इलाहाबाद = प्रयाग = प्रयागराज??????


2001 में तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह और राज्यपाल विष्णुकांत शास्त्री ने भी इलाहाबाद का नाम बदलने की वकालत की थी.


लखनऊ जुलाई 9, 2018 :

नाम बदलने की परंपरा में अब इलाहाबाद का नाम बदलने की मांग उठने लगी है. अगर सब कुछ सही रहा तो संगम नगरी इलाहाबाद का नाम ‘प्रयाग’ हो जाएगा. इसकी कवायद के लिए प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री व सरकार के प्रवक्ता सिद्धार्थनाथ सिंह ने राज्यपाल राम नाईक को पत्र लिखा है और उनसे इलाहाबाद का नाम प्रयाग करने में मदद का अनुरोध किया है.

योगी सरकार काफी पहले से ही इलाहाबाद का नाम प्रयाग करने की कोशिश में है. इससे पहले उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य इलाहाबाद का नाम प्रयाग करने की बात रख चुके हैं. इस सम्बन्ध में सिद्धार्थनाथ ने कहा कि राज्यपाल राम नाईक जब महाराष्ट्र के सांसद थे तब उन्होंने ‘बॉम्बे’ को ‘मुंबई’ के नाम से बदलने में मदद की थी. उन्होंने कहा कि इसी को ध्यान में रखते हुए मैंने इलाहाबाद का नाम ‘प्रयाग’ करने पर विचार करने के लिए राज्यपाल को पत्र लिखा है. उम्मीद है वह इस पत्र को गंभीरता से लेकर मेरे अनुरोध पर विचार करेंगे.

गौरतलब है कि इससे पहले उप मुख्यमंत्री केशव मौर्य ने भी इलाहाबाद का नाम बदलकर ‘प्रयाग’ करने के सम्बन्ध में बयान दिया था. केशव प्रसाद मौर्य ने कहा था कि इलाहाबाद की पहचान यहां तीन नदियों के संगम की वजह से है, इसलिए इसका नाम ‘प्रयागराज’ होना चाहिए.

उन्होंने कुंभ आयोजन से पहले इस काम को पूरा करने का आश्वासन भी दिया था. अब स्वास्थ्य मंत्री का राज्यपाल को लिखा पत्र भी इसी कड़ी से जोड़ कर देखा जा रहा है. साथ ही उम्मीद जताई जा रही है कि 2019 में होने वाले कुंभ से पहले योगी सरकार इलाहाबाद का नाम बदलकर ‘प्रयाग’ कर देगी.

स्वास्थ्य मंत्री के अलावा अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने भी मुख्यमंत्री को पत्र लिखकर इलाहाबाद का नाम बदलने की मांग की है. अखाड़ा परिषद के प्रमुख महंत नरेंद्र गिरी ने मुख्यमंत्री से मुलाकात कर कहा कि कुंभ मेला से पहले इलाहाबाद का नाम प्रयाग कर देना चाहिए. बता दें कि 2001 में तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह और राज्यपाल विष्णुकांत शास्त्री ने भी इलाहाबाद का नाम बदलने की वकालत की थी.

आआपा अध्यक्ष के आरोप सिरे से गलत हैं : उपराज्यपाल


उपराज्यपाल अनिल बैजल ने ने यह प्रतिक्रिया मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के इस आरोप पर दी है कि उपराज्यपाल शीर्ष अदालत के फैसले को स्वीकार करने में ‘चुनिंदा’ रवैया अपना रहे हैं.


उपराज्यपाल अनिल बैजल ने सोमवार को कहा कि दिल्ली सरकार और केन्द्र के बीच सत्ता संघर्ष पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले को ‘ चुनिंदा तरीके से स्वीकार करने का ’ आरोप ‘ गलत ’ है और उनके बयान का ‘चुनिंदा’ तरीके से हवाला दिया गया. बैजल ने यह प्रतिक्रिया मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के इस आरोप पर दी है कि उपराज्यपाल शीर्ष अदालत के फैसले को स्वीकार करने में ‘चुनिंदा’ रवैया अपना रहे हैं.

केजरीवाल ने उपराज्यपाल को लिखे पत्र में कहा था , ‘आप इस निर्णय को लेकर चयनात्मक कैसे हो सकते हैं. इस मामले में आपको अपना रुख स्पष्ट करना चाहिए कि या तो आप सभी मामले को किसी नियमित पीठ के समक्ष रखेंगे , और इसलिए आप आदेश का कोई हिस्सा स्वीकार नहीं करेंगे. या आपको इस निर्णय को पूरा स्वीकार करना चाहिए और इसे लागू करना चाहिए. ’’

केजरीवाल ने पत्र में कहा , ‘आप कैसे कह सकते हैं कि आप आदेश का यह पैरा स्वीकार करेंगे , लेकिन उसी आदेश का वह पैरा नहीं स्वीकार करेंगे. ’

बैजल ने मुख्यमंत्री पर मीडिया को अपना पत्र लीक करने का भी आरोप लगाया. उन्होंने केजरीवाल को जवाब दिया , ‘आपका पत्र मेरे कार्यालय में पहुंचने से पहले यह सोशल और इलेक्ट्रोनिक मीडिया के पास पहुंच चुका है.’

उपराज्यपाल कार्यालय के बयान के अनुसार , बैजल ने कहा कि मुख्यमंत्री ने छह जुलाई के उनके पत्र का ‘ चुनिंदा तरीके से हवाला ’ दिया और उच्चतम न्यायालय के चार जुलाई के फैसले को चयनित तरीके से स्वीकार करने का उनका आरोप ‘‘ गलत ’’ है.

ऋषि कपूर ओर तापसी पुन्नु अभिनीत “मुल्क” का ट्रेलर हुआ रिलीस फिल्म 3 अगस्त को


ऋषि कपूर और तापसी पन्नू से सजी इस फिल्म की कहानी एक ऐसे परिवार की है जिस पर देशद्रोह का आरोप लगा है


अनुभव सिन्हा के डायरेक्शन में बनी फिल्म ‘मुल्क’ का ट्रेलर रिलीज हो चुका है. इस फिल्म में दिग्गज कलाकार ऋषि कपूर और तापसी पन्नू ने जबरदस्त एक्टिंग की है, जो कि ट्रेलर में भी साफ तौर पर दिखाई दे रहा है. इस फिल्म का टीजर कुछ दिनों पहले ही रिलीज किया गया था.

मुल्क का ट्रेलर हुआ रिलीज

ऋषि कपूर और तापसी पन्नू की अपकमिंग फिल्म ‘मुल्क’ का ट्रेलर रिलीज कर दिया गया है. इस ट्रेलर में तापसी पन्नू और ऋषि कपूर की एक्टिंग को देखर तो आप उनके मुरीद ही हो जाएंगे. ये फिल्म एक बेगुनाह के सिर से देशद्रोह का कलंक मिटाने की कहानी है. इस फिल्म में तापसी पन्नू वकी आरती मोहम्मद का किरदार निभाती हुई नजर आएंगी जबकि ऋषि कपूर मुराद अली मोहम्मद के किरदार में नजर आएंगे. दोनों इस ट्रेलर में हर जगह छाए हुए हैं. बनारस और लखनऊ की झलक दिखाती इस फिल्म में तापसी देशद्रोह का केस लड़ती हुई नजर आने वाली हैं.

ऋषि कपूर पर लगा है देशद्रोह का आरोप

आपको बता दें कि, ऋषि कपूर और तापसी पन्नू से सजी इस फिल्म की कहानी एक ऐसे परिवार की है जिस पर देशद्रोह का आरोप लगा है. ये परिवार विवाद में उलझने के बाद अपना सम्मान दोबारा पाने के लिए कोर्ट का दरवाजा खटखटाता है. फिल्म में ऋषि कपूर पर देशद्रोह का आरोप लगा है जिसकी वकील तापसी पन्नू हैं. वही ऋषि कपूर का केस लड़ती हैं. ये फिल्म 3 अगस्त को रिलीज होने वाली है.

हम पैट्रोलियम मंत्रालय की दया पर नहीं है : सर्वोच्च न्यायालय


पीठ ने यह टिप्पणियां उस वक्त कीं जब शीर्ष अदालत को सूचित किया गया कि इस मंत्रालय ने रविवार को ही पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को पेट कोक के आयात पर प्रतिबंध लगाने के मुद्दे से अवगत कराया है


सुप्रीम कोर्ट ने औद्योगिक इकाइयों में पेट कोक के इस्तेमाल से संबंधित मामले में नाराजगी के साथ फटकार लगाई कि क्या पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय खुद को भगवान या सुपर सरकार मानता है. और सोचता है कि बेरोजगार जज उसकी दया पर हैं. जस्टिस मदन बी लोकूर और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने यह तीखी टिप्पणियां उस वक्त कीं जब शीर्ष अदालत को सूचित किया गया कि इस मंत्रालय ने रविवार को ही पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को पेट कोक के आयात पर प्रतिबंध लगाने के मुद्दे से अवगत कराया है. यह कोक औद्योगिक ईंधन के रूप में इस्तेमाल होता है.

शीर्ष अदालत ने इस रवैये पर कड़ा रूख अपनाते हुए पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय पर इस लापरवाही के लिए 25 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया. अदालत दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में वायु प्रदूषण की समस्या को लेकर पर्यावरणविद् अधिवक्ता महेश चन्द्र मेहता द्वारा 1985 में दायर जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा था.

शीर्ष अदालत ने दिल्ली सरकार पर भी एक लाख रूपए का जुर्माना किया क्योंकि उसने राजधानी में अनेक रास्‍तों पर यातायात अवरूद्ध होने की समस्या को दूर करने के लिए कोई समयबद्ध स्थिति रिपोर्ट पेश नहीं की. पीठ ने कहा कि दस मई के अदालत के आदेश के अनुसार दिल्ली सरकार को छह सप्ताह के भीतर इस बारे में हलफनामा दाखिल करना था लेकिन उसने न तो ऐसा किया और न ही उसकी ओर से कोई वकील उपस्थित हुआ. पीठ ने कहा कि दिल्ली सरकार इन आदेशों के प्रति गंभीर नहीं है.

पीठ ने पेट्रोलियम एंव प्राकृतिक गैस मंत्रालय के खिलाफ ये तल्ख टिप्पणियां उस वक्त कीं जब अतिरिक्त सालिसीटर जनरल एएनएस नाडकर्णी ने उसे सूचित किया कि इस मंत्रालय से उसे कल ही जवाब मिला है. इस पर नाराजगी व्यक्त करते हुये पीठ ने कहा, ‘क्या पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय भगवान है? क्या वे भगवान हैं? उनसे कह दीजिये कि वे पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय की बजाए अपना नाम बदल कर भगवान कर लें.’

पीठ ने कहा, ‘क्या पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय सुपर सरकार है? क्या वह भारत सरकार से ऊपर है? हमें बताएं कि पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय की क्या हैसियत है? वे किसी भी आदेश का पालन क्यों नहीं कर रहे हैं?’

नाडकर्णी ने जब यह कहा कि उनका हलफनामा तैयार है और इसे आज ही दाखिल कर दिया जाएगा तो जस्टिस लोकुर ने पलट कर कहा, ‘यदि वे (पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय) आदेशों पर अमल नहीं करना चाहते हैं तो वे पालन नहीं करें. और क्या वे सोचते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के बेरोजगार जज उन्हें समय देंगे. क्यों हमें उनकी दया पर रहना होगा.’

पीठ ने अतिरिक्त् सालिसीटर जनरल को दिन में हलफनामा दाखिल करने की अनुमति देते हुए कहा, ‘हम पर्यावरण एवं वन मंत्रालय को जवाब भेजने के लिए अपने हिसाब से वक्त लगाने के पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय के रवैये से आश्चर्यचकित हैं. यह विलंब सिर्फ पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय की ‘सुस्ती’ के कारण हुआ है.’

पीठ ने इस मंत्रालय पर 25 हजार रुपए लगाते हुए कहा कि यदि जुर्माने की राशि सुप्रीम कोर्ट सेवा प्राधिकरण में 13 जुलाई तक जमा नहीं कराई गई तो वह जुर्माने की राशि बढ़ा देगी. अदालत इस मामले में अब 16 जुलाई को आगे सुनवाई करेगा.

इससे पहले, संक्षिप्त सुनवाई के दौरान न्याय मित्र की भूमिका निभा रही वकील अपराजिता सिंह ने कहा कि पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय को पेट कोक के आयात पर प्रतिबंध लगाने तथा प्राकृतिक गैस की आपूर्ति के बारे में जवाब देना था.

आपातकाल, सिख दंगों और मुस्लिम तुष्टीकरण को भुला दें तो सिर्फ पिछले 4 साल से ही लोकतन्त्र खतरे में है


खड़गे ने कहा है कि ‘एक चायवाला इसलिये देश का प्रधानमंत्री बन सका क्योंकि कांग्रेस ने लोकतंत्र को बचाए रखा’. वाकई खड़गे का ये खुलासा इस देश की स्वस्थ राजनीति और मजबूत लोकतंत्र का प्रतीक है.


मल्लिकार्जुन खड़गे लोकसभा में कांग्रेस की तरफ से नेता प्रतिपक्ष हैं. वो अपने बयानों और भाषणों से देश की सियासत में बड़ी अहमियत रखते हैं. हाल ही में उन्होंने बड़ा खुलासा किया है. उन्होंने साल 2014 का चुनाव जीतकर नरेंद्र मोदी के पीएम बनने पर बड़ा खुलासा किया है. खड़गे ने कहा है कि ‘एक चायवाला इसलिये देश का प्रधानमंत्री बन सका क्योंकि कांग्रेस ने लोकतंत्र को बचाए रखा’. वाकई खड़गे का ये खुलासा इस देश की स्वस्थ राजनीति और मजबूत लोकतंत्र का प्रतीक है.

खड़गे ने जिस लोकतंत्र की दुहाई देते हुए एक चायवाले को देश का पीएम बनने का मौका दिया वो काबिल-ए-तारीफ है. लोकतंत्र को ही बचाने के लिये कांग्रेस ने यूपीए सरकार के वक्त अर्थशास्त्री डॉ. मनमोहन सिंह को भी मौका दिया था तो साल 2014 में ये मौका मोदी को मिला. खड़गे के बयान के बाद लोकतंत्र को बचाने के लिये कांग्रेस के योगदान को कम नहीं आंका जा सकता है. इसी लोकतंत्र को बचाने के लिये ही कांग्रेस सिमटते-सिमटते 44 सीटों पर आ गई. इसके बावजूद ये पूछा जाता है कि कांग्रेस ने पिछले 70 साल में देश के लिये क्या किया?

खड़गे जिस लोकतंत्र को बचाने के लिये कांग्रेस की पीठ थपथपा रहे हैं तो उसी पार्टी के सिपाही मणिशंकर अय्यर ने ही सबसे पहली आहुति भी दी थी. कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर की पहल को नजर अंदाज नहीं किया जा सकता है. कांग्रेस के सम्मेलन के वक्त ही मणिशंकर अय्यर ने सबसे पहले कहा था कि, ‘मोदी जी अगर चाय बेचना चाहें तो वो यहां आकर चाय बेच सकते हैं लेकिन एक चायवाला देश का पीएम नहीं बन सकता’.

मणिशंकर अय्यर की ही भावुक अपील ने देश की सियासत का नक्शा ऐसा बदला कि देश के कई राज्यों में कांग्रेस को ढूंढना पड़ गया. अय्यर ने ही नब्ज़ को टटोलते हुए जनता के भीतर एक चायवाले को लेकर सहानुभूति भरने का सबसे पहले काम किया. लोकसभा चुनाव के बाद अय्यर ने गुजरात विधानसभा चुनाव के वक्त भी लोकतंत्र को बचाने के लिये नया बयान दिया. बाद में उसी लोकतंत्र को ही बचाने के लिये कांग्रेस को अपने मजबूत सिपाही की राजनीतिक कुर्बानी भी देनी पड़ी. मणिशंकर अय्यर फिलहाल पार्टी से निलंबित चल रहे हैं. लेकिन लोकसभा और गुजरात विधानसभा चुनाव के वक्त उनका योगदान कांग्रेस कभी भूल नहीं सकेगी.

खड़गे कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं. उन्होंने दो लोकतंत्र एक साथ देखे हैं. एक कांग्रेस का आंतरिक लोकतंत्र तो दूसरा देश के संविधान से सजा हुआ लोकतंत्र. आंतरिक लोकतंत्र के वो एक बड़े गवाह हैं. कर्नाटक में अच्छी पकड़ रखने वाले खड़गे के कर्नाटक का सीएम बनने की पूरी संभावना थी. विधानसभा चुनाव के नतीजों में उनकी धाक जमी थी. लेकिन खड़गे को सीएम बनने का मौका नहीं मिल सका. उनकी जगह सिद्धारमैया को सीएम बना दिया.

शायद यहां भी कांग्रेस ने लोकतंत्र को ही बचाने के लिये खड़गे से राजनीतिक त्याग मांगा. हालांकि बीजेपी कांग्रेस पर ये आरोप लगाती है कि कांग्रेस ने खड़गे के साथ इंसाफ नहीं किया और राहुल के करीबी माने जाने वाले सिद्धारमैया को कर्नाटक की कमान सौंपी. जबकि देखा जाए तो कांग्रेस ने खड़गे को कर्नाटक का सीएम न बना कर उनका कद ही बढ़ाया है. लोकसभा में खड़गे कांग्रेस के लिये सबसे बड़ी तोप भी हैं तो सबसे मजबूत ढाल भी. पीएम मोदी और बीजेपी के हमलों को वो ही सदन में बैठकर झेलते भी हैं और आरोपों का जवाब भी देते हैं. उनकी हिंदी पर पकड़ और हिंदी में धारा-प्रवाह भाषण की कला हिंदी पट्टी के नेताओं को शर्मिंदा कर जाती है.

लोकतंत्र को बचाने के लिये ही कांग्रेस ने मल्लिकार्जुन खड़गे को संसद के लिये स्थायी तौर पर अपना सेनापति बनाया है ताकि कर्नाटक का मोह कहीं आड़े नहीं आए. लोकतंत्र बचाने के लिये ही इस बार कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बहुमत न मिलने के बावजूद कांग्रेस ने जेडीएस को समर्थन दे कर सरकार बनवाई है. हालांकि जम्मू-कश्मीर में बीजेपी के पीडीपी से समर्थन वापस लेने के बाद कांग्रेस को लोकतंत्र खतरे में नहीं दिखा तभी उसने पीडीपी को सरकार बनाने के लिये समर्थन देने का कोई प्रस्ताव नहीं दिया.

कांग्रेस लगातार बीजेपी पर मार्गदर्शक नेताओं की अनदेखी और अवहेलना के आरोप लगाती है. कांग्रेस कहती है कि बीजेपी के भीतर आवाज दबा दी जाती है. जबकि इसके ठीक उलट कांग्रेस के आंतरिक लोकतंत्र की तस्वीर आईने की तरह साफ है. यहां विरोध की कोई आवाज ही नहीं पनपती तो उसे दबाने का आरोप भी कोई नहीं लगा सकता.

कांग्रेस के आंतरिक लोकतंत्र का ही ये नायाब मॉडल है कि यहां एक सुर में उपाध्यक्ष रहे राहुल गांधी की अध्यक्ष पद पर ताजपोशी को कोई और आवाज चुनौती नहीं दे सकी. ये न सिर्फ पार्टी का मजबूत आंतरिक लोकतंत्र है बल्कि अनुशासन भी! निष्ठा के साथ अनुशासन के कॉकटेल से कांग्रेस के लोकतंत्र को मजबूत होने में कई दशकों का समय लगा है.

यूपीए सरकार में जब डॉ. मनमोहन सिंह को प्रधानमंत्री बनाया गया तो वो भी लोकतंत्र बचाने के लिये ही भावनात्मक और व्यावहारिक फैसला लिया गया था. मनमोहन सिंह राज्यसभा के नामित सदस्य थे. कभी चुनाव लड़ा नहीं था क्योंकि कभी सोचा भी नहीं था कि पीएम बनने का ऑफर इस तरह से आएगा. उस वक्त कांग्रेस के तमाम दिग्गज और पुराने चेहरों की निष्ठा और सियासी अनुभव पर मनमोहन सिंह का मौन आवरण भारी पड़ा था और वो सर्वसम्मति से पीएम बने थे. उस दौर में प्रणब मुखर्जी जैसे बड़े नाम भी लोकतंत्र को बचाने की रेस में दूर दूर तक नहीं थे. मनमोहन सिंह के नाम पर पीएम पद के प्रस्ताव को सर्वसम्मति, ध्वनिमत, पूर्ण बहुमत के साथ देश हित और लोकतंत्र बचाने के लिये अनुमोदित किया गया.

जब कभी पार्टी या देश का लोकतंत्र कांग्रेस ने खतरे में देखा तो उसने बड़े फैसले लेने में देर नहीं की. कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष सीताराम केसरी के हाथों में जब कांग्रेस और देश एकसाथ कमजोर दिखे और लोकतंत्र खतरे में महसूस हुआ तो कांग्रेस ने उन्हें ‘उठाकर’ हटाने का फैसला ‘भारी मन’ से लेने में देर नहीं की. यहां तक कि देश को आर्थिक उदारवाद के रूप में प्रगति की नई राह दिखाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव की आवाज भी ‘सम्मोहित’ नहीं कर सकी.

आज कांग्रेस की ही तरह देश के तमाम दिग्गज नेता अपनी अपनी क्षेत्रीय पार्टियों के साथ लोकतंत्र बचाने में जुटे हुए हैं. लोकतंत्र को लेकर उनकी निष्ठा ही कांग्रेस के साथ महागठबंधन के आड़े आ रही है.

एनसीपी चीफ शरद पवार महागठबंधन की संभावनाओं को खारिज करते सुने जा सकते हैं तो टीएमसी सुप्रीमो ममता बनर्जी और टीआरएस नेता केसी राव लोकतंत्र बचाने के लिये तीसरे मोर्चे की तैयारी करते दिख रहे हैं.

बहरहाल खड़गे ने भी पीएम मोदी को ‘चायवाला’ कह कर देश की सियासत में चाय का उबाल ला दिया है. खड़गे से पूछा जा सकता है कि क्या वो देश के लोकतंत्र को बचाने के लिये साल 2019 में भी चायवाले को देश का पीएम बनने देंगे?

अगर एक बार कांग्रेस ‘देशहित’ में इतना बड़ा फैसला ले सकती है तो दूसरी बार भी लोकतंत्र की खातिर कांग्रेस को पीएम मोदी को दूसरा मौका देना चाहिये.

कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने ये आरोप भी लगाया कि पिछले चार साल से देश में अघोषित आपातकाल है. खड़गे जी ने 1975 की घोषित इमरजेंसी भी देखी है. उनसे पूछा जाना चाहिये कि क्या अघोषित इमरजेंसी में जितनी बेबाकी से वो और तमाम सियासी-गैर सियासी लोग अपनी बात, अपना विरोध और मोदी हमला जारी रखे हुए हैं क्या वो 1975 की इमरजेंसी में संभव होता?

बहरहाल लोकतंत्र को बचाने के लिये कांग्रेस के भीतर एक आवाज प्रियंका गांधी को भी लाने की काफी समय से गूंज रही है. लेकिन कांग्रेस फिलहाल इस आवाज को अनसुना कर रही है. लोकतंत्र को बचाने के लिये कांग्रेस को अपने सारे ऑप्शन्स भी खुले रखने चाहिये.

क्या मुस्लिम तुष्टीकरण के चलते हुई स्वामी परिपूर्णानन्द की गिरफ्तारी?


काकीनाड़ा श्री पीठम के प्रमुख स्वामी परिपूर्णानंद को हिन्दू विरोधी बयान देने वाले लोगों के खिलाफ एक मार्च की अगुवाई करनी थी


तेलंगाना के हैदराबाद में एक आध्यात्मिक नेता को उनकी प्रस्तावित 40 किलोमीटर लंबी पदयात्रा से पहले सोमवार को नजरबंद कर दिया गया. यह यात्रा बोडुप्पल से यदादरी तक जानी थी.

पुलिस ने बताया कि काकीनाड़ा श्री पीठम के प्रमुख स्वामी परिपूर्णानंद को हिंदू  विरोधी बयान देने वाले लोगों के खिलाफ एक मार्च की अगुवाई करनी थी , लेकिन पुलिस ने यात्रा निकालने के लिए घर से बाहर निकलने पर ही रोक लगा दी. इस यात्रा के लिए पुलिस ने इजाजत नहीं दी थी.

पुलिस ने बताया कि इसके बाद स्वामी के समर्थक और विभिन्न हिन्दू संगठनों के सदस्य उनके घर के पास इकट्ठा हो गए. उन्होंने बताया कि परिपूर्णानंद ने हाल में हिंदू देवताओं के खिलाफ कथित टिप्पणी करने के लिए तेलुगू अभिनेता और फिल्म आलोचक काथी महेश की गिरफ्तारी की मांग की थी और कहा था कि अभिनेता ने हिंदुओं की भावनाओं को आहत किया है.

पुलिस ने बताया कि राज्य के किसी भी हिस्से में अभिनेता के बयान के खिलाफ प्रदर्शन करने की इजाजत नहीं दी गई है. अतिरिक्त पुलिस आयुक्त एम वेंकटेश्वरलु ने कहा, ‘परिपूर्णानंद को सिर्फ नजरबंद किया गया है.’

उन्होंने बताया कि मुद्दे पर प्रदर्शन करने की कोशिश करने पर विभिन्न संगठनों के 20 सदस्यों को एहतियाती तौर पर हिरासत में लिया गया है. परिपूर्णानंद को सोशल मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर कथित रूप से हिन्दू देवताओं के खिलाफ हालिया बयानों और अभियानों के खिलाफ पदयात्रा निकालनी थीं.

उन्होंने सरकार से किसी भी धर्म के देवता की निंदा करने और अपमानित करने वाले तत्वों को कड़ी सजा देने वाला कानून तुरंत बनाने की मांग की थी.नजरबंदी की निंदा करते हुए बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष के लक्ष्मण ने कहा कि प्रदर्शन करना और पदयात्रा निकालना संवैधानिक अधिकार है. उन्होंने कहा, ‘राज्य सरकार द्वारा हिंदू विरोधी टिप्पणी पर कथित रूप से कड़ा रूख नहीं अपनाने की वजह  से धार्मिक नेताओं को सड़कों पर आना पड़ा.’

डॉ हाथी का किरदार निभाने वाले कवि कुमार आज़ाद नहीं रहे


डा. हंसराज हाथी का किरदार निभाने वाले मशहूर कलाकार कवि कुमार आजाद का आज सुबह मुम्बई में कार्डियक अरेस्ट के चलते निधन हो गया


सब टीवी के पॉपुलर शो ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’ में डा. हंसराज हाथी का किरदार निभाने वाले मशहूर कलाकार कवि कुमार आजाद का आज सुबह मुम्बई में कार्डियक अरेस्ट के चलते निधन हो गया. रिपोर्ट्स के मुताबिक आज सुबह कवि कुमार आजाद ने अपने शो के सेट पर जानकारी भिजवाई कि उनकी तबियत ठीक नहीं है और वो आज शूटिंग के लिए नहीं आ पाएंगे.

बताया जा रहा है कि कवि कुमार आजाद की तबियत पिछले तीन दिनों से ठीक नहीं थी. पिछली रात उन्हें कोमा में शिफ्ट किया गया था. रिपोर्ट्स के मुताबिक आजाद को मीरा रोड स्थित वोकहार्ड हॉस्पिटल में एडमिट किया गया था. जहां उन्होंने अंतिम सांस ली. कवि कुमार आजाद के आकस्मिक निधन की खबर मिलते ही फिल्म सिटी में चल रहे शो के शूट को कैंसिल कर दिया गया है.

खबरों की मानें तो उनका वजन करीब २१५ किलो था जिसकी वजह से वह परेशान थे और वजन कम करने के लिए इलाज करा रहे थे. आजाद जिंदादिल इंसान थे और उनके इस तरह से चले जाने पर उनके साथी कलाकार गमजदा हैं.

जो मुस्लिम दाढ़ी रखते हैं लेकिन मूंछ नहीं रखते, वह चरमपंथी और डरावने हैं : रिजवी


सोशल मीडिया पर शेयर किए गए एक वीडियो में रिजवी ने कहा कि बिना मूंछ के मुस्लिम डरावने लगते हैं


मुस्लिमों द्वारा दाढ़ी के साथ मूंछ न रखने को लेकर यूपी शिया बोर्ड चीफ वसीम रिजवी ने विवादित बयान दिया है. उन्होंने कहा कि जो मुस्लिम दाढ़ी रखते हैं लेकिन मूंछ नहीं रखते, वह चरमपंथी और डरावने हैं.

उन्होंने कहा कि इस्लाम में दाढ़ी रखना एक रिवाज है लेकिन जो लोग दाढ़ी के साथ मूंछ नहीं रखते वह चरमपंथी हैं और देश-विदेश में आतंक का चेहरा हैं. सोशल मीडिया पर शेयर किए गए एक वीडियो में रिजवी ने कहा कि बिना मूंछ के मुस्लिम डरावने लगते हैं. ऐसे मुसलमान चरमपंथी और इस्लामी कट्टरपंथी हैं और दुनिया भर में आतंक फैलाने के लिए जाने जाते हैं, दाढ़ी के साथ मूंछ न रखना लोगों के बीच भय की भावना को जगाना है.

रिजवी ने कहा कि शरियत के नाम पर ऐसे मुस्लिम लोगों की निजी जिंदगी में फतवा जारी कर दखल देते हैं. जबकि इस्लाम में ऐसा कुछ नहीं है. केरल में एक लड़की के बिंदी लगाने पर मदरसे से निकाले जाने के मुद्दे पर रिजवी ने कहा कि शादी के बाद बिंदी लगाना इस देश का रिवाज है और ऐसे रिवाजों को नुकसान नहीं पहुंचाया जाना चाहिए.

रिजवी ने सरकार से मांग करते हुए कहा कि फतवा जारी करने वालों के खिलाफ राजद्रोह का मामला दर्ज किया जाना चाहिए. संविधान के अलावा आम आदमी के लिए अलग से नियम-कानून की कोई जरूरत नहीं है. बता दें कि जान से मारने की धमकी मिलने के बाद रिजवी को यूपी सरकार ने वाई श्रेणी की सुरक्षा उपलब्ध करवाई थी.

अप्रैल में रिजवी ने पीएम मोदी से मांग की थी कि उनकी सुरक्षा को बढ़ा दिया जाए. अंडरवर्ल्ड से जुड़े एक शख्स की गिरफ्तारी के बाद रिजवी ने यह मांग की थी. उन्होंने कहा था कि राम मंदिर के मुद्दे पर अपनी राय की वजह से वह चरमपंथियों के निशाने पर हैं.

शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती और गजपति राजा दिब्यसिंह देव ने गैर-हिंदुओं को प्रवेश की अनुमति देने के प्रस्ताव पर अपना विरोध दर्ज कराया है


12 वीं सदी में निर्मित इस मंदिर में अभी सिर्फ हिंदुओं के प्रवेश की अनुमति है. इसे श्री मंदिर के नाम से भी जाना जाता है


शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती और गजपति राजा दिब्यसिंह देव ने श्री जगन्नाथ मंदिर में गैर-हिंदुओं को प्रवेश की अनुमति देने के प्रस्ताव पर अपना विरोध दर्ज कराया है. राजा दिब्यसिंह देव को भगवान जगन्नाथ का पहला सेवक माना जाता है.

12 वीं सदी में निर्मित इस मंदिर में अभी सिर्फ हिंदुओं के प्रवेश की अनुमति है. मंदिर में गैर – हिंदुओं के प्रवेश पर चर्चा तब शुरू हुई जब सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को श्री जगन्नाथ मंदिर प्रबंधन को निर्देश दिया कि वह सभी दर्शनाभिलाषियों को भगवान की पूजा अर्चना करने दें, भले ही वे किसी भी धर्म के हों.

विश्व हिंदू परिषद ने भी रविवार को विरोध जताते हुए कहा कि वह इस बाबत सुप्रीम कोर्ट में पुनर्विचार याचिका दायर करेगी ताकि न्यायालय अपने प्रस्ताव पर फिर से विचार करे.

गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने एक विज्ञप्ति में कहा कि सनातन धर्म की सदियों पुरानी परंपरा का उल्लंघन कर श्री मंदिर में सभी को प्रवेश की अनुमति देना हमें स्वीकार्य नहीं है.

गोवर्धन पीठ के शंकराचार्य श्री जगन्नाथ मंदिर में पंडितों की शीर्ष संस्था मुक्ति मंडप के प्रमुख होते हैं.

गजपति राजा दिब्यसिंह देव ने कहा कि वार्षिक रथ यात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ, बलराम और सुभद्रा को मंदिर से बाहर ले जाया जाता है ताकि वे विभिन्न धर्मों के भक्तों को आशीर्वाद दे सकें और ‘स्नान उत्सव’ के दौरान भी लाखों लोग उन्हें देखते हैं.

गजपति राजा ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट का प्रस्ताव एक अंतरिम आदेश की तरह है. उन्होंने कहा कि मंदिर प्रबंध समिति रथ यात्रा के बाद इस मुद्दे पर चर्चा करेगी और श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन उसी अनुरूप कदम उठाएगा.

वीएचपी की ओडिशा इकाई के कार्यवाहक अध्यक्ष बद्रीनाथ पटनायक ने पीटीआई-भाषा को बताया कि मंदिर को लेकर कोई भी कदम उठाने से पहले पुरी के गजपति राजा दिव्यसिंह देब और पुरी के शंकराचार्य निश्चलानंद सरस्वती से विचार-विमर्श किया जाना चाहिए.

12 वीं सदी में निर्मित इस मंदिर में अभी सिर्फ हिंदुओं के प्रवेश की अनुमति है. इसे श्री मंदिर के नाम से भी जाना जाता है.

विहिप नेता ने श्री जगन्नाथ मंदिर में वंशानुगत सेवादार प्रथा को खत्म करने के शीर्ष न्यायालय के प्रस्ताव को भी स्वीकार नहीं किया.

पटनायक ने कहा, ‘राज्य सरकार से अपील की जाएगी कि वह इस मामले में अपना मौजूदा रुख कायम रखे और यदि वह ऐसा करने में नाकाम रही तो हम सुप्रीम कोर्ट की बड़ी पीठ में पुनर्विचार याचिका दायर करेंगे.’

सुप्रीम कोर्ट ने जगन्नाथ मंदिर प्रबंधन को निर्देश दिया था कि वह सभी दर्शनाभिलाषियों, चाहे वे किसी भी धर्म-आस्था को मानने वाले क्यों न हों, को मंदिर में पूजा करने की अनुमति दे. हालांकि, न्यायालय ने कहा था कि गैर-हिंदू दर्शनाभिलाषियों को ड्रेस कोड का पालन करना होगा और एक उचित घोषणा – पत्र देना होगा.

ट्रिपल तलाक की याचिकाकर्ता शायरा बानो ने संकेत दिया कि वह बीजेपी जॉइन कर सकती हैं


घरेलू हिंसा और ट्रिपल तलाक की पीड़िता बानो तलाक-ए-बिद्दत और निकाह हलाला के खिलाफ 2016 में सुप्रीम कोर्ट गई थीं. उन्होंने अपनी याचिक 5 अन्य लोगों के साथ दायर की थी


ट्रिपल तलाक की याचिकाकर्ता शायरा बानो ने संकेत दिया कि वह बीजेपी जॉइन कर सकती हैं. शायरा बानो ने ट्रिपल तलाक और यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू करने के लिए केंद्र सरकार की सराहना की है. शायरा बानो ने सबसे पहले ट्रिपल तलाक के खिलाफ पहली याचिका दायर की थी.

बानो ने कहा ‘हमारी सरकार एक समान नागरिक संहिता और बहुविवाह के प्रभावों के बारे में सोचने के बारे में चिंतित है. मुसलमानों के प्रति बीजेपी सरकार की चिंता को देखते हुए मैंने फैसला किया है कि अगर मुझे बीजेपी में शामिल होने का मौका मिलता है तो मैं निश्चित रूप से इसमें शामिल हो जाऊंगा,’

घरेलू हिंसा और ट्रिपल तलाक की पीड़िता बानो तलाक-ए-बिद्दत और निकाह हलाला के खिलाफ 2016 में सुप्रीम कोर्ट गई थीं. उन्होंने अपनी याचिक 5 अन्य लोगों के साथ दायर की थी. इसमें इशरत जहां, भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन, गुलशन परवीन, आफरीन रहमान और अतिया साबरी का नाम शामिल है.

क्या है निकाह हलाला ?

निकाह हलाला को समझना जरूरी है. अगर कोई पुरुष तीन सिटिंग में पत्नी को तलाक देता है तो तलाक मान लिया जाता है. लेकिन फिर पूर्व पत्नी से दोबारा शादी करना चाहता है तो निकाह हलाला की प्रकिया से गुजरना होगा. ये मुसलमानों के सभी मसलकों में माना जाता है, इस्लामिक कानून के जानकारों की राय है कि ये इसलिए है कि समाज में तलाक जैसी बीमारी ना फैलने पाए. पुरुष महिला को तलाक देने से पहले सोचे समझे. निकाह हलाला एक सबक के तौर पर देखा जाना चाहिए. हालांकि सवाल ये उठता है कि सिर्फ महिला को ही इस तरह के कष्ट से क्यों गुजरना पड़ता है? पुरूष को सजा के तौर पर क्या मिल रहा है?