राहुल ने स्वीकार किया थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन द्वारा हुए सर्वे को, शर्म की बात है

 


विडंबन यह है की विपक्ष के नेता को विदेशी सर्वे बताते हैं की उनके देश में महिलाओं की क्या स्थिति है. और इससे पाहिले उन्हें इस बात की बनक तक नहीं होती. उनकी पार्टी के कार्यकर्ता इतने फूहड़ हैं की वह अपने मालिक को भारत की यथा स्थिति से अवगत नहीं करवाते, यदि ऐसा होता तो अब तक राहुल गांधी कितनी ही अबलाओं की जिंदगी सुधार चुके होते. 

यह शर्म की बात है.


नई दिल्लीः

भारत को महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित देश बताये जाने वाल सर्वे  को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी  ने केंद्र सरकार पर निशाना साधा है. राहुल गांधी ने अपने ताजा ट्वीट में कहा है कि भारत महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा और बलात्कार के मामले में अफगानिस्तान, सऊदी अरब और सीरिया से भी आगे हो गया है.


  • अब प्रश्न यह उठता है कि रानी जी को कौन कहे कि आगा ढांके.
  • राहुल से हम पूछना चाहते हैं कि क्या पंजाब, कर्णाटक पुद्दुचेरी भारत में नहीं आते? और यदि आते हैं तो क्या वहां की सरकारों को क्लीन चिट दी गयी है?
  • दूसरी बात जब भारत की तरक्की की खबरे यह सर्वे रिपोर्ट्स दिखाती हैं तब राहुल कहते हैं कियह सर्वे मोदी ने खरीदा है, तो क्यों न यह मान लिया जाए की या सर्वे विपक्ष और खासकर राहुल की पार्टी ने खरीदा हो.
  • तीसरे इस सर्वे के जारी होने की तारीख को लेकर कुछ संशय उठते हैं, यह रिपोर्ट ठीक उसी दिन आते हैं जब भाजपा 26, जून को प्रजातंत्र पर एक काला दिवस के रोप में याद करती है और राष्ट्र भर में आपातकाल की भयावहता को याद करती और करवाती है.

बता दें कि हाल ही में थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन द्वारा थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन द्वारा हुए सर्वेहुए सर्वे में महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीडन और उन्हें सेक्स वर्कर के धंधे में जबरन धकेलने के कारण भारत को सबसे असुरक्षित देश  माना गया है. वहीं इस सर्वे में अफगानिस्तान, सीरिया और अमेरिका को दूसरे, तीसरे और चौथे स्थान पर रखा गया है. 26 जून को वैश्विक विशेषज्ञों द्वारा किये गए सर्वे में भारत को महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित देश बताया गया है.

राहुल गाँधी ने अपने ऑफिशियल ट्विटर अकाउंट से लिखा, ‘जिस समय हमारे प्रधानमंत्री अपने गार्डन में योगा वीडियो बनाने में व्यस्त थे, भारत ने महिलाओं के खिलाफ होने वाली हिंसा और बलात्कार के मामले में अफगानिस्तान, सऊदी अरब और सीरिया को पीछे छोड़ दिया, हमारे देश के लिए कितने शर्म की बात है! ‘

 

Rahul Gandhi

@RahulGandhi

India the most dangerous country for women, survey shows

India is the most dangerous country in the world to be a woman because of the high risk of sexual violence and slave labor, a new survey of experts shows.


थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन के एक सर्वे के मुताबिक भारत में महिलाओं के प्रति अत्याचार और उन्हें जबरन वैश्यावृत्ति में धकेलने के मामले सबसे ज्यादा सामने आए हैं. सर्वे में पश्चिम देशों में केवल अमेरिका का ही नाम है. सर्वे के मुताबिक पिछले कुछ दिनों में अमेरिका में महिलाओं के प्रति हिंसा की गतिविधियां बढ़ी हैं.

महिलाओं की असुरक्षा को लेकर पहले स्थान पर भारत
वहीं इससे पहले 2011 में हुए सर्वे में अफगानिस्तान, डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ़ कांगो , पाकिस्तान, भारत और सोमालिया महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित देश बताए गए थे. 2011 में हुए सर्वे में भारत को भारत को चौथे स्थान में रखा गया था. लेकिन, इस साल सारे देशों को पीछे छोड़ भारत को महिलाओं की असुरक्षा की दृष्टि से पहला स्थान दिया गया है. जिससे साफ पता चलता है कि भारत महिलाओं के लिए दिनों दिन कितना खतरनाक होता जा रहा है.

महिलाओं के प्रति अत्याचार में 2007 से 2016 के बीच 83 प्रतिशत वृद्धि
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक भारत में हर घंटे बलात्कार के चार मामले दर्ज होते हैं. 2007 से 2016 के बीच देश में महिलाओं के खिलाफ यौन उत्पीड़न के मामलों में 83 प्रतिशत की वृद्धि हुई है. सर्वे में विशेषज्ञों से पूछा गया था कि सयुंक्त राष्ट्र के 193 सदस्यों में से ऐसे कौन से पांच सदस्य राष्ट्र हैं जो महिलाओं के लिए सबसे ज्यादा असुरक्षित हैं. जिसके जबाव में भारत, अफगानिस्तान, सीरिया-अमेरिका, सोमालिया और सऊदी अरब को रखा गया.

सऊदी अरब में महिलाओं के संरक्षण का पूरा अधिकार पुरुषों के हाथ
थॉमसन रॉयटर्स फाउंडेशन द्वारा हुए सर्वे में विशेषज्ञों को मानव तस्करी, यौन उत्पीड़न, सेक्स स्लेवरी, और घरेलू हिंसा में भी भारत को सबसे खतरनाक देश बताया गया. वहीं सऊदी अरब में महिलाओं के संरक्षण का पूरा अधिकार पुरुषों के हाथ सौंप दिया जाता है. जिसे विशेषज्ञों ने मौलिक अधिकारों के खिलाफ बताया है. इस लिस्ट में अमेरिका इकलौता ऐसा पश्चिमी देश है जिसे इस लिस्ट में रखा गया है.

रंजन गोगोई होंगे नये प्रधान न्यायाधीश : सूत्र


दूर-दूर तक संभावना नहीं लगती है. पूर्व न्यायाधीश जे चेलमेश्वर के नेतृत्व में 12 जनवरी को बुलाए गए अप्रत्याशित संवाददाता सम्मेलन में न्यायमूर्ति गोगोई के हिस्सा लेने के बाद से इस बात की अटकलें लगाई जाने लगीं कि अगला प्रधान न्यायाधीश कौन होगा.


नई दिल्लीः

विधि विशेषज्ञों ने कहा है कि प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा स्थापित मानदंडों को ताक पर रखकर सर्वाधिक वरिष्ठ न्यायाधीश रंजन गोगोई के नाम की सिफारिश अपने उत्तराधिकारी के तौर पर नहीं करेंगे इस बात की वस्तुत : दूर-दूर तक संभावना नहीं लगती है. पूर्व न्यायाधीश जे चेलमेश्वर के नेतृत्व में 12 जनवरी को बुलाए गए अप्रत्याशित संवाददाता सम्मेलन में न्यायमूर्ति गोगोई के हिस्सा लेने के बाद से इस बात की अटकलें लगाई जाने लगीं कि अगला प्रधान न्यायाधीश कौन होगा.

विधि विशेषज्ञों की राय का महत्व है क्योंकि विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद के हाल के बयान से चर्चा फिर से शुरू हो गई है. प्रसाद ने कहा था कि न्यायमूर्ति मिश्रा के उत्तराधिकारी के चयन में सरकार की कोई भूमिका नहीं है. प्रधान न्यायाधीश मिश्रा का कार्यकाल दो अक्तूबर को समाप्त हो रहा है.

संविधान विशेषज्ञ और वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने न्यायमूर्ति गोगोई के बेदाग न्यायिक रिकॉर्ड का उल्लेख करते हुए कहा कि अगर सीजेआई पद के लिये उनके नाम की सिफारिश नहीं की जाती है तो यह उन्हें उनकी वरिष्ठता की अनदेखी किये जाने सरीखा होगा , जैसा 1970 के दशक में हुआ था. उन्होंने कहा कि इस तरह के कदम से न्यायपालिका की स्वतंत्रता से समझौता होगा , जो सीजेआई कभी नहीं चाहेंगे. वरिष्ठ अधिवक्ता और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन के अध्यक्ष विकास सिंह ने कहा कि यद्यपि न्यायमूर्ति गोगोई की वरिष्ठता की अनदेखी किया जाना संभव नहीं है , लेकिन अगर ऐसा होता है तो सभी तीन सर्वाधिक वरिष्ठ न्यायाधीशों (न्यायमूर्ति गोगोई , न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसफ) को इस्तीफा देना होगा.

सिंह ने कहा , ‘‘ यह परिदृश्य (सीजेआई का न्यायमूर्ति गोगोई के नाम की सिफारिश अपने उत्तराधिकारी के तौर पर नहीं करना) संभव नहीं है और ऐसा नहीं होगा. ’’ यह पूछे जाने पर कि अगर सीजेआई सर्वाधिक वरिष्ठ न्यायाधीश के नाम की सिफारिश अपने उत्तराधिकारी के तौर पर नहीं करके अगर स्थापित परंपराओं का पालन नहीं करते हैं तो क्या होगा , इसपर उन्होंने कहा , ‘‘ एक समस्या होगी और उस स्थिति में न्यायमूर्ति ए के सीकरी जिनके सीजेआई से अच्छे संबंध हैं , उनके नाम की सिफारिश की जा सकती है. ’’

उन्होंने कहा , ‘‘ उस स्थिति में तीन सर्वाधिक वरिष्ठ न्यायाधीशों (न्यायमूर्ति गोगोई , न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसफ) को इस्तीफा देना होगा , जिसकी संभावना काफी कम है. ’’ धवन ने विधि मंत्री रविशंकर प्रसाद के हाल के स्पष्ट बयान का उल्लेख किया , जिसमें उन्होंने कहा था कि मौजूदा सीजेआई के उत्तराधिकारी का चयन करने में सरकार की कोई भूमिका नहीं है और इस तरह से दरकिनार किये जाने की बहुत मामूली संभावना है.

उन्होंने कहा , ‘‘ एकमात्र बात जो सीजेआई मिश्रा को पसंद नहीं आई होगी वह है 12 जनवरी को चार न्यायाधीशों का संवाददाता सम्मेलन करना. अगर ऐसा है तो एक न्यायाधीश सेवानिवृत्त हो चुके हैं. न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति कुरियन जोसफ भी उस संवाददाता सम्मेलन का हिस्सा थे. अगर सीजेआई के करीबी न्यायमूर्ति ए के सीकरी को नियुक्त करने की कोई चाल नहीं हो तो न्यायमूर्ति गोगोई को नियुक्त नहीं किये जाने का कोई कारण नहीं है. ’’

न्यायमूर्ति गोगोई को सीजेआई नहीं बनाने के कदम के परिणाम के बारे में पूछे जाने पर धवन ने कहा , ‘‘ इसके विचित्र परिणाम होंगे. यह 1970 के दशक में न्यायाधीशों की वरिष्ठता की अनदेखी किये जाने की स्थिति की ओर ले जाएगा. इस तरह से वरिष्ठता की अनदेखी न्यायपालिका की स्वतंत्रता को प्रभावित करेगी. मुझे उम्मीद है कि सीजेआई इस तरह से वरिष्ठता की अनदेखी का जरिया नहीं बनेंगे. ’’

1970 के दशक में तत्कालीन केंद्र सरकार ने वरिष्ठता की अनदेखी करते हुए 1973 में न्यायमूर्ति ए एन रे को प्रधान न्यायाधीश नियुक्त किया था. इसके बाद न्यायमूर्ति जे एम शेलत , न्यायमूर्ति के एस हेगड़े और न्यायमूर्ति ए एन ग्रोवर ने इस्तीफा दे दिया था.  बाद में वरिष्ठता क्रम में ऊपर न्यायमूर्ति एच आर खन्ना की अनदेखी करते हुए न्यायमूर्ति एम एच बेग की सीजेआई के तौर पर नियुक्ति की गई थी. इसके बाद खन्ना ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था.

बीते 28 दिनों में पेट्रोल हुआ 3.03 और डीजल 3.12 रूपये सस्ता

 

नई दिल्ली :

पेट्रोल-डीजल के दामों में 28वें दिन भी कटौती की गई. मंगलवार को भी पेट्रोल-डीजल के रेट में आम आदमी को राहत दी गई. तेल कंपनियों ने देश के चार महानगरों में पेट्रोल पर 14 से 18 पैसे प्रति लीटर तक की कटौती हुई. वहीं, डीजल में 10 से 12 पैसे की कटौती की गई. लगातार 28 वें दिन पेट्रोल और डीजल की कीमत में कटौती से आम आदमी को धीरे-धीरे राहत मिल रही है. हालांकि यह राहत नाकाफी है. पिछले 28 दिन में चेन्नई में पेट्रोल 3.03 रुपये और मुंबई में 3.12 रुपये सस्ता हुआ है.

कर्नाटक चुनाव परिणाम के बाद 30 मई से पेट्रोल-डीजल के दाम में कटौती शुरू हुई थी. हालांकि, बीच में कई दिन पेट्रोल-डीजल की कीमतों में कोई परिवर्तन नहीं हुआ. लेकिन, 28वें दिन तक पेट्रोल करीब 3 रुपये तक सस्ता हो गया है. राजधानी दिल्ली में पेट्रोल की कीमत में मंगलवार को 14 से 18 पैसे की कौति की गई. वहीं, डीजल पर भी 10 से 12 पैसे कम हुए. दिल्ली में मंगलवार को पेट्रोल 75.55 रुपये प्रति लीटर और डीजल 67.38 रुपये प्रति लीटर हैं.

26 जून को दिल्ली और कोलकाता में 14 पैसे, मुंबई में 18 पैसे और चेन्नई में 15 पैसे प्रति लीटर की कटौती की गई. इसी तरह डीजल के रेट में दिल्ली, चेन्नई और कोलकाता में 10 पैसे प्रति लीटर और मुंबई में 12 पैसे प्रति लीटर की कटौती की गई. अभी भी मुंबई में पेट्रोल 83.12 प्रति लीटर और डीजल 71.52 रुपये प्रति लीटर के स्तर पर बिक रहा है.

4 महानगरों में पेट्रोल की कीमत

29 मई 26 जून
दिल्ली 78.43 रुपये 75.55 रुपये
कोलकाता 81.06 रुपये 78.23 रुपये
मुंबई 86.24 रुपये 83.12 रुपये
चेन्नई 81.43 रुपये 78.40 रुपये

28 दिन में 3 रुपये तक सस्ता हुआ पेट्रोल
30 मई के बाद से पेट्रोल-डीजल की कीमतों में तेल कंपनियां कटौती हो रही है. पिछले 28 दिन में पेट्रोल तीन रुपये तक सस्ता हुआ है. वहीं, डीजल में 2 रुपये से ज्यादा की गिरावट आई है. अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की गिरती कीमतों का फायदा मिला है. इससे पहले में क्रूड की कीमतों में उछाल से पिछले महीने पेट्रोल की कीमतें 80 रुपए प्रति लीटर तक पहुंच गई थीं. कच्चे तेल की कीमतों में 6 डॉलर प्रति बैरल से ज्यादा कमी आ चुकी है.

4 महानगरों में डीजल की कीमत

29 मई 26 जून
दिल्ली 69.31 रुपये 67.38 रुपये
कोलकाता 71.86 रुपये 69.93 रुपये
मुंबई 73.79 रुपये 71.52 रुपये
चेन्नई 73.18 रुपये 71.12 रुपये

 

हरियाणा से कई लोकसभा सांसदों का टिकट कटना तय है : रामबिलास शर्मा

 

हरियाणा से कई लोकसभा सांसदों का टिकट कटना तय है। इस पर भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के साथ बैठक में मंथन हो चुका है। शिक्षा मंत्री रामबिलास शर्मा ने इसकी पुष्टि करते हुए साफ कर दिया कि लोकसभा चुनाव में कुछ सीटों पर नए चेहरे होंगे। 2019 मेंं होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर भारतीय जनता पार्टी ने अपनी रणनीति बनानी शुरू कर दी है।  भाजपा की इस रणनीति के तहत लोकसभा के कई वर्तमान सांसदों का टिकट कटना तय है। दिल्ली में राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के साथ हुई कोर ग्रुप की बैठक में इस पर व्यापक मंथन हो चुका है।

खुद हरियाणा के शिक्षा मंत्री रामविलास शर्मा ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा कि लोकसभा चुनाव में कई सीटों पर नए चेहरे होंगे। गौरतलब है कि हरियाणा में भारतीय जनता पार्टी के कुल 7 सांसद हैं जिनमें से 2 केंद्रीय मंत्री भी हैं। ऐसे में इन 7 सांसदों में से कुछ सांसदों के टिकट कटने तय हैं। उनकी जगह पर पार्टी नए चेहरों पर दांव खेलेगी। हरियाणा के शिक्षा विभाग द्वारा शिक्षकों से उनकी संपत्ति का ब्यौरा मांगे जाने पर भी हाय तौबा मची हुई है। इसकी वजह है वह प्रोफॉर्मा जिसमें शिक्षकों से उल जुलूल बातें पूछी गई हैं।

दरअसल यह प्रोफॉर्मा हरियाणा के गठन के बाद से बदला ही नहीं गया है। इसमें कई ऐसे सवाल पूछे गए हैं जो कतई व्यवहारिक नहीं हैं। इसपर हरियाणा के शिक्षा मंत्री रामविलास शर्मा ने कहा कि सरकारी अधिकारियों की जानकारी इकट्ठी करना रूटीन की बात है। अब तमाम चीजों को डिजिटलाईज किया जा रहा है, लेकिन यदि शिक्षकों और अधिकारियों से कोई बेहूदा सवाल पूछा गया है तो इस चिट्ठी का अध्ययन करके उसे निरस्त कर दिया जाएगा गौरतलब है कि इस प्रोफार्मा में शिक्षकों से यह भी पूछा गया था कि उनके पास कितने घोड़े हैं। इसी तरह से सालों पहले चलन से बाहर हो चुके रेडियो ग्राम समेत कई अन्य चीजों की भी जानकारियां इसमें मांगी गई हैं।

Overseas NGOs are on their work as usual


No one disagrees that every act of violence against women is a matter of great shame for all 1.2 billion Indians. But to be labelled the world’s most dangerous country for women ahead of Pakistan, Somalia, Afghanistan and Syria — according to a study by the Thomson Reuters Foundation — and all the other countries in the United Nations is a load of crock.


The unrealistic data provided by these overseas or so called International NGOs which actually work as the agent of the bigger fishes and their hagemoney.

One does not know the measures used or the size of the survey but in many other nations women cannot even breathe without permission. So let’s not get too enamoured by our affection for self-flagellation.

We have this predilection to wallow in western assessments, which is why the BBC has so often taken the mickey out of us with their cruel documentaries. Remember the one it did on the Taj hotel?

Of course we have problems: Our population and our gender prejudice are well recognised and on the front burner for resolution. A work in progress. If you go by the numbers, we’d probably be way up there as a nation fighting for women’s empowerment to make it a given and not a concession.

Millennials see no difference between men and women. We are moving rapidly into mass education where even those from disadvantaged financial backgrounds are making their mark. Girls top the mark lists and good on them. Women in India are in every field of endeavour and their collective voice gets more articulate and vociferous by the day. So be it.

Surveys like this are grossly hurtful, far too casual and slippery in their conclusions. Despite our aberrations and horror stories that hit us in the solar plexus now and then, it is a safe bet that 95 percent of Indian men respect their women, take care of their families and are good providers (as much as possible). For every issue over dowry and violence there are a thousand husbands who get up in the morning and go to work to ensure there is food on the table for their wives and daughters. A hundred thousand sons work in the Gulf to send remittances home to ailing mothers and to get sisters wedded.

Women are rising in politics, media, business, the armed forces, and farming. Our most firebrand politicians are women. Even in rural areas, the quota system is giving women an assertiveness and empowerment per se is no longer just a label but a national movement. In sports, in executive ladder, in science, in the arts, in cinema and theatre, women are on top right across the board.

There are a lot more consequences for those who engage in the unspeakable. The open house on what women can do in India and are doing and reaching for newer heights of achievement makes this dubious first rank border on the absurd. Especially when you compare the situation to their lives in restrictive societies. Of course, we are far from perfect but we are working on it and our women are held in a lot higher esteem then we give ourselves credit for because we don’t hide our flaws.

Show me a country where there is no violence. Show me a country where women are pushing upwards as powerfully as in India. One can fling a hundred statistics about the lot of women in India improving in the six parameters used in the survey: Violence, human trafficking, cultural conditions, healthcare, gender bias and sexual assault. And they would be valid. What’s the point in being defensive?

Fact is, such skewed surveys — from the West — always have ulterior motives. They detract from the efforts of millions who eschew violence. Because they are so superficial in the parameters used they actually harm efforts to move upwards and forward because they indict with a certain insouciance and arrogance and are patronising.

While we must not shut our eyes to reality and keep on fighting the good fight, we must keep in mind that the Thomson’s survey is not gospel.

Now officers changed her address too?????

 


  • An inter-faith couple was allegedly humiliated by a passport official last week.
  • Local police have said that the woman was not living in Lucknow for past one year
  • Passport applicants should be residing at the address filled in the application for at least one year

LUCKNOW:

The local police on Tuesday sent its report to the Regional Passport office (RPO) here over an incident involving an inter-faith couple who was allegedly humiliated by an official.

According to the report, the wife, Tanvi Seth, had not been living in Lucknow for past one year but was residing in Noida.

Senior Superintendent of Police Deepak Kumar told reporters that according to rules, applicants should be residing at the address filled in the application for at least one year but Seth had not followed the rules.

“We have sent our report to the RPO. She was not living in Lucknow for past one year. She was living in Noida and doing some work there,” the SSP said.

The couple had alleged that Passport Seva Official Vikas Mishra asked the husband to convert to Hinduism and pulled up the wife for marrying a Muslim when they went there to file passport applications.

When asked whether police would take any action against the couple, the SSP said, “We have to submit verification report on six-seven points only. We have sent our report. Now, the RPO will take the appropriate decision.”

The matter came to light when Mohammad Anas Siddiqui and Seth, who have been married for 12 years, wrote about their ordeal on Twitter and tagged External Affairs Minister Sushma Swaraj on June 20.

A day later, the Regional Passport Office in Lucknow transferred Mishra and issued passports to the couple.

The case took another turn when an ‘eyewitness’ claimed that he was kidnapped from near his residence in Lucknow and taken towards Nepal but managed to escape.

PM being “The Most Valuable Target” new security guidelines are issued to states


  • The home ministry said there has been an “all-time high” threat to the PM and he is the “most valuable target” in the run-up to the 2019 general elections
  • The SPG is believed to have advised Modi, who is the main campaigner for the ruling BJP, to cut down on road shows, which invite a bigger threat

NEW DELHI:

Issuing new security guidelines to states in the wake of an “all-time high” threat to Prime Minister Narendra Modi, the home ministry has said that not even ministers and officers will be allowed to come too close to the prime minister unless cleared by the Special Protection Group (SPG).

The ministry said there has been an “all-time high” threat to the prime minister and he is the “most valuable target” in the run-up to the 2019 general elections, officials privy to the development said.

No one, not even ministers and officers, should be allowed to come too close to the prime minister unless cleared by his special security, the home ministry communication said, citing an “unknown threat” to Modi.

The SPG is believed to have advised Modi, who is the main campaigner for the ruling BJP, to cut down on road shows, which invite a bigger threat, in the run up to the 2019 Lok Sabha polls, and instead address public rallies, which are easier to manage, an official said.

The close protection team (CPT) of the prime minister’s security has been briefed about the new set of rules and the threat assessment and instructed them to frisk even a minister or an officer, if necessary.

The Prime Minister’s security apparatus was reviewed threadbare recently after the Pune Police told a court on June 7 that they had seized a “letter” from the Delhi residence of one of the five people arrested for having alleged “links” with the banned CPI (Maoist), another official said.

The purported letter allegedly mentioned a plan to “assassinate” Modi in “another Rajiv Gandhi-type incident”, the police had told the court.

Besides, during a recent visit to West Bengal, a man was able to break through six layers of security to touch the prime minister’s feet, sending the security agencies into a tizzy.

Vijay Mallya, a ‘fugitive economic offender’ seeks Settlement


Vijay Mallya offers to sell assets to repay bank loans, says he has become ‘poster boy’ of default


Liquor baron Vijay Mallya Tuesday issued a statement saying he “will continue to make every effort to settle with the public sector banks” adding that the bulk of the claims of the PSBs were on account of interest and that he was being made a “Poster Boy” of bank default and a “lightning rod of public anger”.

Mallya’s statement comes after the Enforcement Directorate last week filed an application before a special court in Mumbai seeking to declare Vijay Mallya, a ‘fugitive economic offender’, under the recently promulgated Fugitive Economic Offenders Ordinance, 2018. Under its provisions, the ED has sought an order for confiscating all Mallya’s properties including those indirectly controlled by him, even before the trial begins against him. This is the first application in the country under the Ordinance so far.

In London, where Mallya currently lives, a lower court is likely to deliver its verdict on the extradition plea on July 31.

Mallya, in his statement, said that along with United Breweries Holdings Limited (UB Group) he has filed an application before the Karnataka High Court on June 22 to sell assets worth about Rs 139 billion. He said he requested court permission to allow the sell of the assets under judicial supervision and repay creditors, including PSBs. Mallya also shared letters he wrote to then Finance Minister Arun Jaitley and Prime Minister  Narendra Modi in April 2016.

Mallya has been facing investigation for alleged siphoning and diversion of funds granted as loans to Kingfisher Airlines. The ED claims that in the guise of lease rental payments for aircraft and misrepresentation before banks for payments towards ground handling of airlines, loan money was used for his personal benefits including diversion of money for his Indian Premier League cricket team. The ED has told the court that the extradition hearings against Mallya are being heard before a London court. The court is still to hear and decide on the application.

राजगुरु इन्द्रनील ने कांग्रेस से दिया इस्तीफा


राजगुरु ने कहा, ‘मैंने अपना इस्तीफा पार्टी के प्रदेश इकाई के अध्यक्ष अमित चावड़ा को भेज दिया है.’


गुजरात कांग्रेस के पूर्व विधायक और मुख्यमंत्री विजय रुपाणी के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले इंद्रनील राजगुरु ने पार्टी के प्रदेश नेतृत्व से नाखुशी जाहिर करते हुए सोमवार को राजकोट कांग्रेस अध्यक्ष पद से  इस्तीफा दे दिया है.

राजगुरु ने संवाददाताओं से कहा, ‘मैंने अपना इस्तीफा पार्टी के प्रदेश इकाई के अध्यक्ष अमित चावड़ा को भेज दिया है.’

उन्होंने कहा कि पार्टी की प्रदेश इकाई जिस तरह से काम कर रही है उससे वह नाखुश हैं और इसी वजह से इस्तीफा दे रहे हैं.

गुजारत विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने इंद्रनील राजगुरु को सीएम विजय रुपाणी के सामने उतारा था. राजगुरु ने राजकोट सीट से चुनाव लड़ा था. इंद्रनील राजगुरु गुजरात में कांग्रेस के सबसे अमीर उम्मीदवारों में से एक रहे हैं जिन्होंने नामांकन के दौरान 141 करोड़ रुपए की आय का खुलासा लिया था.

टी आर एस और भाजपा जल्द चुनाव के पक्ष में


हैदराबाद में सत्ता के गलियारों में चर्चा चल पड़ी है कि शायद 2018 के जाड़ों में आम चुनाव कराने को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केसीआर को भरोसे में ले लिया है


मामला बिलकुल साफ है, शक की कोई गुंजाइश नहीं है. जब से तेलंगाना के मुख्यमंत्री केसीआर, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से 15 जून को मिल कर दिल्ली से लौटे हैं, बीजेपी के खिलाफ गठबंधन की कोशिशें ठंडे बस्ते में चली गई जान पड़ती हैं. हालांकि केसीआर पिछले दिनों दिल्ली में थे, फिर भी वे केजरीवाल के घर मिलने गए चार मुख्यमंत्रियों की जमात में शामिल नहीं हुए. दिल्ली से आने के बाद रविवार को जब केसीआर का बयान आया कि वे तेलंगाना में वक्त से पहले चुनाव कराए जाने के समर्थन में हैं, तो पक्का हो गया कि दिल्ली और हैदराबाद के बीच सचमुच कुछ पक रहा है.

नतीजतन हैदराबाद में सत्ता के गलियारों में चर्चा चल पड़ी है कि शायद 2018 के जाड़ों में आम चुनाव कराने को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने केसीआर को भरोसे में ले लिया है. गौर करने वाली बात ये है कि 1999 से ही आंध्र प्रदेश में विधानसभा चुनाव हमेशा आम चुनाव के साथ ही हुए. अगर नवंबर-दिसंबर में आम चुनाव होते हैं, तो इसका मतलब ये कि राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के चुनाव भी उसी समय हो जाएंगे.

दरअसल इसका आभास तब हुआ, जब कांग्रेस नेता और पूर्व मंत्री दनम नागेंद्र ने केसीआर की पार्टी तेलंगाना राष्ट्र समिति का दामन थाम लिया. नागेंद्र एक वक्त कांग्रेस के बड़े दमदार नेता थे, लेकिन पिछले चार साल से पार्टी आलाकमान से नाराज चल रहे थे. सूबे में पार्टी के अध्यक्ष बनना चाहते थे, लेकिन जब ये होता नहीं दिखा, तो उन्होंने केसीआर का हाथ थाम लिया. उनका केसीआर के साथ जाना तय तो था, लेकिन केसीआर चाहते थे कि चुनाव के करीब आ जाए, तो उन्हें अपनी पार्टी मे शामिल कराएं. यानी नागेंद्र के पार्टी में शामिल होने और जल्दी चुनाव पर केसीआर के बयान से साफ हो गया है कि आम चुनावों के साथ ही तेलंगाना में भी चुनाव हो जाएंगे.

जल्दी चुनाव हुए, तो केसीआर के पक्ष में होंगे नतीजे

जल्दी चुनाव हुए तो केसीआर को फायदा ही फायदा है, खोना कुछ नहीं है. कांग्रेस पहले से ही सूबे में मुश्किल में है, क्योंकि तेलंगाना प्रदेश कांग्रेस कमिटी के अध्यक्ष उत्तम कुमार रेड्डी के खिलाफ विद्रोह के सुर उभरने लगे हैं. टीडीपी और बीजेपी के कुछ नेताओं जैसे रेवंथ रेड्डी और नगम जनार्दन रेड्डी के कांग्रेस में शामिल होने को लेकर प्रदेश कांग्रेस के कुछ नेता बहुत नाराज हैं.

नतीजतन, ज़िला स्तर पर बहुत से कांग्रेस नेता टीआरएस में शामिल हो रहे हैं. दूसरी विपक्षी पार्टी टीडीपी तो किसी लावारिस मकान की तरह खंडहर में तब्दील हो रही है. 15 में से 13 विधायकों ने टीडीपी छोड़ दी है और न तो चंद्रबाबू नायडू और न ही उनके बेटे नारा लोकेश की ओर से पार्टी को फिर से खड़ा करने की कोई कोशिश हो रही है.

विडंबना ये है कि नायडू टीडीपी की सबसे बड़ी ताकत भी हैं और कमजोरी भी. पार्टी की सभाओं के लिए भीड़ फिलहाल सिर्फ उन्हीं के नाम पर जुटती है. सूबे के बंटने के पहले 1995 से 2004 के बीच बतौर मुख्यमंत्री नायडू ने हैदराबाद के लिए काफी काम किया था. लिहाजा यहां लोगों से उनका जमीनी संपर्क बहुत अच्छा है. हालांकि उनके उन संपर्कों का नुकसान उन्हें ये हो सकता है कि तब तेलंगाना राष्ट्र समिति इस बात का प्रचार करेगी कि नायडू तेलंगाना के हितों का नुकसान करने के लिए ऐसे लोगों से मिले हुए हैं, जिनके हित तेलंगाना के नहीं हैं.

केसीआर के खिलाफ बीजेपी रखेगी नरम रुख?

तेलंगाना के मैदान में तीसरे खिलाड़ी के तौर पर बीजेपी है, जो लोगों को समझाने की कोशिश कर रही है कि कांग्रेस और टीआरएस आपस में मिले हुए हैं. हालांकि इस कहानी पर भरोसा करना लोगों के लिए बड़ा मुश्किल है. खासकर मोदी-केसीआर की मुलाकात के बाद.

सूत्र बताते हैं कि बीजेपी के एक बड़े पदाधिकारी ने तेलंगाना बीजेपी के नेताओं को निर्देश दिए हैं कि वे मुख्यमंत्री केसीआर के खिलाफ भ्रष्टाचार का कोई आरोप न लगाएं. बीजेपी को दरअसल पता है कि लोकसभा चुनावों में अगर उनके पास अपने दम पर बहुमत नहीं हुआ, तो वो उन्हें केसीआर, नवीन पटनायक और जगनमोहन रेड्डी से समर्थन लेकर इकट्ठा करना पड़ेगा. इसलिए तेलंगाना बाजेपी नेताओं से कहा गया है कि वे नीतिगत मामलों तक ही अपनी आलोचना सीमित रखें.

कांग्रेस और टीआरएस में तुलना करें तो टीआरएस का पलड़ा भारी लग रहा है. केसीआर को अंदाजा लग गया था कि किसानों के वोट उनकी पार्टी की नैया डुबा सकते हैं. इसीलिए उन्होंने किसानों के लिए ‘रिथु-बंधु’ योजना भी चलाई, जिसके तहत खेत पर कर्ज लिए हुए किसान को साल में आठ हजार रुपए देने का प्रावधान रखा गया. हालांकि उनकी महत्वाकांक्षी सिंचाई योजना पर कांग्रेस ने कई सवाल खड़े किए हैं, लेकिन फिर भी खेतिहर जनता को उससे देर-सबेर लाभ जरूर मिलेंगे.

कांग्रेस के लिए लड़ाई जीतने का बस एक ही रास्ता बचता है और वह ये कि विपक्ष को मिलने वाले वोट न बंटे. और यह तभी हो पाएगा, जब वामपंथी पार्टियों, बीएसपी, कोदांदरम की तेलंगाना जनसमिति और टीडीपी को साथ लेकर गठबंधन बनाया जाए. टीडीपी के खम्मम जिले के संगठन ने पहले ही, ये कह कर कांग्रेस के साथ जाने की बात कही है कि अकेले चुनाव लड़ने से टीआरएस को ही मजबूती मिलेगी. सूबे में केसरिया रंग की ताकत कमजोर करने के लिए कांग्रेस को ये भी प्रचार करना होगा कि बीजेपी को वोट देने का मतलब टीआरएस को वोट देना.

राज्यसभा उपसभापति के चुनाव से साफ होगा मामला

लोकसभा और विधानसभा चुनावों से पहले, इसी साल जुलाई में तेलंगाना में पंचायत चुनाव होने हैं. हालांकि इन चुनावों में राजनीतिक दल नहीं लड़ते , लेकिन ये भी सच है कि राजनीतिक दल अपने अपने उम्मीदवारों को पीछे से इसके लिए धन-बल मुहैया कराते हैं.

लेकिन असल चुनावों से पहले एक जुलाई को राज्यसभा के डिप्टी चेयरमैन के पद का चुनाव होना है. और इसी चुनाव में पता चल जाएगा कि टीआरएस और बीजेपी साथ-साथ चलने के लिए राजी हैं भी या नहीं. सत्ता और विपक्ष दोनों के लिए राज्यसभा में 122 का आंकड़ा पाना मुश्किल है. ऐसे में टीआरएस, वाईएसआर कांग्रेस और बीजू जनता दल के वोट ही तय करेंगे कि किसकी जीत होगी. हो सकता है कि टीआरएस इस पद के लिए अपने सांसद केशव राव का नाम आगे करे. अगर केशव राव को जिताने के लिए बीजेपी ने टीआरएस का साथ दिया तो तय हो जाएगा कि ये दोस्ती आगे बीजेपी को फायदा पहुंचाएगी. हालांकि अभी ये तय नहीं हुआ है कि नायडू समेत बाकी विपक्ष भी टीआरएस के उम्मीदवार का समर्थन करेंगे या नहीं.

हालांकि अगर ऐसा हुआ, तो सवाल उठेगा कि राज्यसभा में सभापति और उपसभापति दोनों पदों पर तेलुगू नेता क्यों बैठाए गए हैं. एक और बात देखनी होगी कि केसीआर के करीबी, असदुद्दीन ओवैसी, टीआरएस-बीजेपी की दोस्ती पर क्या रुख रखते हैं.