तमिलनाडु के कांचीपुरम में सरकारी स्कूलों में छात्रों को शौचालय की सफाई करते हुए देखा गया था। इससे जुड़ा वीडियो वायरल होने पर काफी हंगामा मचा था। इन छात्राओं को कैंपस में कथित रूप से टॉयलेट की सफाई करते हुए देखा गया। इसके बाद कांचीपुरम के डिस्ट्रिक्ट कलेक्टर ने घटना का संज्ञान लेते हुए जिले के शिक्षा अधिकारी को जांच करने का आदेश दिया।
कन्याकूमारी:
तमिलनाडु के कन्याकुमारी जिले के सरकारी स्कूल में एक शिक्षक पर हिंदू धर्म को नीचा दिखाने और ईसाई धर्म का प्रचार करने के आरोप के बाद उसे निलंबित कर दिया गया. अधिकारियों ने यह जानकारी दी. उन्होंने बताया कि जिले में कन्नतुविलई स्थित एक स्कूल की छठी कक्षा की छात्रा ने ये आरोप लगाये थे.
बुधवार को सोशल मीडिया पर स्कूल प्रशासन और पुलिसकर्मियों के सामने आरोप लगाने वाली छात्रा का एक वीडियो क्लिप वायरल हो गया। प्राथमिक जांच के बाद शिक्षक को निलंबित कर दिया गया है। वह छात्रों को सिलाई और कटिंग सिखाता है।
छात्र के अनुसार, शिक्षक ने एक कहानी सुनाते हुए हिंदू-देवताओं को शैतान के रूप में चित्रित किया और ईसा मसीह की महिमा की और छात्रों को बाइबिल पढ़ने के लिए प्रेरित किया। जब छात्रों ने उत्तर दिया कि वे हिंदू हैं और इसके बजाय भगवद गीता पढ़ना चाहते हैं, तो शिक्षक ने कहा कि गीता खराब है और बाइबिल में अच्छे विचार हैं इसलिए उन्हें बाइबल पढ़नी चाहिए।
छात्र ने कहा कि ईसाईयत का ऐसा प्रचार कक्षाओं के दौरान किया जाता था। लंच ब्रेक के बाद, छात्रों को भी घुटने टेकने और ईसाई धर्म के लिए प्रार्थना करने के लिए कहा गया। इस बात की जानकारी बच्चों ने अपने माता-पिता को दी तो उन्होंने स्कूल प्रशासन से मामला उठाया।
ऐसा नहीं है कि यह पहली बार हुआ है। हाल ही में बेंगलुरु के एक निजी स्कूल में पढ़ने वाली एक विद्यार्थी ने अपनी गणित की शिक्षिका के विषय में यह कहते हुए आरोप लगाया था कि कैसे उन्होंने उसे “मनी” अध्याय में अल्लाह की पूजा करने के लिए कहा। बच्ची ने कहा कि “हर कोई कन्फ्यूज्ड था और उन्हें गलत जबाव आ रहे थे, तो अगले दिन मैडम ने हमसे अल्लाह की इबादत करने के लिए कहा। हमारे हाथों को कटोरे के आकर में मोड़ने के लिए कहा और मैं और मेरे कुछ दोस्त हिन्दू थे, हमने मैडम से मना किया कि हम हिन्दू हैं, और हम अल्लाह की इबादत नहीं कर सकते। पर मैडम ने कहा कि अल्लाह की इबादत करनी चाहिए और अल्लाह एक अच्छे भगवान हैं!”
हालंकि स्कूल ने इस मामले में उस बच्ची को ही कठघरे में खड़ा कर दिया। स्कूल की ओर से जारी किए गए वक्तव्य में कहा गया कि उन्होंने जांच करा ली है, पर उन्हें ऐसा कुछ भी प्रमाण नहीं मिला है, जिससे यह पता चले कि कोर्स से इतर कुछ पढ़ाया गया था। और उन्होंने बच्ची के अभिभावकों के खिलाफ ही पुलिस में शिकायत दर्ज कराई है।
देखा जाए तो स्कूलों में हिन्दू देवी देवताओं का अपमान करना और हिन्दू पर्वों का उपहास उडाना बहुत ही आम है, बहुत ही सामान्य बात है। कई घटनाएं सामने आई हैं, जिनसे ऐसा प्रतीत हुआ है कि बच्चे जिन स्कूलों में पढने जाते हैं, वही उन्हें हिन्दू धर्म का अपमान करने की प्रेरणा देता है। हमने देखा था कि कैसे हरियाणा में दो स्कूलों में प्रभु श्री राम का अपमान करते हुए रामायण का मंचन किया गया था। इस पर हंगामा हुआ था और बाद में अंतत: स्कूल प्रबंधन को क्षमा मांगनी पड़ी थी।
हाल में दिसंबर में ही मध्यप्रदेश में विदिशा जिले के गंज बासौदा में सैंट जोसेफ स्कूल में 8 बच्चों के धर्मांतरण को लेकर हंगामा किय था।
मिशनरी स्कूल्स हों या निजी या सरकारी, ऐसा प्रतीत होता है जैसे एक पैटर्न है हिन्दुओं और हिन्दू धर्म को अपमानित करने के साथ साथ अब्र्हामिक रिलिजन को बढावा देने का। जहाँ एक ओर अल्पसंख्यकों के मजहबी प्रतीकों को उनकी आस्था का विषय मानकर उन्हें प्रयोग करने की छूट के लिए आन्दोलन होते हैं, तो वहीं हिन्दुओं के बच्चों के हाथों से “धर्मनिरपेक्षता” के नाम पर कलावा और जनेऊ हटाए जाने के समाचार आते रहते हैं।
18 फरवरी 2021 को त्रिची में पेरूमल पालयम में सरकारी हाई स्कूल से ऐसा ही मामला सामने आया था, जब एक गणित के शिक्षक शंमुगम ने, जो खुद को पेरियर का अनुयायी बताते थे, उन्होंने भी बच्चों के माथे से तिलक, भभूत हटाने के साथ साथ उनके हाथों पर बंधे कलावा को भी कैंची से काटा था, लड़कियों की चूड़ियाँ तोड़ी थीं और उन्हें हटाने के बहाने से लड़कियों को गलत तरीके से छुआ था।
अभिभावकों ने इस सम्बन्ध में शिकायत दर्ज कराई थी, और पुलिस की जांच में बच्चों की शिकायत सच पाई गयी थी।
इससे पहले वर्ष 2018 में तमिलनाडु के एक स्कूल में दो लड़कियों को भभूत, चंदन और फूल पहनने पर दण्डित किया गया था। जब अभिभावकों ने क्रोधित होकर प्रदर्शन किया था, तो उनसे कहा गया था कि वह ट्रांसफर सर्टिफिकेट ले सकते हैं।
सितम्बर में शाहजहाँपुर से भी ऐसा ही एक मामला सामने आया था जिसमें एक निजी स्कूल पर बच्चों के हाथों से राखी एवं कलावा जबरन हटाया गया था। जब विश्व हिन्दू परिषद के लोगों ने इसका विरोध किया था तो स्कूल की प्रिंसिपल ने कहा था कि उन्होंने राखी और कलावा कोविड प्रोटोकॉल के चलते हटाया है। इसमें इतना शोर मचाने की जरूरत नहीं है।
वर्ष 2018 में गुजरात से भी माउंट कैरमल हाई स्कूल में भी बच्चों के हाथों से कैंची से राखी काट दी गयी थी। क्रोधित अभिभावकों ने इस सम्बन्ध में शिकायत दर्ज की थी। जब यह मामला सरकार के समक्ष गया था तो शिक्षा मंत्री ने स्कूल को नोटिस जारी करते हुए इस घटना को दुर्भाग्यपूर्ण बताया था।
वर्ष 2015 में भी सैंट मेरी कान्वेंट स्कूल कानपुर में बच्चियों को राखी और मेहंदी पहनकर आने के लिए दंडित किया गया था, यह भी आरोप लगा था स्कूल पर कि लडकियों को उन्होंने मेहंदी जबरन छुटाने के लिए कहा, जिसके कारण उनके हाथों से खून आने लगा था!
यह अत्यंत दुःख एवं क्षोभ का विषय है कि धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हिन्दू विद्यार्थियों को और हिन्दुओं की परम्पराओं को ही अपमानित किया जाता है। कभी पेरियर के अनुयाइयों द्वारा, कभी मिशनरी द्वारा तो कभी अल्लाह की इबादत करने वालों के द्वारा और वहीं हिजाब को मजहबी अधिकार और पहचान का माध्यम बताया जाता है!