वह ‘मेड इन चाइना’ है, यदि मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी तो हम ‘मेड इन मध्य प्रदेश’ मोबाइल बनाएंगे.

डिजिटल इंडिया का विपक्ष की आलोचना के बारे में एक सवाल के जवाब में मोदी ने कहा कि कांग्रेस के लोग जिन जिन मुद्दों पर जोर जोर से झूठ बोलने लगे तब समझना चाहिए कि हम अपने काम में सफल रहे हैं.

प्रधानमंत्री ने कहा कि आज डिजिटल इंडिया कदम कदम पर सुदूर गांव तक लोगों की मदद को खड़ा है. डिजिटल इंडिया के माध्यम से लोगों के जीवन में आमूलचूल परिवर्तन आ रहा है.

उन्होंने कहा कि जब लोग और सरकार मिलकर काम करते हैं तभी सकारात्मक परिणाम आता है. सरकार कहती है कि पराली मत जलाओ, पराली मत जलाओ. लेकिन यह जनभागीदारी से ही संभव होगा.

गरीबी उन्मूलन के अपने सरकार के प्रयासों का उल्लेख करते हुए मोदी ने कहा कि पहले की सरकारों की सबसे बड़ी गलती यह थी कि उनके लिये गरीबी शब्द चुनावी वोट बैंक का हिस्सा थी और उनके राजनीतिक फायदे में थी. उन्होंने कहा कि उनकी सरकार गरीब कल्याण के कार्य में जुटी है.

प्रधानमंत्री ने कहा, ‘मैं लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाने का हमेशा से ही आग्रही रहा हूं. सरकार भी इसी दिशा में काम कर रही है.’ उन्होंने कहा कि आज कॉमन सर्विस सेंटर के माध्यम से करोड़ों भारतीयों का न सिर्फ जीवन आसान हुआ है, बल्कि उनका भविष्य भी संवर रहा है.

मोदी ने कहा कि पहले अगर किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करनी होती थी, तो गांव में इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी. लेकिन आज वाई-फाई और ऑनलाइन स्टडी ने युवाओं की इस सबसे बड़ी परेशानी का हल कर दिया है.

उन्होंने कहा कि मनरेगा की योजना तो पहले से चली आ रही है. लेकिन पहले क्या होता था. अपने पैसे लेने के लिए कई-कई किलोमीटर दूर जाना पड़ता था. ऊपर से बिचौलिया भी कुछ पैसे मार लेता था, लेकिन आज टेक्नोलॉजी की मदद से मजदूरी आसानी से मिल जाती है. आज छात्रों के खाते में छात्रवृति पहुंच जाती है.

प्रधानमंत्री ने अपने संवाद के दौरान गुजरात में सरदार बल्लभभाई पटेल की प्रतिमा राष्ट्र को समर्पित करने का उल्लेख किया और कहा कि यह उनके मन को संतोष देने वाला पल था.

मोदी ने नरेंद्र मोदी एप के जरिए पार्टी कोष में चंदा एकत्र करने के अभियान का भी जिक किया.

पटेल की मूर्ति पर मायावती ने भाजपा आरएसएस को घेरा


गुजरात में ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ के अनावरण के बाद बीएसपी प्रमुख मायावती ने बुधवार को कहा कि बीएसपी सरकार के समय बने स्मारकों को ‘फिजूलखर्ची’ बताने के लिए बीजेपी और आरएसएस को बहुजन समाज के लोगों से माफी मांगनी चाहिए.


मायावती ने भारत के पहले गृहमंत्री सरदार वल्लभ भाई पटेल को उनकी जयंती पर श्रद्धांजलि देते हुए एक बयान में कहा, लगभग तीन हजार करोड़ रुपए की लागत से बनी पटेल की ‘स्टैच्यू ऑफ यूनिटी’ प्रतिमा का प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा गुजरात में अनावरण के बाद बीजेपी और आरएसएस के उन सभी लोगों को बहुजन समाज के लोगों से माफी मांगनी चाहिए जो बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर सहित दलितों और अन्य पिछड़े वर्गों में जन्में महान संतों, गुरुओं व महापुरुषों के सम्मान में बीएसपी सरकार द्वारा लखनऊ और नोएडा में निर्मित भव्य स्थलों, स्मारको, पार्कों को फिजूलखर्ची बताकर इसकी जबर्दस्त आलोचना किया करते थे.’

बीजेपी ने पटेल को क्षेत्रवाद में बांध दिया

मायावती ने कहा, ‘वैसे तो पटेल अपनी बोल-चाल, रहन-सहन व खान-पान में पूर्ण रूप से भारतीयता व भारतीय संस्कृति की एक मिसाल थे. लेकिन उनकी भव्य प्रतिमा का नामकरण हिंदी और भारतीय संस्कृति के नजदीक होने के बजाय स्टैच्यू ऑफ यूनिटी जैसा अंग्रेजी नाम रखना कितनी राजनीति है, यह देश की जनता अच्छी तरह से समझ रही है.’

उन्होंने कहा कि पटेल विशुद्ध रूप से भारतीय संस्कृति एवं सभ्यता के पोषक थे लेकिन उनकी प्रतिमा पर विदेशी निर्माण की छाप उनके समर्थकों को हमेशा सताती रहेगी. बीएसपी प्रमुख ने कहा कि आंबेडकर की तरह पटेल एक राष्ट्रीय व्यक्ति थे और उनका सम्मान भी था लेकिन बीजेपी और उसकी केंद्र सरकार ने उन्हें क्षेत्रवाद की संकीर्णता में बांध दिया है.

उन्होंने कहा कि देश की जनता यह भी नहीं समझ पा रही है कि बीजेपी को यदि वाकई पटेल के नाम पर राजनीति करने के बजाय उनसे सही मायने में लगाव होता तो गुजरात में अपने लम्बे शासन के दौरान उनकी ऐसी भव्य प्रतिमा क्यों नहीं बनाई.

पीएम मोदी के भाई ने बढ़ाई योगी सरकार की मुश्किल, लगाया भ्रष्टाचार का आरोप

प्रधानमंत्री नरेंद मोदी के भाई व ऑल इंडिया फेयर प्राइस शॉप डीलर फेडरेशन के वरिष्ठ उपाध्यक्ष प्रहलाद मोदी ने योगी सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी है। दरअसल, प्रहलाद मोदी ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत ‘डोर स्टेप डिलीवरी’ योजना के लागू करने में योगी सरकार पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए इसकी सीबीआई से जांच की मांगकर सब को हैरत में डाल दिया है।

प्रहलाद मोदी ने कहा कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम-2013 के तहत कोटेदारों को प्रति डोर स्टेप डिलीवरी पर 17 रुपये भुगतान का प्रावधान हैं, लेकिन उन्हें नहीं दिया जा रहा है। कोई भी अधिकारी कुछ बोलने को तैयार नहीं है और प्रदेश सरकार ने भी चुप्पी साधी हुई है। ऐसे में जरूरी है कि पूरे मामले की जांच सीबीआई से कराई जाए ताकि वास्तविकता सबके सामने आए।

मोदी ने कहा कि उत्तर प्रदेश के कोटेदारों की मांग पर उन्होंने इस गंभीर मुद्दे को उठाया है, ताकि सरकार इस मामले को गंभीरता से ले तथा जांच कराकर दोषी अधिकारियों एवं संबंधित लोगों पर उचित कार्रवाई की जा सके। वहीं राफेल डील मामले में पीएम मोदी का बचाव करते हुए उन्होंने कहा कि मेरा भाई ईमानदार है। वह भ्रष्टाचार नहीं कर सकता।

पंजाब-हरियाणा पर ब्लेम-गेम के जरिए दिल्ली के प्रदूषण पर कंट्रोल किया जाएगा


प्रदूषण पर दिल्ली सरकार का शोर सालाना लगने वाले मेले की तरह नजर आता है और प्रदूषण रोकने की कवायद आखिरी में आरोप लगाने पर ही ठहर जाती है


दिल्ली की हवा जानलेवा हो चुकी है. सुबह के वक्त घरों से बाहर न निकलने की चेतावनी दी जा रही है. लेकिन राजनीति की फिजां उससे भी ज्यादा खराब है. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने ट्वीट कर बीजेपी और कांग्रेस पर दिल्ली की हवा को जहरीला बनाने का आरोप लगाया है. वो कहते हैं कि केंद्र सरकार, पंजाब और हरियाणा की वजह से दिल्ली में प्रदूषण बढ़ रहा है. पिछले साल भी सीएम केजरीवाल ने ऐसा ही कहा था. केजरीवाल ये मानते हैं कि दिल्ली की हवा में बढ़ते प्रदूषण के पीछे राजनीतिक साजिशें हैं और दिल्ली सरकार उन साजिशों का शिकार.


Arvind Kejriwal

@ArvindKejriwal

पूरा साल दिल्ली में प्रदूषण ठीक रहा।

पर इस वक़्त हर साल दिल्ली को हरियाणा, केंद्र और पंजाब की भाजपा और कांग्रेस सरकारों की वजह से दम घोंटने वाले प्रदूषण को झेलना पड़ता है। हमारी तमाम कोशिशों के बावजूद ये कुछ करने को तैयार नहीं। इन राज्यों के किसान भी अपनी सरकारों से परेशान हैं


आम जनता के नायक बन कर अरविंद केजरीवाल उभरे थे. गले में मफलर और खांसती हुई उनकी तस्वीरें लोगों को आम आदमी साबित करने का काम करती थीं. लेकिन आज प्रदूषण से दिल्ली खांस रही है. प्रदूषण पर दिल्ली सरकार का शोर सालाना लगने वाले मेले की तरह नजर आता है. प्रदूषण रोकने की कवायद आखिरी में आरोप लगाने पर ही ठहर जाते हैं.

पंजाब प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का दावा है कि इस साल पराली जलाने की घटनाओं में पांच गुना कमी आई है तो हरियाणा सरकार का कहना है कि इस साल पराली जलाने की घटनाओं में 70 फीसदी कमी की गई है. लेकिन केजरीवाल का आरोप है कि पंजाब और हरियाणा की वजह से दिल्ली में सांस लेने में घुटन हो रही है.

दिल्ली के वाहनों से सबसे ज्यादा प्रदूषण होता है. साल भर दिल्ली की हवा गाड़ियों से निकलते धुएं, निर्माण कार्य से उठने वाली धूल और औद्योगिक प्रदूषण की वजह से हवा जहरीली होती जाती है. अब सुप्रीम कोर्ट ने प्रदूषण पर सख्ती दिखाते हुए दस साल पुराने डीज़ल और 15 साल पुराने पेट्रोल के वाहनों को प्रतिबंधित कर दिया है. ऐसे में दिल्ली सरकार को पुराने और जहरीला धुआं उगलते वाहनों पर सख्ती करने की जरूरत है ताकि कोर्ट का आदेश पूरा हो सके.

दिल्ली में 1 नवंबर से 10 नवंबर तक निर्माण कार्य पर रोक लगा दी गई है. सवाल उठता है कि ये कदम कुछ पहले क्यों नहीं उठाए गए? कंस्ट्रक्शन में इस्तेमाल होने वाली निर्माण सामग्री जैसे रेत, ईंट, मलबा या दूसरी चीजों को ढंक कर रखना जरूरी होता है. लेकिन दिल्ली में जगह-जगह इनका ढेर खुले में दिखाई देना आम बात है. चाहे वो प्राइवेट कंस्ट्रक्शन हो या फिर सरकारी निर्माण हो. प्रदूषण के खिलाफ पर्यावरण को लेकर बनाए गए नियमों की खुलेआम धज्जियां हवा में धूल की तरह उड़ती दिखाई देती हैं.

सच तो ये है कि प्रदूषण को रोकने के लिए बनाए गए नियमों का दिल्ली सरकार पालन नहीं करवा सकी है.  प्रदूषण फैलाने वालों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की जरूरत है. जरूरी ये है कि दिल्ली सरकार ऐसी टीमें बनाएं जिनमें पीडब्लूडी और एमसीडी के साथ दिल्ली पुलिस के कर्मी भी शामिल हों ताकि जहां सख्ती की जरूरत हो वहां सख्ती से निपटा जा सके.

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खुले में कूड़ा जलाने को रोकने के लिए दिल्ली सरकार ने अबतक क्या सख्त कदम उठाए? भलस्वा लैंडफिल साइट में लगी आग बुझने का नाम नहीं ले रही जिससे  जिससे दिल्ली की हवा में जहर घुलता जा रहा है. वहीं नरेला और बवाना में भी कूड़े के ढेर खुलेआम जलाए जाते हैं. खुद EPCA यानी पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण संरक्षण प्राधिकरण ये जानता है तो DPCB यानी दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड भी ये मानता है.

ऐसे में NGT यानी नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल जब द‍िल्ली सरकार से प्रदूषण पर लगाम कसने के लिए एक्शन प्लान मांगती है तो दिल्ली सरकार पांच महीनों का समय मांगती है. ऐसा भी नहीं है कि दिल्ली पहली बार प्रदूषण की मार झेल रही है और ऐसा भी नहीं कि केजरीवाल सरकार को दिल्ली की आबो-हवा का पुराना अनुभव नहीं है. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर क्यों फिर दिल्ली सरकार अपनी तैयारियों का खाका इतने साल बाद भी नहीं बना सकी?

खुद सीएम केजरीवाल का कहना था कि अगर राजनीति से ऊपर उठ कर एक साथ सहयोग करें तो दिल्ली की हवा की सूरत बदली जा सकती है. ऐसे में क्या सिर्फ ऑड-ईवन के भरोसे और पंजाब-हरियाणा पर ब्लेम-गेम के जरिए प्रदूषण पर कंट्रोल किया जा सकेगा? जाहिर तौर पर दिल्ली के पड़ौसी नहीं बदले जा सकते हैं. वहां से हवा आएगी और उन हवाओं का रूख नहीं बदला जा सकता है.

सरकार को सबसे पहले प्रदूषण के कारकों को चिन्हित करना होगा और उनका विकल्प सोचना होगा. सरकार ये सुनिश्चित करे कि लैंडफिल साइट और दूसरी जगहों पर कचरा न जलाया जाए, पॉवर कट की वजह से डीज़ल जेनरेटर का ज्यादा इस्तेमाल न हो, धुआं फेंकने वाले पुराने वाहन सख्ती से जब्त हों, ईंट-भट्टे सर्दियों के मौसम में बंद रखे जाएं और धूल भरी सड़कों पर पानी का लगातार छिड़काव हो.

बहरहाल, एक बार फिर प्रदूषण से गहराती धुंध में दिल्ली सरकार अपनी राजनीति की आबो-हवा ठीक करने में जुटी हुई है. एक दूसरे पर जिम्मेदारी का ठीकरा फोड़ने की कवायद हो चुकी है. हर साल सर्दियां आएंगी. आबोहवा में धुंध का पहरा होगा. पड़ौसी राज्यों में पराली जलेगी और फिर दिवाली भी आएगी. उसी कोहरे की राजनीति में बयानों की जहरीली हवा भी चलेगी जो ये कहेगी कि इस दमघोंटू हवा के लिए हम नहीं ‘वो’ जिम्मेदार हैं. उस ‘वो’ की तलाश जारी रहेगी.

‘देर से आया न्याय, न्याय नहीं होता’: योगी आदित्यनाथ


‘देर से आया न्याय, न्याय नहीं होता’. अगर फैसला समय पर आता है तो इसका स्वागत होगा. लेकिन अगर इसमें देरी होती है तो वो अन्याय के बराबर ही होगा

‘मंदिर का इंतजार जन्म जन्मांतर तक का नहीं हो सकता.’

इस संक्रमण के समय में, पवित्र पुरुषों को देश में शांति और सद्भाव को मजबूत करने के सकारात्मक प्रयासों को बढ़ावा देना चाहिए.’


अयोध्या में राम मंदिर बनवाने के लिए बीजेपी अध्यादेश का रास्ता भी अपना सकती है. मंगलवार को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अयोध्या में राम मंदिर बनाने के लिए अध्यादेश लाने के विकल्प को नकार नहीं है. उन्होंने कहा कि अगर इस मुद्दे को सर्वसम्मति से हल नहीं किया जा सकता है, तो फिर दूसरे विकल्पों को भी खंगाला जा सकता है.

कल सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार की राम जन्मभूमि मुद्दे पर जल्दी सुनवाई की याचिका को खारिज कर दिया था. इसके दिन बाद ही योगी आदित्यनाथ ने ये बयान दिया है. हालांकि मुख्यमंत्री ने ये जरुर कहा कि वो न्यायपालिका का सम्मान करते हैं. और संवैधानिक दिक्कतों को भी समझते हैं.

योगी ने कहा- ‘इस मुद्दे को जल्द से जल्द सुलझाया जाना चाहिए. क्योंकि राज्य में कानून और व्यवस्था को बनाए रखने की ज़िम्मेदारी हमारे ऊपर है. हालांकि सर्वसम्मति सबसे अच्छा समाधान है. लेकिन इसके इतर भी कई अन्य तरीके हैं.’

सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को अयोध्या मुद्दे की सुनवाई जनवरी 2019 के पहले सप्ताह करने का आदेश जारी किया था. कोर्ट ने बेंच द्वारा सुनवाई की तारीख तय करने के पहले अपील की सूची तैयार करने का आदेश दिया. साथ ही कोर्ट ने ये भी कहा कि ‘हमारी अपनी प्राथमिकताएं हैं.’

मुख्यमंत्री ने कहा- ‘संतों को पूरे धैर्य के साथ श्रीराम जन्मभूमि के समाधान की दिशा में होने वाले उन सभी सार्थक प्रयासों में सहभागी बनना चाहिए, जिससे देश में शांति और सौहार्द की स्थापना हो तथा भारत के सभी संवैधानिक संस्थाओं के प्रति सम्मान का भाव सुदृढ हो.’

आदित्यनाथ ने कहा कि जनता राम जन्मभूमि में जल्दी निर्णय की अपेक्षा कर रहे थे. साथ ही उन्होंने कहा ‘देर से आया न्याय, न्याय नहीं होता’. अगर फैसला समय पर आता है तो इसका स्वागत होगा. लेकिन अगर इसमें देरी होती है तो वो अन्याय के बराबर ही होगा.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बारे हिंदूवादी संगठनों द्वारा नरेंद्र मोदी सरकार से इस अध्यादेश के रास्ते पूरा करने की मांग ने जोर पकड़ लिया है. उधर आरएसएस ने कहा है कि मंदिर ‘तुरंत बनाया जाना चाहिए’ और केंद्र ‘बाधाओं को दूर करने के लिए कानून लाए’. वीएचपी ने कहा कि ‘मंदिर का इंतजार जन्म जन्मांतर तक का नहीं हो सकता.’

सीएम ने लोगों से धैर्य बनाए रखने और सकारात्मक प्रयासों में हाथ बढ़ाने का आग्रह किया. साथ ही मुख्यमंत्री ने कहा, ‘हम सभी साधु संतों का सम्मान करते हैं और उनकी चिंताओं का सम्मान करते हैं. इस संक्रमण के समय में, पवित्र पुरुषों को देश में शांति और सद्भाव को मजबूत करने के सकारात्मक प्रयासों को बढ़ावा देना चाहिए.’

तय कीजिये कि लम्बित मुकदमो के लिये जिम्मेदार कौन

दिनेश पाठक अधिवक्ता, राजस्थान उच्च न्यायालय, जयपुर। विधि प्रमुख विश्व हिन्दु परिषद

कल सुप्रीम कोर्ट ने देश के सामने साबित कर दिया कि न्यायलयो मे लम्बित केसों के लिये देश मुख्य न्यायधीश चाहे वो कोई भी हो सिर्फ भाषण देता है या ज्ञान बांटता है या वकीलो को जिम्मेदार ठहराता या सरकार को जबकि असली जिम्मेदार स्वयं न्यायपालिका है क्योकि 150 साल पुराना केस जो सुप्रीम कोर्ट मे ही विगत आठ बर्षों से लम्बित है ,वो अर्जेंट नही लगा !

कल पूर्व निर्धारित तारीख राममन्दिर विवाद से सम्बन्धित थी जो स्वयं न्यायालय ने तय कर रखी थी कि इस मामले की सुनवाई नियमित रूप से 29 अक्टूबर से होगी जिसका विरोध कांग्रेस नेता और मुस्लिम पक्ष के वकील कपिल सिब्बल ने यह कहते हुआ किया कि राममन्दिर की सुनवाई 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले नही होनी चाहिये चूंकि कपिल सिब्बल ये जानता है कि इसका निर्णय किस पक्ष मे आने वाला है, क्योकि सारे सबूत राममन्दिर के पक्ष मे है और यदि निर्णय लोकसभा चुनाव से पहले आया तो पूरा फायदा बीजेपी को मिलेगा ! चुंकि तत्कालीन बेंच ने सिब्बल की मांग ठुकरा दी और 29 अक्टूबर से नियमित सुनवाई तय की !

जैसे ही 29 अक्टूबर को 150 साल पुराना केस न्यायालय के सामने सूचिबद्ध हुआ पहले तो तत्कालीन बेंच के सदस्यो को जो कि पूर्व मे सुनवाई कर रहे थे सुनवाई से अलग किया नयी बेंच का गठन किया और पल भर मे ही सिब्बल की मांग की ओर कदम बढाते हुये राममन्दिर केस को यह कहते हुये जनवरी तक सुनवाई टाल दी कि यह मामला अर्जेंट नही है ! जबकि राम लला के वकील वै्धनाथ और उत्तर प्रदेश सरकार के वकील और सोलिसीटर जनरल तुषार मेहता शीघ्र सुनवाई की गुहार लगाते रहे पर न्यायलय ने पूर्व मे सिब्बल द्वारा उठाई मांग की तरफ ध्यान दिया और जनवरी तक सुनवाई टाल दी ! अब पहले जनवरी मे यह तय होगा कि कौनसी बेंच इस केस की सुनवाई करे और कब करे तब तक लोकसभा चुनाव आ चुके होंगे और कपिल सिब्बल का एजेंडा पूरा हो चुका !

बिडम्बना यह है कि देशका हर मुख्यन्यायधीश शपथ लेते ही लम्बित मुकदमो के निपटारे के लिये प्रवचन देता है तो कभी सरकार को दोषी ठहराता है तो कभी वकील को कभी पिडित को लेकिन आज वकील भी तैयार थे मुवक्किल भी और सरकार भी लेकिन न्यायलय तैयार नही था आखिर क्यों ?

राममन्दिर का विषय देश के 100 करोड हिन्दुओं की आस्था का सवाल है देश के लोगो को उम्मीद थी कि न्यायलय हिन्दुओ की आस्था के प्रतीक राममन्दिर विवाद जो 150 साल से कोर्ट कचहरी मे अटका है अब तय हो जायेगा लेकिन न्यायलय ने पलक झपकते ही उनकी उम्मीदो को यह कहकर ‌चकनाचूरकर दिया कि यह मामला अर्जेंट नही है! क्या देश के 100 करोड लोगो की आस्था अर्जेंट नही है ? क्या 150 साल पुराना केस अर्जेंट नही है जो स्वयं सुप्रीम कोर्ट मे पिछले आठ बर्ष से लम्बित है अर्जेंट नही है? तो न्यायलय की नजर मे अर्जेंट सबरीमाला मन्दिर का केस था जिसमे याचिकाकर्ता भी वो थे जिनका भगवान अयप्पा मे कोई आस्था नही थी सिर्फ एक साजिश थी विधर्मी थे जिनका हिन्दू धर्म से कोई लेना देना नही था लेकिन सुप्रीम कोर्ट को मामला अर्जेंट लगा वही भगवान अयप्पा के वासतविक भक्त जब रिव्यू लगाने पहंचे तो उसी न्यायलय को अर्जेंट नही लगी और सुनवाई टाल दी!

दूसरी तरफ उसी राममन्दिर से सम्बन्धित विवाद मे बम विस्फोट के आरोप मे फांसी की सजा को रोकने के लिये न्यायलय को रात दो बजे खोलना अर्जेंट लगा वो भी एक आतंकवादी के लिये ? कुछ दिन अर्बन नक्सली के हाऊस अरेस्ट मे न्यायलय को इतना अरजेंट मामला लगा कि देश की आखे खुलने से पहले कोर्ट खुल गया !

पर देश के 100 करोड लोगो की आस्था से जुडा मामला अर्जेंट नही 150 साल पुराने केस की सुनवाई अर्जेंट नही
आज देश का हिन्दू समाज अपने को ठगा सा महसूस कर रहा है ! अब गेंद केन्द्र सरकार के पाले मे है अब सरकार को संसद मे कानून बनाकर देश के 100 करोड लोगो की आस्था कितनी अरजेंट है ये साबित करना है और संसद मे विधेयक लाकर सारे राजनितिक दलो का चेहरा बेनकाब करे कि कौनसा दल क्या राजनीति राममन्दिर के मुद्दे पर कर रहा है !