भाजपा को मिल सकता है सत्तारूढ़ दलों के विधायकों का साथ : येदियुरप्पा


येदियुरप्पा ने बीजेपी की राज्य कार्यकारिणी की बैठक को संबोधित करते हुए जेडीएस- कांग्रेस गठबंधन को ‘अपवित्र गठबंधन’ करार दिया


कर्नाटक में सत्तारूढ़ गठबंधन के कुछ सदस्यों में असंतोष के बीच प्रदेश बीजेपी अध्यक्ष बी एस येदियुरप्पा ने आज दावा किया कि कांग्रेस और जेडीएस के कई नेता उनकी पार्टी में शामिल होने को तैयार हैं.

विधानसभा में विपक्ष के नेता येदियुरप्पा ने यहां बीजेपी की राज्य कार्यकारिणी की बैठक को संबोधित करते हुए जेडीएस- कांग्रेस गठबंधन को ‘अपवित्र गठबंधन’ भी करार दिया. येदियुरप्पा ने अपनी पार्टी के लोगों से कहा कि वे 2019 के आम चुनाव में राज्य की 28 लोकसभा सीटों में 25 पर बीजेपी की जीत सुनिश्चित करने की दिशा में काम करें.

उन्होंने कहा, ‘कांग्रेस और जेडीएस के कई नेता मौजूदा राजनीतिक स्थिति में बीजेपी में शामिल होने को तैयार हैं. मैं नेताओं से अपील करता हूं कि वे ईमानदार और सक्षम लोगों को लाकर पार्टी को मजबूत करने की दिशा में काम करें.’

येदियुरप्पा ने कहा, ‘जो लोग बीजेपी में आने को तैयार हैं, हमें उन तक, उनके घरों तक व्यक्तिगत रूप से जाना होगा और उन्हें पार्टी में लाने तथा लोकसभा चुनाव के वास्ते पार्टी को मजबूत करने के लिए उनसे बात करनी होगी.’

इससे पहले जब कैबिनेट विस्तार के बाद कांग्रेस और जेडीएस, दोनों में व्यापक असंतोष था, तब येदियुरप्पा ने दावा किया था कि सत्तारूढ़ गठबंधन के कई नेता उनकी पार्टी में शामिल होने को इच्छुक हैं.

बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह से मिलने के लिए येदियुरप्पा की हालिया अहमदाबाद यात्रा के बाद ये अटकलें लगाई जा रही थी कि कांग्रेस के कई असंतुष्ट विधायक उनके संपर्क में हैं और पाला बदलने के लिए तैयार हैं, जिससे बीजेपी राज्य में एक बार फिर सरकार बनाने की कोशिश कर सकती है.

हालांकि, येदियुरप्पा ने यह कहते हुए इन अटकलों पर विराम लगाने की कोशिश की थी कि वह शाह को पार्टी की आज की राज्य कार्यकारिणी की बैठक के लिए आमंत्रित करने वहां गए थे.

उन्होंने पिछले महीने विधानसभा में विश्वासमत का सामना किए बगैर मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था क्योंकि बीजेपी बहुमत जुटाने में विफल रही थी. इस साल मई में राज्य में हुए विधानसभा चुनाव के बाद आज बीजेपी की राज्य कार्यकारिणी की पहली बैठक हुई.

इसमें पार्टी महासचिव मुरलीधर राव, केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार, रमेश जिगाजिनगी और पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार सहित अन्य नेता शामिल हुए.

जी सी चतुर्वेदी होंगे ICICI के गैर-कार्यकारी अध्यक्ष


ICICI के नए चैयरमैन जीसी चतुर्वेदी को उनके जूनियर उन्हें निर्विवादित और सौहादपूर्ण अधिकारी के तौर पर याद करते हैं


वर्तमान में प्रबंधन के स्तर पर कई परेशानियों का सामना कर रहा आईसीआईसीआई बैंक ने सरकार के विश्वसनीय और पूर्व पेट्रोलियम सचिव जीसी चतुर्वेदी को अपना गैर-कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया है. चतुर्वेदी उत्तर प्रदेश कैडर के 1977 बैच के सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी हैं और 3 मई 2011 तक पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के सचिव के रूप में भी काम भी कर चुके हैं.

उनके जूनियर उन्हें निर्विवादित और सौहादपूर्ण अधिकारी के तौर पर याद करते हैं. चतुर्वेदी से जुड़ी एक घटना को याद करते हुए अधिकारियों ने बताया कि जब पेट्रोलियाम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के सचिव के रूप में वो पहली बार मंत्रालय पहुंचे तो सभी संयुक्त सचिव और निदेशकों को दरवाजे पर खुद जा कर अपना परिचय पेश किया था. यह नौकरशाही में अपने आप में एक दुर्लभ घटना थी. चतुर्वेदी उस समय सचिव बने थे जब जनार्दन रेड्डी पेट्रोलियम मंत्री हुआ करते थे. रेड्डी से उनका संबंध शहरी विकास मंत्रालय के दिनों से था.

चतुर्वेदी उत्तर प्रदेश सरकार में भी कई सालों तक काम कर चुके हैं. इसके साथ ही वो कैनरा बैंक के डायरेक्टर के पद पर भी रह चुके हैं. चतुर्वेदी ने फिजिक्स और सोशल पॉलिसी में लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक से एमएससी किया है. यूनिवर्सिटी ऑफ ऑक्सफोर्ड से उन्होंने इकोनॉमिक हिस्ट्री में डॉक्टरेट की डिग्री भी हासिल की है.

महिला अफसर को गटर से बचाया गया

गुजरात मे कलेक्टर महोदया स्मार्ट सिटी की सफाई का जायजा लेने गयी तो खुद ही गटर मॆ गिर गयी । नाले के जिस ढक्कन पर DM खड़ी थीं, वही टूट गया।

इसको कहते हैं कमिशनखोरी l

ठेकेदार को 100 तोपों की सलामी l

 

 

मोदी को उन सभी सवालों के जवाब देने चाहिए जो वह चार साल पहले तक मनमोहन सिंह सरकार से पूछा करते थे

 


कांग्रेस ने कहा कि पीएम मोदी को उन सभी सवालों के जवाब देने चाहिए जो वह चार साल पहले तक मनमोहन सिंह सरकार से पूछा करते थे


कांग्रेस ने डॉलर के मुकाबले रुपए की कीमत में रिकॉर्ड गिरावट और स्विस बैंकों में भारतीय नागरिकों द्वारा जमा कराए जाने वाले धन में 50 फीसदी की बढ़ोतरी को लेकर आज प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर तीखा हमला बोला और कहा कि उन्हें अब उन सभी सवालों के जवाब देने चाहिए जो वह चार साल पहले तक मनमोहन सिंह सरकार से पूछा करते थे.

पार्टी ने मोदी का 2013 का एक वीडियो भी जारी किया जिसमें वह डॉलर के मुकाबले रुपए के कमजोर होने के लिए तत्कालीन संप्रग सरकार पर हमले करते नजर आ रहे हैं. कांग्रेस प्रवक्ता आर पी एन सिंह ने संवाददाताओं से कहा, ‘प्रधानमंत्री जी ने कहा था जब मेरी सत्ता आएगी तो जो हिंदुस्तानियों ने 80 लाख करोड़ विदेशों में कालाधन छुपाया हुआ है, उसको लाकर 15 लाख हर गरीब के खाते में डाला जाएगा. लेकिन जो स्विस बैंक के ताजा अधिकृत आंकड़े आए हैं उनसे पता चलता है कि स्विस बैंकों में जमा भारतीय धन में 50 प्रतिशत बढ़ोत्तरी हो गई है.’


मोदी तो भारतीय अर्थव्यवस्था को डॉलर मुक्त बनाने जा रहे थे, क्या हुआ……….


उन्होंने कहा, ‘इससे पहले स्विस बैंकों में भारतीय नागरिकों द्वारा जमा कराए जाने वाले पैसे में सबसे ज्यादा वृद्धि 2004 में हुई थी जब भाजपा की सरकार थी.’ सिंह ने कथित बैंकिंग घोटालों और एनपीए का उल्लेख करते हुए दावा किया, ‘कुछ लोग हमारे बैंकों से 70,000 करोड़ रुपए लेकर देश छोड़ कर भाग गए. ये पैसे देश के गरीब लोगों के थे. बैंकों का एनपीए भी 10 लाख करोड़ रुपए से अधिक हो चुका है. बैंकिंग व्यवस्था में लोगों का विश्वास कम हो रहा है.’

कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा, ‘सरकार से बाहर रहते हुए मोदी जी हर मंच पर, कारोबारी बैठकों में, चुनावी भाषणों में जो सवाल पूछा करते थे, उनका जवाब आज उन्हें खुद देना चाहिए. देश इन मुद्दों पर उनका जवाब सुनना चाहता है.’ इससे पहले कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने इस मुद्दे को लेकर प्रधानमंत्री पर तंज कसते हुए कहा, ‘स्विस बैंकों में काला धन 50 फीसदी बढ़कर 7000 करोड़ रुपए हुआ. वादा था विदेशी बैंकों से 100 दिनों में 80 लाख करोड़ रुपए वापस लाने का. जुमले बने ‘अच्छे दिन, कहां गए वो सच्चे दिन?’

स्विट्जरलैंड के केंद्रीय बैंक के ताजा आंकड़ों के अनुसार भारतीयों द्वारा स्विस बैंक खातों में रखा गया धन 2017 में 50 फीसदी से अधिक बढ़कर 7000 करोड़ रुपए (1.01 अरब फ्रेंक) हो गया. गौरतलब है कि कल डॉलर के मुकाबले रुपया 49 पैसे लुढ़ककर अब तक के निम्नतम स्तर 69.10 रुपए पर पहुंच गया था.

इलाज और बॉडी डिटॉक्सिफिकेशन करवा कर लौटे सिद्धरमैया


सिद्धरमैया ने ट्वीट करके कहा कि 15 दिन के आयुर्वेदिक इलाज और बॉडी डिटॉक्सिफिकेशन के बाद उनका शरीर और दिमाग राजनीति में सक्रिय होने के लिए पूरी तरह तैयार है


गुरुवार रात कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरमैया बेंगलुरु वापस लौटे. एयरपोर्ट पर उतरने के 15 मिनट बाद सिद्धारमैया ने ट्वीट करके कहा कि 15 दिन के आयुर्वेदिक इलाज और बॉडी डिटॉक्सिफिकेशन के बाद उनका शरीर और दिमाग राजनीति में सक्रिय होने के लिए पूरी तरह तैयार है.

हालांकि, यह ट्वीट एक साधारण और आम ट्वीट लगता है, लेकिन इसके जरिए सिद्धारमैया ने अपनी पार्टी कांग्रेस और गठबंधन साझीदार जेडीएस दोनों को संदेश दे दिया है कि उनकी अनदेखी नहीं होनी चाहिए. आने वाले दिनों में वह बड़ी भूमिका निभाएंगे.

प्राकृतिक चिकित्सा के लिए उज्जिर गए थे

कांग्रेस विधानमंडल दल के नेता और कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन समन्वय समिति के अध्यक्ष सिद्धारमैया, राज्य में कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन बनने के बाद मैंगलौर के पास उज्जिर में प्राकृतिक चिकित्सा के लिए चले गए थे. इस दौरान उन्होंने कहा कि वह राजनीति से पूरी तरह दूर हैं. हालांकि, उन्होंने अपने करीबी नेताओं से मुलाकात की और उनकी ‘निजी’ बातचीत मीडिया में भी लीक हो गई.

सिद्धारमैया कांग्रेस द्वारा उन्हें अनदेखा कर जेडीएस से सीधे बातचीत करने की वजह से पार्टी हाईकमान से नाराज हैं, लीक ऑडियो और वीडियो के माध्यम से उन्होंने अपनी नाराजगी सार्वजनिक कर दी. बताया जा रहा है कि इसके बाद कुमारस्वामी ने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से शिकायत कर सिद्धारमैया पर नियंत्रण रखने की मांग की थी.

पहले ही सरकार गिरने की घोषणा कर चुके हैं सिद्धरमैया

गुरुवार को पत्रकारों से बात करते हुए कुमारस्वामी ने कहा था कि कांग्रेस-जेडीएस के बीच कोई समस्या नहीं है. सरकार अपना कार्यकाल खत्म करेगी, जबकि इससे ठीक एक दिन पहले सिद्धारमैया ने अपने सहयोगियों को कहा था कि यह सरकार लोकसभा चुनाव से ज्यादा नहीं चलेगी.

जेडीएस सुप्रीमो और एक समय पर सिद्धरमैया के गुरु एचडी देवगोड़ा ने गठबंधन में चल रही उठापठक पर गुरुवार को बयान देते हुए कहा था कि कांग्रेस और जेडीएस के बीच कोई समस्या नहीं है, गठबंधन सरकार लंबी चलेगी.

दरअसल, देवगौड़ा के साथ सिद्धारमैया के मनमुटाव राजनीतिक कम और निजी ज्यादा हैं, इसलिए कांग्रेस उनकी नाराजगी को ज्यादा तवज्जो नहीं दे रही है. कर्नाटक के ज्यादातर कांग्रेस नेताओं का मानना है कि गौड़ा के प्रति सिद्धारमैया का गुस्सा गठबंधन के पतन का कारण नहीं बनना चाहिए.

कांग्रेस के नेता हैं नाखुश

एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता ने कहा, ‘अगर कर्नाटक में फिर से बीजेपी आती है, तो इसके लिए सिद्धारमैया पूरी तरह से उत्तरदायी होंगे. उन्होंने पिछले पांच सालों में बीजेपी, आरएसएस, हिंदुत्व, मोदी और शाह के खिलाफ इतने बयान दिए हैं, अगर वह वास्तव में धर्मनिरपेक्ष नेता हैं और बीजेपी के खिलाफ हैं, तो उन्हें गठबंधन सरकार का समर्थन कर इसे साबित करना होगा. गौड़ा परिवार के साथ उनके व्यक्तिगत मुद्दे रास्ते में नहीं आने चाहिए, लेकिन नीतीश कुमार की तरह वह भी जनता परिवार की पृष्ठभूमि से हैं. इसलिए वह भी कुछ भी कर सकते हैं.’

सिद्धारमैया के किसी भी कदम के जवाब में देवगौड़ा और कुमारस्वामी ने बीजेपी का विकल्प खुला रखा हुआ है. गुरुवार को बीजेपी एमएलसी और येदियुरप्पा के करीबी लहर सिंह की देवगौड़ा से मुलाकात के बाद इस बात को और अधिक बल मिला है. लहर सिंह ने कहा था कि यह शिष्टाचार मुलाकात थी, जिसका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है.

वहीं, कर्नाटक कांग्रेस चाहती है कि राहुल गांधी सिद्धारमैया पर लगाम लगाएं. उन्हें बताएं कि उन्होंने उन्हें मुख्यमंत्री बनाया और राज्य में खुली छूट दी, लेकिन यह वक्त गठबंधन के साथ चलने का है.

तीसरे मोर्चे की तैयारी में लगे देवेगौडा


एच.डी देवगौड़ा को कांग्रेस के समर्थन वापस लेने से प्रधानमंत्री के पद से हटना पड़ा था. लेकिन अपने भाषण में देवगौड़ा ने कहा था कि अगर उनकी किस्मत में फिर से प्रधानमंत्री बनना है तो वो फिर से उठेंगे और कांग्रेस पार्टी भी उसको रोक नहीं सकती है.


कांग्रेस के नए साथी बने एच.डी देवगौड़ा भी तीसरे मोर्चे की बात शुरू करने वाले हैं. जिसके लिए गैर बीजेपी दलों के नेताओं से मिलने का सिलसिला शुरू कर रहे हैं. पूर्व प्रधानमंत्री भी राजनीतिक संभावना तलाश रहे हैं. एच.डी देवगौड़ा ने कहा कि हमे जल्दी ही तीसरा मोर्चा खड़ा कर लेना चाहिए, ये वक्त की जरूरत है. क्योंकि समय से पहले चुनाव से इनकार नहीं किया जा सकता है. हालांकि कांग्रेस के लिए राहत की खबर है कि कर्नाटक में जेडीएस ने कांग्रेस के साथ ही रहने की बात कही है.

लेकिन लोकसभा चुनाव के लिए दोनों दलों के बीच औपचारिक बातचीत नहीं शुरू हुई है. एच.डी देवगौड़ा कांग्रेस के समर्थन से केंद्र में सरकार चला चुके हैं. जिसमें बीजेपी को छोड़कर लगभग सभी दलों की भागीदारी रही है. कई दल जो एनडीए के साथ हैं, वो संयुक्त मोर्चा सरकार में शामिल थे. यूपीए के साथी भी इस सरकार के हिस्सा थे. जाहिर है कि देवगौड़ा की राजनीतिक गणित में इन सभी संभावनाओं का खयाल जरूर रखा गया होगा.

कर्नाटक में सरकार से मिली मजबूती

कर्नाटक में सरकार आने से जेडीएस को मजबूती मिली है. इससे पहले जेडीएस की केंद्रीय राजनीति में कोई भूमिका नहीं थी. जेडीएस की कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनने के बाद एच.डी देवगौड़ा को केंद्र की राजनीति में दखल देने का मौका मिल गया है. एच.डी देवगौड़ा भी कर्नाटक के मुख्यमंत्री रहते हुए प्रधानमंत्री बने थे. अब उनके बेटे एच.डी कुमारास्वामी मुख्यमंत्री हैं. देवगौड़ा को लग रहा है कि संभावना के इस खेल में उनकी लॉटरी फिर से लग सकती है. इसलिए वो सक्रिय हो रहे हैं.

दक्षिण की भूमिका

बीजेपी अपनी सारी ताकत उत्तर के राज्यों में लगा रही है. नया प्रयोग बंगाल और ओडिशा में कर रही है. बीजेपी को साउथ के राज्यों से ज्यादा उम्मीद नहीं है. कांग्रेस भी इन राज्यों में कमजोर है. रीजनल पार्टियां यहां मजबूत हैं. तमिलनाडु में एआईडीएमके और डीएमके, आंध्र प्रदेश में टीडीपी और वाईआरएस तेलांगना में टीआरएस जो पहले से ही तीसरे मोर्चे की वकालत कर रही है. केरल में भी लेफ्ट कांग्रेस के मुकाबले में है. ओडिशा में नवीन पटनायक गैर कांग्रेस गैर बीजेपी मोर्चे के साथ जा सकते हैं. ममता बनर्जी खुलकर तीसरे मोर्चे के लिए कवायद कर रही हैं.

केजरीवाल का भी मिलेगा साथ

राहुल गांधी के इफ्तार में सभी विपक्षी दलों को दावतनामा भेजा गया. लेकिन दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को न्योता नहीं दिया गया था. दिल्ली में केजरीवाल एलजी के खिलाफ धरने पर बैठे तो कांग्रेस का कोई नुमाइंदा नहीं पहुंचा. लेकिन ममता बनर्जी समेत चार मुख्यमंत्री केजरीवाल से मिलने दिल्ली आए थे. इनमें एच.डी कुमारास्वामी भी शामिल थे. इसके अलावा चंद्रबाबू नायडू और केरल के सीएम पी.विजयन भी थे. केजरीवाल और ममता के रिश्ते काफी अच्छे हैं. ममता कई बार कांग्रेस के नेताओं से इशारा कर चुकी हैं. ममता चाहती हैं कि केजरीवाल को भी भविष्य के गठबंधन में शामिल किया जाए. लेकिन कांग्रेस इसके लिए तैयार नहीं है.

देवगौड़ा ने किया इशारा

पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी देवगौड़ा ने कई इशारे किए हैं. बेंगलूरु में कुमारास्वामी के शपथग्रहण समारोह में लगभग पूरा विपक्ष शामिल हुआ था. जिसपर देवगौड़ा ने साफ किया है कि मंच पर एक साथ दिखाई देने वाले नेता, जरूरी नहीं है कि चुनाव भी साथ लड़े, यानि संकेत साफ है कि कांग्रेस किसी मुगालते में ना रहे. मंच का फोटोसेशन राजनीतिक मुनाफे में तब्दील हो इसकी कोई गारंटी नहीं है. देवगौड़ा अभी कोशिश कर रहे हैं कि वो संयुक्त मोर्चा की तर्ज पर नया गठजोड़ खड़ा करें. अगर इसमें कामयाबी मिली तो कांग्रेस को सलाम नमस्ते भी कर सकते हैं. देवगौड़ा की अगुवाई वाली सरकार में लेफ्ट के इंद्रजीत गुप्ता मंत्री थे तो मुलायम, लालू, पासवान, शरद यादव तक मंत्रिपरिषद में थे. डीएमके, टीडीपी भी सरकार के साथ थे. बीजेडी तब जनता दल का ही हिस्सा थी.

कर्नाटक में ऑल इज नॉट वेल

कर्नाटक में पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धरमैया का वीडियो वायरल हुआ है. इसमें वो आशंका जाहिर कर रहे हैं कि प्रदेश की सरकार ज्यादा दिन नहीं चलने वाली है. जबकि इस पर देवगौड़ा ने कहा कि ऐसा सिद्धरमैया सोचते होंगे. जिससे लगता है कि कर्नाटक में गठबंधन की सरकार में को की कमी है.पार्टी के सीनियर नेता सरकार के कामकाज पर खुश नहीं है.जिससे बार बार इस तरह की बाते उठ रही है.

ड्राइविंग सीट के लिए मारामारी

यूपीए का गठबंधन का स्वरूप सामने नहीं आया है. कमजोर जेडीएस को ड्राइविंग सीट देने से रीजनल पार्टियां संभावना तलाश रही हैं. आरजेडी के नेता तेजस्वी यादव सार्वजनिक तौर पर कांग्रेस को आगाह कर चुके हैं. कांग्रेस के साथी राज्यों में गठबंधन मनमुताबिक चलाना चाहते हैं. तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार के बारे में जो नो वैकेंसी वाला बयान दिया है. इसको साबित करता है. कांग्रेस ने भी तेजस्वी के बयान पर कुछ नहीं कहा है. बिहार में कांग्रेस की मजबूरी आरजेडी है.

कांग्रेस नहीं कर रही प्रयास

शायद कांग्रेस को हालात का अंदाजा है, इसलिए औपचारिक तौर पर कोशिश नहीं हो रही है. कांग्रेस के नेता समय का इंतजार करने की बात कह रहे हैं. चुनाव नजदीक आने पर कांग्रेस की कोशिश तेज होगी. राज्यवार गठबंधन की बात पर विचार हो रहा है. लेकिन यूपीए का कुनबा बढ़ाने की कोशिश नहीं की जा रही है. एनडीए का साथ छोड़ रहे दलों से कांग्रेस की तरफ से कोई पेशरफ्त नहीं हो रही है. जिससे तीसरे मोर्चे की बात बार-बार उठ रही है.

कांग्रेस ने गिराई थी देवगौड़ा सरकार

एच.डी देवगौड़ा को कांग्रेस के समर्थन वापस लेने से प्रधानमंत्री के पद से हटना पड़ा था. लेकिन अपने भाषण में देवगौड़ा ने कहा था कि अगर उनकी किस्मत में फिर से प्रधानमंत्री बनना है तो वो फिर से उठेंगे और कांग्रेस पार्टी भी उसको रोक नहीं सकती है. देवगौड़ा शायद फिर से उठने की कोशिश कर रहे हैं. इस बार हालात 1996 से भी ज्यादा मुफीद हैं. फर्क इतना है कि तब कांग्रेस की कमान केसरी के पास थी अब राहुल गांधी के पास है.

These 10 rules of Railway changed from 1st July

 

* 1 *) The waiting list will end. Facility to run from the railway side will be provided with confirmed tickets for the passengers in the trains.

* 2 *) After the cancellation of Tatkal ticket from July 1, 50 percent of the amount will be refunded.

* 3 *) From July 1, there has been a change in the rules of the instant ticket. Tickets will be booked for AC coach from 10 am to 11 am, while sleeper coaches will be booked from 11 am to 12 pm.

* 4 *) From 1 July, the facility of paperless ticketing is being started in the capital and centenary trains. After this facility, there will be no paper ticket in the Centenary and Capital Trains, but tickets will be sent to your mobile.

* 5 *) Ticketing facility is going to start soon in Railway Overseas Languages. Till now, tickets get tickets in Hindi and English, but after the new website, tickets can now be booked in different languages.

* 6 *) There is always a fight for the ticket in the railway. In this way, the number of coaches will be increased from 1st July to Century and in the capital trains.

* 7 *) In order to provide better facilities in trains during the crowds, there is a plan to introduce alternative train adjustment system, facilitate train start and drive duplicate of important trains.

* 8 *) Railway Ministry will run a facility train on July 1, on the lines of Rajdhani, Shatabdi, Duronto and Mail-Express trains.

* 9 *) From July 1, the railway is going to shut down the premium trains completely.

* 10 *) Facilities will be refund of 50 percent rent on ticket withdrawal in trains. Apart from this, 100 rupees on AC-2, 90 rupees on AC-3, 60 rupees per tripper on sleeper.
Issued in public interest

* Feeling anxious in the train *, the railway station will wake up when the station arrives ….

You will be able to activate the backup call-destination alert facility on your PNR by calling 139.

Before commuters traveling in the night at the train, before the departure station, the railway has started the Wakeup Call-Destination Alert facility.

➡ * What’s the destination alert *

> This feature has been named * Destination Alert *.

> Activating the facility will alert the mobile even before the destination station arrives.

> To activate the feature

* After typing * Alert *

* PNR number * to be typed
And have to send on 139.

> Call * 139 *.
Choose the language after calling
And then dial 7.

* After dialing 7, dial PNR number *. After this the service will be activated

> This feature has been named * Wakeup Call *.

गी Mobile bell will ring until the receipt

Activating this service will cause a mobile bell before the station arrives.
This bell will ring until you receive the phone. On receipt of the phone, the passenger will be informed that the station is about to arrive.

Only 13 percent of students are able to secure jobs- CAG


Sareeka Tewari

Chandigarh 29 June, 2018 :

A fifth of all school teachers in the country do not have the requisite qualifications to teach young children. If this doesn’t shock you, take a look at what’s going in your State.

Today lets talk about Haryana.

A recent report by the Comptroller and Auditor General (CAG) of India showed that a mere 41 percent of students at colleges under Maharshi Dayanand University (MDU) — one of Haryana’s oldest and largest universities — passed in the year 2015-16.

The pass percentage has been in constant decline since 2012-2013: It was 55 percent only three years ago.

Pass percentage by year:

Year                   Students appeared         Students passed                Pass percentage

2012-13              6, 41, 328                           3, 55, 786                                   55

2013-14             6, 43, 790                            3, 32, 029                                  52

2014-15             6, 48, 390                           3, 89, 330                                  45

2015-16             6, 30, 294                           2, 59,363                                    41

(Data: CAG report)

MDU, which has about 250 colleges under it has reportedly granted affiliation to several institutes which lack necessary infrastructure.

On inspecting 40 random colleges, the CAG found out that 27 lacked proper teaching staff; either there was a shortage of teachers or the teachers hired lacked the necessary qualifications. Sixteen of the 40 colleges lacked proper laboratory equipment.

At Rohtak’s Pt Neki Ram College, the alma-mater of Chief Minister Manohar Lal Khattar, the number of students admitted was higher than the available seats for both BA and BSc courses.

Some students feel that nepotism is to blame. “Our classrooms are small but the intake is high due to nepotism in admissions. There is also a shortage of faculty. Part-time lecturers have been hired to make up for this. But instead of teaching, they are mostly out protesting to be made permanent,” said Mohit Kumar, a final year BA student.

At MDU, the situation is not very different. Students from various departments complain that the 665-acre campus lacks enough laboratories and research facilities. As of 2017, there was also a 26 percent shortfall in the number of teachers: 101 posts were lying vacant. This deteriorating quality of higher education can be seen reflected in the high unemployment rate among Haryana graduates.

Last year, as many as 23,166 people applied for 92 peon jobs in MDU, Rohtak. People holding degrees — MA, M.Ed, and an M.Phil — were all seen applying for the post.

The CAG report pointed out that only 13 percent of students at the University Institute of Engineering and Technology (UIET) managed to secure jobs in its last two sessions. “The syllabus taught by MDU is ancient. We are still taught subjects such as old JavaServer Pages, telnet, fundamentals of internet which are of no use in present times,” said a fourth year computer science student.

UIET placement record:

Year                          Admitted students                Placed students                       Percentage

2012-13                              439                                              78                                         18

2013-14                              431                                               48                                        11

2014-15                              579                                               76                                        13

2015-16                              479                                               61                                        13

Pradeep Deswal, a PhD law student at MDU and president of the Indian National Students’ Organisation, said students were completely dependent on themselves to prepare for examinations. “As a union leader, most requests I get from students is to get them a seat in the main library. It’s always packed. Teachers at the university are busy attending seminars, conferences and writing research papers,” he said.

We regularly submit memorandums to the vice-chancellor requesting him to take classes. All of it falls on deaf ears,” he added. The CAG report backed Deswal’s claim, highlighting a nearly 50 percent decrease in work load of teachers at the university.

MDU vice-chancellor Bijender Kumar Punia refused to comment. “I have already replied to the CAG officials to whom I was legally bound to answer. They have given us some recommendations which we will follow,” he said.

But the CAG said the university’s replies were unsatisfactory and not precise in several instances. It said MDU did not even analyse its ails and recommended the university adhere to prescribed standards in granting affiliations and improve existing infrastructure.

5 लाख के इनाम की घोषणा के अगले ही दिन अगुवा हुए जवान खोजे


बता दें कि पत्थलगड़ी समर्थकों ने बीते मंगलवार को सांसद करिया मुंडा के घर से उनके तीन अंगरक्षकों का उनके हथियारों के साथ अपहरण कर लिया था


झारखंड के खूंटी में पत्थलगड़ी समर्थकों द्वारा अपहृत स्थानीय सांसद करिया मुंडा के तीनों अंगरक्षकों को झारखंड पुलिस ने खोज निकाला है.

बता दें कि पत्थलगड़ी समर्थकों ने बीते मंगलवार को अपने नेताओं के घर कुर्की की कार्रवाई के बाद उग्र होकर खूंटी में सांसद करिया मुंडा के घर से उनके तीन अंगरक्षकों का उनके हथियारों के साथ अपहरण कर लिया था.

जिसके बाद जवानों की खोज में पुलिस की अलग-अलग टीमों ने गुरुवार को पत्थलगड़ी के मास्टरमाइंड यूसुफ पूर्ति के गांव उदबुरू सहित आसपास के 10 दर्जन गांवों में विशेष सर्च अभियान चलाया था लेकिन एक-एक घर की तलाशी लेने के बावजूद उन्हें कोई सफलता हासिल नहीं हुई थी.

सर्च अभियान में 2200 से ज्यादा पुलिसकर्मियों  को लगाया गया था. इनमें आठ डीएसपी, जैप की 10 कंपनी, 387 प्रशिक्षु दारोगा, रैपिड एक्शन पुलिस की चार कंपनी के अलावा  खूंटी, रांची, लोहरदगा व सिमडेगा जिले के 500 से ज्यादा जवान  शामिल थे.
झारखंड पुलिस ने यहां तक कि तीनों जवानों की सूचना देनेवाले को पांच लाख रुपए इनाम देने की घोषणा भी कर दी थी लेकिन घोषणा के एक दिन बाद ही पुलिस को कामयाबी मिल गई और तीनों जवानों को खोज निकाला गया.  हालांकि अभी तक आरोपियों का कोई सुराग नहीं मिला है.

 

 

अपने ही जाल में उलझी आ आ पा


केजरीवाल अपनी हार का ठीकरा कभी ईवीएम पर तो कभी बीजेपी पर फोड़ते रहे हैं लेकिन क्या उनकी पार्टी की लगातार हार उनके दिल्ली सरकार चलाने के तरीके पर सवालिया निशान तो नहीं है?


आम आदमी पार्टी हरियाणा में चुनाव लड़ेगी और उसने अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार भी चुन लिया है. पंडित नवीन जयहिंद मुख्यमंत्री उम्मीदवार होंगे. इस खबर ने आम आदमी पार्टी की हरियाणा विंग को जरूर खुश कर दिया लेकिन आम आदमी यानी आपके और हमारे लिए ये खबर बस अखबार में लिखे चंद शब्द थे.

राजनीति कुछ ऐसी ही होती है. अन्ना हजारे आंदोलन से निकली, भ्रष्टाचार को खत्म करने और व्यवस्था को साफ करने का आंदोलन कर के अरविंद केजरीवाल जब आम आदमी पार्टी बनाकर सक्रिय राजनीति में घुसे तो लोगों ने हाथों हाथ ले लिया.

2013 से आम आदमी पार्टी ने जिस तरह से धमाकेदार एंट्री की, उससे दिल्ली की दोनों पार्टियां हिल गई. इस पार्टी ने लोगों में ऐसी उम्मीद जताई कि आम आदमी को लगा कि देश में सारे बदलाव कर ये पार्टी एक आदर्श भारत का निर्माण करेगी. आम आदमी पार्टी का उबरने का सबसे बड़ा खामियाजा कांग्रेस पार्टी को भुगतना पड़ा था, क्योंकि केंन्द्र और राज्य में उन्हीं की सरकार थी इसलिए केन्द्र में यूपीए और राज्य में शीला दीक्षित की कांग्रेस सरकार पर जब आम आदमी पार्टी ने आरोपों की झड़ी लगाई तो लोगों ने खूब ताली बजाई. और कांग्रेस के वोटर्स आम आदमी पार्टी के सपोर्टर्स बन गए.

दिल्ली की जनता के विश्वास पर आप अध्यक्ष अरविंद केजरीवाल भी कुछ ज्यादा ही उत्साहित हो गए और दिल्ली में 2013 में 70 में से 28 सीटों पर विजय प्राप्त की, लेकिन राजनीति में घुसते ही उन्हें अपने आप से भी कुछ ज्यादा उम्मीदें हो गई थीं. इसलिए 2013 में जीती हुई आप ने अपनी ही सरकार के खिलाफ विपक्ष की भूमिका निभाई. और 49 दिनों में सरकार से इस्तीफा भी दे दिया.

आम आदमी पार्टी की भारत विजय यात्रा

अति उत्साहित अरविंद केजरीवाल को दिल्ली के नेता से देश के नेता बनने की जल्दबाजी थी. और वो इस जल्दबाजी में भारत विजय यात्रा पर निकल पड़े. 2014 में आम आदमी पार्टी ने लोकसभा में 434 उम्मीदवार खड़े किए. खुद अरविंद केजरीवाल बीजेपी के प्रधानमंत्री उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी को चुनौती देने के लिए वाराणसी पहुंच गए. उनको उम्मीद थी कि इतने सारे उम्मीदवारों को खड़े करने के बाद वो इतने वोट जमा कर लेंगे कि चुनाव आयोग उन्हें राष्ट्रीय पार्टी घोषित कर देगा. लेकिन उनकी अपनी जल्दबाजी ने उन्हें जमीन पर लाकर पटक दिया.

पंजाब में जरूर उनके चार उम्मीदवार चुनकर आ गए और वहां पर वो क्षेत्रीय पार्टी के रूप में स्थापित हो गई. दिल्ली में करीब 32 फीसदी वोट पाने के बावजूद उनकी पार्टी ने एक भी सीट पर विजय हासिल नहीं की और लोकसभा चुनाव में उनके 414 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई.

पार्टी की हार के बाद उनके अपने लोगों ने उन पर सवालिया निशान खड़े करने शुरू कर दिए. वैसे भी आम आदमी पार्टी के संस्थापक सदस्यों ने केजरीवाल की भारत विजय यात्रा पर पहले भी सवाल उठाए थे. लेकिन यहीं पर पार्टी में टूट साफ दिखने लगी.

दिल्ली की नंबर वन पार्टी

केजरीवाल ने 2015 में दिल्ली विधानसभा में फिर हाथ आजमाया और इस बार रिकॉर्ड तोड़ वोट मिले. दिल्ली विधानसभा में 70 में से 67 सीटों पर कब्जा कर आप दिल्ली की नंबर वन पार्टी बन गई. बीजेपी को उसने तीन सीटों पर समेट दिया और 15 साल दिल्ली में राज करने वाली कांग्रेस का तो खाता भी नहीं खुला.

इस हैरतंगेज चुनाव परिणाम की उम्मीद तो केजरीवाल को भी नहीं थी और फिर वो उसी रौ में बह गए. दिल्ली की जीत ने उन्हें ये बता दिया कि दिल्ली में लोगों की उम्मीदे अभी भी हैं लेकिन उन्हें ये नहीं समझ आया कि दिल्ली की शहरी पढ़ी-लिखी जनता ने उन्हें वोट दिया है. बदलाव की राजनीति का सपना संजोकर देश के सियासी फलक पर तेजी से उभरी आम आदमी पार्टी के लिए साल 2015 भले ही दिल्ली की सत्ता लेकर आया लेकिन जीत के बावजूद केजरीवाल अपनी पार्टी में बगावती सुर को संभाल नहीं पाए.

संस्थापक सदस्यों ने केजरीवाल पर पार्टी को मूल दिशा से भटकाने का आरोप लगाया. केजरीवाल ने पार्टी की दिशा तो नहीं बदली लेकिन विरोध के स्वर को दबाना शुरू कर दिया. नतीजा संस्थापक सदस्य जैसे योगेन्द्र यादव, प्रशांत भूषण, किरण बेदी, आनंद कुमार, शाजिया इल्मी ने पार्टी छोड़ दी. किरण बेदी और शाजिया ने बीजेपी का दामन थामा जबकि योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण ने अपनी पार्टी स्वराज्य इंडिया बनाई.

दिल्ली में सरकार बनाते ही आप फिर अपने फॉर्म में आ गई. केजरीवाल ने पहले दिल्ली के लेफ्टिनेंट गर्वनर और फिर केन्द्र की मोदी सरकार पर हमला साधा. एल.जी पर उन्होंने सरकार को काम नहीं करने देने का आरोप लगाया. हर बात पर एल.जी और केन्द्र सरकार से लड़ाई ने केजरीवाल को बात-बात पर लड़ने वाले नेता की छवि दी, लेकिन सरकार में रहने के बावजूद काम नहीं करने का दोषारोपण केन्द्र सरकार पर लगातार डालना लोगों को समझ नहीं आ रहा था.

साथ ही प्रधानमंत्री मोदी पर उनके हमले लगातार बढ़ते चले गए और ये हमले राजनीतिक के साथ-साथ निजी होते चले गए. ये बात लोगों को हजम नहीं हो रही थी. हर बात पर आरोप लगाने वाली आप सरकार से लोगों का भी मोहभंग होने लगा था.

देश को नई दिशा और दशा देने का सपना संजोकर देश के सियासी फलक पर तेजी से उभरी आम आदमी पार्टी के लिए साल 2017, संगठन में विस्तार के लिहाज से बहुत फायदेमंद साबित नहीं हुआ. दिल्ली में सरकार बनाने के बाद केजरीवाल फिर दिल्ली के बाहर किला फतह करने निकल पड़े. गोवा और पंजाब में सरकार बनाने निकली आप ने सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए.

उन्होंने 2017 में गोवा विधानसभा में 39 सीटों में से 38 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे साथ ही पंजाब में क्षेत्रीय पार्टी के तौर पर विधानसभा चुनाव में लोक इंसाफ पार्टी के साथ गठबंधन कर 117 सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े कर दिए. आप को ये पूरी उम्मीद थी कि वो पंजाब में सरकार बना लेगी यही वजह थी कि 2017 में पार्टी ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी. बात यहां तक होने लगी कि अरविंद केजरीवाल दिल्ली की सत्ता या तो अपनी पत्नी नहीं तो मनीष सिसोदिया को देकर पंजाब में मुख्यमंत्री का पद संभालेंगे. लेकिन नतीजे उनके पक्ष में नहीं आए.

गोवा विधानसभा में उनके सभी उम्मीदवारों की जमानत जब्त हुई. जमानत जब्त यानी उनके नेता अपने क्षेत्र में छह फीसदी वोट लेने में भी सफल नहीं हुए. वहीं पंजाब में कांग्रेस की सरकार बनी. आप को 22 सीटें मिली. पंजाब की हार ने पार्टी को बहुत बड़ा झटका दिया. पंजाब में अपनी जीत को सौ फीसदी मानने वाली आम आदमी पार्टी ने चुनाव में मिली हार ने तोड़ कर रख दिया. वोट शेयर के मामले में भी आप पंजाब में तीसरे नंबर पर रही. इस नतीजे ने आम आदमी पार्टी के नेताओं और कार्यकर्ताओं का मनोबल तोड़ कर रख दिया. और यही वजह थी कि वो दिल्ली में आने वाले एमसीडी चुनाव में अपनी पूरी ताकत से खड़ी नहीं हो पाई.

एमसीडी में उन्हें हार का सामना करना पड़ा और बीजेपी ने तीनों एमसीडी पर कब्जा कर लिया, दो साल पहले तक प्रचंड बहुमत वाली आप सरकार को एमसीडी चुनाव मुंह की खानी पड़ी. अपने लोकलुभावन वादों के चलते आम आदमी पार्टी सत्ता में तो आ गयी, लेकिन दो साल पूरे होने के बावजूद पार्टी उन वादों को पूरा करने की दिशा में आगे नहीं बढ़ पाई थी.

अपने द्वारा किये तमाम वादे जैसे महिला सुरक्षा के लिए पूरी दिल्ली में सीसीटीवी लगवाना और राष्ट्रीय राजधानी को वाईफाई जोन में तब्दील कर देना इत्यादि जैसे वादों के साथ-साथ दिल्ली में नए स्कूल, कॉलेज और अस्पताल खोलना, संविदा कर्मचारियों को स्थायी करना जैसे मुद्दों पर आम आदमी पार्टी बचती नजर आयी. केन्द्र सरकार और एलजी पर लगातार आरोपों की झड़ी लगाती रही.

दिल्ली में भी उनका सफर बहुत आसान नहीं रहा. उनके पार्टी में विरोध के स्वर लगातार गूंज रहे हैं. राजनीति में नौसिखिए दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने 21 विधायकों को संसदीय सचिव बनाया था, जो लाभ का पद है. पंजाब चुनाव के दौरान एक ने इस्तीफा दे दिया था. लेकिन 20 विधायकों पर तलवार लटक रही है.

कायदे से कानून कहता है कि संसद या फिर किसी विधानसभा का कोई भी सदस्य अगर लाभ के किसी भी पद पर होता है तो उसकी सदस्यता जा सकती है. हालांकि फिलहाल उन्हें हाईकोर्ट ने अपना पक्ष रखने का मौका दिया है लेकिन मामला गंभीर है. हालांकि आप की सरकार को खतरा नहीं है लेकिन उनकी छवि पर ये बहुत बड़ा झटका है.

राज्यसभा चुनाव ने अरविंद केजरीवाल के लिए मुसीबतें बढ़ा दीं. उनके करीबी नेताओं को उम्मीद थी कि केजरीवाल राज्यसभा की तीन सीटों पर उनके नाम को आगे बढ़ाएंगे. लेकिन केजरीवाल ने दो बाहरी उम्मीदवारों को चुना. पार्टी में से सिर्फ संजय सिंह को चुना गया. ये उनके करीबी लोगों के लिए बड़ा झटका था.

केजरीवाल का माफीनामा

अरविन्द केजरीवाल ने सोनिया गांधी और कांग्रेस पार्टी और बीजेपी और मोदी पर लगातार निशाना साधा. आरोप की झड़ी लगाते चले गए लेकिन कार्रवाई के नाम पर कुछ नहीं किया. लेकिन ये सारे आरोपों की झड़ी ने उन पर कोर्ट केस की झड़ी लगा दी. केसों के निबाटारा करने के लिए अरविन्द केजरीवाल ने लोगों से माफी मांगनी शुरू की.

पंजाब में अकाली दल के नेता बिक्रम मजीठिया को ड्रग्स माफिया कहने पर हुए मानहानि केस में माफी मांगने के बाद केजरीवाल अब तक नितिन गडकरी, वित्त मंत्री अरुण जेटली और कांग्रेस नेता कपिल सिब्बल से माफी मांग चुके हैं. एक समय पर केजरीवाल ने भ्रष्टाचार का आरोप लगाते हुए इन नेताओं के खिलाफ आखिरी सांस तक लड़ाई लड़ने का दावा किया था.

हालांकि उनका तर्क था कि कोर्ट के चक्कर लगाने में सरकार का पैसा खर्च हो रहा है लेकिन सूत्रों का मानना था कि वो कोर्ट में अपने आरोप सिद्ध नहीं कर पा रहे थे. बताया जाता है कि सुप्रीम कोर्ट ने नेताओं के केस की फास्ट ट्रैक सुनवाई का आदेश है. ऐसे में आपराधिक मानहानि का केस झेल रहे केजरीवाल को चिंता है कि अगर उन्हें इस चक्कर में सजा मिल गई तो उनकी भविष्य की राजनीति प्रभावित होगी.

आईएस थप्पड़

मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल फिर विवादों में फंसे जब उन पर उनके मुख्य सचिव मुख्यमंत्री निवास पर आप नेताओं द्वारा मारपीट का आरोप लगाया. ये केजरीवाल की छवि पर बहुत बड़ा झटका था. उनके नेताओं पर बाकायदा पुलिस कार्रवाई हुई और अफसरों ने अपनी सुरक्षा की मांग की. बदले में अरविंद केजरीवाल ने फिर एनजीओ मार्का राजनीति की कोशिश की और एलजी ऑफिस के वेटिंग रूम में धरने पर बैठ गए.

दिल्ली को पूर्ण राज्य का दर्जा दिलाने की मांग करने लगे और साथ ही आईएस अफसरों पर असहयोग आंदोलन का आरोप लगाया. नौ दिन चले इस पूरे धरने में केजरीवाल फिर बैकफुट पर आए जब आईएएस अफसर संगठन ने केजरीवाल से ही सुरक्षा की गारंटी मांग ली. एसी कमरे में धरने पर बैठे केजरीवाल के इस आंदोलन ने आम लोगों का साथ नहीं मिला. हालांकि कार्यकर्ताओं ने धरना प्रदर्शन सब किया लेकिन हाईकोर्ट ने केजरीवाल के धरने को गलत ठहराया.

अब जब केजरीवाल ने फिर दिल्ली से बाहर कदम रखने की बात कही तो इस बार हरियाणा चुना. केजरीवाल खुद हरियाणा से हैं. उन्हें उम्मीद है कि हरियाणा में लोग उनके काम को देख रहे हैं. उनके धुर विरोधी योगेन्द्र यादव ने लोकसभा का चुनाव भी हरियाणा से लड़ा था. हरियाणा में विधानसभा चुनाव नवंबर 2019 में होंगे.

केजरीवाल को उम्मीद है कि हरियाणा का वैश्य समाज उनका साथ देगा. हालांकि उनकी उम्मीदें अभी तक बहुत रंग नहीं लाई हैं. दिल्ली के अलावा हर जगह हारने वाली आम आदमी पार्टी भविष्य में क्या करेगी ये तो देखने वाली बात है. केजरीवाल अपनी हार का ठीकरा कभी ईवीएम पर तो कभी बीजेपी पर फोड़ते रहे हैं लेकिन क्या उनकी पार्टी की लगातार हार उनके दिल्ली सरकार चलाने के तरीके पर सवालिया निशान तो नहीं है.