बंगला नम्बर 4, कुछ तो रहा होगा

सारिका तिवारी

आखिर अखिलेश यादव ने सर्वोच्च नयायालय की फटकार के बाद  बंगला नम्बर 4 खाली कर ही दिया. यह बात अलग है कि अगले ही दिन मिडिया ने उनके उजड़े चमन की तस्वीर सर – ए – आम कर दी. अपने कार्यकाल के अंतिम दिनों में अखिल्लेश ने इस बंगले की रूपरेखा बदलने के लिए लगभग 50 करोड़ रूपये खर्च किये थे, पर मोहभंग होते हिब्न्गले को इस तरह से उजाड़ने की एक प्रदेश के रहे मुख्यमंत्री और व्यस्क मानसिकता के मालिक से उम्मीद नहीं थी.

कभी ऐसा दीखता था बंगला नम्बर 4 

एसी, कूलर, टीवी,  मंहगे नलके, साज़-ओ-सामान तक तो ठीक था पर फर्श उखाड़ने दीवारें तोड़ने की नौबत क्यों पड़ी. चलो मान लिया कि टाइल और ईंटें मन पसंद थीं ले गए, पर साइकिल ट्रैक उखाड़ने के पीछे का मनोविज्ञान यह तो कतई समझ से बाहर है. जिसके बाद अब राज्य संपत्ति विभाग का कहना है कि वो अन्य पूर्व मुख्यमंत्रियों के खाली बंगलों में हुए नुक़सान की भी जांच करने वाला है और इसके लिए सूची बना रहा है.

हालांकि शुरू में अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी के लोग ये कह रहे थे कि वो सिर्फ़ अपना ही सामान ले गए हैं लेकिन अब पार्टी तोड़-फोड़ और सामान ग़ायब होने के लिए राज्य सरकार को दोषी ठहरा रही है.

सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर अखिलेश यादव ने दो जून को यह बंगला खाली कर दिया था. बंगले में टूट-फूट का मामला सामने आने के बाद अब राज्य संपत्ति विभाग अब अन्य पूर्व मुख्यमंत्रियों के खाली बंगलों भी हुए नुक़सान की सूची बना रहा है.

हालांकि बताया जा रहा है कि अन्य बंगलों में कुछ सामान ज़रूर इधर-उधर हुए हैं लेकिन इस क़दर तोड़-फोड़ नहीं हुई है जैसी कि अखिलेश यादव के बंगले में हुई है.

राज्य संपत्ति विभाग के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि इन बंगलों के सामान की सूची बनानी शुरू कर दी गई है और इनका रिकॉर्ड से मिलान कराया जाएगा. किसी भी किस्म की गड़बड़ी मिलने पर आवंटियों को नोटिस जारी किया जाएगा.

जिन पूर्व मुख्यमंत्रियों ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद बंगले खाली किए थे उनमें मुलायम सिंह यादव, कल्याण सिंह, राजनाथ सिंह और मायावती शामिल हैं. इन सभी ने आवास खाली करने के बाद चाबी राज्य संपत्ति विभाग को सौंप दी है.

पूर्व मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी का सरकारी आवास अभी खाली नहीं हुआ है.

समाजवादी पार्टी के नेता सुनील साजन कहते हैं, “अखिलेश यादव की छवि को ख़राब करने के लिए बीजेपी षडयंत्र कर रही है. जब चाबी पहले ही सौंप दी गई थी तो एक हफ़्ते बाद मीडिया को क्यों दिखाया गया?”

“मीडिया को दिखाने के लिए राज्य संपत्ति विभाग के अधिकारी नहीं बल्कि मुख्यमंत्री के ओएसडी लेकर आए. इसी से समझा जा सकता है कि सरकार की नीयत क्या थी.”

सुनील साजन इसे फूलपुर, गोरखपुर, कैराना और नूरपुर के उपचुनाव से जोड़ते हैं और कहते हैं कि बीजेपी हताशा में ऐसा कर रही है.

समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता सुनील सिंह यादव ने कहा है कि “अखिलेश जी की छवि को धूमिल करने के उद्देश्य से भाजपा व प्रशासन के लोगों की ये एक घटिया चाल है.”

ख़ुद अखिलेश यादव ने भी इन सबके लिए राज्य संपत्ति विभाग के अधिकारियों पर निशाना साधा है. उन्होंने नाम तो नहीं लिया लेकिन इस तरह से आरोप लगाया जैसे वो जानते हों कि राज्य संपत्ति विभाग का कौन सा अधिकारी ये सब कर रहा है.

वहीं बीजेपी ने सरकारी मकान में की गई इस तरह की तोड़-फ़ोड़ पर चिंता जताई है. पार्टी प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी का कहना है कि ऐसा अखिलेश यादव ने सिर्फ़ इसलिए किया ताकि लोग ये न जान सकें कि वो सरकारी पैसे से कितनी ऐशो-आराम की ज़िंदगी जीते थे.

राकेश त्रिपाठी कहते हैं, “अखिलेश यादव जानते थे कि उन्हें दोबारा मुख्यमंत्री नहीं बनना है इसलिए पहले ही करोड़ों रुपये ख़र्च करके अपने लिए सरकारी बंगला आवंटित करा लिया. अब, जब सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद उन्हें बंगला छोड़ना पड़ रहा है तो लोग जान न जाएं कि वो इतनी शानो-शौकत से रहते थे, इसलिए उसे तहस-नहस करा दिया.”

लखनऊ के विक्रमादित्य मार्ग स्थित चार नंबर का सरकारी बंगला अखिलेश यादव को बतौर मुख्यमंत्री आवंटित किया गया था. इस बंगले को अखिलेश यादव ने अपने मुख्यमंत्री रहते ही आवंटित करा लिया था और बताया जाता है कि इसके सौंदर्यीकरण पर क़रीब चालीस करोड़ रुपये ख़र्च किए गए थे.

लेकिन पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने पूर्व मुख्यमंत्रियों को बंगले आवंटित करने को ग़ैरक़ानूनी क़रार दिया तो उन्हें ये बंगला खाली करना पड़ा.

हालांकि पहले अखिलेश यादव ने सुप्रीम कोर्ट से इसके लिए दो साल का समय भी मांगा था लेकिन जब समय नहीं मिला तो उन्हें खाली करना पड़ा.

जानकारों का कहना है कि क़ीमती सामान उठा ले जाने की बात तो समझ में आती है लेकिन जिस बंगले को सजाने में करोड़ों रुपये ख़र्च हुए हों, उसे कोई खंडहर बनाकर भला क्यों जाएगा.

बंगले के भीतर महंगी इटालियन टाइल्स लगी थीं जो उखड़ी हुई हैं, एसी, नल और नल की टूटियां तक ग़ायब हैं. तोड़-फोड़ सिर्फ़ बंगले के अंदर ही नहीं की गई है बल्कि बाहर भी दिखाई पड़ रही है.

बंगले की इमारत के बाहर बने साइकिल ट्रैक की पूरी फर्श टूटी पड़ी मिली और हमेशा हरा-भरा रहने वाले बगीचे से कुर्सियां और बेंच नदारद थीं.

इसके अलावा बैडमिंटन कोर्ट की फर्श, दीवारें, नेट और टाइल्स भी उखाड़ दिए गए हैं. पूरे बंगले में जो सबसे ज्यादा सुरक्षित बचा है वो है मंदिर. संगमरमर के बने इस मंदिर को किसी भी तरह का नुकसान नहीं पहुंचाया गया है.

बहरहाल, इस मामले में अभी राजनीतिक बयानबाज़ी जारी है और सोशल मीडिया में बंगले की दुर्दशा पर अफ़सोस और ग़ुस्सा भी जताया जा रहा है.

राज्य संपत्ति विभाग की ओर से अभी कोई आधिकारिक बयान तो नहीं आया है लेकिन बताया जा रहा है कि राज्य संपत्ति विभाग नुकसान का आकलन करके उसकी भरपाई का नोटिस भेजने की तैयारी में है.

कुछ तो पर्दादारी है.

5 states are not Supporting PMMVY

The Union government’s conditional cash transfer scheme for pregnant and lactating mothers is yet to find takers from states that account for more than a fifth of the total beneficiaries.

According to officials from the Ministry of Women and Child Development, in the last one year since its rollout, the Centre has disbursed Rs 673 crore to 23.6 lakh beneficiaries under the Pradhan Mantri Matritva Vandana Yojana (PMMVY). However, Tamil Nadu, Telangana, Odisha, West Bengal, and Assam have not taken the benefit of the funds from the central scheme, said officials.

Many of these states have refused the money as they have their own state schemes that offer higher sums and have a more universal coverage.

Union government officials state that the non-cooperation of these states could result in the Centre being held legally accountable for not covering all states as required of it under National Food Security Act (NFSA), 2013. “Some of these states are not doing their job since they have their own schemes which are very CM- driven or are staying out for political reasons. These states together account for 23 per cent of beneficiaries. After much convincing, Tamil Nadu and Telangana have agreed to come on board by June-end,” said the official, adding that these states might use the central funds in addition to their own funds disbursed under the state schemes.

Prime Minister Narendra Modi announced in December 2016 that all pregnant and lactating women would be given Rs 6000 under the scheme.

As against this, several states that have had their own versions of the scheme pay much more and cover two live births. Odisha government’s conditional cash transfer maternity benefit scheme Mamata covers two live births. Tamil Nadu’s pre-existing Muthulakshmi Reddy Maternity Assistance Scheme already pays Rs 12,000, double the amount paid by the Centre, covers two live births and has been proven to have had a positive effect on reducing the maternal and infant mortality ratio. The amount is likely to be enhanced to Rs 18000 with an infusion of Rs 6000 per beneficiary from the central scheme.

“किम – ट्रम्प” बर्फ पिघल रही है

अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप और उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन के बीच सिंगापुर में ऐतिहासिक मुलाक़ात समाप्त हो गई है. मुलाक़ात समाप्त होने के बाद किम ने ट्रंप से अंग्रेजी में कहा, ”नाइस टू मीट यू , मिस्टर प्रेज़ीडेंट”, जिस पर ट्रम्प ने कहा,” आईटी’स माय ऑनर, वे विल हैव टेरेफिक रिलेशनशिप, आई हैव नो डोयुट”

सिंगापुर के सैंटोसा द्वीप में स्थित कैपेला होटल में हुई यह मुलाक़ात करीब 50 मिनट तक चली. अब दोनों ही नेता अपने साथ आए वरिष्ठ सलाहकार और सहयोगियों के दल के साथ बैठक कर रहे हैं.

अमरीका की तरफ से इस बैठक में राष्ट्रपति ट्रंप के साथ विदेश मंत्री माइक पोम्पियो, व्हाइट हाउस के चीफ़ ऑफ स्टाफ जॉन कैली और सुरक्षा सलाहकार जॉन बॉल्टन बैठे हुए दिखाई दे रहे हैं.

वहीं दूसरी तरफ उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग उन के साथ उनके सबसे करीबी समझे जाने वाले किम योंग चोल मौजूद हैं, इसके अलावा विदेश मंत्री री योंग हो और पूर्व विदेश मंत्री री सु योंग मौजूद हैं.

किम और ट्रंप के बीच हुई फ़ेस-टू-फ़ेस यानी आमने-सामने की मुलाक़ात होटल की लाइब्रेरी में हुई.

इससे पहले दोनों नेताओं ने एक छोटी सी प्रेस कॉन्फ्रेंस की.

इस दौरान डोनल्ड ट्रंप ने कहा, ”मैं बहुत ही अच्छा महसूस कर रहा हूं. हमारे बीच शानदार बातचीत होने वाली है और मुझे लगता है कि यह मुलाकात ज़बरदस्त रूप से कामयाब रहेगी. यह मेरे लिए बहुत ही सम्मानजनक है और मुझे इसमें कोई शक़ नहीं कि हमारे बीच बेहतरीन संबंध स्थापित होंगे.”

वहीं किम जोंग उन ने कहा, ”यहां तक पहुंचना आसान नहीं था, हमारा इतिहास…और हमारे पूर्वाग्रह इस दिशा में आगे बढ़ने के लिए रोढ़े बने हुए थे. लेकिन हम उन सभी को पार कर आज यहां मौजूद हैं.”

किम जोंग-उन से मुलाक़ात के ठीक पहले अमरीकी राष्ट्रपति ट्रंप ने एक ट्वीट किया, जिसमें इस बैठक को लेकर ख़ुद ट्रंप की आशंकाओं की झलक मिल रही थी. ट्रंप ने लिखा कि स्टाफ़ के सदस्यों और प्रतिनिधियों के बीच सबकुछ बहुत अच्छा रहा लेकिन ये बहुत मायने नहीं रखता. बहुत जल्द ये पता चल जाएगा कि इस मुलाक़ात में कोई असल समझौता हो पाता है या नहीं.

आशंकाएं अपनी जगह हैं लेकिन उम्मीदें भी कम नहीं हैं. दुनिया में बहुत लोग ये चाहते हैं कि 18 महीने पहले तक एक दूसरे को हमले की धमकी दे रहे देश, साथ मिलकर शांति स्थापित करने की ओर बढ़े. इसीलिए कल जब किम जोंग उन सिंगापुर घूम रहे थे तो वहां लोगों ने उन्हें देखकर ज़बरदस्त उत्साह दिखाया.

किम ने भी सिंगापुर वासियों को निराश नहीं किया और मुस्कुराकर, हाथ हिलाकर उनका अभिवादन किया.

अमरीकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप इस मुलाक़ात को शांति कायम करने का “एक और मौका” मान रहे हैं वहीं दुनिया से अलग-थलग रहने वाले उत्तर कोरिया के लिए यह दुनिया से जुड़ने का एक सुनहरा मौक़ा है.

इस मुलाक़ात में परमाणु कार्यक्रमों पर बात होनी तय है. अमरीका को उम्मीद है कि इससे उस प्रक्रिया को शुरू करने में मदद मिलेगी जिसके नतीजे में उत्तर कोरिया परमाणु हथियारों का अपना कार्यक्रम बंद कर देगा.

वहीं उत्तर कोरिया का कहना है कि वह परमाणु कार्यक्रम बंद करने को तो तैयार है लेकिन ये सब कैसे होगा, ये अभी तक स्पष्ट नहीं है. इसके साथ ही ये भी स्पष्ट नहीं है कि उत्तर कोरिया ऐसा करने के ऐवज़ में क्या मांग रखेगा.

संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेश ने दोनों नेताओं की मुलाक़ात को एक सार्थक पहल बताते हुए कहा कि दोनों ही नेता पिछले साल उपजे तनाव को दूर करने के लिए आगे बढ़ रहे हैं. दोनों का ही मकसद शांति स्थापित करना होना चाहिए. जैसा कि मैं पिछले महीने ही दोनों नेताओं को ख़त लिखकर बोल चुका हूं कि यह रास्ता आपसी सहयोग, त्याग और एक उद्देश्य की मांग करता है. ज़ाहिर है इसमें कई तरह के उतार-चढ़ाव होंगे, असहमतियां होंगी और कठिन समझौते होंगे.

अमरीकी विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने दोनों नेताओं की इस मुलाक़ात को संभावनाओं से भरा हुआ बताया है.

पॉम्पियो ने कहा कि राष्ट्रपति ट्रंप इस मुलाक़ात के लिए पूरी तरह से तैयार हैं. हम चाहते हैं कि कह होने वाली मुलाक़ात का सार्थक परिणाम सामने आए जो दोनों देशों के हित में हो. यह बिल्कुल नई तरह की कोशिश है.

किम के संदर्भ में जानकारों का कहना है कि अब वो अपना ध्यान देश की अर्थव्यवस्था पर लगा रहे हैं और चाहते हैं कि उनके देश पर लगाए गए प्रतिबंध हटाए जाएं. उत्तर कोरिया में अंतरराष्ट्रीय निवेश हो और ये मुलाक़ात इस लिहाज़ से भी काफी अहम है. सबसे अहम सवाल यही कि क्या यह बातचीत उस तनाव को कम करने में कामयाब होगी जो उत्तर कोरिया के मिसाइल परीक्षणों और परमाणु कार्यक्रम से पनपा था और जिसने एक समय समूची दुनिया को अपनी ज़द में ले लिया था.

केजरीवाल …! प्रेसेंट सर

आम आदमी चाहे तो बड़े बड़ों को घुटने टेकने पर मजबूर कर सकता है. किसी को फर्श से अर्श तो किसी को अर्श से फर्श तक पहुंचा सकता है. उसकी ताकत का अंदाजा लगाना हो तो इसे कपिल मिश्रा के जरिए समझा जा सकता है, जिन्होंने सही मायने में आम आदमी की ताकत का अहसास मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को करा दिया है. अरविंद केजरीवाल दिल्ली विधानसभा में उपस्थिति देने को मजबूर हो गए. ऐसा उन्होंने तब किया जब कपिल मिश्रा ने सोमवार को हाइकोर्ट में उनके खिलाफ एक जनहित याचिका दाखिल की.

कपिल मिश्रा ने जनहित याचिका दायर करते हुए ये मांग की कि मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को विधानसभा के सभी सत्र में उपस्थित रहने का निर्देश दिया जाए. साथ ही विधायकों के लिए 75 प्रतिशत उपस्थिति को अनिवार्य बनाया जाए. काम नहीं तो वेतन नहीं का फॉर्मूला विधायक, मंत्री और मुख्यमंत्री पर लागू किया जाए. अगर 50 फीसदी से कम उपस्थिति हो तो वेतन काटा जाए.

दिल्ली हाइकोर्ट में दाखिल इस जनहित याचिका पर मंगलवार को सुनवाई होनी है. मगर, इससे पहले कपिल मिश्रा ने सार्वजनिक तौर पर जो बातें कहीं उसने लोगों की आंखें खोल दी हैं.

आम आदमी पार्टी के बागी विधायक कपिल मिश्रा पत्रकारों से बात करते हुए कहते हैं, ‘दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने के लिए बुलाए गए विशेष सत्र में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल एक दिन भी नहीं आए. सीलिंग पर चर्चा के लिए विशेष सत्र हुआ, जिसमें चार में सिर्फ एक दिन मुख्यमंत्री केजरीवाल उपस्थित रहे. बजट सत्र 16 दिन चला जिसमें मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल केवल तीन दिन ही उपस्थित रह सके.’

उन्होंने आगे कहा, ‘तीन साल में प्रश्न काल के दौरान एक दिन भी मुख्यमंत्री उपस्थित नहीं रहे. मुख्यमंत्री के तौर पर अरविंद केजरीवाल ने आज तक एक सवाल का भी जवाब सदन में नहीं दिया. पिछले एक साल के दौरान सदन की कुल 27 बैठकों में केजरीवाल ने सिर्फ 5 बैठकों में शिरकत की है.’

कपिल मिश्रा ने वाकई ये चौंकाने वाले आंकड़े सामने रखें हैं. ये न सिर्फ लोकतंत्र का मजाक उड़ा रहे हैं बल्कि आंकड़े बता रहे हैं कि किसी भी सदन में किसी पार्टी को इतना बहुमत नहीं दिया जाए कि उसके लिए सदन ही बेमतलब हो जाए. मुख्यमंत्री सदन में आएं, न आएं या फिर प्रश्नकाल में मौजूद रहें या न रहें इस पर आपत्ति करने वाला ही कोई न रह जाए. कपिल मिश्रा की मानें तो दिल्ली विधानसभा में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की उपस्थिति 10 प्रतिशत से भी कम रही है.

सवाल ये है कि आम आदमी पार्टी के नेताओं को कपिल मिश्रा के सवाल क्यों नागवार लग रहे हैं? क्या आम आदमी पार्टी के नेता जो आंदोलन से पैदा होने का और लोकतांत्रिक होने का दावा करते हैं उन्हें ये मुद्दे अलोकतांत्रिक लगते हैं? क्या उन्हें अपनी सरकार के भीतर, अपनी पार्टी के भीतर लोकतंत्र को जिंदा रखने वाली चिंता को उठाने या जताने का अधिकार नहीं है? या आम से खास बने पार्टी नेताओं की आवाज सत्ता सुख में कहीं दब गई हैं.

कपिल मिश्रा के जनहित याचिका दायर करने की तारीख 11 जून रही. इससे पहले उन्होंने सारे सवालों को ट्वीट और मीडिया के माध्यम से देश के सामने रख दिया था. अदालत चाहे इस पर जो फैसला सुनाए लेकिन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को इन सवालों की अहमियत समझ में आ गई है. वे 11 जून को सदन में पहुंच गए.

ऐसा कर के कपिल मिश्रा ने सूचना के महत्व को स्थापित किया है, सूचना के इस्तेमाल का रास्ता दिखाया है, आम आदमी की अहमियत को नए सिरे से स्थापित किया है. कहने की जरूरत नहीं कि आम आदमी के प्रतिनिधित्व का दावा करने वाली पार्टी के मुंह पर उन्होंने तथ्यों का उल्टा तमाचा जड़ा है.

ST Students May Not Get Admission Got Aided MBBS College

CHENNAI:

NOT even one student from Scheduled Tribe (ST) communities who studied at government or government-aided schools in the State is likely to get an MBBS seat this year. Among Scheduled Caste (SC) communities, just nine students from government and government-aided schools seem to have a chance to get an MBBS seat, either in a government college or in government-quota seats in private colleges.

The analysis has been made with data Express obtained from sources in the School Education Department and by considering 2017 cut-off marks. In 2017, five students from government schools could secure MBBS seats. Government schools cater mainly to students in rural, financially and socially backward families. The main reason attributed is lack of access to resources to prepare for the National Eligibility-cum-Entrance Test (NEET), which is largely based on Central Board of Secondary Education (CBSE) syllabus. Specialised coaching, crucial to prepare for any competitive exam, is also beyond the geographical and economic reach of most students in rural areas, say educationists.

Data released by the State shows 1,344 students from government and government-aided schools qualified by scoring more than the minimum eligible marks. But only 10 scored over 300 and only 42 scored over 200, reliable School Education department sources said. Among the 42 who scored above 200, nine belong to SC communities. In 2017 medical admissions, the cut-off mark in SC category was 210. So, these nine students may stand a chance to get a seat in either government colleges or government quota seats in private colleges. However, given that most of them hail from poor families, affordability of private college fees may be a barried. In the ST category also, last year’s cut-off was 210 marks.

Not a single student from ST communities who studied in a government or government-aided school scored over 200.Overall caste-wise data on NEET-qualified students in TN could not be accessed as officials said they did not prepare such data. But, CBSE data paints a similar picture nation-wide.

Mehrunisa Ahmed (name changed) is not very different from Anitha or Pradeepa – the two Dalit students from villages of Tamil Nadu who committed suicide after not getting a medical seat since the introduction of  National Eligibility-cum-Entrance Test (NEET).

All three are medical aspirants who are considered meritorious by their schools, but hail from poor families from marginalised communities. Mehrunisa was selected to be the cream of students from government schools and sent for a free month-long residential coaching before she attempted NEET. This was her only formal training for the exam.

Mehrunisa, finds herself in the cross-roads, just like how Pradeepa was last year. She scored 1,128 in her Class 12 State Board exam, and 175 in NEET, which puts her eligible for an MBBS seat. But with this marks she can get a management quota seat in a private college. “But my parents will never be able to pay the fees,” she rues. She has decided to take a gap of one year and attempt NEET again in 2019.
K Keerthana, the Tamil Nadu topper in NEET 2018, scored an All India Rank of 12, the highest for a student from Tamil Nadu till now. However, she comes from a socio-economic background that has given her a huge advantage when compared with her contemporaries like Mehrunisa in government schools.

Keerthana’s parents could easily afford her a leading CBSE school in the heart of Chennai and special coaching classes since she was in Class IX. “My coaching centre did all the planning, I just followed the schedule,” she told Express. In JIPMER entrance too, she secured 5th rank. Even before NEET was introduced, students who went to private schools had an advantage in securing MBBS seats. But the numbers suggests that NEET is making an MBBS seat almost at unreachable levels for students from rural areas.

For example, in 2016 (the last year when admissions were made using Class XII board exam marks), 30 students from government schools could get a seat in government medical colleges. This is besides those who may get seats in government quota in private colleges. But in 2017, when the admissions were made based on NEET score, just two students from government schools could get a seat in government medical colleges.But this did not mean that academic excellence was overlooked when the admissions were made based on Class XII board exam marks. To get into any top government medical college, students had to meet the rough cut-off of at least 198 out of 200. Even students from marginalised communities will have to score over 98 per cent marks in Maths and Science subjects to secure a government seat.

“I scored 198 in biology, 199 in physics and centum in chemistry. I couldn’t get into any government college in Chennai, but I found a seat in Tiruchy Government Medical College,” said Naveen Kumaresan, a third-year medical student who was from the last batch of students who used board exam scores to get into medical courses.

Naveen’s teachers saw a promising student in him when he scored 470 in Standard X State Board exam. He claimed that his school in Dharmapuri even funded half his higher secondary education, which came much to the relief of his family. His father is a cable operator and his mother does not work.“About 10 students from my school got into various medical colleges across the State. We were ambitious and we knew we had a fair chance at it. We had to compete with students in the syllabus we’d studied all our lives,” he said. He added that many students in his batch were from districts across the State. “Now, we have to search for village students among our juniors (who were admitted based on NEET score),” he says adding that he could visibly see his junior class more dominated by students from affluent families, mainly from Chennai.

Educationalists too opine that introduction of NEET has mandated the need for coaching classes and destroys the social justice built in the Tamil Nadu education system.“A rich student who scored 190 has more chance of getting into a medical college over a poor one who scored 230,” said educationalist Prince Gajendrababu, adding that NEET is boosting mediocrity in the name of bringing uniformity. Both schools and students will undermine the value of school education and give importance to clearing NEET or other exams alone, he said.

“This would mean that students will no longer find it relevant to question fundamentals in class if it’s not going to feature in their competitive exam,” he said.An exam like this which centres around urban students with access to NCERT text books would cut off access to Dalits in particular said D Ravikumar, from VCK.

“At least two-thirds of Dalit population lives in the rural areas and an exam that deprives rural students will affect Dalit students twice as much,” he said. Most of these students cannot afford go to coaching classes to prepare for NEET, he claimed. Poor students from marginalised backgrounds will have to prove their merit over and over again, only to not succeed, he said.

While NEET on one side seems to exclude students who don’t have access to coaching centres, it has also generated a massive commercial network that profits from it. About 1.4 lakh students from Tamil Nadu qualified in the exam. Even if half of them took coaching that cost them Rs 10,000, the industry is worth Rs 70 crore.

However, the calculation used here is far simplified as leading coaching centres charge even up to a lakh per student per year and students have started taking training from Class IX.“A few popular leading CBSE school in Chennai have increased their fees from Rs 1.1 lakh to nearly Rs two lakh promising parents that their children will be trained for NEET,” said GR Ravindranath from Doctor’s Association for Social Equality.

A Riaz, a NEET aspirant from a government school in North Chennai is adamant about pursuing MBBS. He too, like Mehrunisa was selected for government residential NEET coaching. While he scored 1155 in Class XII, his two-digit score in NEET has destabilised his confidence.“I don’t know what I’ll do. I came to take a year off to study as my parents can’t afford it. I need to finish my education quick to start earning and I don’t see myself becoming a doctor through any other way except NEET,” he said.

Even before NEET was introduced, students who went to private schools had an advantage in securing MBBS seats. But the numbers suggests that NEET is making an MBBS seat almost at unreachable levels for students from rural areas. For example, in 2016 (the last year when admissions were made using Class XII board exam marks), 30 students from government schools could get a seat in government medical colleges. This is besides those who may get seats in government quota in private colleges. But in 2017, when the admissions were made based on NEET score, just two students from government schools could get a seat in government medical colleges. However, this did not mean that academic excellence was overlooked during admissions. To get into any top government medical college, students had to meet the rough cut-off of at least 198 out of 200

वाजपेयी की हालत स्थिर

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के स्वास्थ्य का जायजा लेने प्रधानमंत्री मोदी एम्स पहुंच चुके हैं. पीएम मोदी से पहले कई केंद्रीय मंत्री भी एम्स पहुंचे थे. कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी एम्स गए थे लेकिन उन्होंने मीडिया से पूर्व प्रधानमंत्री के स्वास्थ्य पर कुछ भी बोलने से इनकार किया था. अमित शाह ने भी एम्स पहुंच कर वाजपेयी का हालचाल लिया. वाजपेयी के रूटीन चेकअप के लिए सोमवार को दिल्ली के एम्स अस्पताल में भर्ती किया गया है.

बीजेपी की तरफ से जारी बयान में बताया गया कि वाजपेयी को रूटीन चेकअप के लिए एम्स ले जाया गया था, जहां डॉक्टरों की सलाह पर उन्हें एडमिट कर लिया गया. वाजपेयी को एम्स के निदेशक डॉ. रणदीप गुलेरिया की निगरानी में रखा गया है. उधर एम्स की तरफ से जारी मेडिकल बुलेटिन में पूर्व प्रधानमंत्री की सेहत स्थिर बनी हुई है.

बता दें कि अटल बिहारी वाजपेयी पिछले काफी समय से डिमेंशिया से जूझ रहे हैं. खराब सेहत के कारण वह धीरे-धीरे सार्वजनिक जीवन से दूर होते चले गए और पिछले कई वर्षों से अपने आवास तक ही सीमित हैं.

बीजेपी के संस्थापक सदस्यों में शामिल वाजपेयी तीन बार देश के प्रधानमंत्री रह चुके हैं. 93 साल के वाजपेयी पहले ऐसे गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री हैं, जो सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहे हैं. कुछ समय पहले ही भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से नवाजा था.

1924 में जन्मे वाजपेयी ने 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान राजनीति में शिरकत की थी. साथ ही वो संयुक्त राष्ट्र में हिंदी में भाषण देने वाले पहले विदेश मंत्री भी रहे हैं. लखनऊ से वो पांच बार (1991, 1996, 1998, 1999 और 2004) सांसद चुने जा चुके हैं.

पूर्व राष्ट्रपति श्री प्रणब दा से मिले जैन

चंडीगढ़। चण्डीगढ़ के पूर्व भाजपा सांसद, भारत सरकार के अपर महासालिसिटर एवं राष्ट्रीय विधि आयोग के सदस्य सत्य पाल जैन ने कल नई दिल्ली में भारत के पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से भेंट की। जैन ने प्रणब मुखर्जी के उनके राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के तृतीय वर्ष के शिक्षण वर्ण के समापन समारोह के अवसर पर राष्ट्रीय स्वंय सेवक संघ के मुख्य कार्यालय नागपुर जाने पर बधाई दी।

सत्यपाल जैन ने कहा कि  प्रणब  मुखर्जी ने अपने इस दौरे से देष को एक नई दिशा प्रदान की है कि आपसी विचार विमर्ष और विचारों का आदान प्रादान, विचारों के किसी भी मतभेद से अधिक महत्वपूर्ण है।जैन ने   मुखर्जी के नागपुर में उनके द्वारा दिये गये भाषण की भी प्रषंसा की, तथा कहा कि देष के सभी सही सोच वाले नागरिकों ने उनके भाषण को सराहा है। यह मुलाकात प्रणब मुखर्जी के नई दिल्ली में राजा जी मार्ग पर स्थित उनके निवास स्थान पर हुई।

आयोग से नाखुश महिला अधिकारी लड़ेगी कानूनी लड़ाई

चंडीगढ़। 

हरियाणा के मुख्य अतिरिक्त सचिव पर आरोप लगाने वाली IAS महिला अधिकारी अब राज्य महिला आयोग की कार्रवाई से भी खुश नहीं है। पीड़ित महिला अधिकारी और विवादों के घेरे में आए मुख्य अतिरिक्त सचिव को राज्य महिला आयोग ने समन जारी कर तलब किया था। महिला आयोग में पीड़ित महिला अधिकारी ही पहुंची जबिक मुख्य अतिरिक्त सचिव सुनवाई के दौरान वहां नहीं पहुंचे।

 

आयोग की सुनवाई के बाद पीड़ित महिला IAS अधिकारी संतुष्ट नहीं थी। पीड़ित महिला ने मामले की सुनवाई के बाद मीडिया से कहा कि आयोग में सुनवाई के दौरान एक उच्च अधिकारी का वहां मौजूद रहकर क्रास क्वश्चिनिंग करना गलत था। उन्होंने कहा कि उच्च अधिकारी बार-बार मेरे बयानों में टोकती रही। पीड़ित ने कहा पुलिस को ईमेल से शिकायत ओर चीफ सेक्टरी को भी भेजी है। पीड़ित महिला ने कहा कि कानूनी प्रक्रिया से इंसाफ के लिए लड़ूंगी और अपनी लीगल रिपोर्ट दूंगी। उन्होंने बताया कि तीन साल का ब्यौरा शिकायत में दिया है और सभी अधिकारियों के नाम फेसबुक पर दिए हैं। IAS महिला ने बताया कि आयोग ने दोबारा आने के लिए कहा है। आयोग और सरकार से उन्होंने आग्रह किया है कि पिछले तीन सालों में उनके साथ जाे अपराध हुए हैं उन पर कार्रवाई की जाए। हालांकि कि इस वरिष्ठ अधिकारी के सामने भी उन्होंने कहा कि मैंने कभी मुलाकात कर जानकारी नहीं दी और कोई स्पष्ट उत्तर नहीं दे पाई। सूत्रों के अनुसार बताया जा रहा है कि मामले को जानबूझकर तुल दिया गया है इधर हरियाणा सचिवालय में ये पूूरा मामला चर्चा मेें बना रहा, यहां तक कई अधिकारिियों ने दबी जुबान में कहा कि ये सारा मामला पीड़ित IAS महिला अधिकारी की सुरक्षा को लेकर गर्माया हुआ है।। उनका कहना है कि  वह खुद अपनी सुरक्षा के लिए परेशान है।जबकि उन अधिकारियों का कहना था कि यदि वह सुरक्षा को लेकर चिंतित रहेंगे तो जनता की सेवा क्या करेंगी।

गौरतलब है कि हरियाणा की महिला IAS अधिकारी के अपने ही सीनियर व पशुपालन विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव सुनील के गुलाटी पर उत्पीड़न व शोषण के आरोप लगाने के बाद शासन और प्रशासन में हड़कंप मचा हुआ है, वहीं अब यह मामला हरियाणा महिला आयोग में पहुंच गया है। आयोग ने स्वयं संज्ञान लेते हुए दोनों विवादित अधिकारियों को आज सोमवार को आयोग के कार्यालय में तलब किया था। जहां पर सीनियर अधिकारी तो नहीं आए पर पीड़ित IAS महिला अकेली पहुंची हुई थी।

IAS महिला अधिकारी ने पशुपालन विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव सुनील गुलाटी पर उत्पीड़न का आरोप लगाया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि सुनील गुलाटी ने उनकी रविवार को जबरन रोहतक एक कार्यक्रम में ड्यूटी लगाई है ताकि वे वहां पर शोषण कर सकें। महिला IAS ने 1000 शब्दों से अधिक उनके साथ हो रहे उत्पीड़न की दास्तां फेसबुक पर पोस्ट की है। उधर सुनील गुलाटी ने इन आरोपों को सिरे से खारिज कर दिया है और कहा है कि यह महिला अधिकारी रोहतक में कार्यक्रम में शिरकत ही नहीं करना चाहती थी, इस लिए अनाप-श्नाप आरोप लगा रही हैं।

गडकरी का शाहेला पर मानहानि का मुकद्दमा

 

केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी और आरएसएस पर अपमानजनक आरोप लगाने के चलते जेएनयू छात्र संघ की पूर्व उपाध्यक्ष शेहला रशीद के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई गई है. भारतीय जनता युवा मोर्चा ने डीसीपी से मिलकर शेहला रशीद के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने की मांग की है. साथ युवा मोर्चा ने शेहला पर नफरत फैलाने और सामाजिक शांति भंग करने का आरोप में आईपीसी की धारा 153, 153(ए) लगाने की मांग की है.

दरअसल जेएनयू छात्र संघ की पूर्व उपाध्यक्ष ने आरएसएस और केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या के आरोप लगाए थे. शेहला ने ट्वीट करते हुए कहा था कि आरएसएस और नितिन गडकरी प्रधानमंत्री मोदी की हत्या कराने की साजिश रच रहे हैं. वहीं इस आरोप से भड़के केंद्रीय मंत्री ने उनके खिलाफ केस करने की बात कही थी. हालांकि शेहला ने इस ट्वीट पर सफाई देते हुए कहा था कि उन्होंने व्यंग्य के तौर पर यह ट्वीट किया था.

शेहला ने शनिवार को एक ट्वीट में लिखा, ‘ऐसा लगता है कि आरएसएस/गडकरी मोदी की हत्या की साजिश रच रहे हैं, जिसके बाद फिर मुस्लिमों और साम्यवादियों पर दोष मढ़ेंगे और मुस्लिमों की हत्या करेंगे.’


Shehla Rashid

@Shehla_Rashid

Looks like RSS/Gadkari is planning to assassinate Modi, and then blame it upon Muslims/Communists and then lynch Muslims


नितिन गडकरी को जैसे ही शेहला रशीद के इस ट्वीट का पता चला तो उन्होंने तुरंत इस पर कड़ी आपत्ति जाहिर की और उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई की बात कही. शेहला राशिद के ट्वीट का जवाब देते हुए नितिन गडकरी ने ट्विटर पर लिखा, ‘मैं उन असामाजिक तत्वों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने जा रहा हूं, जिन्होंने विचित्र टिप्पणियां की हैं. मुझ पर निजी उद्देश्यों की पूर्ति के लिए आरोप लगाया गया है कि मैं पीएम मोदी की हत्या करने की साजिश रच रहा हूं.’

“Unlike ‘pakora’ business, tea selling business is also creating employment for Indians.” Navnath

 

 

PUNE: Setting a benchmark for his competitors, a tea seller in Maharashtra earns Rs 12 lakh per month.

The Pune-based Yewle Tea house has become one of the renowned stalls in the city.

The co-founder of Yewle Tea house, Navnath Yewle, wants to make it an international brand very soon.

This business will help in creating employment for others, he said.

Unlike ‘pakora’ business. this tea selling business is also creating employment for Indians. This business is growing fast and I’m happy,” Navnath said.

In 2011, Navnath and his business partner thought of starting a tea-selling business.

“We researched for four years and finalised a quality for our product,” he said.

As of now, the tea house chain has got two outlets in the city and every center has about 12 employees working in it.

“3000 to 4000 cups of tea are being sold in each outlet everyday and we earn a total of Rs 10 to Rs 12 lakh per month,” Navnath said.

“We are planning to set up 100 outlets in future,” he added.