प्रधान मंत्री की हत्या के षडयंत्र के आरोपियों को सर्वोच्च न्यायालय से राहत, नज़रबंद रहेंगे आरोपी
नई दिल्ली:
नई दिल्ली भीमा कोरेगांव हिंसा से जुड़े मामलों में वामपंथी विचारकों की गिरफ्तारी और उनके ठिकानों पर छापेमारी में बुधवार को सुप्रीम कोर्ट ने इस केस में पांच विचारकों की गिरफ्तारी पर 5 सितंबर तक रोक लगा दी है। मिली जानकारी के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में महाराष्ट्र सरकार को नोटिस जारी करते हुए कहा है कि आरोपियों को गिरफ्तार करने की बजाय उन्हें हाउस अरेस्ट किया जाए। सुप्रीम कोर्ट अब इस मामले की अगली सुनवाई 6 सितंबर को होगी। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में कहा है कि किसी भी लोकतंत्र के लिए सेफ्टी वॉल्व है। अगर असहमति की अनुमति नहीं होगी तो प्रेशर कूकर की तरह फट भी सकता है।
जनवरी में हुए भीमा-कोरेगांव दंगों के सम्बंध में गिरफ्तार पत्रकार और मानवाधिकार कार्यकर्ता गौतम नौलखा ने बताया कि यह पूरा मामला इस कायर और प्रतिशोधी सरकार की राजनीतिक असहमति के खिलाफ एक राजनीतिक चाल है। सरकार महाराष्ट्र के भीमा-कोरेगांव दंगों के असली अपराधियों को बचाना चाहती है और इसीलिए उसने कश्मीर से केरल तक अपनी असफलताओं और घोटालों से जनता का ध्यान हटाना चाहती है। नौलखा ने कहा कि राजनीतिक लड़ाई राजनीतिक तरीके से लड़ी जानी चाहिए और मैं इस अवसर का स्वागत करता हूं। मेरा कुछ भी लेना-देना नहीं है। यह तो महाराष्ट्र पुलिस है, जो अपने राजनीतिक आकाओं के इशारे पर काम कर रही है, और मेरे और मेरे गिरफ्तार अन्य साथियों के खिलाफ अपने मामले साबित करने की कोशिश कर रही है।
पीपुल्स यूनियन फॉर डेमोक्रेटिक राइट्स’ (पीयूडीआर) में हम लोग 40 वर्षों से भी अधिक समय से एकजुट और निडर होकर लोकतांत्रिक अधिकारों के लिए लड़ रहे हैं और इसके हिस्से के तौर पर मैंने ऐसे कई मामलों को कवर किया है। अब मैं खुद एक राजनीतिक लड़ाई का सामना करूंगा। नौलखा और चार अन्य नक्सल समर्थकों को 31 दिसंबर को पुणे में जनसभा आयोजित करने के मामले में पुणे पुलिस ने कई शहरों में छापे मारने के बाद गिरफ्तार किया है, जिसमें क्रांतिकारी कवि वरवर राव भी शामिल हैं। जनसभा के अगले दिन पुणे से 60 किलोमीटर दूर कोरेगांव-भीमा में हिंसा हुई थी।
आपको बता दें कि 28 अगस्त को पुणे पुलिस ने भीमा कोरेगांव हिंसा, नक्सलियों से संबंधों और गैर-कानूनी गतिविधियों के आरोपों में 5 लोगों को अरेस्ट किया है। इनमें वरवरा राव, सुधा भारद्वाज, गौतम नवलखा, वेरनोन गोन्जाल्विस और अरुण फरेरा शामिल हैं। इन मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की तरफ से रोमिला थापर, प्रभात पटनायक, सतीश देशपांडे, माया दर्नाल और एक अन्य ने सुप्रीम कोर्ट ने अर्जी दाखिल की थी। इस याचिका को चीफ जस्टिस की अदालत में पेश किया है। याचिका में गिरफ्तारी को गैरकानूनी बताते हुए निष्पक्ष जांच की मांग की गई।
राहुल गांधी ने इस मसले पर बीजेपी सरकार पर अटैक करते हुए ट्वीट किया, भारत में सिर्फ एक ही एनजीओ के लिए जगह है और उसका नाम है आरएसएस। इसके अलावा अन्य सभी एनजीओ को बंद कर दीजिए। सभी ऐक्टिविस्ट्स को जेल में डाल दो और जो विरोध करे, उसे गोली मार दो। राहुल की ओर से सरकार पर ऐक्टिविस्ट्स की आवाज को दबाए जाने के आरोप लगाने पर सरकार की ओर से भी प्रतिक्रिया आई है।
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