राहुल पर भरोसा करने वाले अब भी समझ लें “धोखा स्वभाव है इनका!” कैलाश विजयवर्गीय


कांग्रेस द्वारा राफेल के मुद्दे को बार-बार उठाया गया, जिसके जवाब में बीजेपी ने अब सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद उस पर पलटवार किया है


पिछले कुछ समय से एक बड़ा राजनीतिक मुद्दा बनी राफेल डील को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला दिया है. कोर्ट ने इस मामले में जांच की मांग वाली सारी याचिकाएं खारिज कर दी हैं. केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट के फैसले से बड़ी राहत मिली है. कांग्रेस द्वारा राफेल के मुद्दे को बार-बार उठाया गया, जिसके जवाब में बीजेपी ने अब सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद उस पर पलटवार किया है.

बीजेपी नेता कैलाश विजयवर्गीय ने कहा है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने झूठ फैलाया है, उसके लिए उन्हें माफी मांगनी चाहिए. उन्होंने ट्वीट कर कहा कि जिस राफेल डील के झूठ पर सवार होकर राहुल गांधी ने चुनाव प्रचार किया. सुप्रीम कोर्ट ने इस ढकोसले को सिरे से खारिज कर दिया है. अगर राफेल पर फैसला कुछ दिन पहले आया होता तो चुनाव परिणाम कुछ और ही होते. राहुल पर भरोसा करने वाले अब भी समझे ले, धोखा इनका स्वभाव है.


Kailash Vijayvargiya

@KailashOnline

जिस के झूठ पर सवार हो
राहुल गांधी ने पूरा चुनाव प्रचार किया
मा. ने इस ढकोसले को सिरे से खारिज कर दिया.. कुछ दिन पहले आया होता, तो चुनाव परिणाम कुछ और ही होते!

राहुल पर भरोसा करने वाले अब भी समझ लें
“धोखा स्वभाव है इनका!”


राफेल डील पर उठाए जा रहे सवालों पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस पर कोई संदेह नहीं है. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि राफेल डील की खरीद प्रक्रिया में कोई कमी नहीं है. साथ ही कोर्ट ने कहा कि कीमत देखना कोर्ट का काम नहीं है. कोर्ट के इस फैसले को कांग्रेस के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है. दरअसल कांग्रेस लगातार मोदी सरकार का घेराव करते हुए राफेल डील में भ्रष्टाचार होने का आरोप लगाती आई है.

सुप्रीम कोर्ट में अदालत की निगरानी में इस डील को लेकर जांच किए जाने की मांग वाली याचिकाएं दाखिल की गई थी. इसके पहले 14 नवंबर को हुई सुनवाई में इसपर फैसला सुरक्षित रख लिया गया था.

भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित किया जाना चाहिए था: मेघालय हाईकोर्ट


मेघालय हाईकोर्ट ने प्रधानमंत्री से अनुरोध किया है कि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी, ईसाई, खासी, जयंतिया और गारो लोगों को बिना किसी सवाल या दस्तावेजों के नागरिकता दिया जाए.


12-12-2018

शिलॉन्ग: मेघालय हाईकोर्ट ने प्रधानमंत्री, विधि मंत्री, गृह मंत्री और संसद से एक कानून लाने का अनुरोध किया है ताकि पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आने वाले हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध, पारसी, ईसाई, खासी, जयंतिया और गारो लोगों को बिना किसी सवाल या दस्तावेजों के नागरिकता मिले.
बार एंड बेंच की खबर के मुताबिक कोर्ट ने अपने फैसले में ये भी लिखा है कि विभाजन के समय भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित किया जाना चाहिए था लेकिन ये धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बना रहा.
जस्टिस एसआर सेन ने डोमिसाइल सर्टिफिकेट से मना किये जाने पर अमन राणा नाम के एक शख्स द्वारा दायर एक याचिका का निपटारा करते हुए 37 पृष्ठ का फैसला दिया. आदेश की प्रति मंगलवार को उपलब्ध हुई.
आदेश में कहा गया है कि तीनों पड़ोसी देशों में आज भी हिंदू, जैन, बौद्ध, ईसाई, पारसी, खासी, जयंतिया और गारो लोग प्रताड़ित होते हैं और उनके लिए कोई स्थान नहीं है. इन लोगों को किसी भी समय देश में आने दिया जाए और सरकार इनका पुनर्वास कर सकती है और नागरिक घोषित कर सकती है.
केंद्र के नागरिकता (संशोधन) विधेयक 2016 में अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान के हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई लोग छह साल रहने के बाद भारतीय नागरिकता के हकदार हैं, लेकिन अदालती आदेश में इस विधेयक का जिक्र नहीं किया गया है.
इस मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने भारत के इतिहास को तीन पैराग्राफ में समेटा है. जस्टिस एसआर सेन ने लिखा, ‘जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भारत दुनिया का सबसे बड़ा देश था और पाकिस्तान, बांग्लादेश तथा अफगानिस्तान का अस्तित्व नहीं था. ये सभी एक देश में थे और हिंदू सम्राज्य द्वारा शासित थे.’
कोर्ट ने आगे कहा, ‘इसके बाद मुगल भारत आए और भारत के कई हिस्सों पर कब्जा किया और देश में शासन करना शुरु किया. इस दौरान भारी संख्या में धर्म परिवर्तन कराए गए. इसके बाद अंग्रेज ईस्ट इंडिया कंपनी के नाम पर आए और देश में शासन करने लगे.’
न्यायालय ने आगे लिखा, ‘यह एक अविवादित तथ्य है कि विभाजन के समय लाखों की संख्या में हिंदू और सिख मारे गए, प्रताणित किए गए, रेप किया गया और उन्हें अपने पूर्वजों की संपत्ति छोड़ कर आना पड़ा.’
मेघालय हाईकोर्ट के जज एसआर सेन ने लिखा, ‘पाकिस्तान ने खुद को इस्लामिक देश घोषित किया था. चूंकि भारत का विभाजन धर्म के आधार पर हुआ था इसलिए भारत को हिंदू राष्ट्र घोषित किया जाना चाहिए था लेकिन इसने धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बनाए रखा.’
एसआर सेन ने मोदी सरकार में विश्वास जताते हुए कहा कि वे भारत को इस्लामिक राष्ट्र नहीं बनने देंगे. उन्होंने लिखा, ‘मैं ये स्पष्ट्र करता हूं कि किसी भी शख्स को भारत को इस्लामिक राष्ट्र बनाने की कोशिश नहीं करना चाहिए. मेरा विश्वास है कि केवल नरेंद्र मोदीजी की अगुवाई में यह सरकार इसकी गहराई को समझेगी और हमरी मुख्यमंत्री ममताजी राष्टहित में सहयोग करेंगी.’
जज ने मेघालय उच्च न्यायालय में केंद्र की सहायक सॉलिसीटर जनरल ए. पॉल को मंगलवार तक फैसले की प्रति प्रधानमंत्री, केंद्रीय गृह और विधि मंत्री को अवलोकन के लिए सौंपने और समुदायों के हितों की रक्षा के लिए कानून लाने को लेकर आवश्यक कदम उठाने को कहा है.

राहुल ने हाथ आया सुनहरी मौका गंवा दिया


यह देखने में काफी खराब लगता है कि नव निर्वाचित विधायकों का कहना है कि सीएम चुनने का फैसला ‘पार्टी हाई कमांन’ का होगा


बीजेपी शासित तीन राज्यों में कांग्रेस की शानदार जीत को करीब 36 घंटे हो गए हैं लेकिन मुख्यमंत्रियों के चयन में हो रही देरी की वजह से ऐसा लग रहा है जैसे पार्टी के युवा अध्यक्ष राहुल गांधी लोगों में अपनी दिलचस्पी को भुनाने में नाकाम साबित हो रहे हैं. राहुल के पास यह सबसे सही मौका था जब वह नरसिम्हा राव की तरह फैसला लेकर कांग्रेस की लोकतांत्रिक चमक को बढ़ा सकते थे.

राहुल गांधी भोपाल, जयपुर और रायपुर में इसपर जोर देकर आंतरिक पार्टी लोकतंत्र और वास्तविक विकेंद्रीकरण का प्रदर्शन कर सकते थे. 1993 में मध्यप्रदेश में पीवी नरसिम्हा राव ने भी यही किया था.

इस तरह के विचार अलोकतांत्रिक हैं

राव अपने दोस्त श्यामा चरण शुक्ला को उम्मीदवार बनाने के लिए काफी उत्सुक थे. लेकिन अर्जुन सिंह और कमलनाथ के सामने शुक्ला टिक नहीं पाए. राव ने पर्यवेक्षक सीताराम केसरी और गुलाम नबी आजाद से ‘स्थिति को समझते हुए योजना बनाने के लिए’ कहा और दिग्विजय को अगले दस सालों तक राज्य चलाने के लिए कहा.

लोगों ने अपनी इच्छा के प्रतिनिधियों को चुनकर मंशा साफ जाहिर कर दी है. इसलिए राज्य विधानसभा चुनावों और परिणाम के बाद ‘कार्यकर्ता’ की राय मांगना और यह कहना कि सीएम कौन बनेगा यह फैसला पार्टी हाई कमांन करेंगे, इस तरह के विचार अलोकतांत्रिक हैं.

ऐसी स्थिति में किसी तरह के ओपीनियन पोल या फिर सैंपल सर्वे की कोई जरूरत नहीं है. यदि टीम राहुल वास्तव में ऐसा करना चाहती थी तो कमल नाथ को मध्यप्रदेश, सचिन पायलट को राजस्थान और भूपेश बघेल छत्तीसगढ़ कांग्रेस इकाइयों की अध्यक्षता की जिम्मेदारी देने से पहले ही ऐप-संचालित सर्वे या फिर इस तरह का सर्वे कर लेना चाहिए था.

बड़ी संख्या में देशवासियों ने राहुल से उम्मीदें लगा रखी हैं और यह जानने के लिए उत्सुक हैं कि ‘न्यू इंडिया’ को लेकर राहुल का आईडिया क्या है. कृषि संकट से निपटने के लिए किसानों की कर्जमाफी एक अल्पकालिक समाधान हो सकता है लेकिन पूर्ण समाधान नहीं हो सकता है.

टीएस सिंहदेव को नई दिल्ली बुलाया गया

कृषि संकट से निपटने और उसे लाभदायक और टिकाऊ बनाने के लिए पूर्ण समाधान क्या हैं? नई नौकरियां, विनिवेश के मुद्दे या फिर प्राकृतिक संसाधनों को लीज पर रखना या बेचना इन सभी मुद्दों का समाधान निकालना होगा. एक मंच पर राहुल ने कहा था, ‘भारत अपने युवाओं को एक विजन नहीं दे सकता है अगर वह उन्हें नौकरी नहीं दे सकता है.’

लोकतांत्रिक मंच पर भोपाल, जयपुर और रायपुर को लेकर राहुल जो भी फैसला लेते हैं उसपर सभी की नजर होगी क्योंकि कांग्रेस अध्यक्ष पहले ही पार्टी के आंतरिक लोकतंत्र को प्रदर्शित करने का एक मौका खो चुके हैं.

यह देखने में काफी खराब लगता है कि नव निर्वाचित विधायकों का कहना है कि सीएम चुनने का फैसला ‘पार्टी हाई कमांन’ का होगा और सचिन पायलट, अशोक गहलोत, कमल नाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया, भूपेश बागेल, चरण दास महंत, तमराध्वज साहू और टीएस सिंहदेव को नई दिल्ली बुलाया गया है.

एक सवाल यह भी उठता है कि एके एंटनी और केसी वेणुगोपाल को भोपाल और जयपुर क्यों भेजा गया था. यह भी काफी परेशान करने वाली बात है कि गहलोत, जिन्हें हाल ही में पार्टी संगठन के प्रभारी एआईसीसी के महासचिव नियुक्त किया गया था, मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में हैं, जबकि उन्‍हें कुछ महीने पहले ही 2019 लोकसभा चुनावों के लिए मैक्रो स्तरीय प्रबंधन और रणनीति बनाने के लिए चुना गया था.

Modi’s Party Is Trounced in India’s ‘Semifinal’ Elections

Curtsy The New Yorks Time (By Jeffrey Gettleman, Kai Schultz and Suhasini Raj)


Is India’s prime minister, Narendra Modi, in trouble?

“This has been a very intriguing election,” said Seshadri Chari, a member of the B.J.P.’s national executive committee. “Modi is going to be personally worried.”


With his white beard and booming speeches (and supposedly 56-inch chest), Mr. Modi swept into power four years ago by promoting a populist brand of politics that mixed brawny Hindu nationalist views with lofty economic promises.

But on Tuesday, his party, the Bharatiya Janata Party, got walloped according to elections results just released from races held across five states.

The party, widely known by the initials B.J.P., suffered its worst defeat in recent years, losing more than 100 legislative seats, a result that shook the political establishment and left many wondering if Mr. Modi is in danger of losing next year’s national election.

The elections were held over the past several weeks, but results were not announced until Tuesday. Indian pundits described the races, held in the states of Rajasthan, Madhya Pradesh, Mizoram, Chhattisgarh and Telangana, as the “semifinals” of Indian politics. In just a few months, this country of 1.3 billion people who speak dozens of languages and live across an incredibly varied landscape from Himalayan mountaintops to tropical isles is set to hold national parliamentary elections.

It appears that Mr. Modi, who seemed so invincible not long ago, may be vulnerable as his brand loses its luster. At the same time, the leading opposition party, the Indian National Congress, once considered comatose, has suddenly woken up.

“The competition is neck to neck,” said Narendra Kumar, a political scientist at Jawaharlal Nehru University in New Delhi, the capital.

Indian voters are famous for passionately embracing a party or politician in one election and then enthusiastically voting them out in the next.

Among the complaints against Mr. Modi: He has ignored farmers. He cannot deliver on his party’s promises, including creating one million jobs a month, which economists said was impossible. The cost of living has sharply increased. And, not least, the B.J.P. has been criticized as too soft on violent Hindu extremists, including mobs that have lynched people for slaughtering cows, a revered animal in Hinduism.

“The common man does not support mob lynchings,” said Anil Verma, the head of the Association for Democratic Reforms, a nonpartisan organization in New Delhi.

Analysts say more Indians are growing upset with Mr. Modi’s party for not cracking down on the mobs, who often twist Hindu nationalist messages espoused by B.J.P. leaders and use them to justify violence. Vigilantes have killed dozens of people, most of them Muslim or lower caste Hindus, in the name of protecting cows.

“Indians by and large are not happy with the killing of their fellow men,” Mr. Kumar said. “That should be a message for the prime minister before the 2019 elections.”

The five states that just held elections — mostly rural and representing India’s heartland — are considered a bellwether. But experts have warned against extrapolating too much from these state races to national elections, noting that Mr. Modi still commands a loyal following in many quarters.

He is seen as a champion of a bigger, stronger India, whose economy is now sixth-largest in the world. (A decade ago, it was not even in the top 10.) He also remains a compelling orator, able to stir crowds with his booming baritone voice. Mr. Modi rose to power by embracing Hindu nationalist politics, and his base remains firmly behind him because they see him as a protector of their values.

Most experts say that if the next election were purely a popularity contest between Mr. Modi and Rahul Gandhi, the leader of the Indian National Congress and scion of a long political dynasty, it would be Mr. Modi’s to lose.

But Indian elections do not work that way. The country is a parliamentary system, and local issues affect the national bottom line. Political alliances are crucial, and this could be a problem for Mr. Modi.

Most analysts expect Mr. Modi’s party to lose many seats next year; the question is whether he will be able to win a thin majority in Parliament.

On Tuesday, the Indian National Congress was on track to pick up more than 100 of the 678 total seats across the five states.

And something even bigger may be happening. Across India, economic worries are becoming a pressing issue that Mr. Modi will have trouble sweeping away. He raised high expectations, promising to attract huge China-style export factories and create millions of high-paying jobs.

India’s annual growth rate has been over 7 percent, but Mr. Modi has not turned India into the next China. The amount of red tape in India remains stultifying, and many parts of the country’s manufacturing sector, such as textiles, have suffered widespread layoffs.

Millions of farmers are on the brink of crisis, facing rising fertilizer and electricity costs and lower prices for their produce. Experts say their distress is driven by too much competition, strict export rules and inadequate government purchases. One farmer who said he received less than the equivalent of $20 for 1,600 pounds of onions sent the money to Mr. Modi to make a point.

“Modi will definitely be hurt in the parliamentary elections next year — even more so if the opposition can sharpen the focus of the campaign to stress farm distress,” said Arati Jerath, a columnist who writes about politics for some of India’s biggest newspapers.

Other sources of discontent are a new tax system put in place under Mr. Modi and his decision in 2016 to suddenly replace most of the country’s currency, which was supposed to crack down on money laundering but led to severe cash shortages.

Even so, Tuesday’s election results were not all good news for the Indian National Congress. Once a powerful brand in the northeast, the party lost its majority in the last state it controlled in that region, Mizoram.

But the results in India’s agrarian, Hindi-speaking cow belt, where the B.J.P. has dominated or been highly competitive for the past decade and a half, must have been even more deflating to Mr. Modi and his team.

His party’s headquarters in New Delhi appeared deserted on Tuesday, while wild celebrations broke out at those of the Indian National Congress.

Even Mr. Modi’s usually super-confident allies admitted to being concerned.

“This has been a very intriguing election,” said Seshadri Chari, a member of the B.J.P.’s national executive committee. “Modi is going to be personally worried.”

जो वाड्रा हित कि बात करेगा वही राजस्थान पर राज करेगा

 


राजस्थान में ‘कौन बनेगा मुख्यमंत्री’ पर पेंच फंसा हुआ है।


राजस्थान में मुख्यमंत्री पद के 2 दावेदार हैं सचिन पाइलट और अशोक गहलोत दोनों ही का अपना अपना जनाधार और अपना अपना समर्थक दल है, वह दल अपने अपने कुनबे के ही पात्र को मुख्यमंत्री पद पर देखना चाहते हैं। कांग्रेस में मुख्य मंत्री पद पर कौन सुशोभित होगा यह विधायक दल से प्रमुख परिवार द्वारा कहलवा दिया जाएगा।

आज दोपहर ही से मुख्यमंत्री पद के लिए माथापच्ची हो रही है। कांग्रेस का मुख्य परिवार अपने अपने विचारों को आस में बाँट रहे हैं। सभी हैरान हो रहे हैं की सोनिया राहुल का आपस में विचार विमर्श करना तो ठीक और समझ में आने वाला है प्रतु प्रियंका वाडरा के आने के बाद सुगबुगाहट बढ़ गयी है। अब तो वहाँ उपसिथित लोग भी प्रियंका के आने का औचित्य समझने में लग गए हैं।

जहां राहुल गांधी सचिन पाइलट को राजस्थान का मुख्य मंत्री देखना चाहते हैं और वहीं दूसरी ओर सोनिया गांधी गहलोत को राजस्थान का मुख्य मंत्री पद देना चाहते हैं। प्रियंका का आगमन भी यही संदेश देता है कि श्रीमती रोबर्ट वाड्रा वहाँ अपने निजी स्वार्थ हेतु उपस्थित हुईं हैं।

असल में तीन राज्यों के चुनाव परिणाम के साथ ही आल कमान जागृत हो उठा था, कांग्रेस के सभी दिग्गज नेता हों या फिर साधारण कार्यकर्ता उन्हे आला कमान कि बात को ही ब्रहम वाक्य मानना होता है। यही परंपरा है ।

अब बात करें मुख्यमंत्री पद कि, तो गहलोत कांग्रेस के प्रथम परिवार के मुख्य मंत्री के रूप में पहली पसंद हैं राहुल को छोड़ कर। श्रीमति वाड्रा को यकीन है कि उनके परिवार पर छाए ईडी के बादल छांट सकते हैं। सनद रहे कि वाड्रा पर कई करोड़ के जमीनी घोटाले में फंसे हुए ईडी कि गिद्ध दृष्टि पद रही है। उसके बचाव का एक ही उपाय है कि अहमद पटेल गुट के व्यक्ति को ही मुख्य मंत्री पद सौंपा जाये।

मध्य प्रदेश में कमल खिला


राहुल गांधी ने ट्विटर पर कैप्शन लिखा है कि दो सबसे शक्तिशाली योद्धा धैर्य और समय हैं


कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने गुरुवार को कमलनाथ और ज्योतिरादित्य सिंधिया से मुलाकात के बाद एक ट्वीट किया है जो एमपी में सीएम पद के लिए चल रही चर्चा पर सबकुछ बयां कर रही है. इस तस्वीर के साथ उन्होंने कैप्शन लिखा है कि दो सबसे शक्तिशाली योद्धा धैर्य और समय हैं.

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक मध्यप्रदेश में कमलनाथ सीएम हो सकते हैं. हालांकि राजस्थान में अभी तक सीएम पद के लिए रेस चल रही है. अशोक गहलोत और सचिन पायलट के बीच सस्पेंस अब तक बरकरार है.

राहुल गांधी से मीटिंग के बाद कमलनाथ ने कहा, ‘मैं भोपाल जा रहा हूं. विधायकों के साथ बैठक के बाद सीएम का ऐलान होगा.’

वहीं ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कहा, ‘यह कोई दौड़ नहीं है. यह कुर्सी की बात नहीं है. हम मध्य प्रदेश के लोगों की सेवा के लिए हैं. मैं भोपाल जा रहा हूं और आज आपको फैसले की जानकारी मिल जाएगी.’

राजस्थान में सीएम पद के लिए चर्चाओं पर कांग्रेस नेता अशोक गहलोत ने कहा, ‘मैं समर्थकों से शांति बनाए रखने की अपील करता हूं. हमने बहुत मेहनत की और जो भी फैसला आएगा, हम उसे मानेंगे. राहुल जी सभी नेताओं से बात कर रहे हैं.’

दिग्विजय सिंह मध्य प्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष हो सकते हैं


चुनावी जीत के साथ ही जो राजनीतिक हालात बने हैं वे भी बयां कर रहे हैं कि कमलनाथ के साथ सिंह को भी समानांतर पावर के साथ देखा जा रहा है


अब इस बात के राजनीतिक कयास शुरू हो गए हैं कि मध्यप्रदेश में कांग्रेस के चाणक्य साबित हुए दिग्विजय सिंह क्या प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष बन सकते हैं. कमलनाथ के मुख्यमंत्री बनते ही ये पद खाली होगा. 2019 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए सिंह इस पद के लिए सबसे प्रबल दावेदार दिखाई दे रहे हैं.

पिछले तीन दिन का घटनाक्रम भी इस बात के साफ संकेत दे रहा है कि दिग्विजय सिंह किसी पद पर नहीं रहते हुए भी एक समानांतर पावर में आ गए हैं. भावी मुख्यमंत्री कमलनाथ के साथ उनका समन्वय और मध्यप्रदेश में दस साल मुख्यमंत्री रहने के कारण वो प्रशासनिक जमावट से लेकर कई मामलों में अहम रोल निभा रहे हैं.

टकराहट नहीं

राजस्थान में मुख्यमंत्री पद को लेकर जितनी टकराहट है वैसा माहौल मध्यप्रदेश में नहीं है. इसका एकमात्र कारण कमलनाथ और दिग्विजय सिंह का एक होना है. 90 से ज्यादा विधायक इन दोनों के समर्थक हैं.

कांग्रेस के स्टार कैंपेनर ज्योतिरादित्य सिंधिया इस दौड़ में पीछे रह गए हैं. कांग्रेस हलकों में चर्चा है कि कमलनाथ के मुख्यमंत्री बनते ही पहला फैसला प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष को लेकर करना होगा. मुख्यमंत्री रहते हुए वे एक साथ दो पद पर काबिज नहीं हो सकते.

2019 की चुनौती

चार महीने बाद ही लोकसभा का चुनाव है. जो कांग्रेस के लिए सबसे ज्यादा चुनौती वाला है. फिलहाल यहां की 29 में से 26 सीट बीजेपी के पास हैं. विधानसभा चुनाव का रिजल्ट बता रहा है कि कांग्रेस ने करीब 14 सीट को कवर कर लिया है.

2019 में भी कांग्रेस इतनी ताकत झोंकती है तो बीजेपी का किला ढहाना उसके लिए मुश्किल नहीं है. हालात बता रहे हैं कि ऐसे में कमलनाथ किसी रबर स्टेंप अध्यक्ष के साथ संगठन चलाने का जोख़िम नहीं ले सकते

रबर स्टेंप नहीं चल सकता

अरुण यादव, अजय सिंह, सुरेश पचौरी के नाम भी अध्यक्ष पद की दौड़ में हो सकते हैं. लेकिन इनकी संभावना कम नज़र आती है.

2019 के मद्देनजर कांग्रेस को ऐसे अध्यक्ष की ज़रूरत होगी जो सभी गुटों पर अपना प्रभाव और दमखम रखता हो. वहां दिग्विजय सिंह जैसे कद्दावर नेता का नाम ही सामने आ रहा है.

सिंह की राय खास

चुनावी जीत के साथ ही जो राजनीतिक हालात बने हैं वे भी बयां कर रहे हैं कि कमलनाथ के साथ सिंह को भी समानांतर पावर के साथ देखा जा रहा है. कई मुद्दों पर कमलनाथ स्वयं सिंह से राय लेने या मिलने के लिए कह रहे हैं.

खास तौर पर प्रशासनिक मामलों में सिंह की राय को महत्वपूर्ण माना जा रहा है. टीम कमलनाथ में कौन अधिकारी होंगे इसका फैसला सिंह की सहमति के साथ होता दिखाई दे रहा है.

प्रदेश से दूर रहे

कमलनाथ मध्यप्रदेश से सांसद रहे, केंद्र में मंत्री रहे लेकिन मध्यप्रदेश में उनकी इस तरह मौजूदगी या दखल कभी नहीं रहा. दिग्विजय सिंह का दस साल तक मुख्यमंत्री रहते हुए संपर्क और कई पुराने अधिकारियों के साथ उनके अनुभव को देखते हुए वे उनके साथ हर बात साझा कर रहे हैं.

कांग्रेस ने नहीं भाजपा को NOTA ने हराया


कांग्रेस ने नहीं भाजपा को नोटा ने हराया उपरोक्त तालिका इसका समर्थन करती है

यह सच है की आप सबको खुश नहीं रख सकते, पर किसे रखना है यह तो तय कर सकते हैं।


राजवीरेन्द्र वासिष्ठ

चुनाव निकल चुके हैं, 5 राज्य भाजपा मुक्त हो चुके हैं। हार की कारणों की खोज जारी है, पर्यवेक्षकों के दिमाग की दहि हो रही है, अभूत जल्दी ही समीक्षक अपनी अपनी राय ले कर आएंगे और हमें बड़े बड़े आंकड़ों से समझाएँगे की भाजपा क्यों और कैसे हारी।

सच्चाई हमारे सामने है भाजपा राहुल के बारे में कहती रही की ” पप्पू सेल्फ गोल करते हैं” बस इस मुगालते में भाजपा ने अपने कुछ लोगों को अनदेखा कर दिया, वही इसकी हार का कारण बने।

एक बात जो लोगों को हज़म नहीं होती वह है भाजपा का जुमला,” मामला न्यायालय में है” किसी भ्रष्टाचारी को सज़ा दिलवानी हो, किसी मंदिर की बात हो तो बस यह जुमला उनकी ज़ुबान पर चासनी की तरह चिपका रहता है।

पर जब बात सावर्णों की हो, समाज में फैले अभिशप्त क़ानूनों की हो और सर्वोच्च न्यायालय के किसी सवर्ण राहत के फैसले की हो तो अध्यादेश आ कर इन्हे दलित विरोधी होने से रोकता है।

भाजपा को भाजपाइयों ने ही हराया है।

यह सच है की आप सबको खुश नहीं रख सकते, पर किसे रखना है यह तो तय कर सकते हैं।

This is not Exit Poll of 2019 for BJP, history says so


Congress victories should not dishearten BJP; history shows 2019 polls likely to be a different ball game


Way back in March 1998, the National Democratic Alliance government under the leadership of Atal Bihari Vajpayee was sworn in at the Centre. The BJP won 182 Lok Sabha seats, a tremendous achievement (by then standards). The Congress was down to 141.

By end of that year, Assembly elections were held in Delhi, Rajasthan and Madhya Pradesh. The BJP was routed. The Congress scored massive victories, snatching Delhi and Rajasthan from the BJP and Djivijaya Singh triumphantly returned to power for a second term in undivided Madhya Pradesh.

Four months later, in April 1999, the Vajpayee government fell by one vote. Fresh parliamentary elections followed. The BJP under Vajpayee was back in power at the Centre, winning all seven seats from Delhi and performing well in the Hindi heartland.

Turn to December 2013, the BJP, the prime contender for power in New Delhi, lost the Assembly election to a newly founded Aam Aadmi Party, but won all seven Lok Sabha seats in April-May 2014 parliamentary elections.

Beyond a doubt, 11 December, 2018, will go down as an important date in the Indian political calendar: the day the Congress snatched power from the BJP in three Hindi heartland states. It is a big moment for the Congress — and an undoubtedly joyous one — and its president Rahul Gandhi, who tasted success after a string of failures.

Consider the results of Madhya Pradesh, Rajasthan, Chhattisgarh and Telangana and the percentage of votes major parties received:

The Madhya Pradesh House is basically hung, with the Congress emerging as the single largest party with 114 seats, but falling two short of the majority mark. The BJP is a close second with 109 seats. Ironically, the BJP secured more votes than the Congress: the saffron party received 15,642,980 votes and a 41 percent vote share while the Congress got 15,595,153 votes with 40.9 percent vote share. After being in power for three terms, it was a commendable performance by Shivraj Singh Chouhan, BJP workers and leaders.

Rajasthan again is a Hung House, Congress as the single largest party with 99 seats with two short of majority. The BJP won 73 seats. The difference between Congress and the BJP is only .50 percent. The Congress got 39.3 percent and BJP received 38.8 percent of vote. In Chhattisgarh, Congress won in a landslide.

Thus, for the BJP, results are not as bad as they looked at first glance. Madhya Pradesh has 25 Lok Sabha seats, Rajasthan 25, and Chhattisgarh 11.

Another important state which went to the polls in South India was Telangana. Some opinion polls predicted that Congress-TDP-Left coalition would give a tough fight to ruling TRS and may derail Chief Minister K Chandrashekar Rao, but Tuesday’s results showed a remarkable victory for KCR-led TRS. The party won 88 of 119 seats that went to the polls. Its poll percentage was 46.9, way ahead of Congress’s 28.4 percent. Chandrababu Naidu’s TDP only won two seats.

There is speculation, informed or otherwise, of a tacit understanding between BJP and TRS for a post-poll alliance. The Telangana Assembly result puts the new friendship between Rahul and Chandrababu under stress. It remains to be seen whether they go to parliamentary polls as allies or separate in fewer than six months.

प्रधान मंत्री मोदी ने कांग्रेस को दो जीत की बधाई


पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों के नतीजे लगभग साफ हैं. छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस सरकार बनाएगी


पांच राज्यों में विधानसभा चुनावों के नतीजें लगभग आ चुके हैं. मध्यप्रदेश के अलावा बाकी चारो राज्यों में तस्वीर साफ हो चुकी है. इसमें से छत्तीसगढ़ और राजस्थान में कांग्रेस सरकार बनाने वाली है.

जनता के इस आदेश को स्वीकार करते हुए पीएम मोदी ने आभार व्यक्त किया है. पीएम ने कहा- ‘हम जनता के आदेश को स्वीकार करते हैं. मैं छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और राजस्थान की जनता को धन्यवाद देना चाहता हूं कि उन्होंने हमें राज्य की सेवा का अवसर दिया. इन राज्यों में बीजेपी सरकार ने पूरे जोश से लोगों के विकास के लिए काम किया है.’


Narendra Modi

@narendramodi

I thank the people of Chhattisgarh, Madhya Pradesh and Rajasthan for giving us the opportunity to serve these states. The BJP Governments in these states worked tirelessly for the welfare of the people.


इसके साथ ही प्रधानमंत्री ने जीत के लिए कांग्रेस और के चंद्रशेखर राव को भी बधाई दी. पीएम ने ट्वीट किया- ‘कांग्रेस को जीत के लिए बधाई. केसीआर गारु को तेलंगाना में शानदार जीत के लिए बधाई और मिजो नेशनल फ्रंट को भी मिजोरम में जीत के लिए बधाई.’


Narendra Modi

@narendramodi

Congratulations to KCR Garu for the thumping win in Telangana and to the Mizo National Front (MNF) for their impressive victory in Mizoram.