खबरों की खबर तक कैसे पहुँचे नैयर


आपातकाल में अनेक लोगों को यह लग रहा था कि पता नहीं, अब इस देश में चुनाव होगा भी या नहीं. वैसे माहौल में खबरखोजी कुलदीप नैयर यह खबर देने जा रहे थे कि चुनाव होने ही वाले हैं. पर सवाल है कि उस खबर तक नैयर साहब कैसे पहुंचे?


चंडीगढ़, 27 अगस्त:

जनवरी, 1977 की बात है. आपातकाल की घनघोर छाया देश पर मंडरा रही थी. किसी को यह नहीं सूझ रहा था कि यह स्थिति कब तक रहेगी. आपातकाल 25 जून, 1975 की रात में लागू किया गया था. लगभग एक लाख राजनीतिक नेताओं और कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया गया था. इनमें से केरल के एक इंजीनियर राजन सहित 22 कैदियों की जेल में ही मृत्यु हो चुकी थी.

कर्नाटक की मशहूर अभिनेत्री स्नेहलता रेड्डी जब जेल में सख्त बीमार हुईं तो उन्हें रिहा कर दिया गया. लेकिन उनका इसके कुछ दिन बाद निधन हो गया. विदेशी मीडिया में सरकार विरोधी ऐसी खबरें छपने से प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी चिंतित थीं. विदेशों में उन्हें अपनी छवि की चिंता थी. उन्होंने आईबी से सर्वे कराया कि क्या आज चुनाव हो जाए तो क्या नतीजे आएंगे.

इमरजेंसी के दौरान इदिरा गांधी के देश में लोकसभा चुनाव कराने की योजना की किसी को भनक नहीं लगी (साभार: बीजेपी ट्विटर)

IB के एक अफसर ने कुलदीप नैयर के कान में फुसफुसा दिया कि ‘चुनाव होने वाला है’

आईबी से प्रधानमंत्री को यह सूचना मिली कि नतीजे कांग्रेस के पक्ष में आएंगे. इस पृष्ठभूमि में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी चुनाव कराने की योजना बनाने लगीं. पर, बाहर इस बात की किसी को कोई भनक तक नहीं थी. पर,आईबी के एक परिचित अफसर ने एक दावत में कुलदीप नैयर के कान में फुसफुसा दिया कि ‘चुनाव होने वाला है.’

याद रहे कि आईबी से ही तो चुनाव संभावनाओं की जानकारी लेने को कहा गया था! हालांकि आईबी वाले इस बात का अनुमान नहीं लगा सके कि आतंक के माहौल में जिससे भी पूछोगे, वही कहेगा कि इंदिरा जी का राजपाट ठीक चल रहा है. हम खुश हैं. यही हुआ. इंदिरा जी धोखा खा गईं.

वर्ष 1977 के लोकसभा चुनाव में उत्तर भारत से तो कांग्रेस का लगभग सफाया ही हो गया था. आपातकाल में अनेक लोगों को यह लग रहा था कि पता नहीं, अब इस देश में चुनाव होगा भी या नहीं. वैसे माहौल में खबरखोजी कुलदीप नैयर यह खबर देने जा रहे थे कि चुनाव होने ही वाले हैं. पर सवाल है कि उस खबर तक नैयर साहब कैसे पहुंचे?

इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आईबी में कार्यरत पंजाब काडर के उस अफसर से मुलाकात के बाद नैयर साहब संजय गांधी के मित्र कमलनाथ के घर पहुंच गए. इस संबंध में कुलदीप नैयर लिखते हैं कि ‘कमलनाथ से मेरी अच्छी जान-पहचान हो गई थी. क्योंकि वो इंडियन एक्सप्रेस के निदेशक मंडल में थे.’

नैयर साहब ने कमलनाथ की पत्नी से कहा कि ‘मैं कमलनाथ जी का मित्र हूं.’ फिर उन्होंने अपना परिचय दिया. कमलनाथ की पत्नी ने नैयर का नाम सुन रखा था. पर कमलनाथ उस समय सो रहे थे. इसलिए उन्होंने नैयर को बिठाया. जल्दी ही कमलनाथ प्रकट हुए. फिर दोनों बालकानी में आकर बैठ गए.

कांग्रेस नेता कमलनाथ संजय गाधी के अच्छे मित्र थे, कुलदीप नैयर ने एक मुलाकात के दौरान उनसे देश में चुनाव होने को लेकर सवाल पूछा था (फोटो: फेसबुक से साभार)

कमलनाथ ने चुनाव की खबरों पर पूछे जाने पर प्रश्न टालने की कोशिश नहीं की

कुलदीप नैयर ने इस वाक्य से अपनी बात शुरू की कि ‘संजय गांधी किस चुनाव क्षेत्र में चुनाव लड़ने जा रहे हैं?’ नैयर ने अपनी पुस्तक ‘एक जिंदगी काफी नहीं’ में लिखा कि ‘वो चौंक कर मेरी तरफ देखने लगे पर उन्होंने प्रश्न को टालने की कोशिश नहीं की. उन्होंने कहा कि ‘यह अभी तय नहीं किया गया है.’ दरअसल वो लोग अपने एक संदेशवाहक की अहमदाबाद से वापसी का इंतजार कर रहे थे. वो संदेश वाहक वहां जेल में चंद्रशेखर से मिलने गया था.

चंद्रशेखर एक युवा तुर्क कांग्रेसी थे और इंदिरा गांधी के कटु आलोचक रह चुके थे. जेपी का साथ देने के कारण उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया गया था. कमलनाथ ने नैयर को बताया कि कांग्रेस चंद्रशेखर को मनाने की कोशिश कर रही है. नैयर ने मन ही मन यह अनुमान लगाया कि इसका मतलब यह है कि चुनाव अगले कुछ ही हफ्तों में होने जा रहा है. जब नैयर ने कमलनाथ से पूछा कि चुनावों के कितनी जल्दी होने की संभावना है तो कमलनाथ ने उल्टे सवाल किया कि ‘आपको यह जानकारी कहां से मिली?’

नैयर लिखते हैं कि ‘इससे खबर की और भी पुष्टि हो गई.’ पर इतनी जानकारी मात्र से नैयर संतुष्ट नहीं थे. नैयर ने लिखा है ‘फिर भी मैं जोखिम उठाने के लिए तैयार हो गया.’ उन्होंने सोचा कि ज्यादा से ज्यादा एक बार फिर जेल ही न जाना पड़ेगा. जेल से एक बार हो ही आए थे. दरअसल एक बार जेल से हो आने के बाद नैयर में विपरीत स्थिति को झेलने के लिए आत्मविश्वास पैदा हो गया था.

18 जनवरी, 1977 को ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के सभी संस्करणों में मोटे-मोटे अक्षरों में यह खबर प्रमुखता से छपी. उन दिनों इन पंक्तियों के लेखक को भी इसी खबर से लग गया था कि अब देश की राजनीतिक स्थिति बदलेगी. खैर उधर प्रेस सेंसरशिप अफसर ने नैयर को फोन कर के कहा कि ‘मुझे इस खबर का खंडन करने के लिए कहा गया है.’

कुलदीप नैयर का हाल ही में 95 वर्ष की आयु में निधन हो गया

प्रधानमंत्री ने सार्वजनिक घोषणा कर दी कि मार्च में लोकसभा के चुनाव होंगे

उस अफसर ने यह भी कहा कि ऐसी खबर देने पर आपकी दोबारा गिरफ्तारी भी हो सकती है. पर ऐसा कुछ नहीं हुआ. न तो खंडन और न ही गिरफ्तारी. उधर प्रधानमंत्री ने 23 जनवरी को यह सार्वजनिक घोषणा कर दी कि लोकसभा के चुनाव मार्च में होंगे.

आपतकाल में ढील दी गई. अधिकतर राजनीतिक कैदी रिहा कर दिए गए. चुनाव हुए और रिजल्ट एक इतिहास बन गया. संजय गांधी और इंदिरा गांधी तक अपनी सीटें हार गए. पर एक इतिहास पत्रकार कुलदीप नैयर के नाम भी लिख गया जिनका इसी महीने निधन हो गया.

आज का paanchaang

🌷🌷🌷पंचांग🌷🌷🌷
27 अगस्त 2018, सोमवार
paanchaang
विक्रम संवत – 2075
अयन – दक्षिणायन
गोलार्ध – उत्तर
ऋतु – शरद
मास – भाद्रपद
पक्ष – कृष्ण
तिथि – प्रतिपदा
नक्षत्र – शतभिषा
योग – सुकर्मा
करण – बालव

राहुकाल:-
7:30 AM – 9:00 AM

🌞सूर्योदय – 06:00 (चण्डीगढ)
🌞सूर्यास्त – 18:48 (चण्डीगढ)
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चोघड़िया मुहूर्त- एक दिन में सात प्रकार के चोघड़िया मुहूर्त आते हैं, जिनमें से तीन शुभ और तीन अशुभ व एक तटस्थ माने जाते हैं। इनकी गुजरात में अधिक मान्यता है। नए कार्य शुभ चोघड़िया मुहूर्त में प्रारंभ करने चाहिएः-
दिन का चौघड़िया (दिल्ली)
चौघड़िया प्रारंभ अंत विवरण
अमृत 05:56 07:33 शुभ
शुभ 09:09 10:46 शुभ
लाभ 15:35 17:12 शुभ
अमृत 17:12 18:48 शुभ

रात्रि का चौघड़िया (दिल्ली)
चौघड़िया प्रारंभ अंत विवरण
लाभ 23:00 00:21 शुभ
शुभ 01:45 03:09 शुभ
अमृत 03:09 04:33 शुभ

‘मन की बात’ का 47वां संस्करण

 

मोदी ने रविवार को आकाशवाणी अपने मासिक कार्यक्रम ‘मन की बात’ के 47वें संस्करण में देशवासियों को संबोधित करते हुए कहा कि सुशासन को मुख्य धारा में लाने के लिए देश सदा वाजपेयी का आभारी रहेगा।

प्रधानमंत्री ने कहा कि वाजपेयी ने भारत को नई राजनीतिक संस्कृति दी और बदलाव लाने का प्रयास किया। इस बदलाव को उन्होंने व्यवस्था के ढांचे में ढालने की कोशिश की जिसके कारण भारत को बहुत लाभ हुआ हैं और आगे आने वाले दिनों में बहुत लाभ होने वाला सुनिश्चित है।

उन्होेंने कहा कि भारत हमेशा 91वें संशोधन अधिनियम 2003 के लिए अटल जी का कृतज्ञ रहेगा। इस बदलाव ने भारत की राजनीति में दो महत्वपूर्ण परिवर्तन किए। पहला यह कि राज्यों में मंत्रिमंडल का आकार कुल विधानसभा सीटों के 15 प्रतिशत तक सीमित किया गया। दूसरा यह कि दल-बदल विरोधी कानून के तहत तय सीमा एक-तिहाई से बढ़ाकर दो-तिहाई कर दी गयी। इसके साथ ही दल-बदल करने वालों को अयोग्य ठहराने के लिए स्पष्ट दिशा-निर्देश भी निर्धारित किए गए।

प्रधानमंत्री ने कहा कि कई वर्षों तक भारी भरकम मंत्रिमंडल गठित करने की राजनीतिक संस्कृति ने ही बड़े-बड़े “जम्बो” मंत्रिमंडल कार्य के बंटवारे के लिए नहीं बल्कि राजनेताओं को खुश करने के लिए बनाए जाते थे। वाजपेयी ने इसे बदल दिया। इससे पैसों और संसाधनों की बचत हुई। इसके साथ ही कार्यक्षमता में भी बढ़ोतरी हुई।

मोदी ने कहा कि यह अटल जी दीर्घदृष्टा ही थे, जिन्होंने स्थिति को बदला और हमारी राजनीतिक संस्कृति में स्वस्थ परम्पराएं पनपी। अटल जी एक सच्चे देशभक्त थे। उनके कार्यकाल में ही बजट पेश करने के समय में परिवर्तन हुआ। पहले अंग्रेजों की परम्परा के अनुसार शाम को पांच बजे बजट प्रस्तुत किया जाता था क्योंकि उस समय लन्दन में संसद शुरू होने का समय होता था। वर्ष 2001 में अटल जी ने बजट पेश करने का समय शाम पांच बजे से बदलकर सुबह 11 बजे कर दिया।

मोदी ने कहा कि वाजपेयी के कारण ही देशवासियों को ‘एक और आज़ादी’ मिली। उनके कार्यकाल में राष्ट्रीय ध्वज संहिता बनाई गई और 2002 में इसे अधिसूचित कर दिया गया। इस संहिता में कई ऐसे नियम बनाए गए जिससे सार्वजनिक स्थलों पर तिरंगा फहराना संभव हुआ। इसी के कारण अधिक से अधिक भारतीयों को अपना राष्ट्रध्वज फहराने का अवसर मिल पाया। इस तरह से उन्होंने प्राण प्रिय तिरंगे को जनसामान्य के क़रीब कर दिया। उन्होेंने कहा कि वाजपेयी ने चुनाव प्रक्रिया और जनप्रतिनिधियों से संबंधित प्रावधानों में साहसिक कदम उठाकर बुनियादी सुधार किए।

प्रधानमंत्री ने कहा कि इसी तरह आजकल आप देख रहे हैं कि देश में एक साथ केंद्र और राज्यों के चुनाव कराने के विषय में चर्चा आगे बढ़ रही है। इस विषय के पक्ष और विपक्ष दोनों में लोग अपनी-अपनी बात रख रहे हैं। ये अच्छी बात है और लोकतंत्र के लिए एक शुभ संकेत भी। मैं जरुर कहूंगा कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए, उत्तम लोकतंत्र के लिए अच्छी परम्पराएं विकसित करना, लोकतंत्र को मजबूत बनाने के लिए लगातार प्रयास करना, चर्चाओं को खुले मन से आगे बढ़ाना, यह भी अटल जी को एक उत्तम श्रद्धांजलि होगी।

वाजपेयी के योगदान का उल्लेख करते हुए प्रधानमंत्री ने गाज़ियाबाद से कीर्ति, सोनीपत से स्वाति वत्स, केरल से भाई प्रवीण, पश्चिम बंगाल से डॉक्टर स्वप्न बनर्जी और बिहार के कटिहार से अखिलेश पाण्डे के सुझावाें का जिक्र किया।

राहुल कहने के लिए कहते हैं

इन/पिछले दिनों राहुल गांधी यूरोप दौरे पर हैं, उनके साथ मनीष तिवारी ओर सैम पित्रोदा दीख पड़ते हैं।

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को अक्सर अपने गांधी परिवार से आने के कारण निशाने पर रखा जाता है. साथ ही उन्हें आलोचना का भी सामना करना पड़ता है कि उनके पास एक संपन्न पृष्ठभूमि के अलावा कुछ भी नहीं है. ब्रिटेन में भी इस सवाल ने राहुल का पीछा नहीं छोड़ा. यहां राहुल गांधी से सवाल किया गया कि उनके पास गांधी सरनेम के अलावा और क्या है? राहुल ने जवाब दिया कि उन्हें सुने बिना किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंचना चाहिए. उन्होंने ब्रिटेन के पत्रकारों से कहा कि उनकी ‘क्षमता’ के आधार पर उनके बारे में कोई राय बनानी चाहिए, ना कि उनके परिवार की ‘निंदा’ कर के.

कांग्रेस अध्यक्ष ने कहा, ‘आखिर में यह आपकी इच्छा है. क्या आप मेरे परिवार की निंदा करेंगे या आप मेरी क्षमता के आधार पर मेरे बारे में कोई राय बनाएंगे… यह आपकी पसंद है. यह आप पर निर्भर करता है, मुझ पर नहीं.’

ब्रिटेन यात्रा पर गए राहुल गांधी ने कहा कि ‘मेरे पिता के प्रधानमंत्री बनने के बाद से मेरा परिवार सत्ता में नहीं रहा. यह चीज भूली जा रही है.’

राहुल ने कहा ‘दूसरी बात, ‘हां, मैं एक परिवार में पैदा हुआ हूं… मैं जो कह रहा हूं उसे सुनें, मुद्दों के बारे में मुझसे बात करें, विदेश नीति, अर्थशास्त्र, भारतीय विकास, कृषि पर, खुलेआम और स्वतंत्र रूप से मुझसे बात करें. मुझसे जो भी प्रश्न पूछना चाहते हैं, वह पूछें और फिर इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि मैं क्या हूं.’

चलिये राहुल गांधी को सुनें: 

भाजपा और आरएसएस पर अपने हमले को तेज करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि लोग अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जैसे जनवादी नेताओं का समर्थन इसलिए करते हैं, क्योंकि वे नौकरी नहीं होने को लेकर गुस्से में हैं. भारतीय पत्रकारों के संघ से बातचीत करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि समस्या के समाधान की बजाए ये नेता उस गुस्से को भुनाते हैं और देश को नुकसान पहुंचाते हैं

डोकलाम: 

जब राहुल गांधी से डोकलाम मुद्दे पर सवाल किया गया तो उनका जवाब था, ‘चीनी सैनिक अभी भी डोकलाम में हैं और उन्होंने वहां बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे का निर्माण किया है. प्रधान मंत्री हाल ही में चीन गए और उन्होंने डोकलाम पर कोई चर्चा नहीं की… कोई यहां आ गया है, आपको थप्पड़ मारता है और आपके पास चर्चा के लिए कोई एजेंडा नहीं है.’

राहुल ने पीएम पर हमला करते हुए कहा कि अगर सरकार ने चीन की तरफ भी देखा होता तो डोकलाम जैसा मुद्दा सामने आया ही नहीं होता. डोकलाम जैसी घटना को पहले ही रोका जा सकता था.

आगे पढ़िये:

गांधी से एक युवक ने सवाल किया था कि वह चीन के साथ डोकलाम मुद्दे को कैसे सुलझाते तो वह इसका जवाब नहीं दे सके थे और कहा था कि उनके पास तथ्यात्मक जानकारी नहीं है इसलिए वह इस बारे में कुछ नहीं कह सकते हैं।

भाजपा के आईटी प्रकोष्ठ के प्रमुख अमित मालवीय ने ट्वीट किया कि जब पूछा गया “अगर आपको मौका मिलता तो आप कैसे डोकलाम मसले को किस प्रकार से सुलझाते, गांधी अचकचा गए और कहा कि उनके पास विवरण नहीं है इसलिए कुछ कह नहीं सकते।” ..तो आश्चर्य है कि आखिर वह किस आधार पर सरकार की आलोचना कर रहे थे।( या यह कह रहे हे की मुझे मेरे ज्ञान से जाँचो)

अब हमनें राहुल गांधी को सुना तो क्या निष्कर्ष निकालें, मुझे हमारे इतिहास के एक प्राध्यापक की बात याद आती है जिनसे हम कुछ प्रश्नों का उत्तर जानने गए थे, उन्होने कहा था,”मैं किसी भी बेवकूफाना प्रश्न का उत्तर नहीं दूँगा।” मुझे हंसी आ गयी ओर अज्ञानता वश पूछ बैठा “सर, प्रश्न को आपके किन मानकों पर खरा उतरना होगा?” प्रश्न का उत्तर तो नहीं मिलना था सो नहीं मिला पर फटकार अवश्य मिल गयी

जारी है:

27 अगस्त 1942 को 41.78 मीटर वेव लेंथ पर शुरू हुआ था ‘आज़ाद रेडियो’


देश को गुलामी से मुक्त कराने के लिए भारत छोड़ों आन्दोलन के दौरान क्रांतिकारियों ने 27 अगस्त से मुम्बई में भूमिगत रेडियो से ख़बरों का प्रसारण शुरू किया था जिस से अंग्रेजों में खलबली मच गई थी और खुफिया एजेंसी को इसका पता लगाने के लिए नाकों चने चबाने पड़े थे।


नई दिल्ली:

इस गुप्त रेडियो का इतिहास गत दिनों पहली बार एक पुस्तक के रूप में सामने आया है जिसमे 76 साल बाद सार्वजानिक हुए गोपनीय दस्तावेजों के साथ इसकी पूरी रोमांचक गाथा लिखी गई है। प्रकाशन विभाग द्वारा इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के सहयोग से प्रकाशित पुस्तक ‘अनटोल्ड स्टोरीज आॅफ ब्राॅडकास्ट’ में इस गुप्त रेडियो ‘आज़ाद रेडियो’ से 71 दिन तक प्रसारित ख़बरों को पहली बार सार्वजानिक किया गया है।

पुस्तक का लोकार्पण हाल ही में केन्द्रीय संस्कृति राज्य मंत्री डॉ महेश शर्मा एवं केंद्र के अध्यक्ष राम बहादुर राय ने किया। यह पुस्तक राष्ट्रीय कला केंद्र के अधिकारी गौतम चटर्जी द्वारा सम्पादित एवं राष्ट्रीय अभिलेखागार से प्राप्त दस्तावेजों पर आधारित है।

पुस्तक के अनुसार यह आज़ाद रेडियो 27 अगस्त 1942 को 41.78 मीटर वेव लेंथ पर शुरू हुआ था और इसका नाम कांग्रेस रेडियो था। इस रेडियो के पीछे प्रख्यात समाजवादी नेता डॉ राम मनोहर लोहिया का हाथ था और यह उनके ही दिमाग की उपज थी। इस रेडियो की शुरुआत हमारा हिंदुस्तान गीत से होती थी और अंत में वन्दे मातरम् से इसका समापन होता था।

यह रेडियो 71 दिनों तक अपना प्रसारण छह विभिन्न स्थानों से करता रहा ताकि पुलिस उसके ट्रांसमीटर को पकड़ न सके। मुम्बई के चौपाटी के सी व्यू इमारत से शुरू हुआ यह रेडियो बाद में रतन महल, अजित विला लक्ष्मी भवन पारेख वाड़ी तथा पैराडाइज बंगलो से संचालित होता रहा।

इस रेडियो को चलाने के काम में सात लोगों की टीम थी जिनमें चार गुजरात के थे। इनके नाम विट्ठल दास माधवी खखर (20), उषा मेहता (22), विट्ठल भाई कांता भाई जावेरी (28) और चंद्रकांत बाबूभाई जावेरी हैं। इसके अलावा उस ज़माने के मशहूर शिकागो रेडियो के मुख्य अभियंता जगन्नाथ रघुनाथ ठाकुर आजाद रेडियो के निदेशक और वायरलेस विशेषज्ञ नानक धर चाँद मोटवानी और 40 वर्षीय नरीमन प्रिंटर थे जो पेशे से रेडियो इंजीनियर थे।

पुस्तक के अनुसार पुलिस को इस रेडियो के प्रसारण की जानकारी मिलने पर आठ अक्टूबर 1942 से इसकी निगरानी शुरू हुई लेकिन उन्हें इसके ठिकाने का पता नहीं चल सका। नौ अक्टूबर से एक अक्टूबर तक इस रेडियो से जो कुछ भी प्रसारित हुआ उसे इस पुस्तक में हुबहू संकलित किया गया है।

मुम्बई पुलिस आयुक्त की 27 जनवरी 1943 की रिपोर्ट के अनुसार इस रेडियो का पता लगाने के लिए सीआईडी के अलावा सैन्य ख़ुफ़िया एजेंसी, नौसेना और अन्य अधिकारी लगाए गए जिसके बाद 12 नवम्बर को रात आठ बजे इस रेडियो का ट्रांसमीटर पकड़ा गया। अभिलेखागार की रिपोर्ट के अनुसार छापे में तीन ट्रांसमीटर पकड़े गए।

पुलिस की रिपोर्ट के अनुसार उस समय उस ट्रांसमीटर की कीमत दस हज़ार थी। पुलिस की दबिश में ट्रांसमीटर के अलावा दो एम्लिफायर, पॉवर पैक, एक माइक्रोफोन और एक ग्रामोफ़ोन तार आदि जब्त किए गए।

विशेष जज जे लोकुर ने 14 मई 1943 को इस मुकदमे का फैसला सुनाया। अदालत में सुनवाई के दौरान उषा मेहता ने अपना कोई बयान दर्ज नहीं कराया जबकि शेष ने खुद को निर्दोष बताया। जज ने विट्ठल दास को पांच साल के सश्रम कारावास, उषा मेहता को चार साल सश्रम कारावास तथा चंद्रकान्त जवेरी को एक साल सश्रम कारावास की सजा सुनाई जबकि नानक मोटवानी को आरोपों से मुक्त कर दिया गया।

इस तरह आज़ाद रेडियो की कहानी ख़त्म तो हो गई पर भारत के प्रसारण के इतिहास की अमर कहानी और आजादी की लड़ाई के एक अध्याय के रूप में दर्ज हो गई और इस रेडियो ने लाखों भारतीयों के दिलों में भारत छोड़ो आन्दोलन के दौरान स्वाधीनता की भावना जगाने का काम किया।

श्रावण पूर्णिमा एवं रक्षाबंधन की कोटी कोटी बधाई

आज का पांचांग

🌷🌷🌷पंचांग🌷🌷🌷
26 अगस्त 2018, रविवार

विक्रम संवत – 2075
अयन – दक्षिणायन
गोलार्ध – उत्तर
ऋतु – शरद
मास – श्रावण
पक्ष – शुक्ल
तिथि – पूर्णिमा
नक्षत्र – घनिष्ठा
योग – अतिगंड
करण – बव

राहुकाल –
4:30PM – 6:00PM

🌞सूर्योदय – 05:59 (चण्डीगढ)
🌞सूर्यास्त – 18:49 (चण्डीगढ)
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🚩उत्सव -🚩
रक्षाबंधन।

🚩पर्व -🚩
श्री अमरनाथ यात्रा।

🌹🌹🌹विशेष -🌹🌹🌹
भगवान शिव के प्रिय मास का अन्तिम दिन जिस दिन भगवान शिव की आराधना कर सुखद व सहज जीवन प्रारम्भ माना जाता है। रक्षाबंधन का पर्व पूरा दिन शुभ है। किसी विशेष मुहूर्त की आवश्यकता नही है।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
चोघड़िया मुहूर्त- एक दिन में सात प्रकार के चोघड़िया मुहूर्त आते हैं, जिनमें से तीन शुभ और तीन अशुभ व एक तटस्थ माने जाते हैं। इनकी गुजरात में अधिक मान्यता है। नए कार्य शुभ चोघड़िया मुहूर्त में प्रारंभ करने चाहिएः-
दिन का चौघड़िया (दिल्ली)
चौघड़िया प्रारंभ अंत विवरण
लाभ 09:09 10:46 शुभ
अमृत 10:46 12:23 शुभ
शुभ 13:59 15:36 शुभ
रात्रि का चौघड़िया (दिल्ली)
चौघड़िया प्रारंभ अंत विवरण
शुभ 18:49 20: 12 शुभ
अमृत 20:12 21:35 शुभ
लाभ 01:47 03:10 शुभ
शुभ 04:33 05:56 शुभ

श्रावण माह की पूर्णिमा: ओणम एवं रक्षाबंधन

 

श्रावण माह की पूर्णिमा बहुत ही शुभ व पवित्र दिन माना जाता है. ग्रंथों में इन दिनों किए गए तप और दान का महत्व उल्लेखित है. इस दिन रक्षा बंधन का पवित्र त्यौहार मनाया जाता है इसके साथ ही साथ श्रावणी उपक्रम श्रावण शुक्ल पूर्णिमा को आरम्भ होता है. श्रावणी कर्म का विशेष महत्त्व है इस दिनयज्ञोपवीत के पूजन तथा उपनयन संस्कार का भी विधान है.

ब्राह्मण वर्ग अपनी कर्म शुद्धि के लिए उपक्रम करते हैं. हिन्दू धर्म में सावन माह की पूर्णिमा बहुत ही पवित्र व शुभ दिन माना जाता है सावन पूर्णिमा की तिथि धार्मिक दृष्टि के साथ ही साथ व्यावहारिक रूप से भी बहुत ही महत्व रखती है. सावन माह भगवान शिव की पूजा उपासना का महीना माना जाता है. सावन में हर दिन भगवान शिव की विशेष पूजा करने का विधान है.

इस प्रकार की गई पूजा से भगवान शिव शीघ्र ही प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करते हैं. इस माह की पूर्णिमा तिथि इस मास का अंतिम दिन माना जाता है  अत: इस दिन शिव पूजा व जल अभिषेक से पूरे माह की शिव भक्ति का पुण्य प्राप्त होता है.

कजरी पूर्णिमा | Kajari Purnima

कजरी पूर्णिमा का पर्व भी श्रावण पूर्णिमा के दिन ही पड़ता है यह पर्व विशेषत: मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ और उत्तर प्रदेश के कुछ जगहों में मनाया जाता है. श्रावण अमावस्या के नौंवे दिन से इस उत्सव तैयारीयां आरंभ हो जाती हैं. कजरी नवमी के दिन महिलाएँ पेड़ के पत्तों के पात्रों में मिट्टी भरकर लाती हैं जिसमें जौ बोया जाता है.

कजरी पूर्णिमा के दिन महिलाएँ इन जौ पात्रों को सिर पर रखकर पास के किसी तालाब या नदी में विसर्जित करने के लिए ले जाती हैं .इस नवमी की पूजा करके स्त्रीयाँ कजरी बोती है. गीत गाती है तथा कथा कहती है. महिलाएँ इस दिन व्रत रखकर अपने पुत्र की लंबी आयु और उसके सुख की कामना करती हैं.

श्रावण पूर्णिमा को भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अनेक नामों से जाना जाता है और उसके अनुसार पर्व रुप में मनाया जाता है जैसे उत्तर भारत में रक्षा बंधन के पर्व रुप में, दक्षिण भारत में नारयली पूर्णिमा व अवनी अवित्तम, मध्य भारत में कजरी पूनम तथा गुजरात में पवित्रोपना के रूप में मनाया जाता है.

रक्षाबंधन | Rakshabandhan

रक्षाबंधन का त्यौहार भी श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है इसे सावनी या सलूनो भी कहते हैं. रक्षाबंधन, राखी या रक्षासूत्र का रूप है राखी सामान्यतः बहनें भाई को बांधती हैं इस दिन बहनें अपने भाइयों की कलाई पर राखी बांधती हैं उनकी आरती उतारती हैं तथा इसके बदले में भाई अपनी बहन को रक्षा का वचन देता है और उपहार स्वरूप उसे भेंट भी देता है.

इसके अतिरिक्त ब्राहमणों, गुरुओं और परिवार में छोटी लड़कियों द्वारा संबंधियों को जैसे पुत्री द्वारा पिता को भी रक्षासूत्र या राखी बांधी जाती है. इस दिन यजुर्वेदी द्विजों का उपकर्म होता है, उत्सर्जन, स्नान-विधि, ॠषि-तर्पणादि करके नवीनयज्ञोपवीत धारण किया जाता है. वृत्तिवान ब्राह्मण अपने यजमानों को यज्ञोपवीत तथा राखी देकर दक्षिणा लेते हैं.

श्रावणी पूर्णिमा पर अमरनाथ यात्रा का समापन

पुराणों के अनुसार गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर श्री अमरनाथ की पवित्र छडी यात्रा का शुभारंभ होता है और यह यात्रा श्रावण पूर्णिमा को संपन्न होती है. कांवडियों द्वारा श्रावण पूर्णिमा के दिन ही शिवलिंग पर जल चढया जाता है और उनकी कांवड़ यात्रा संपन्न होती है. इस दिन शिव जी का पूजन होता है पवित्रोपना के तहत रूई की बत्तियाँ पंचग्वया में डुबाकर भगवान शिव को अर्पित की जाती हैं.

श्रावण पूर्णिमा महत्व

श्रावण पूर्णिमा के दिन चंद्रमा अपनी पूर्ण कलाओं के साथ होता है अत: इस दिन पूजा उपासना करने से चंद्रदोष से मुक्ति मिलती है, श्रावणी पूर्णिमा का दिन दान, पुण्य के लिए महत्वपूर्ण होता है अत: इस दिन स्नान के बाद गाय आदि को चारा खिलाना, चिंटियों, मछलियों आदि को दाना खिलाना चाहिए इस दिन गोदान का बहुत महत्व होता है.

श्रावणी पर्व के दिन जनेऊ पहनने वाला हर धर्मावलंबी मन, वचन और कर्म की पवित्रता का संकल्प लेकर जनेऊ बदलते हैं ब्राह्मणों को यथाशक्ति दान दे और भोजन कराया जाता है. इस दिन भगवान विष्णु और लक्ष्मी की पूजा का विधान होता है. विष्णु-लक्ष्मी के दर्शन से सुख, धन और समृद्धि कि प्राप्ति होती है. इस पावन दिन पर भगवान शिव, विष्णु, महालक्ष्मीव हनुमान को रक्षासूत्र अर्पित करना चाहिए.

इतिहास में वर्णित कुछ प्रसंग:

श्रावण मास पूर्णिमा को मनाए जाने वाला रक्षाबंधन का त्योहार भाई-बहन के अटूट प्रेम को समर्पित है। इस बार 26 अगस्त रविवार को रक्षाबंधन का त्योहार मनाया जा रहा है। इस त्योहार का प्रचलन सदियों पुराना है। पौराणिक कथा के अनुसार इस त्योहार की परंपरा उन बहनों ने रखी जो सगी बहनें नहीं थी। आइए जानते हैं कि आखिर क्यों मनाया जाता हैं रक्षाबंधन का त्योहार।

राजा बलि और देवी-लक्ष्मी ने शुरू की भाई बहनों की राखी

राजा बलि ने जब 100 यज्ञ पूर्ण कर स्वर्ग का राज्य छीनने का प्रयास किया तो देवराज इंद्र ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की। भगवान, वामन अवतार लेकर राजा बलि से भिक्षा मांगने पहुंचे। भगवान ने तीन पग में आकाश, पाताल और धरती नापकर राजा बलि को रसातल में भेज दिया। तब राजा बलि ने अपनी भक्ति से भगवान को रात-दिन अपने सामने रहने का वचन ले लिया। तब माता लक्ष्मी ने राजा बलि के पास जाकर उन्हें रक्षासूत्र बांधकर अपना भाई बनाया और भेंट में अपने पति को साथ ले आईं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा थी।

द्रौपदी और कृष्ण का रक्षाबंधन

राखी या रक्षा बंधन या रक्षा सूत्र बांधने की सबसे पहली चर्चा महाभारत में आती है, जहां भगवान कृष्ण को द्रौपदी द्वारा राखी बांधने की कहानी है। दरअसल, भगवान कृष्ण ने अपने सुदर्शन चक्र से चेदि नरेश शिशुपाल का वध कर दिया था। इस कारण उनकी अंगुली कट गई और उससे खून बहने लगा। यह देखकर विचलित हुई रानी द्रौपदी ने अपनी साड़ी का किनारा फाड़कर कृष्ण की कटी अंगुली पर बांध दी। कृष्ण ने इस पर द्रौपदी से वादा किया कि वे भी मुश्किल वक्त में द्रौपदी के काम आएंगे। पौराणिक विद्वान, भगवान कृष्ण और द्रौपदी के बीच घटित इसी प्रसंग से रक्षा बंधन के त्योहार की शुरुआत मानते हैं। कहा जाता है कि कुरुसभा में जब द्रौपदी का चीरहरण किया जा रहा था, उस समय कृष्ण ने अपना वादा निभाया और द्रौपदी की लाज बचाने में मदद की।

कर्णावती-हुमायूं

मेवाड़ के महाराजा राणा सांगा की मृत्यु के बाद बहादुर शाह ने मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया था। इससे चिंतित रानी कर्णावती ने मुगल बादशाह हुमायूं को एक चिट्टी भेजी। इस चिट्ठी के साथ कर्णावती ने हुमायूं को भाई मानते हुए एक राखी भी भेजी और उनसे सहायता मांगी। हालांकि मुगल बादशाह हुमायूं बहन कर्णावती की रक्षा के लिए समय पर नहीं पहुंच पाया, लेकिन उसने कर्णावती के बेटे विक्रमजीत को मेवाड़ की रियासत लौटाने में मदद की।

रुक्साना-पोरस

रक्षा बंधन को लेकर इतिहास में राजा पुरु (पोरस) और सिकंदर की पत्नी रुक्साना के बीच राखी भेजने की एक कहानी भी खूब प्रसिद्ध है। दरअसल, यूनान का बादशाह सिकंदर जब अपने विश्व विजय अभियान के तहत भारत पहुंचा तो उसकी पत्नी रुक्साना ने राजा पोरस को एक पवित्र धागे के साथ संदेश भेजा। इस संदेश में रुक्साना ने पोरस से निवेदन किया कि वह युद्ध में सिकंदर को जान की हानि न पहुंचाए।

कहा जाता है कि राजा पोरस ने जंग के मैदान में इसका मान रखा और युद्ध के दौरान जब एक बार सिकंदर पर उसका धावा मजबूत हुआ तो उसने यूनानी बादशाह की जान बख्श दी। इतिहासकार रुक्साना और पोरस के बीच धागा भेजने की घटना से भी राखी के त्योहार की शुरुआत मानते हैं।

जब युद्धिष्ठिर ने अपने सैनिको को बांधी राखी

राखी की एक अन्य कथा यह भी हैं कि पांडवो को महाभारत का युद्ध जिताने में रक्षासूत्र का बड़ा योगदान था। महाभारत युद्ध के दौरान युद्धिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि मैं कैसे सभी संकटो से पार पा सकता हूं। इस पर श्रीकृष्ण ने युद्धिष्ठिर से कहा कि वह अपने सभी सैनिको को रक्षासूत्र बांधे। इससे उसकी विजय सुनिश्चिच होगी। तब जाकर युद्धिष्ठिर ने ऐसा किया और विजयी बने। तब से यह त्योहार मनाया जाता है।

जब पत्नी सचि ने इन्द्रदेव को बांधी राखी

भविष्य पुराण में एक कथा हैं कि वृत्रासुर से युद्ध में देवराज इंद्र की रक्षा के लिए इंद्राणी शची ने अपने तपोबल से एक रक्षासूत्र तैयार किया और श्रावण पूर्णिमा के दिन इंद्र की कलाई में बांध दी। इस रक्षासूत्र ने देवराज की रक्षा की और वह युद्ध में विजयी हुए। यह घटना भी सतयुग में ही हुई थी

ओणम: महाबहो असुर सम्राट बली के वर्ष में एक बार धरती पर आने का उत्सव

 

चंडीगढ़:

यूं तो भारत भर में हर जाति-प्रजाति के अनेक पारंपरिक त्योहार मनाए जाते हैं, लेकिन कुछ त्योहार ऐसे होते हैं, जिनका स्वरूप शहर में बहुत ही कम देखने को मिलता है। केरल के राजा महाबलि की स्मृति में दक्षिण भारतीय परिवारों ने ओणम का त्योहार वहां के रीति-रिवाजों व परंपराओं के अनुरूप श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता हैं।

दक्षिण भारतीय युवतियां जहां अपने घर की देहरी को फूलों की रंगोली से सजाती है तो महिलाएं खट्ठे-मीठे तमाम तरह के व्यंजनों को बनाकर उनका स्वाद अपने परिवार के साथ सामूहिक रूप से चखती हैं।

चूंकि यह त्योहार दक्षिण भारत के प्रमुख त्योहारों में से एक है, इसलिए इसे उत्सव के रूप में मनाया जाता है। सुबह से ही घरों की साफ-सफाई कर दक्षिण भारतीय परिवारों ने आज राजा महाबलि की याद में तमाम तरह के व्यंजन बनाए जाते हैं।

मान्यता है कि राजा महाबलि के शासन में रोज हजारों तरह के स्वादिष्ट पकवान व व्यंजन बनाए जाते थे। चूंकि महाबलि साल में एक बार अपनी प्रजा से मिलने आते हैं, इसलिए उनके प्रसाद के लिए कई तरह के लजीज व्यंजनों को बनाए जाते हैं।

ओनम केरल में मनाया जाने वाला सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है। वैसे तो इसे फसलों की कटाई के बाद मनाया जाता है, पर इसका महत्व सामान्य कृषि संबंधित त्योहारों से कहीं ज्यादा है। दरअसल ओनम की कहानी महान राजा महाबली से जुड़ी हुई है। महाबली की पौराणिक कथा से पता चलता है कि आखिर क्यों आज भी ओनम का त्योहार मनाया जाता है।

महाबली की पौराणिक कथा – राजा बलि देवांबा का बेटा और प्रह्लाद का पौत्र था। वह जन्म से ही असुर था। अपने दादा प्रह्लाद के परामर्श के कारण वह राजगद्दी पर बैठने में कामयाब रहा। असुरों का राजा होने के नाते उनका नीतिशस्त्र और प्रसाशनिक क्षमता अद्वितीय थी। वह भगवानों का सम्मान करता था और आपनी उदारता के लिए जाना जाता था।

ओणम का त्‍योहार तीनों लोक पर विजय – महाबली योग्य होने के साथ-साथ महत्वकांक्षी भी था। वह ब्रहमांड के तीनों लोक, यानी पृथ्वी, परलोक और पाताल लोक का सम्राट बनना चाहता था। इसलिए उन्होंने देवताओं के विरूद्ध युद्ध छेड़ दिया और परलोक पर कब्जा कर लिया। उन्होंने देवों के राजा इंद्र को पराजित किया और तीनों जगत का शासक बन गया। साथ ही उन्होंने अश्वमेध यगना शुरू किया, ताकि ब्राह्मांड के तीनों लोक पर शासन कर सके।

वामन अवतार – एक असुर के हाथों पराजित होने के कारण देवता परेशान हो गए। उन्होंने परलोक वापस पाने के लिए भगवान विष्णु से मदद के लिए प्रार्थना की। प्रार्थना सुन कर भगवान विष्णु एक बौने ब्राह्मण लड़के के रूप में महाबली के सामने प्रकट हुए। यह भगवान विष्णु का वामन अवतार था। उन्होंने महान राजा से अपने पैरों के तीन कदम जितनी भूमि देने का आग्रह किया।

उदार महाबली ने इसे तुरंत स्वीकार कर लिया। इसके बाद भगवान विष्णु का आकार एकाएक बढ़ता ही चला गया। तब उन्होंने एक कमद से ही पूरी पृथ्वी और दूसरे कदम से पूरा परलोक नाप डाला। अब भगवान विष्णु ने तीसरा कदम रखने के लिए स्थान मांगा। धर्मनिष्ठ महाबली ने तब अपना मस्तक ही प्रस्तुत कर दिया। भगवान विष्णु ने अपना तीसरा कदम उनके मस्तक पर रखकर उन्हें पाताल लोक पहुंचा दिया।

ओनम की कहानी पौराणिक कथाओं के अनुसार जब राजा महाबली पाताल लोक जा रहे थे तो उन्होंने भगवान विष्णु से एक वरदान मांगा। उन्होंने आग्रह किया कि उन्हें साल में एक बार केरल आने की अनुमति दी जाए, ताकि वह सुनिश्चित कर सकें कि उनकी प्रजा खुशहाल और समृद्ध है।

भगवान विष्णु ने उनकी इच्छा स्वीकार कर ली। यानी कि ओनम ही वह समय है जब महाबली अपनी प्रजा को देखने के लिए आते हैं। शायद यही वजह है कि ओनम इतने हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह ओनम की पौराणिक कथा है, जिसका संबंध प्रचीन असुर राजा बलि से है।

ओणम की रस्में
ओणम का त्यौहार 10 दिनों तक मनाया जाता है, जिसमें बहुत सी गतिविधियाँ शामिल हैं। महिलाएँ घरों को सजाने के लिए रंग बिरंगे फूलों से रंगोली बनाती हैं, और पुरुष तैराकी और नौका-दौड़ जैसी गतिविधियों में हिस्सा लेते हैं। केरल के लोग ओणम त्यौहार को बहुत धूमधाम से मनाते हैं। ओणम त्यौहार के दस दिन इस प्रकार हैं:

अथम – इस दिन बहुत ही शानदार फ़ूलों की रंगोली बनाई जाती है क्योंकि माना जाता है कि इस दिन राजा महाबली पाताल लोक से धरती पर ओणम के अवसर पर आते हैं। इस दिन हस्त नक्षत्र होता है।

चिथिरा –
 ओणम के दूसरे दिन सारी पुरानी चीज़ों को निकाल दिया जाता है और अपने घर को हर तरह सुंदर बनाया जाता है। आज चिथिरा नक्षत्र होता है।

चोढ़ी –
 इस दिन का विशेष महत्व महिलाओं के लिए है क्योंकि इस दिन महिलाएँ अपने आप को सजाने के लिए नए कपड़े और गहनों की खरीददारी करती हैं। इस दिन स्वाति नक्षत्र होता है।

विसकम –
 इस दिन सभी गतिविधियाँ और प्रतियोगिताएँ शुरू होती हैं। नौका-दौड़ और पूकलम इस दिन की प्रमुख विशेषताएँ हैं। इस दिन विसकम नक्षत्र होता है।

अनिज़्हम – ओणम के पाँचवे दिन नौक-दौड़ का अभ्यास प्रारंभ हो जाता है। वल्लमकली नामक नौका-दौड़ बहुत ही प्रसिद्ध खेल है जो कि अब पर्यटन आकर्षण केंद्र बन चुका है। इस दिन अनिज़्हम नक्षत्र होता है।

थ्रिकेटा – ओणम के छठें दिन बहुत ही बड़ा उत्सव मनाया जाता है। जो लोग घर से दूर काम करते हैं, वे सब इस दिन को अपने परिवार के साथ मनाते हैं। ओणम के छठें दिन थ्रिकेटा नक्षत्र प्रबल होता है।

मूलम –
 यह वो दिन है जब केरल के मंदिरों में ओणसाद्य का आयोजन किया जाता है जो कि एक भव्य दावत मानी जाती है। इस दिन बहुत सी नृत्य कलाओं का आयोजन भी होता है जैसे कि पुलीकली और कैकोट्टी। मूलम नक्षत्र इस दिन होता है।

पुरदम –
 इस दिन ओणम का उत्सव अपनी चरम सीमा पर पहुँच जाता है। भगवान वामन और राजा महाबली की मिट्टी की मूर्तियाँ बनाई जाती हैं और पूकलम की रचनाएँ अपनी जटिलता तक पहुँच जाती हैं। इस दिन पुरदम नक्षत्र प्रबल होता है।

उतरदम –
 इस दिन फूलों का एक विशाल गलीचा राजा महाबली के स्वागत के लिए तैयार किया जाता है। नौवें दिन की गतिविधियाँ अपने शीर्ष पर आ जाती हैं। इस दिन उत्तरदम नक्षत्र प्रबल होता है।

थिरुवोणम –
 यह दिन परम उत्सव का दिन है। सारी गतिविधियाँ जैसे कि लोक नृत्य, कथकली नृत्य, पूकलम प्रतियोगिता, नौका-दौड़, और ओणसाद्य मनाई जाती हैं। उसके बाद, केरल के लोग अपने प्रिय राजा महाबली को अलविदा करते हैं।

 

वल्लमकली – प्रसिद्ध नौका-दौड़
नौका-दौड़ की गतिविधि केरल के लोगों के बीच ही नहीं, बल्कि पर्यटकों की भी पसंदीदा है। नौका-दौड़ में भाग लेने वाली नाव विशेष होती है। यह लगभग 100 फ़ीट लंबी है और 140-150 लोगों के बैठने की क्षमता रखती है। इसकी आकृति कोबरा जैसी है। इस नाव को बनाने में बहुत ही मेहनत लगती है, इसलिए मछुआरों के लिए इस नाव का भावनात्मक मूल्य है। यह एक ऐसी गतिविधि है जिससे कोई चूकना नही चाहेगा।
ओणसद्या – एक भव्य भोज
यह एक ऐसी दावत है जो कोई भी छोड़ना नहीं चाहेगा। यह एक नौं प्रकार का भोज है जो मुँह में अपना स्वाद छोड़ जाता है। केरल के लोग इस भोज को इतना पसंद करते हैं कि एक ओणसद्या भोज के लिए वह अपना सब कुछ बेच सकते हैं। परंपरा के अनुसार, ओणसद्या भोज केले के पत्ते पर परोसा जाता है। भोज में 60 तरह के व्यंजन और 20 तरह के मिष्ठान शामिल हैं जो पर्यटकों के बीच बहुत प्रसिद्ध है।

पूकलम – फ़ूलों का गलीचा
पूकलम अनेक रंगों के फ़ूलों से तैयार किया हुआ गलीचा होता है। यह एक कलात्मक स्पर्श वाली कला है। हर घर के आँगन में सुंदर और रंगीन रंगोली बनाई जाती हैं जो कि बहुत ही आकर्षक होती हैं। लोग पूकलम के दिन रंगोली बनाना प्रारंभ करते हैं जो कि ओणम के अंतिम दिन तक चलती है। रंगोली की गोल आकृति केरल के लोगों की संस्कृति और सामाजिकता को दर्शाता है।

नॉर्थ जोन फिल्म एंड टीवी आर्टिस्ट एसोसिएशन का पुनर्गठन

चंडीगढ़,25 अगस्त,2018:

शुक्रवार को पंजाब आर्ट कॉउंसिल में नॉर्थ जोन फिल्म एंड टीवी आरटिस्ट एसोसिएशन ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया। 2 कमेटियों का गठन किया गया जिसके तहत प्रेसिडेंट गुरप्रीत गुग्घी, सीनियर वाईस प्रेसिडेंट बी.बी. वर्मा, शिवेंद्र महल वाईस प्रेसिडेंट, जेनरल सेक्रेट्री मलकियत रौनी, ज्वाइंट सेक्रेट्री सतवंत कौर, फाईनेंस सेक्रेट्री रंजीत, ज्वाइंट फाइनेंस सेक्रेट्री परमजीत भंगू, एगजिक्यूटिव सदस्य बॉबी घई, हरदीप गिल,जसवंत दमन, रूपिंद्र रूपी व गुरप्रीत भंगू। इसके आलावा मेनंजमेंट कमेटी में चेयरमैन गुग्गु गिल, पेटरोनस विजय टंडन, निरमल, बी. एन शर्मा, सरदार सोही व जसविंद्र भल्ला। साथ ही एडवाइजरी बोर्ड में दलजीत दोसांज, गिप्पी ग्रेवाल, रोशन प्रिंस, रंजीत बावा, जस्सी गिल, एमी विर्क, पम्मी बाई, अमरित मान, शैरी मान, तरसेम जस्सड़ व निंजा को चुना गया।

चंडीगढ़ व पंजाब से तकरीबन 150 कलाकारों ने ने भी इस बैठक मे शिरकत की। 2013 मे  बनी इस एसेसिएशन ने कालाकारो के हित बहुत से काम किए गए, यह बैठक एगजिक्यूटिव बॉडी को बढाने के मकसद से की गई। इस मौके पर प्रेसिडेंट जी.एस. चीमा ने कहा कि वह सारी जिंदगी से इस सपने को संजोए बैठे थे कि पंजाब में एक सि प्रकार की एसोसिएशन होनी चाहिए उनका सपना आज साकार हो गया।