जब आडवाणी राजनीति में तो मैं क्यों हट जाऊँ: दिग्विजय सिंह

कांग्रेस वर्किंग कमेटी (सीडबल्यूसी) से बाहर किए जाने के बाद मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने कहा है कि वह चाहे कहीं भी रहें, नफरत की राजनीति के खिलाफ लड़ते रहेंगे.

उन्होंने भावुक अंदाज में कहा कि पार्टी ने मुझे बहुत कुछ दिया है और मुझ पर विश्वास भी किया है. उन्होंने सीडब्ल्यूसी में बदलाव के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि उनकी विचारधारा नफरत और हिंसा के खिलाफ है और ऐसी ताकतों से वह अपनी अंतिम सांस तक लड़ते रहेंगे.

मंगलवार को कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कांग्रेस वर्किंग कमेटी के 23 सदस्यों की लिस्ट जारी की थी. इसके साथ ही 18 स्थायी आमंत्रित सदस्य और 10 विशेष आमंत्रित सदस्य भी शामिल किए गए.

राहुल गांधी ने यह फैसला ऐसे वक्त लिया है, जब मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. हालांकि, राज्य के एक और दूसरे बड़े नेता कमलनाथ भी इस लिस्ट से गायब हैं. लेकिन उन्हें मध्य प्रदेश कांग्रेस कमेटी की जिम्मेदारी सौंपी जा चुकी है. ऐसे में पहले ही राहुल के पसंदीदा नेताओं की फेहरिस्त से बाहर चल रहे दिग्विजय सिंह का सीडबल्यूसी से आउट होने उनके राजनीतिक कद को बड़ा झटका देने वाला कदम माना जा रहा है. हालांकि, दिग्विजय सिंह ने कहा है कि उन्हें नेताओं से कॉर्डिनेट कर चुनाव में जीत सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी दी गई है.

राजनीति से रिटायर हो जाने के सवाल पर दिग्विजय सिंह ने कहा कि चुनाव के बाद आगे की रणनीति पर काम किया जाएगा. साथ ही उन्होंने बीजेपी के वयोवृद्ध नेता लालकृष्ण आडवाणी का जिक्र करते हुए कहा कि जब आसपास आडवाणी जी हों तो मुझे क्यों रिटायर हो जाना चाहिए. उन्होंने स्पष्ट कहा कि वह अपनी अंतिम सांस तक पार्टी के लिए काम करेंगे.

राहुल की सीडबल्यूसी मे दिग्गी राजा ओर जनार्दन द्विवेदी को कोई जगह नहीं



कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद राहुल गांधी के नेतृत्व में पहली बार सीडब्ल्यूसी का गठन किया गया है, इसमें जनार्दन द्विवेदी को जगह नहीं मिली है


कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के नेतृत्व में पार्टी ने नई कांग्रेस वर्किंग कमेटी (सीडब्ल्यूसी) का गठन किया है. इसमें नए और पुराने नेताओं को शामिल किया गया है. सीडब्ल्यूसी पार्टी की सर्वोच्च निर्णय लेने वाली समिति है. नई कार्यकारिणी की गठन के साथ ही राहुल ने इसकी पहली बैठक 22 जुलाई को बुलाई है. इस कमेटी में कमलनाथ, दिग्विजय सिंह और जनार्दन द्विवेदी जैसे दिग्गज नेताओं को जगह नहीं मिली है वहीं हरीश रावत को नई कमेटी में जगह दी गई है.

नई सीडब्ल्यूसी में 23 सदस्य, 18 स्थायी आमंत्रित सदस्य और 10 विशेष आमंत्रित सदस्य शामिल हैं. पार्टी अध्यक्ष पद संभालने के बाद राहुल गांधी ने पहली बार सीडब्ल्यूसी का गठन किया है.

सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह, मोतीलाल वोहरा, गुलाम नबी आजाद, मल्लिकार्जुन खड़गे, एके एंटनी, अहमद पटेल और अंबिका सोनी सीडब्ल्यूसी के सदस्य बने रहेंगे. वहीं दिग्विजय सिंह, जनार्दन द्विेवेदी, सुशील कुमार शिंदे, मोहन प्रकाश, कमलनाथ और सीपी जोशी जैसे नेताओं को इससे बाहर कर दिया गया है.

पूर्व मुख्यमंत्री अशोल गहलोत, ओमेन चांडी, तरुण गोगोई, सिद्धरमैया और हरीश रावत को भी नई सीडब्ल्यूसी में जगह दी गई है. कांग्रेस नेता शीला दीक्षित, पी चिदंबरम, ज्योतिरादित्य सिंधिया, बालासाहेब थोरट और तारीक हमीद कर्रा स्थायी आमंत्रित सदस्य होंगे.

22 जुलाई को होने वाली बैठक ‘विस्तारित कार्यकारी समिति’ की बैठक होगी क्योंकि राहुल गांधी ने राज्यों के सभी अध्यक्षों और कांग्रेस विधानसभा के नेताओं को भी आमंत्रित किया है.

समिति को कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव से पहले भंग कर दिया गया था और पहले के पैनल को मार्च में संपन्न पार्टी के प्लेनरी सेशन तक एक स्टीयरिंग कमेटी में बदल दिया गया था. सीडब्ल्यूसी, जो पार्टी के सभी महत्वपूर्ण निर्णयों पर एक सलाहकार पैनल के रूप में कार्य करती है, मार्च में हुए पार्टी के प्लेनरी सेशन के बाद अस्तित्व में नहीं थी.

लालू जमानत की शर्तों का सरेआम उल्लंघन कर रहे हैं: सुशील मोदी


बिहार के उपमुख्यमंत्री और बीजेपी नेता सुशील कुमार मोदी ने मांग की है कि सीबीआई राजनीतिक मुलाकातें करने वाले लालू की जमानत रद्द कराए


बिहार के उपमुख्यमंत्री और बीजेपी के वरिष्ठ नेता सुशील कुमार मोदी ने बुधवार को मांग की कि केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) राजनीतिक मुलाकातें करने वाले आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव की जमानत रद्द कराए.

सुशील ने एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर आरोप लगाया कि चारा घोटाला के चार मामलों में सजायाफ्ता लालू को राजनीतिक कार्यों से अलग रहने की शर्त पर केवल इलाज के लिए जमानत मिली थी, लेकिन वह लगातार शर्तों का उल्लंघन कर रहे हैं.

उन्होंने आरोप लगाया कि आरजेडी प्रमुख ने पहले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अशोक गहलोत से बात की और उसके बाद तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) के तीन सांसदों ने उनसे मुलाकात कर राजनीतिक चर्चाएं की. इस आधार पर सीबीआई को लालू की जमानत तत्काल रद्द करानी चाहिए.

सुशील ने कहा कि लालू से मंगलवार को मुलाकात करने वाले टीडीपी सांसदों ने स्वीकार किया था कि उन लोगों ने हालचाल पूछने के नाम पर लालू से भेंट की और संसद के मानसून सत्र में संभावित अविश्वास प्रस्ताव (आंध्रप्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा नहीं दिए जाने पर केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार के खिलाफ) पर उनकी पार्टी का समर्थन मांगा.

उन्होंने कहा कि टीडीपी और आरजेडी, दोनों दलों ने लालू से राजनीतिक बातचीत की पुष्टि कर यह साबित किया है कि इन्हें जमानत की शर्तों का पालन करने की कोई परवाह नहीं है. यह अदालत की अवमानना का मामला भी है.

सुशील ने कहा कि चारा घोटाला मामले में सजायाफ्ता होने के कारण लालू के चुनाव लड़ने पर पहले ही रोक लग चुकी है. सीबीआई को लालू की सेहत और उनकी राजनीतिक गतिविधियों की समीक्षा कर तुरन्त फैसला लेना चाहिए.

सीडबल्यूसी राजनैतिक गुरु को भूले शिष्य


आखिर दिग्विजय सिंह CWC की टीम के लिये यो-यो टेस्ट में फेल क्यों कर दिये गये?


राहुल के ‘राजनीतिक गुरु’ का तमगा अगर किसी को मिला है तो वो सिर्फ कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्गी राजा यानी दिग्विजय सिंह ही हैं. दिग्विजय सिंह ने ही सबसे पहले राहुल को पीएम और अध्यक्ष बनाने की मांग को ‘गूंज’ बनाने का काम किया था.

केंद्र में यूपीए की सरकार थी. मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री तो दिग्विजय सिंह कांग्रेस महासचिव थे. दिग्विजय सिंह ने उस वक्त ये कह कर सियासी तूफान पैदा कर दिया था कि राहुल को अब देश का पीएम बना देना चाहिये. हालांकि बाद में उन्होंने अपने बयान को सुधारने की कोशिश भी की और कहा कि मनमोहन सिंह भी अच्छे प्रधानमंत्री हैं.

लेकिन ये विडंबना ही रही कि जब राहुल ने कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिये नामांकन भरा तब दिग्विजय सिंह गैर मौजूद थे. दिग्विजय सिंह उस वक्त नर्मदा यात्रा पर थे.

अब जबकि राहुल को नई टीम बनाने का मौका मिला तो उस टीम में भी दिग्विजय सिंह गैर मौजूद हैं. ऐसा भी नहीं राहुल के टीम सेलेक्शन में उम्र का कोई पैमाना रखा गया हो. कांग्रेस वर्किंग कमेटी की नई टीम में मोतीलाल वोरा जैसे कई नेताओं को बढ़ती उम्र के बावजूद अनुभव की वजह से तरजीह दी गई है.

ऐसे में बड़ा सवाल उठता है कि टीम में दिग्विजय सिंह को एक्स्ट्रा की भी जगह क्यों नहीं मिली?  दिग्विजय सिंह जो कभी खुद कांग्रेस में सेलेक्टर की भूमिका में हुआ करते थे, जो टीम के कोच और खिलाड़ी तक तय करने का माद्दा रखा करते थे, उन्हें ही बाहर कैसे कर दिया गया? आखिर दिग्विजय सिंह CWC की टीम के लिये यो-यो टेस्ट में क्यों फेल कर दिये गये ?

दिग्विजय सिंह ने ही राहुल को राजनीति का ककहरा सिखाने का काम किया है. लेकिन ऐसी गुरु-दक्षिणा की उम्मीद उन्हें भी नहीं रही होगी.

राहुल आज कांग्रेस के अध्यक्ष हैं. वो युवाओं और दलितों को पार्टी की अगली पंक्ति पर बिठाना चाहते हैं. कांग्रेस अधिवेशन में स्टेज को खाली छोड़ा गया था. सारे दिग्गज स्टेज के नीचे बैठे थे. इसके जरिये ये संदेश दिया गया कि अब कांग्रेस का भविष्य युवा तय करेंगे यानी पुरानी पीढ़ी के लोगों को सम्मान तो मिलेगा लेकिन कमान नहीं. राहुल ने युवाओं से आगे आ कर जिम्मेदारी उठाने का आह्वान किया था.

लेकिन कांग्रेस वर्किंग कमेटी के गठन में दिग्विजय सिंह का वरिष्ठता के बावजूद सम्मान आहत हुआ है. शायद राहुल उन दिनों को भूल गए जब दिग्विजय सिंह उन्हें राजनीतिक दीक्षा देने के लिये दिन-रात साये की तरह साथ होते थे.

राहुल गांधी उस वक्त पार्टी में नंबर दो की भूमिका में थे. तब दिग्वजिय सिंह अपने राजनीतिक अनुभव की भट्टी में राहुल को तपा कर नए दौर की राजनीति के सांचे में ढालने में जुटे हुए थे. राहुल के साथ तमाम दौरों में दिग्विजय सिंह साथ रहते थे. किसी प्रोफेशनल कैमरामेन की तरह वो राहुल के फोटोग्राफ भी खींचते रहते थे. भट्टा-परसौल गांव में किसानों के आंदोलन में राहुल के उतरने के पीछे दिग्विजय सिंह की ही रणनीति थी.

वो दौर दिग्विजय सिंह के स्वर्णिम दौर में से एक माना जा सकता है. बिना किसी बड़े पद के बावजूद उनकी हैसियत गांधी परिवार के करीबियों में से थी. राजनीतिक तौर पर भी उनके पास एक साथ तीन-तीन राज्यों का प्रभार हुआ करता था. उनका पार्टी में कद इतना बढ़ चुका था कि उनके बयानों को पार्टी लाइन भी माना जाने लगा था. पी. चिंदबरम के नक्सलियों पर दिये गये बयान को खारिज करने की हिम्मत भी दिग्विजय सिंह ने ही दिखाई थी. नक्सली समस्या पर तत्कालीन गृहमंत्री पी चिदम्बरम की राय को दिग्विजय सिंह ने ही खारिज किया था.

दरअसल बीजेपी और आरएसएस के खिलाफ दिग्विजय सिंह की आक्रमकता ही कांग्रेस की बड़ी ताकत हुआ करती थी. दिग्विजय सिंह अपने बयानों से नरेंद्र मोदी, बीजेपी और आरएसएस पर हमले करने में सबसे आगे रहते थे. साल 2014 में तत्कालीन पीएम उम्मीदवार नरेंद्र मोदी के खिलाफ उनके आक्रामक हमलों के चलते ही ये अफवाह भी गर्म थी कि बनारस से दिग्विजय सिंह को मोदी के खिलाफ मैदान में उतारा जा सकता है.

दिग्विजय सिंह का कद राजनीति में उनके पदार्पण के साथ ही बड़ा था. 1977 में कांग्रेस विरोधी लहर के बावजूद वो पहली दफे विधायक का चुनाव जीते थे. मध्यप्रदेश में लगातार दस साल तक मुख्यमंत्री रहने का रिकॉर्ड भी बनाया था.

लेकिन एक दिन उन्हें भी अहसास होने लगा कि वो डूबता सूरज हो चले हैं. राहुल जब नंबर दो की स्थिति से अघोषित नंबर 1 की स्थिति में आते चले गए तो दिग्विजय सिंह के साथ उनकी दूरियां भी दिखने लगीं. आज दिग्विजय सिंह के विवादास्पद बयानों से पार्टी इत्तेफाक नहीं रखती है. बीजेपी और आरएसएस पर उनके हमलों को पार्टी का साथ नहीं मिलता है.

ऐसा लगता है कि शायद राहुल ने अपने गुरु की ‘मन की बात’ को एक साल बाद सुन ही लिया. एक साल पहले दिग्वजिय सिंह ने कहा था कि, ‘राहुल को एआईसीसी के पुनर्गठन के फैसले में देर नहीं करनी चाहिये और अगर कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं को एआईसीसी से हटाने का सख्त फैसला लेना पड़ता है तो सबसे पहले मुझे हटाएं.’  इसी के बाद ही दिग्विजय सिंह के कांग्रेस में दिन फिरने लगे.  पहले उनसे गोवा और कर्नाटक का प्रभार बहाने से ले लिया गया तो अब सीडब्लूसी  की टीम में भी जगह नहीं मिली.

सवाल उठता है कि क्या जानबूझकर दिग्विजय सिंह की अनदेखी हुई है या फिर उन्हें मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव के मद्देनजर कोई बड़ी जिम्मेदारी दी जाने वाली है?

बहरहाल सवाल तो उठेंगे क्योंकि सवाल बीजेपी पर भी उठे हैं. सवाल उठाने वाले खुद दिग्विजय सिंह भी रहे हैं जो ‘मार्गदर्शक मंडल’ को लेकर बीजेपी पर निशाना बनाते थे. लेकिन आज अपने राजनीतिक अनुभव और वाकचातुर्य के बावजूद वो कांग्रेस के टॉप 51 लोगों में जगह नहीं बना सके. क्या वाकई दिग्गी राजा का राजनीतिक सूरज अब ढलने की दिशा में है?

राजस्थान मे 15 लाख वाला वादा पूरा किया: सैनी


मदनलाल सैनी ने कहा ‘किसी को नकद नहीं दिया गया, लेकिन ऐसी व्यवस्थाएं की गई हैं कि गरीबों को 15 लाख रुपए का लाभ दिया जा सके.’


राजस्थान बीजेपी के नए प्रेसिडेंट मदनलाल सैनी ने एक इंटरव्यू में कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जो 15 लाख देने का वादा किया था वह अप्रत्यक्ष रूप से पूरा कर दिया है.

हिंदुस्तान टाइम्स  के मुताबिक, सैनी ने कहा ‘किसी को नकद नहीं दिया गया, लेकिन ऐसी व्यवस्थाएं की गई हैं कि गरीबों को 15 लाख रुपए का लाभ दिया जा सके.’ सैनी ने केंद्र और राज्य सरकारों की योजनाओं का जिक्र करते हुए कहा कि गरीबों को इसका लाभ मिला है. उन्होंने कहा ‘अगर आप सभी फायदों को देखेंगे तो गरीबों को 15 लाख रुपए मिले हैं.’

राजस्थान बीजेपी चीफ ने बीजेपी के 2013 में किए गए नौकरी देने के वादे का भी जिक्र किया. 2013 में बीजेपी ने वादा किया था कि राजस्थान में 1.5 मिलियन नौकरियां हर साल दी जाएंगी. इस पर बोलते हुए सैनी ने कहा ‘हमने 2-3 लाख सरकारी नौकरियां दी हैं. यहां अन्य रोजगार के अवसर भी दिए हैं. अगर आप सभी को जमा करेंगे तो हमने 15 लाख नौकरियां दी हैं.’

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वादा किया था कि सरकार बनने के बाद वह विदेशों में जमा काले धन को वापस लेकर आएंगे. सरकार बनने के बाद बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कहा था कि यह सिर्फ एक जुमला था और कहा था कि यदि विदेशों में जमा काला धन वापस आ गया तो वह भारतीयों के खाते में नहीं जाएगा.

चन्दन मित्रा ने भाजपा छोड़ि

चंदन मित्रा ने अभी पार्टी छोड़ने की कोई वजह नहीं बताई है. इस बात का भी खुलासा नहीं किया है कि वह आगे क्या करेंगे

कयास यह है कि मित्रा टीएमसी में जाएँगे।


सीनियर बीजेपी लीडर चंदन मित्रा ने बुधवार को पार्टी छोड़ दी. मित्रा ने कहा, ‘मैंने इस्तीफा दे दिया है. मैंने अभी यह फैसला नहीं किया है कि कब और कहां ज्वाइन करूंगा. मैं अभी इस बात का खुलासा नहीं करूंगा.’ वैसे खबरों की माने तो मित्रा टीएमसी में जा सकते हैं. वहींं, सीपीएम के वरिष्ठ नेता ऋतब्रत बनर्जी के भी पार्टी छोड़कर टीएमसी में जाने के कयास लगाए जा रहे हैं.

पूर्व राज्यसभा सांसद मित्रा पायोनीयर के एडिटर और मैनेजिंग डायरेक्टर हैं. मित्रा अगस्त 2003 से 2009 के बीच राज्यसभा सांसद थे. जून 2010 में बीजेपी ने मध्यप्रदेश से राज्यसभा सांसद बनाया था. उनका कार्यकाल 2016 में खत्म हुआ था.

बीजेपी के दिल्ली सर्किल में मित्रा पार्टी का अहम चेहरा थे. कई अहम मुद्दों पर उन्होंने पार्टी का बचाव किया है. मित्रा को पार्टी में लालकृष्ण आडवाणी का करीब माना जाता था. नरेंद्र मोदी और अमित शाह के आगे आने के बाद वह साइडलाइन हो गए हैं.

विपक्ष का सरकार अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा मंजूर

संसद के मानसून सत्र के पहले दिन नो-ट्रस्ट प्रस्ताव पेश किया गया था, भले ही प्रधान मंत्री ने कहा कि सरकार किसी भी चर्चा के लिए तैयार है। लोकसभा सभापति सुमित्रा महाजन ने बुधवार को कांग्रेस और तेलुगू देशम पार्टी समेत विपक्षी दलों द्वारा अविश्वास प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया, भले ही प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि सरकार संसद के तल पर सभी मुद्दों पर चर्चा के लिए तैयार है।

मॉनसून सत्र के पहले दिन विपक्ष ने नो-ट्रस्ट कदम शुरू किया था।

इससे पहले, सत्र से पहले मीडिया से बात करते हुए मोदी ने कहा, “हम उम्मीद करते हैं कि संसद आसानी से काम करेगी, किसी भी पार्टी के किसी भी मुद्दे पर, यह घर के तल पर उठा सकता है। सरकार टी सभी मुद्दों पर चर्चा के लिए तैयार है। ”

उन्होंने कहा, “मानसून सत्र में देश के हित में कई महत्वपूर्ण निर्णय किए जाएंगे। हम सभी अनुभवी सदस्यों से अच्छे सुझाव और चर्चा के लिए आशा करते हैं। ”

इससे पहले प्रधान मंत्री कार्यालय ने उम्मीद जताई कि सत्र उपयोगी होगा। इसने ट्वीट किया: “आने वाले सत्र की उत्पादकता और बहस के समृद्ध स्तर भी विभिन्न राज्य विधानसभाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत बन सकते हैं।”

एनडीए के विद्रोही सहयोगी तेलुगू देशम पार्टी (टीडीपी) ने मंगलवार को लोकसभा सचिवालय को अविश्वास प्रस्ताव की सूचना दी। पार्टी के लोकसभा नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि कांग्रेस इसी तरह की चालों का समर्थन करने के लिए अन्य समान विचारधारा वाले पार्टियों के साथ भी बातचीत कर रही थी।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) संसद के सदस्य मोहम्मद सलीम ने पुष्टि की कि पार्टी भी अविश्वास प्रस्ताव को आगे बढ़ाने की कोशिश करेगी। उन्होंने कहा, “हम इसे पहले दिन नहीं करेंगे क्योंकि हम कुछ अन्य मुद्दों पर चर्चा करना चाहते हैं।”

तेलुगु देशम पार्टी और इसके आगमन वाईएसआर कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी) जैसे क्षेत्रीय समूह, आंध्र प्रदेश में सत्ताधारी और मुख्य विपक्षी दलों ने संसद के बजट सत्र के दौरान सरकार के खिलाफ कोई विश्वास प्रस्ताव नहीं डाला, लेकिन उन्हें नहीं लिया गया सत्र जिसमें कार्यवाही कई बाधाओं से प्रभावित हुई थी। दोनों जून 2014 के विभाजन के बाद आंध्र प्रदेश के लिए विशेष श्रेणी की स्थिति की मांग कर रहे हैं, जो राज्य को विशेष केंद्रीय अनुदान और अन्य प्रोत्साहनों के लिए जिम्मेदार ठहराएगा।

चुनाव में शामिल होने के कांग्रेस के फैसले से बीजेपी की अगुवाई वाली सरकार के खिलाफ यह बड़ी लड़ाई हो गई है क्योंकि द्रविड़ मुनेत्र कज़ागम, समाजवादी पार्टी और आम आदमी पार्टी जैसी अन्य पार्टियों को पार्टी का समर्थन करने की उम्मीद है।

तमाम प्रतिबंधों के बावजूद तोगड़िया असम पँहुचे


विश्व हिंदू परिषद के पूर्व अध्यक्ष प्रवीण तोगड़िया असम सरकार द्वारा राजधानी और उसके आसपास मीडिया को संबोधित करने और सार्वजनिक जनसभा को संबोधित करने पर लगाए गए दो महीने के प्रतिबंध के बावजूद बुधवार को यहां पहुंच गए। तोगड़िया विमान से यहां हवाईअड्डे पहुंचे और वहां से सीधे शहर में नीलाचल पहाड़ियों के शिखर पर स्थित कामाख्या मंदिर चले गए। उनके निर्धारित कार्यक्रमों पर प्रतिबंध लगाने के सरकार के फैसले के विरोध में वह माथे पर एक काली पट्टी बांधे हुए हवाईअड्डे से बाहर निकले। 

अंतर्राष्ट्रीय हिंदू परिषद (एएचपी) के सैकड़ों समर्थकों ने हालांकि तोगड़िया का स्वागत गर्मजोशी से किया और हवाईअड्डे के बाहर उनके सम्मान में नारे लगाए। साथ ही उन्होंने भाजपा नीत असम सरकार और केंद्र सरकार के खिलाफ नारे लगाए। 


गुवाहाटी । विश्व हिन्दू परिषद (विहिप) के पूर्व अध्यक्ष प्रवीण भाई तोगड़िया अपने आगमन और सार्वजनिक सभाएं करने संबंधी तमाम प्रतिबंधों को दरकिनार करते हुए आज यहां गुवाहाटी पहुँचे।

अपने भड़काऊ भाषणों के लिए चर्चित तोगड़िया मुँह पर काला कपड़ा बांधे सुबह 10 बजे गोपीनाथ बोरदोलोई अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा पहुँचे। उनकी अगवानी नव गठित अंतर्राष्ट्रीय हिन्दू परिषद के सदस्यों ने की, जिसका गठन उन्होनें विश्व हिन्दू परिषद से अलग होने के बाद किया था।

पुलिस ने दो महीनों के लिए श्री तोगड़िया पर किसी भी प्रकार की जन सभा को संबोधित करने का प्रतिबंध लगाया है। यहां आने के बाद उन्होंनेे कामाख्या मन्दिर के दर्शन किए ।श्री तोगड़िया अपने भड़काऊ भाषणों के लिए जाने जाते हैं जिसकी वजह से सरकार को राज्य में साम्प्रदायिक तनाव बढ़ने का डर है। इससे पहले 2015 में कांग्रेस सरकार ने उनके गुवाहाटी में प्रवेश पर प्रतिबंध लगाया था।

विश्व हिन्दू परिषद के पू्र्व अध्यक्ष मौजूदा केन्द्र सरकार की नीतियों के जोरदार आलोचक हैंं कि यह सरकार पिछले चुनाव के दौरान किए गए अपने वादों को पूरा करने में असफल रही है। माना जा रहा है कि वह असम की भाजपा सरकार की जोरदार आलोचना करेंगें, जो पहले ही विभिन्न मोर्चों पर अपने लचर प्रदर्शन और असम नागरिकता संशोधन (विधेयक) 2016 पर चुप्पी के लिए आलोचना झेल रही है।

Senator, lawyers not allowed to meet Nawaz


The Adiala jail authorities on Tuesday denied permission to a senator and workers of PML-N women and lawyers wings to meet former prime minister Nawaz Sharif and his daughter Maryam Nawaz.

Later, they held a protest against the jail superintendent and other officials outside the Adiala jail.

They chanted slogans against the jail authorities and in favour of Nawaz Sharif, Maryam Nawaz and Capt Safdar.

According to sources, PML-N Senator Nuzhat Sadiq arrived at Adiala jail to meet Nawaz Sharif and Maryam Nawaz.

The jail authorities told the senator that under the laws, she could meet the former premier and Maryam Nawaz only on Thursday. The senator returned home without seeing her leaders.

A group of PML-N Women Wing workers from Khyber-Pakhtunkhwa led by President Tahira Bukhari also reached Adiala jail to show solidarity with the jailed former prime minister and his daughter.

The women wing workers staged a protest outside the jail and pledged to support Nawaz Sharif in the upcoming general elections.

Similarly, a delegation of lawyers associated with PML-N Lawyers Wing Rawalpindi also visited Adiala jail and tried to meet the detained party Quaid. But they too were denied permission after which they staged a protest.

They chanted slogans against the government and the jail administration and in favour of Nawaz Sharif and his daughter.

Jupiter’s Moon Count Reaches 79, Including Tiny ‘Oddball’


Galileo detected Jupiter’s four largest moons, Io, Europa, Ganymede and Callisto in 1610. The latest count of 79 known planets includes eight that have not been seen for several years.


 

Astronomers are still finding moons at Jupiter, 400 years after Galileo used his spyglass to spot the first ones.

The latest discovery of a dozen small moons brings the total to 79, the most of any planet in our solar system.

Scientists were looking for objects on the fringes of the solar system last year when they pointed their telescopes close to Jupiter’s backyard, according to Scott Sheppard of the Carnegie Institute for Science in Washington.

They saw a new group of objects moving around the giant gas planet but didn’t know whether they were moons or asteroids passing near Jupiter.

“There was no eureka moment,” said Sheppard, who led the team of astronomers. “It took a year to figure out what these objects were.”

They all turned out to be moons of Jupiter. The confirmation of 10 was announced Tuesday. Two were confirmed earlier.

The moons had not been spotted before because they are tiny. They are about one to two kilometers (miles) across, said astronomer Gareth Williams of the International Astronomical Union’s Minor Planet Center.

And he thinks Jupiter might have even more moons just as small waiting to be found.

“We just haven’t observed them enough,” said Williams, who helped confirm the moons’ orbits.

The team is calling one of the new moons an ‘oddball’ because of its unusual orbit. Sheppard’s girlfriend came up with a name for it: Valetudo, the great-granddaughter of the Roman god Jupiter.

Valetudo is in Jupiter’s distant, outer swarm of moons that circles in the opposite direction of the planet’s rotation. Yet it’s orbiting in the same direction as the planet, against the swarm’s traffic.

“This moon is going down the highway the wrong way,” Sheppard said.

Scientists believe moons like Valetudo and its siblings appeared soon after Jupiter formed. The planet must have acted like a vacuum, sucking up all the material that was around it. Some of that debris was captured as moons.

“What astonishes me about these moons is that they’re the remnants of what the planet formed from,” he said.

Telescopes in Chile, Hawaii and Arizona were used for the latest discovery and confirmation.

Galileo detected Jupiter’s four largest moons, Io, Europa, Ganymede and Callisto in 1610. The latest count of 79 known planets includes eight that have not been seen for several years. Saturn is next with 61, followed by Uranus with 27 and Neptune with 14.

Mars has two, Earth has one and Mercury and Venus have none.