होलिका दहन और रंगोत्सव की हिरण्यकशिपु  प्रहलाद, शिव कामदेव तथा श्रीकृष्ण एवं राधा रानी की है अनेकों कथाएं: मंजू मल्होत्रा फूल

डेमोक्रेटिक फ्रन्ट, चंडीगढ़ – 09 मार्च :


समाजसेविका एवं लेखिका मंजू मल्होत्रा फूल ने होली का पर्व  श्रीमती ममता रावत तथा अन्य ऑफिसर लेडीस के साथ बड़ी धूमधाम से मनाया ।

इस अवसर पर  लेखिका मंजू मल्होत्रा फूल ने होली के पर्व तथा होलिका दहन का महत्व बताते हुए कहा कि फाल्गुन मास की पूर्णिमा को रंगों  का पर्व होली मनाया जाता है। पारंपरिक रूप से यह पर्व दो दिन मनाया जाता है। जिसमें पहले दिन होलिका जलाई जाती है जिसे होलिका दहन कहते हैं तथा दूसरे दिन रंगोत्सव मनाया जाता है। फाल्गुन माह में मनाए जाने के कारण इसे फाल्गुनी भी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि लोग इस दिन अपनी पुरानी कटुता भुलाकर मित्र बन जाते हैं और एक दूसरे को रंग डालते हैं।

होलिका दहन कि हमारी एक बहुत ही प्राचीन कथा है, जिसमें हिरण्यकशिपु नाम का एक अत्यंत बलशाली राक्षस था। अपने बल के अहंकार में वह स्वयं को ही ईश्वर समझने लगा था तथा उसने अपनी प्रजा को  ईश्वर के नाम लेने से  मना कर दिया था। हिरण्यकशिपु का पुत्र प्रहलाद ईश्वर भक्त था तथा वह अपने पिता के मना करने के बाद भी प्रभु भक्ति में लीन रहता था।  तब हिरण्यकशिपु ने क्रोध में आकर अपनी बहन होलिका, जिसे वरदान था कि उसे अग्नि भस्म नहीं कर सकती को आदेश दिया कि वह प्रह्लाद को गोद में बैठाकर अग्नि में बैठ जाए।परंतु ईश्वर की भक्ति के कारण प्रह्लाद को अग्नि नहीं जला पाई,और होलिका जलकर भस्म हो गई।  इसीलिए बुराई पर अच्छाई की विजय के प्रतीक के रूप में होलिका दहन किया जाता है। 

एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने पूतना नामक राक्षसी का वध किया था और इसी खुशी में वहां पर रंगोत्सव मनाया गया। 

हमारे पौराणिक ग्रंथों के अनुसार कामदेव ने तपस्या में लीन प्रभु शिव पर पुष्प बाण चलाए जिसके कारण उनकी समाधि भंग हो गई और समाधि भंग होने पर शिव ने क्रोधित होकर कामदेव को जलाकर भस्म कर दिया था। तत्पश्चात कामदेव की पत्नी रति के विलाप करने पर कामदेव को पुनः जीवित होने का वरदान भी दिया था।

हमारे धर्म ग्रंथों  एवं पौराणिक कथाओं के अनुसार ऐसी मान्यता है कि इस दिन श्री कृष्ण ने गोपियों के संग रास रचाया था और दूसरे दिन रंग खेलने का उत्सव मनाया गया था। इस दिन श्री कृष्ण ने राधा जी पर रंग डाला था इसी याद में रंग पंचमी मनाई जाती है।  रासलीला में प्रभु श्री कृष्ण ने अपने अनेकों रूप बनाए और गोपियों संग रास रचाया था जबकि असली श्री कृष्ण तो केवल राधा रानी के साथ ही नृत्य कर रहे थे। यह प्रभु की अपने भक्तों  के प्रति प्रेम का प्रतीक है। श्री कृष्ण भक्ति और प्रेम में लीन हुई गोपियों के लिए प्रभु ने इस प्रकार रूप धारण  किए थे।   इस दिन श्री राधा रानी और श्री कृष्ण की आराधना की जाती है। आज भी देश भर में  राधा कृष्ण मंदिरों में फूलों की होली मनाई जाती है। ‘होली खेल रहे बांके बिहारी कीआज रंग बरस रहा’ आदि भजनों से प्रभु पर तथा भक्तों पर  पुष्प वर्षा की जाती है।