सूरतगढ़ : नया चेहरा चाहिए जाट गैर जाट की कोई चर्चा नहीं ग्रामीण टिब्बा क्षेत्र
करणी दान सिंह राजपूत, डेमोक्रेटिक फ्रंट, सूरतगढ़ :
विधानसभा चुनाव 2023 में अब केवल 1 वर्ष बाकी है। राजनैतिक गतिविधियां तेज हो रही है लेकिन कोई भी टिकटार्थी भ्रष्टाचार के मामले में डायरेक्ट फाइट नहीं करना चाहता। कागजी कार्यवाही और वर्ष भर में दो चार प्रदर्शन वह भी एक-दो घंटे के होते रहे हैं।
अब बात करते हैं आगामी चुनाव में किस प्रकार के लोगों को जनता पसंद कर रही है। पुराने चेहरों पर कोई चर्चा नहीं करना चाहता।
सूरतगढ़ टिब्बा क्षेत्र में जोकि ठेठ ग्रामीण क्षेत्र है और सिंचाई के साधन आज भी बहुत कम है। उस क्षेत्र में अधिकांश लोगों का मानना है, लोग चाहते हैं कि भारतीय जनता पार्टी में कांग्रेस पार्टी में नए चेहरे आएं।
पुरानों की बात नहीं कर रहे।नए चेहरों के अलावा जाट और गैर जाट की भी कोई चर्चा गांवों में नहीं है और इस विषय को कोई छू भी नहीं रहा है। नया चेहरा चाहिए ईमानदार चेहरा जो पब्लिक में खड़े होकर किसानों के मजदूरों के खड़े होकर काम करवा सके। कुछ ऐसे लोग प्रत्याशी बनने को मुंह धो रहे हैं जिनको विभागों में काम करने कराने की रत्ती भर जानकारी नहीं है। ऐसे चेहरे भी नये के नाम पर आना चाहते हैं जो जनता के बीच में किसी एक कार्यक्रम में शामिल नहीं हुए।
पार्टियों के टिकट पर ही आश्रित ऐसे लोग मात खा सकते हैं। भाजपा जिसे टिकट दे देगी वह हर हालत में जीत जाएगा कि चर्चा भी यदा कदा होती है जो बड़ाई में होती है लेकिन धरातल पर ऐसा कहीं दिखाई नहीं देता। भाजपा कांग्रेस मेंकड़ी टक्कर ही होगी। दोनों पार्टियों को इस हालत में सोचना होगा। भाजपा बड़ाई में चोट भी खा सकती है। पिछले 2018 के चुनाव में भाजपा केवल 10,000 से कुछ अधिक वोटों से ही जीती। कांग्रेस मेहनत करती और 6000 वोट ले लेती तो भाजपा की जीत नहीं थी। कांग्रेस के मील परिवार ने चुनाव के वोटिंग के सात दिन में मेहनत नहीं की और मात खा गए। भाजपा 2013 में राजेंद्र भादू और 2018 में रामप्रताप कासनिया के विधायक बनने के बाद बड़बोलेपन पर है। लोग रामप्रताप कासनिया के विरुद्ध हैं और खुली चर्चा भी करते हैं। ऐसी स्थिति में लगातार 10 साल तक सीट पर काबिज भाजपा को नया जनप्रिय चर्चित नया चेहरा खोजना होगा। सर्वे में ऐसे चेहरों के नाम आने की संभावना है।
अभी 6 और 7 दिसंबर 2022 को मेरा 2 विशेष कार्यक्रमों में जाना हुआ। जहां हर कार्यक्रम में 20 -30 गांवों के लोग एकत्रित हुए।
मैं कार्यक्रमों में शामिल भी हुआ और लोगों से राजनीतिक विचार पूछने के लिए भी जानने के लिए भी बातचीत करता रहा।अनेक लोग ऐसे भी मिले जो बीच 30 साल पहले मेरे से मिल चुके थे।
भारतीय जनता पार्टी के चाहने वाले बहुत मिले लेकिन बात वही आयी कि नया चेहरा होना चाहिए। पुराने चेहरों में वर्तमान भाजपा विधायक रामप्रताप कासनिया पूर्व विधायक राजेंद्र सिंह भादू और अशोक नागपाल की कोई चर्चा नहीं करना चाहता।
कांग्रेस पार्टी में भी नया चेहरा विशेष करके गंगाजल मील के नाम की कोई चर्चा नहीं है। आश्चर्य तो यह मिला कि कांग्रेस पार्टी में डूंगरराम गेदर के नाम की भी भरपूर चर्चा कहीं सुनी नहीं गई। डूंगर बसपा से चुनाव लड़ चुके।बहुत अच्छे वोट मिले। बसपा से पिछली बार तीसरे नंबर पर पहुंचे उससे पहले दूसरे नंबर पर थे। कांग्रेस पार्टी में प्रवेश करने के बाद में राजस्थान शिल्प एवं माटी कला बोर्ड के अध्यक्ष बने। राज्यमंत्री तक का दर्जा मिल गया लेकिन गांवों में कहीं चर्चा नहीं है। अब महीनों तक किसी कार्यक्रम में नहीं होते। स्वागत समारोह में कहा था कि हनुमान मील के साथ मिलकर कांग्रेस पार्टी को मजबूत करेंगे। अब कहीं दिखाई नहीं देते।
कांग्रेस पार्टी ने पिछले चुनाव में युवा चेहरे का माहौल चला था जिसमें गंगाजल मील को हरचरण सिंह सिद्धू को ऊपर जाकर टिकट नहीं मिली। मील परिवार को संकेत था नए युवा चेहरे का तो उन्होंने हनुमान मील को उतारा। हनुमान मील ने भारतीय जनता पार्टी से टक्कर ली और करीब 10,000 कुछ वोटों से पराजित हुए। यह टक्कर बहुत जबरदस्त थी। यदि नील परिवार थोड़ी मेहनत करता तो यहां हनुमान मील की जीत भी संभव थी। प्रेस का मानना है कि कांग्रेस मेहनत करती और 6 हजार वोट और ले लेती तो जीत जाती। मील परिवार ने वोटिंग के एक सप्ताह में ढील दिखाई और मात खाई।
इस बार भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस पार्टी में ही प्रमुख टक्कर होने की स्थिति बनी हुई है। अन्य पार्टियों में बहुजन समाज पार्टी और आम आदमी पार्टी भी अपने प्रत्याशी मैदान में उतारेगी लेकिन अभी दोनों पार्टियों में कोई गंभीरता दिखाई नहीं दे रही।दोनों पार्टियों द्वारा वर्तमान प्रदेश कांग्रेस सरकार के कार्यक्रमों पर और भाजपा की केंद्रीय मोदी सरकार के प्रति कहीं कुछ दिखाई नहीं दे रहा।