अभिनेत्री सूर्या शिशकुमार, उसकी मां और बहन को नकली नोट छापने के आरोप में गिरफ्तार किया गया

कोल्लम
केरल की टीवी अभिनेत्री सूर्या शिशकुमार, उसकी मां और बहन को नकली नोट छापने के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। पुलिस के अनुसार तीनों अपने घर पर नकली नोट छापती थीं। सूर्या शशिकुमार पूर्व में हुए नुकसान की भरपाई करने के लिए नकली नोट छापने का काम कर रही थीं। सूर्या एक प्रसिद्ध अभिनेत्री हैं और वह केरल के कई टीवी चैनलों पर प्रसारित होने वाले कई सीरियल में अभिनय कर चुकी हैं।
पुलिस क्षेत्राधिकारी वीएस सुनील कुमार की अगुआई में पुलिस दल ने बुधवार को सूर्या और उसके परिवार के सदस्यों को गिरफ्तार किया। सुनील कुमार ने बताया कि उन्हें अभिनेत्री के घर से नोट छपाई की हर तरह की सामग्री मिली है। उन्होंने कहा कि गुरुवार को इनके दो और साथी गिरफ्तार किए गए जिससे इस मामले में गिरफ्तार हुए लोगों की संख्या आठ हो गई है। सभी गिरफ्तार व्यक्यिों को गुरुवार को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया।

सुनील कुमार ने कहा, ‘हमें वहां से दो लाख रुपये के नकली नोट मिले….हमने कागज, प्रिंटर्स और नकली नोट बनाने में प्रयुक्त होने वाली अन्य सामग्री जब्त की। उनके घर पर इतनी सामग्री थी कि जिससे 50 लाख रुपये के नकली नोट छापे जा सकते हैं।’ पुलिस अधिकारी ने कहा, ‘अभिनेत्री और उसके परिवार ने कबूल किया है कि वे लोग पिछले साल सितंबर से नकली नोट छापने का काम कर रहे थे।’

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में महिलाओं के जाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि महिलाओं के लिए राष्ट्रीय सेविका समिति है: सुमित्रा महाजन


सुमित्रा महाजन ने कहा ‘जब मैं अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठती हूं तो मैं सोचती हूं कि सभी दलों की अपनी राजनीति है. उनकी अपनी समस्याएं हैं और अपने नेता हैं जिन्होंने सांसदों को कुछ करने का निर्देश दिया होता है. मैं सदैव उन्हें समझने का प्रयास करती हूं.’


लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने शुक्रवार को कहा कि वह मातृभाव से सदन चलाने का प्रयास करती हैं.

लोकसभा स्पीकर सुमित्रा महाजन ने शुक्रवार को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी का नाम लिए बिना बताया कि उन्होंने देश के एक बड़े नेता को पत्र लिखकर उनके बयान का जवाब दिया था कि, ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में महिलाओं के जाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि महिलाओं के लिए राष्ट्रीय सेविका समिति है.’

उन्होंने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की महिला शाखा राष्ट्र सेविका समिति की संस्थापक लक्ष्मीबाई केलकर की जयंती पर एक कार्यक्रम में समिति के सदस्यों को संबोधित करते हुए कहा कि जिस तरह मां सार्वजनिक रूप के बजाय बंद कमरे में अपने बच्चों को डांटती है, उसी तरह उनके काम में बेहतर संतुलन कायम करने की जरूरत होती है.

उन्होंने कहा, ‘जब मैं अध्यक्ष की कुर्सी पर बैठती हूं तो मैं सोचती हूं कि सभी दलों की अपनी राजनीति है. उनकी अपनी समस्याएं हैं और अपने नेता हैं जिन्होंने सांसदों को कुछ करने का निर्देश दिया होता है. मैं सदैव उन्हें समझने का प्रयास करती हूं.’

महाजन ने कहा, ‘मेरा प्रयास सदैव सदन को सुचारू रूप से चलाना होता है. यदि वे उसके बाद भी नहीं समझते हैं तो तब मैं सदन स्थगित कर देती हूं, उन्हें अपने केबिन में बुलाती हूं और उन्हें समझाती हूं. मैं उन्हें सलाह भी दे सकती हूं. अतएव यह मेरे मातृत्व को दर्शाता है. मैं अपना गुस्सा नहीं दिखाती हूं. यह समाज में संतुलन बनाने का भी एक उदाहरण है.’

उनकी टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब संसद का मॉनसून सत्र 18 जुलाई को शुरू होने वाला है. उसकी करीब 18 बैठकें होंगी.

उन्होंने कहा, ‘मैं इस राष्ट्रीय सेविका समिति की सेविका हूं. चूंकि मैं लोकसभा अध्यक्ष हूं और मैं किसी सार्वजनिक मंच पर कुछ नहीं कह सकती. मैं जानती हूं कि लक्ष्मीबाई केलकर ने संघ से ही प्रेरणा लेकर राष्ट्र सेविका समिति की स्थापना की थी.’

महाजन ने संघ की इस महिला शाखा के बारे में जानकारी देते हुए गांधी को एक पत्र और समिति के इतिहास की एक पुस्तक भेजी है.

राहुल गांधी ने पिछले साल 10 अक्टूबर को गुजरात के वडोदरा में विद्यार्थियों की एक सभा में कहा था, ‘आरएसएस में कितनी महिलाएं हैं ? ….. क्या आपने कोई महिला शाखा में शॉर्ट पहनी देखी है ? मैंने नहीं देखी.’

गृह मंत्रालय की 2015 की एक अधिसूचना अभी तक वैध है : अनिल बैजल उपराज्यपाल दिल्ली


दिल्ली के उप राज्यपाल अनिल बैजल ने मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर पलटवार किया है.


मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर पलटवार करते हुए दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने शुक्रवार को कहा कि सेवाओं को दिल्ली विधानसभा के अधिकार क्षेत्र के बाहर बताने संबंधित गृह मंत्रालय की 2015 की एक अधिसूचना अभी तक वैध है.

केजरीवाल को लिखे पत्र में बैजल ने कहा कि सेवाओं के मामले और अन्य मुद्दों पर और स्पष्टता तभी आएगी जब उच्चतम न्यायालय की नियमित पीठ के समक्ष इस संबंध में लंबित अपीलों को अंतिम रूप से निस्तारित कर दिया जाता है. उपराज्यपाल के अधिकारों को सीमित करने के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय के बाद दिल्ली सरकार और एलजी कार्यालय के बीच विवाद का कारण सेवा विभाग बना हुआ है.

बैजल का यह बयान ऐसे समय में आया है जबकि आज दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने कुछ समय पहले कहा था कि उपराज्यपाल ने सेवा विभाग का नियन्त्रण राज्य सरकार को सौंपने से मना कर दिया है. केजरीवाल को लिखे एक पत्र में बैजल ने गृह मंत्रालय की 2015 की एक अधिसूचना के बारे में ध्यान दिलाया जिसमें संविधान के अनुच्छेद 239 और 239 एए के तहत राष्ट्रपति निर्देश जारी होते हैं.

इसमें कहा गया कि सेवाएं दिल्ली विधानसभा के अधिकारक्षेत्र के बाहर हैं परिणामस्वरूप दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सरकार के पास सेवाओं को लेकर कोई कार्यपालिका अधिकार नहीं हैं. पत्र में कहा गया, इस अधिसूचना को दिल्ली उच्च न्यायालय ने चार अगस्त 2016 के अपने एक आदेश में भी सही ठहराया था.

उपराज्यपाल ने कहा, माननीय सुप्रीम कोर्ट के पीछे के निर्णय के चलते गृह मंत्रालय ने सुझाव दिया है कि निर्णय के अंतिम पैरा के अनुसार ‘सेवा’ सहित नौ अपील पर नियमित पीठ सुनवाई करेगी तथा गृह मंत्रालय की 21 मई 2015 की अधिसूचना वैध बनी रहेगी. केजरीवाल ने दावा किया कि यह देश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि केन्द्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय के आदेश को मानने से स्पष्ट रूप से मना कर दिया है.

बैजल के साथ 25 मिनट तक हुई बैठक के बाद केजरीवाल ने कहा कि उपराज्यपाल के मना करने के बाद देश में अराजकता फैल जाएगी. एलजी कार्यालय ने एक बयान में कहा, ‘उपराज्यपाल मुख्यमंत्री का ध्यान पैरा 249 की ओर आकर्षित कर रहे हैं जहां उच्चतम न्यायालय ने व्यवस्था दी है कि दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का ढांचा इस तरह का है जिसमें एक तरफ मुख्यमंत्री के नेतृत्व में मंत्रिपरिषद और दूसरी तरफ एलजी एक टीम की तरह है.’

इससे पहले आज दिन में केजरीवाल ने सभी आपत्तियों को दरकिनार करते हुए राशन की लोगों के घरों तक आपूर्ति को मंजूरी दी थी. मुख्यमंत्री ने खाद्य विभाग को यह भी आदेश दिया कि योजना को तुरंत लागू किया जाए. बैजल ने दिल्ली सरकार की इस योजना पर आपत्ति जताई थी और आप सरकार से कहा था कि इसे लागू करने से पहले केन्द्र से विचार विमर्श किया जाए.


उपराज्यपाल दिल्ली का केजरीवाल की बात नहीं मानेगा तो भारत म अराज्क्ता फ़ेल जाएगी। पर कैसे????

(शायद अगले आंदोलन की धमकी है)

राजनीति के शीर्ष पर पंहुचने की इच्छा के चलते उलझते रहते हैं केजरीवाल


आधुनिक भारत के सबसे हाई प्रोफाइल प्रधानमंत्री और दिल्ली के इतिहास के सबसे लड़ाकू मुख्यमंत्री के बीच शह और मात का खेल सुप्रीम कोर्ट के फैसले से खत्म नहीं होगा


दिल्ली जुलाई 6 :

लंबे अरसे बाद दिल्ली की गद्दी पर कोई ऐसा नेता बैठा है, जिसकी ब्रांडिंग एक बेहद ताकतवर प्रधानमंत्री की है. ज़ाहिर है, पूरे देश की निगाहें पिछले चार साल से लगातार दिल्ली पर हैं. लेकिन दिल्ली के सुर्खियों में बने रहने की एक वजह और है.

ताकतवर केंद्र सरकार की छाती पर मूंग दलने के लिए शहर के बीचों-बीच एक ऐसा आदमी धरना देने वाली मुद्रा में डटा है, जिसे उसके विरोधी कभी पलटू तो कभी झगड़ू तो कभी एके-49 के नाम से बुलाते हैं. अगर नरेंद्र मोदी प्रचंड बहुमत वाले पीएम हैं तो अरविंद केजरीवाल भी ऐतिहासिक बहुमत वाले सीएम हैं. दोनों की अपनी-अपनी फैन फॉलोइंग है. दोनों से चिढ़ने वालों की तादाद भी अच्छी-खासी है. लेकिन इन दो समानताओं के बावजूद आपसी रिश्ता हमेशा से छत्तीस का रहा है. यकीनन भारतीय राजनीति के इतिहास में केंद्र और दिल्ली सरकार के टकराव की अनगिनत कहानियां शामिल होंगी. इन कहानियों का सिलसिला चार साल पहले शुरू हुआ था और अब तक जारी है.

करीब तीन हफ्ते पहले का वाकया है. सीएम केजरीवाल अपने मंत्रिमंडल के कुछ सहयोगियों के साथ दिल्ली के उप-राज्यपाल के घर दरवाजे पर धरना दे रहे थे. केजरीवाल का इल्जाम था कि उपराज्यपाल अनिल बैजल केंद्र के इशारे पर दिल्ली सरकार के हर काम में अंसवैधानिक तरीके से अड़ंगा लगा रहे हैं. उनकी शह पर दिल्ली के आईएस एक तरह की अघोषित हड़ताल पर हैं, जिसकी वजह से राज्य सरकार कई जन कल्याणकारी योजनाएं चाहकर भी लागू नहीं कर पा रही है.

उप राज्यपाल के बरामदे पर केजरीवाल का धरना लगातार नौ दिन तक जारी रहा. लेकिन उपराज्यपाल अनिल बैजल उनसे नहीं मिले. दिल्ली की इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ने इस धरने को कोई खास अहमियत नहीं दी और बीजेपी का सोशल मीडिया सेल लगातार केजरीवाल के खिलाफ कैंपेन चलाता रहा. इन सबके बीच उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने अचानक प्रेस कांफ्रेस करके ऐलान किया कि आईएस अधिकारी काम पर लौट आए हैं, उन्होने सहयोग देने का वादा भी किया है, इसलिए अब धरने की कोई जरूरत नहीं है.

हालांकि नीति आयोग की बैठक के लिए आए चार राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने केजरीवाल को समर्थन दिया था. इसके बावजूद उपराज्यपाल के घर से बैरंग लौट जाना केजरीवाल के लिए एक तरह की हार थी. विरोधियों ने इसका प्रचार भी इसी ढंग से किया. राजनीति के कई जानकारों ने भी `सियासी अनाड़ीपन’ के लिए केजरीवाल को कोसा. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के ताजे फैसले ने पूरा खेल बदल दिया. इस फैसले की आम व्याख्या यही है कि केजरीवाल सही थे और उपराज्यपाल गलत.

केजरीवाल के साथ हमेशा से ऐसा ही होता आया है. शह और मात के खेल में वे बुरी तरह घिरे नजर आते हैं. लेकिन हालात अचानक कुछ इस तरह बदलते हैं कि हारी हुई बाजी पलट जाती है. इसे किस्मत की मेहरबानी कहें या फिर कानून का सहारा. केजरीवाल शह और मात के खेल में कई बार बचे हैं. ऑफिस ऑफ प्रॉफिट प्रकरण में भी कुछ ऐसा ही था. चुनाव आयोग ने आम आदमी पार्टी के 20 विधायकों की सदस्यता रद्द कर दी थी और राष्ट्रपति ने इसे मंजूरी दे दी थी. लेकिन हाईकोर्ट ने इस फैसले को पलट दिया.

`आआपा’ लगभग छह साल पुरानी पार्टी है. आलोचकों का कहना है कि केजरीवाल ने एक राष्ट्रीय नेता बनने की जो संभावनाएं शुरू में दिखाई थी, उस पर वे खरे नहीं उतरे. उन्हें अब तक ढंग से राजनीति करनी नहीं आई. वे अब भी मुख्यमंत्री के बदले आंदोलनकारी ही नजर आते हैं.

देखा जाए तो इन आरोपों के पक्ष में कई जायज दलीलें हैं. लेकिन क्या वाकई केजरीवाल उस तरह की सियासत नहीं सीख पाए हैं, जिसे शास्त्रीय परिभाषा में `राजनीति’ कहते हैं, या वे जो कुछ कर रहे हैं, वही उनकी शैली है? शायद केजरीवाल यह जानते हैं कि पब्लिक मेमोरी बहुत छोटी होती है. इसलिए वे अपने तमाम राजनीतिक दांव खुलकर खेल रहे हैं. कामयाबी मिली तो ठीक, नहीं मिली गलती पर मिट्टी डालकर आगे बढ़ जाते हैं.

2013 में जब पहली बार अल्पमत के साथ केजरीवाल सत्ता में आए तभी से उन्होंने अपने दांव चलने शुरू कर दिए. अपने एक मंत्री के खिलाफ हुई कानूनी कार्रवाई को लेकर वे सीएम होते हुए सड़क पर आ डटे. धरने पर बैठे-बैठे फिल्मी स्टाइल में वे फाइलें साइन किया करते थे. वह पहला ऐसा मामला जिसने केजरीवाल की इमेज एक नौटंकीबाज की बनाई. 49 दिन तक चलने के बाद जब उनकी सरकार ने इस्तीफा दिया तो बीजेपी ने भगोड़ा करार देते हुए पूरी दिल्ली में उनके बड़े-बड़े पोस्टर लगवाए. लेकिन केजरीवाल को इसका नुकसान नहीं बल्कि फायदा ही हुआ और अगले चुनाव में आम आदमी पार्टी 70 में 67 सीटें जीत गई.

केंद्र सरकार के साथ टकराव को कुछ देर के लिए अलग रखें तब भी बतौर राजनेता केजरीवाल ने बहुत कुछ ऐसा किया है, जिससे राजनीतिक रूप से परिपक्व कदम नहीं माना जा सकता है. अपनी पार्टी के भीतर उपजे किसी भी असंतोष को वे ठीक से संभाल नहीं पाए. वैचारिक मतभेद होते ही उन्होने प्रशांत भूषण, योगेंद्र यादव और आनंद कुमार जैसे उनकी थिंक टैक से जुड़े लोगों को फौरन बाहर का रास्ता दिखा दिया. कपिल मिश्रा प्रकरण में भी यही हुआ. पुराने साथी कुमार विश्वास को भी केजरीवाल संभाल नहीं पाए. शुरुआती दौर में देश भर की कई जानी-मानी हस्तियां आम आदमी पार्टी से जुड़ी थीं. लेकिन ज्यादातर लोग आहिस्ता-आहिस्ता अलग होते चले गए.

केजरीवाल ने कांग्रेस से लेकर बीजेपी तक के बड़े नेताओं पर थोक भाव में आरोप लगाए. बदले में ढेरों मुकदमे झेले और फिर वह दौर भी आया जब उन्होंने नितिन गडकरी और कपिल सिब्बल जैसे नेताओं से बकायदा लिखित माफी मांगनी शुरू की. आम आदमी पार्टी ने सफाई दी कि मुकदमेबाजी की वजह से केजरीवाल का बहुत वक्त बर्बाद हो रहा है. इसलिए वे इन पचड़ों से बाहर आ रहे हैं, ताकि जनहित के ज्यादा से ज्यादा काम कर सकें. इन तमाम फैसलों का भरपूर मजाक उड़ा. लेकिन अनाड़ी शैली में ही सही खेल लगातार जारी रहा.

`आआपा’ यूपीए टू सरकार के खिलाफ खड़े हुए भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के बाद अस्तित्व में आई थी. देखा जाए तो उसकी शुरुआती लड़ाई कांग्रेस से थी. कई लोग आप को उस वक्त बीजेपी की `बी ‘टीम करार दे रहे थे. लेकिन घटनाक्रम तेजी बदलने लगा और कांग्रेस के बदले केजरीवाल की असली लड़ाई बीजेपी के साथ शुरू हो गई.

दरअसल इस लड़ाई की नींव 2014 के लोकसभा चुनाव के समय ही पड़ गई थी. कांग्रेस अपनी अलोकप्रियता के सबसे निचले पायदान पर थी. बीजेपी ने नरेंद्र मोदी को अपना नेता घोषित कर दिया था और भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन से निकले केजरीवाल भी तेजी से लोकप्रिय हो रहे थे.

केजरीवाल को यह समझ में आ गया था कि राष्ट्रीय राजनीति में अपनी साख कायम करनी है, तो उन्हें मौजूदा दौर के सबसे लोकप्रिय राजनेता यानी मोदी से सीधे-सीधे टकराना होगा. इसी रणनीति के तहत केजरीवाल ने 2014 के लोकसभा चुनाव में वाराणसी से पर्चा भरा और मोदी लहर के बावजूद दो लाख वोट हासिल करने में कामयाब रहे.

लेकिन इसी दौरान मोदी के साथ उनकी राजनीतिक `शत्रुता’ की नींव पड़ी. केंद्र में एनडीए की सरकार बनी. इसके कुछ महीनों बाद प्रधानमंत्री मोदी के ज़बरदस्त प्रचार और अमित शाह के रणनीतिक कौशल के बावजूद केजरीवाल ने दिल्ली विधानसभा में रिकॉर्ड तोड़ बहुमत हासिल करके एक और जख्म दिया. फिर तो केजरीवाल जैसे केंद्र सरकार की छाती पर सवार हो गए. कांग्रेस उन दिनों लगभग खामोश थी. केजरीवाल ने इसका भरपूर फायदा उठाया और लगातार बयानबाजी करके मोदी वर्सेज केजरीवाल का नैरेटिव गढ़ने में कामयाब रहे.

बेशक राष्ट्रीय राजनीति को एक नई पहचान मिली हो लेकिन इस सीधे टकराव का काफी नुकसान भी हुआ. सीबीआई से लेकर इनकम टैक्स तक तमाम केंद्रीय एजेंसियां केजरीवाल और उनके मंत्रियों के पीछे जैसे हाथ धोकर पड़ गईं. रही-सही कसर पहले नजीब जंग और उसके बाद अनिल बैजल से उप राज्यपाल ने पूरी कर दी. केजरीवाल अब आए दिन केंद्र सरकार और उप राज्यपाल का दुखड़ा लेकर जनता के बीच जाने लगे. दिल्ली के वोटरों का एक तबका भी यह मानने लगा कि इल्जाम लगाना और काम ना करने के बहाने ढूंढना उनकी आदत है.

खुद केजरीवाल यह दावा कर चुके हैं कि वे प्रधानमंत्री से मिलकर सुलह-सफाई करना चाहते हैं. लेकिन प्रधानमंत्री मुलाकात का वक्त नहीं दे रहे हैं. नरेंद्र मोदी की राजनीति को करीब से देखने वाले भी यह जानते हैं कि वे अपने विरोधियों के प्रति एक सीमा से ज्यादा रियायत नहीं बरतते हैं. थक-हार चुके केजरीवाल ने मोदी के खिलाफ बयानबाजी बंद की और अपना फोकस शिक्षा और पब्लिक हेल्थ जैसे कामों पर लगाना शुरू किया ताकि वोटरो का दिल जीत सकें.

आप पिछले छह महीने के आंकड़े उठाकर देख लीजिए. प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ केजरीवाल के बहुत कम बयान मिलेंगे. अपने यहां होनेवाले सीबीआई छापे या इनकम टैक्स जांच का हवाला वे ज़रूर देते हैं, लेकिन सीधे-सीधे प्रधानमंत्री पर कोई आरोप लगाने से बचते हैं. इसके बदले आम आदमी पार्टी लगातार सरकारी स्कूलों की स्थिति में सुधार, मोहल्ला क्लीनिक और राशन की होम डिलिवरी जैसी अपनी योजनाओं का प्रचार करती नज़र आती है.

बिना काम दिखाए वोटर के पास दोबारा जाना मुश्किल है. दिल्ली की राजनीति पर नज़र रखने वाले कई लोग यह मानते हैं कि वाकई शिक्षा और जन-स्वास्थ्य जैसे क्षेत्रों में केजरीवाल अच्छा काम कर रहे हैं. लेकिन सवाल यह है कि क्या उनकी राजनीति सही पटरी पर लौट चुकी है?

दिल्ली की राजनीति काफी मेलो ड्रैमेटिक है. आगे क्या होगा यह कहना मुश्किल है. लेकिन कुछ बातें साफ हैं. पहली बात यह कि दिल्ली सरकार के कामकाज में उपराज्यपाल का हस्तक्षेप बिल्कुल बंद हो जाएगा, इसकी संभावना कम है. बीजेपी भी सुप्रीम कोर्ट के फैसले की अपनी तरह से व्याख्या कर रही है. ऐसे में यह मानना कठिन है कि उप-राज्यपाल के ज़रिए केंद्र ने जिस तरह केजरीवाल की नकेल कस रखी है, वह एकदम ढीली पड़ जाएगी.

सुप्रीम कोर्ट के फैसले में बहुत कुछ ऐसा है जिसे `ग्रे एरिया’ कहते हैं, यानी व्याख्या अलग-अलग ढंग से की जा सकती है. बहुत संभव है कि मोदी सरकार इसका फायदा उठाकर उप राज्यपाल के ज़रिए अपनी दखल बरकरार रखे. इसके संकेत भी मिलने शुरू हो गए हैं. यानी सियासी शतरंज की बिसात पर केजरीवाल को आगे भी इसी तरह फूंक-फूंक कर कदम बढ़ाना होगा.

आगे क्या होगा?

2019 की उल्टी गिनती शुरू हो चुकी है. ऐसे में एक सवाल यह भी है कि आम आदमी पार्टी का क्या होगा? क्या केजरीवाल साझा विपक्ष के किसी महागठबंधन में शामिल होंगे. अगर तीसरा मोर्चा होता तो केजरीवाल बहुत आराम से उसका हिस्सा बन सकते थे. लेकिन कांग्रेस के बिना मोदी के खिलाफ प्रभावी विपक्ष की कल्पना बेमानी है. अगर-मगर के बावजूद तमाम विपक्षी पार्टियों को कांग्रेस के साथ आना ही पड़ेगा भले ही सर्वमान्य नेता के रूप में राहुल गांधी के नाम का ऐलान ना हो.

अब सवाल यह है कि क्या आम आदमी पार्टी कांग्रेस के नेतृत्व वाले किसी गठबंधन का हिस्सा बन पाएगी? पहली बात यह है कि आम आदमी पार्टी अगर अपना घोषित कांग्रेस विरोधी स्टैंड छोड़ती है, तो इससे वोटरों में एक अलग संदेश जाएगा जो पार्टी के लिए अच्छा नहीं होगा. फिर भी अगर मोदी को ज्यादा बड़ा खतरा मानते हुए अगर केजरीवाल ने कांग्रेस से हाथ मिला भी लिया तो सीटों का बंटवारा कैसे होगा?

पिछले लोकसभा चुनाव में दिल्ली की सातों सीटों पर आम आदमी पार्टी दूसरे नंबर पर रही थी और कांग्रेस तीसरे पायदान पर जा लुढ़की थी. क्या कांग्रेस दिल्ली में केजरीवाल के पीछे चलना पसंद करेगी? ऐसी ही समस्या पंजाब में आएगी. पिछले लोकसभा चुनाव में आम आदमी पार्टी वहां की चार सीटों पर जीती थी. इस समय पंजाब में कांग्रेस मजबूत है और आम आदमी पार्टी अंतर्कलह से परेशान है. इसके बावजूद केजरीवाल के लिए पंजाब में कांग्रेस के पीछे चलना संभव नहीं होगा.

समझने वाली बात यह है कि आम आदमी पार्टी वैकल्पिक राजनीति वाली अपनी ब्रांडिंग को तभी तक बचाए रख पाएगी, जब तक वह कांग्रेस और बीजेपी दोनों के विरोध में खड़ी हो. यह रास्ता मुश्किल है. लेकिन केजरीवाल के लिए शायद कोई और विकल्प भी नहीं है. चुनाव के बाद किसी विपक्षी गठबंधन को समर्थन देने या सरकार में शामिल होने का विकल्प उनके लिए ज़रूर खुला होगा.

Justice AK Goel appointed Chairperson of National Green Tribunal

Delhi July 6:

Hours after he bid farewell to the Supreme Court, a notification by Department of Personnel and Training has intimated the appointment of Justice AK Goel as the new Chairperson of the National Green Tribunal (NGT).

His tenure as NGT Chairperson has been specified as being for a period of five years from the date he assumes office, or till he reaches the age of 70 years, whichever is earlier.

The notification dated today states,

The Appointments Committee of the Cabinet (ACC) has approved the proposal for appointment of Justice Adarsh Kumar Goel, Judge Supreme Court of India as Chairperson, National Green Tribunal (NGT), in the pay scale and with such allowances and benefits as are admissible for the post, for a period of 05 years w.e.f the date of assumption of charge of the post, or till the age of 70 years, whicehever is earlier.

2. Necessary communication in this regard has been sent to the Ministry of Envrionment, Forest & Climate Change.”

Justice Goel enrolled at the Bar in 1974. He practised before the Punjab & Haryana High Court for five years and the Supreme Court and Delhi High Court for about twenty-two years.

He was elevated as the judge of the Punjab & Haryana High Court in 2001 before being transferred to Gauhati High Court in September 2011, where he became Chief Justice in December 2011. He was then transferred as Chief Justice of the Orissa High Court in October 2013 before being elevated to the Supreme Court where he took charge on July 7, 2014.

 

Courtesy Bar & Bench

देखिए केंद्र की बीजेपी सरकार नहीं चाहती है कि दिल्ली सरकार अच्छा काम करे : केजरीवाल


अरविंद केजरीवाल ने मीडिया के सामने कहा है कि भारत के इतिहास में पहली बार एलजी साहब ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मानने से इनकार कर दिया है


दिल्ली, जुलाई 6:

दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने एक बार फिर से केंद्र सरकार पर हमला बोला है. अरविंद केजरीवाल ने एलजी के बहाने ही सही केंद्र पर निशाना साधा है. केजरीवाल ने शुक्रवार को दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल से मुलाकात की. एलजी से मुलाकात के बाद अरविंद केजरीवाल और मनीष सिसोदिया ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में एलजी के साथ मुलाकात का पूरा ब्यौरा दिया.

अरविंद केजरीवाल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि गुरुवार को मैंने एलजी साहब को एक पत्र लिखा था. इस पत्र में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बारे में बताया गया था. पत्र में लिखा था कि अब हर फाइल एलजी साहब को भेजने की जरूरत नहीं है. दिल्ली सरकार के द्वारा लिए गए हर फैसले की जानाकारी एलजी साहब को जरूर बता दिया जाएगा. इस पर एलजी साहब तैयार हो गए हैं. हालांकि एलजी साहब सर्विसेज को लेकर अभी भी तैयार नहीं हुए हैं.

अरविंद केजरीवाल ने मीडिया के सामने कहा है कि भारत के इतिहास में पहली बार एलजी साहब सुप्रीम कोर्ट के फैसले को मानने से इनकार कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने जजमेंट में कह था कि तीन विषय छोड़ कर बाकी सभी मसलों पर फैसले लेने का अधिकार दिल्ली सरकार के पास है.

अरविंद केजरीवाल ने कहा है कि दिल्ली में बिजली-पानी की व्यवस्था करने की जिम्मेदारी चुनी हुई सरकार के पास है, लेकिन इन चीजों को लागू करने का अधिकार केंद्र के पास है? केंद्र सरकार अफसर तैनात करेगी और हम लोग काम करवाएंगे? देखिए केंद्र की बीजेपी सरकार नहीं चाहती है कि दिल्ली सरकार अच्छा काम करे.

जितनी फाइलें अटकी पड़ी थी उन पर काम शुरू

अरविंद केजरीवाल ने कहा कि अभी तक जितनी भी फाइलें अटकी पड़ी थी उस पर हमलोगों ने काम करना शुरू कर दिया है. शुक्रवार को दो-तीन महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं. हमारी सरकार चाहती है कि दिल्ली में घर-घर राशन पहुंचे. यह मामला कई महीनों से एलजी साहब के कारण अटका हुआ था आज ही मैंने ऑर्डर जारी कर दिया है.

दूसरा, दिल्ली के स्कूल-कॉलेजों और अन्य जगहों पर सीसीटीवी कैमरे लगाने का प्रपोजल भी अटका पड़ा था, जिसे मंगलवार तक पास कर दिया जाएगा. दिल्ली सरकार की महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट सिग्नेचर ब्रिज के आखिरी इन्सटॉलमेंट को भी आज पास कर दिया गया है. यह ब्रिज इसी साल अक्टूबर महीने तक बन कर तैयार हो जाएगा.

सर्विसेज के मुद्दे को लेकर दिल्ली सरकार और एलजी के बीच टकरार अभी कायम रहेगा. बता दें कि बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि चुनी हुई सरकार लोकतंत्र में काफी अहम है. इसलिए कैबिनेट के पास फैसले लेने का अधिकार है.

सुप्रीम कोर्ट का फैसला दिल्ली सरकार के हक में नहीं

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने सर्वसम्मति से कहा था कि एलजी के पास कोई स्वतंत्र अधिकार नहीं है. पीठ ने साफ कहा था कि हर मामले पर एलजी की सहमति की जरूरत नहीं है. इसके बावजूद कैबिनट के फैसले की जानकारी एलजी को देनी होगी.

कुलमिलाकर सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के बाद भी दिल्ली सरकार और एलजी के बीच विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है. इस फैसले के कानूनी पहलुओं पर लगातार प्रतिक्रियाएं आ रही हैं. गुरुवार को केंद्रीय मंत्री और सुप्रीम कोर्ट के जाने-माने वकील अरुण जेटली ने भी इस फैसले पर अपनी राय रखी थी.

अरुण जेटली ने साफ कहा था कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला दिल्ली सरकार के हक में नहीं गया है. दिल्ली सरकार के पास पुलिस का अधिकार नहीं है ऐसे में वह पूर्व में हुए अपराध के लिए जांच एजेंसी गठित नहीं कर सकती.

ऐसे में एक बार फिर से अरविंद केजरीवाल की सरकार सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में लग गई है. बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के जिस फैसले के बाद यह अंदाजा लगाया जा रहा था कि दिल्ली सरकार और एलजी के बीच का विवाद थम गया है वह विवाद अब अगले कुछ दिनों तक और बरकरार रह सकता है.

Pakistan court sentences Nawaz Sharif to 10 years in jail in Avenfield case, daughter Maryam gets 7 years

Islamabad July 6:(courtesy GEO News)

An anti-graft court in Pakistan sentenced former Pakistan prime minister Nawaz Sharif to 10 years in jail and fine with £8 million in a corruption case involving the purchase of four luxury apartments in London’s Avenfield House. Sharif’s daughter Maryam was sentenced to seven years and fined £2 million in the case.

The case also involves Sharif’s son-in-law Captain (retired) Safdar, who was sentenced to one year in jail. Sharif’s two sons — Hasan and Hussain — who are also co-accused in the case have already been declared absconders in the case following their now show in the hearings.

The verdict, which has already been postponed once, comes ahead of the general elections in Pakistan on 25 July and will impact the poll prospects of the Pakistan Muslim League, Nawaz (PML-N), which is facing stiff competition from Imran Khan’s Pakistan Tehreek-e-Insaaf॰

With the trial court sentencing Maryam to jail, she stands disqualified for the general elections. Maryam has registered as a PML-N candidate for the upcoming polls from NA-127 (Lahore) seat.

The former Pakistan prime minister, however, continues to deny any wrongdoing and accused the military and courts conspiring to oust him and using legal cases and intimidation to help Khan’s PTI party, accusations denied by Khan, the army, and the judiciary.

Sharif, 67, resigned in July after the Supreme Court disqualified him from holding office over an undeclared source of income, but the veteran leader maintains his grip on the ruling Pakistan Muslim League-Nawaz (PML-N) party.

The latest pre-election polls have shown PTI gaining ground over PML-N. Khan, a former cricket captain of Pakistan, has portrayed the legal cases as a long-overdue corruption crackdown on the PML-N, which he has labelled a graft-ridden “mafia”.

Sharif has a history of differences with the military, which has ruled the nuclear-armed country for almost half of its history, and ousted him from power in 1999 in a bloodless coup.

Earlier this week, on Tuesday, the accountability court judge, Mohammad Bashir, had reserved his verdict and said that it will be announced on Friday. The court asked all accused to be present in the court for the hearing on Friday.

Nawaz, Maryam’s plea rejected

Sharif has been in London since last month to take care of his ailing wife Kulsoom Nawaz who is undergoing treatment for throat cancer.

In a press conference in London earlier this week, Sharif had said he would return to Pakistan irrespective of whether the verdict finds him guilty or not, as soon as his wife’s conditions improve. “Whether it comes in my favour, or, God forbid, it comes against me, I will go back,” he said, according to Reuters.

Nawaz and Maryam had filed a petition on Thursday, urging the anti-graft court to defer the verdict by seven days so they may be present in court when it is announced. Pakistan laws require the presence of the accused at the time of announcing the verdict. The court had then reserved its order on the plea till Friday.

According to GeoTV, on Friday, Maryam’s counsel Amzed Parvez submitted Begum Kulsoom Nawaz’s medical report and argued that the law stipulates the presence of the accused when the verdict is read out. The prosecution, however, opposed any delay at such a late stage of the trial.

After hearing the arguments on Friday from both sides on whether or not to defer the announcement of the verdict in the Avenfield graft case, the trial court was adjourned for an hour. Later, it dismissed Sharifs’ plea and set 12.30 pm as the time to announce the verdict on the Avenfield case. The trial court judgment was extended five times on Friday. After initially pushing it to 12.30 pm from the scheduled 11 am, the deadline was extended three more times to 2.30 pm, then to 3 pm and later to 3.30 pm before it was read at 4 pm.

Tight security in Islamabad

The Islamabad administration had reportedly imposed Section 144 in the capital to discourage mass gathering of supporters from various political parties.

Strict security arrangements, including paramilitary personnel, was placed at the Federal Judicial Complex, where the court is located, GeoTV said. The roads leading to the complex were also closed to traffic on Friday.

What were the charges against the Sharif family?

The charges include ownership of four posh London flats that resurfaced in Panama Papers. Sharif denied the ownership of the flats but said they were owned by his son Hussain Nawaz in 2006. However, the Sharif family admitted that they were residing in the flats since 1993.

In a statement before the court, it was submitted that the flats were owned by a Qatari consortium, which later transferred the ownership to the Sharif family in 2006. The accountability court has heard the case for nine and a half months.

Sharif’s sons, Hasan and Hussain,

The Sharifs have denied any corruption and wrongdoing. The former prime minister has described the corruption charges against him and his family as being politically motivated.

The trial against the Sharif family commenced on 14 September, 2017. Nawaz and his sons, Hussain and Hasan, are accused in all three cases while his daughter Maryam and son-in-law Safdar are accused in the Avenfield case only.

Findings of Joint Investigation Team

According to the Joint Investigation Team’s report submitted in the Panamagate case, the Sharifs had given contradictory statements about their London flats and found that the flats actually belonged to them since 1993, Pakistani media reported.

The JIT observed that either Hassan or Hussain or both had lied to hide some facts and hence they could not be given the benefit of doubt, the reports said.

CJI’s role cannot be interpreted to include the Collegium

Chief Justice of India Dipak Misra. The SC upheld the CJI’s role as ‘Master of Roster’ and disposed of a petition filed by senior advocate Shanti Bhushan. (Express Photo/File)


The Supreme Court upheld the Chief Justice of India’s role as “Master of Roster”. Justices Sikri and Bhushan delivered two separate but concurring judgements upholding the prerogative of the CJI in the allocation of cases.


The Supreme Court Friday upheld the Chief Justice of India’s role as “Master of Roster”. A two-judge bench, comprising Justices A K Sikri and Ashok Bhushan, stated that the CJI’s role cannot be interpreted to include the Collegium when it comes to the allocation for cases as it will make day-to-day functioning difficult.

Disposing of the petition filed by senior advocate Shanti Bhushan, Justice A K Sikri said, “Erosion of respect for the Judiciary in public minds is the greatest threat to the independence of the institution.”

Justices Sikri and Bhushan delivered two separate but concurring judgements upholding the prerogative of the CJI in allocating cases.

Reacting to the verdict, advocate Prashant Bhushan, who represented Shanti Bhushan in court, tweeted, “Sad that SC today ruled that CJI can unilaterally decide allocation of cases. 4 judges pointed out in PC that CJI was abusing his powers in allotting sensitive cases like Loya’s, medical college scam etc. Unfortunate that SC has not insulated itself from abuse of CJI’s powers.”

In his petition, Shanti Bhushan had questioned the CJI as the ‘Master of Roster’ and wanted either the Collegium or a full court to decide the allocation of cases.

Attorney General K K Venugopal, in response to the plea, had argued that the role “requires decision on several aspects and that is not something that five (the Collegium) or all of them (judges) can sit and thrash it out”. He also told the court that “this is not like the appointment of judges… where the judges (of the Collegium) are not personally involved (they decide on the files of others). Here, they are personally involved, and each may want to hear cases of a particular jurisdiction”.

To this, Prashant Bhushan countered that it was safer to have a collective decision as the CJI, too, could want to hear cases of a particular jurisdiction.

In January this year, four senior-most judges — Justices J Chelameswar (since retired), Ranjan Gogoi, Madan B Lokur and Kurian Joseph — of the Supreme Court, in an unprecedented press conference, said that the situation in the apex court was “not in order” and many “less than desirable” things had taken place.

आखिर स्कूल पहुंचने लगे घुमंतू वर्ग के बच्चे

 

पुरनूर

जयपुर:

हम सभी जानते हैं कि शिक्षा हमारा मौलिक अधिकार है परन्तु अभी भी हमारे समाज का कुछ वर्ग इस अधिकार से वंचित है, बल्कि यह भी कहा जा सकता है कि यह वर्ग अभी भी अपने इस अधिकार से अनभिज्ञ है।हालांकि सरकार इस क्षेत्र में हर संभव प्रयास कर रही है लेकिन फिर भी राजस्थान का एक घुमंतू वर्ग बंजारा अभी भी शिक्षा के मामले में पिछड़ा हुआ है।
इस वर्ग के बच्चों के सामाजिक और आर्थिक स्तर बढाने के लिए कुछ चाहिए तो वो है शिक्षा। इस क्षेत्र में जी जान से लगे ह्यूमन लाइफ फाउंडेशन के अध्यक्ष श्री हेमराज चतुर्वेदी हर सम्भव प्रयास कर रहे हैं कि बनजारा वर्ग को अशिक्षा के आक्रांत से बचाया जाए।
श्री हेमराज चतुर्वेदी के अनुसार ,तमाम सरकारी प्रयाशों के बाबजूद हमारे बंजारा समाज में साक्षरता दर आज भी १-२ प्रतिशत के आसपास है । किन्तु सरकार खास कर के सहयोग से इनके अशिक्षित एवं घुमंतू प्रवृति से बच्चो को हमने एक बर्ष के पढाया एवं उचित मोटीवेशन प्रदान करके सरकारी स्कूल में प्रवेश दिलवा दिया है .। वहा इनको नित्य पोषाहार भी मिलेगा .। प्रताप नगर की बंजारा झुग्गी बस्ती में पहली वार कोई बच्चा सरकारी विद्यालय में पढने पहुंचा है । अब ह्यूमन लाइफ फाउंडेशन द्वारा की शिक्षिका / कार्यकर्ताओं द्वारा इन अत्यंत गरीब ३० बच्चों को झुग्गी बस्ती से २ कि.मी. दूर स्थित सरकारी विद्यालय में प्रातः काल नित्य छोडकर आने और पुनः इनका नित्य होमवर्क पूरा करवाने की व्यवस्था की जा रही है । संस्था की और से इन बच्चों की स्टेशनरी ड्रेस, बैग सहित समस्त दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति की जायेगी.


इसके अतिरिक्त स्कूल में प्रवेश के लिए जन्म प्रमाणपत्र आवश्यक होता है इसलिए संस्था द्वारा बच्चो के आधारकार्ड बनवा दिया है . इससे इनको एक पहचान मिलेगी और अब हमारे स्कूल नंबर – 2 के सभी ३० बच्चो को एक पहचान भी मिल गयी है . आगामी योजना में इनके जाति प्रमाणपत्र बनवाकर सरकार से मासिक वजीफा ( स्कालरशिप ) दिलवाने की संस्था की योजना है .
इसके अलावा ह्यूमन लाइफ स्कूल नंबर २ सरकारी स्कूल चूँकि जयादा दूर है इसलिये ना तो छोटे बच्चे पैदल जा पाएंगे और ना हमारी शिक्षिका इसलिये अक्षय पत्र के पास वाली स्कूल में संस्था की एक्टिविटीज पूर्ववत रहेंगी. स्कूल सुचारू संचालित होता रहेगा।
संस्था के विधि सलाहकार श्री दिनेश पाठक ने बताया कि RTE Act के तहत हर बच्चे का अधिकार है कि उसे 14 वर्ष तक मुफ्त शिक्षा मिले लेकिन विडम्बना है कि शिक्षा के ही आभाव के कारण पिछड़े वर्ग के लोग अपने मौलिक अंधकार से अनभिज्ञ हैं। संस्था शिक्षा के प्रति जागरूकता फैलाने में निरन्तर कार्यरत है।

शशि थरूर की अग्रिम जमानत याचिका पर दिल्ली की एक अदालत आज फैसला सुना सकती है

नई दिल्ली।

सुनंदा पुष्कर के मौत के मामले में कांग्रेस सांसद शशि थरूर की अग्रिम जमानत याचिका पर दिल्ली की एक अदालत आज फैसला सुना सकती है। थरूर अपनी पत्नी सुनंदा पुष्कर की आत्महत्या के मामले में आरोपी हैं। कोर्ट में विशेष जांच टीम (एसआईटी) ने शशि थरूर की अग्रिम जमानत याचिका का विरोध किया।

बुधवार को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश अरविंद कुमार ने कहा कि वह गुरुवार को अपना फैसला सुनाएंगे। दिल्ली पुलिस ने थरूर की याचिका का विरोध किया है। अदालत ने पांच जून को पुलिस द्वारा दाखिल आरोपपत्र पर संज्ञान लिया था। 62 वर्षीय सांसद को सात जुलाई को अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट समर विशाल के समक्ष पेश होने को कहा गया है।
दिल्ली पुलिस ने पत्नी से क्रूरता तथा आत्महत्या के लिए उकसाने को लेकर शशि थरूर को एकमात्र संदिग्ध आरोपी बताया था। कोर्ट ने मामले में फाइल की गई आरोप-पत्र पर भी संज्ञान लिया है। तिरुवनंतपुरम से सांसद शशि थरूर को मामले की अगली सुनवाई के लिए 7 जुलाई को अतिरिक्त मुख्य महानगर दंडाधिकारी समर विशाल के समक्ष पेश होने को कहा गया है।
पुलिस ने 3000 हजार पन्नों की दाखिल की गई चार्जशीट में शशि थरूर पर अपनी पत्नी की आत्महत्या को लेकर क्रूरता करने का आरोप लगाया था। हालांकि शशि थरूर ने इन आरोपों को बेबुनियाद, आधारहीन और दुर्भावनापूर्ण बताया था और कहा था कि यह बदले की भावना से चलाये जा रहे अभियान का नतीजा है। दिल्ली पुलिस ने थरूर के खिलाफ भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 306 और 498ए के अंतर्गत 14 मई को आरोप पत्र दाखिल किए थे।