आई वी एफ है तो संभव है – डॉ रश्मि
डेमोक्रेटिक फ्रंट संवाददाता, चंडीगढ़ – 14 दिसंबर :
मां बनना किसी वरदान से कम नहीं है, लेकिन यह महिलाओं के लिए तब अभिशाप बन जाता है जब वो किसी कारण इस सुख से वंचित रह जाती है। दरअसल, हमारे देश में आज भी बांझपन को एक सामजिक कंलक के रूप में देखा जाता है। इसका प्रकोप सबसे ज्यादा महिलाओं को झेलना पड़ता है। ऐसे में आईवीएफ महिलाओं एवं पुरुषों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है। आईवीएफ वो तकनीक है जिसके जरिए बांझ महिलाएं भी मां बनने का सुख पा सकती हैं।
सर्वश्रेष्ठ स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने के लिए 14 दिसंबर को संगरूर में एडवांस्ड आईवीएफ ओपीडी आयोजित की जा रही है। बंसल हॉस्पिटल एवं हार्ट सेंटर के साथ गठबंधन में डॉ. रश्मि वोहरा, कंसल्टैंट – रिप्रोडक्टिव मेडिसीन एवं आईवीएफ, मणिपाल हॉस्पिटल्स, पटियाला हर दूसरे बुधवार को सुबह 11 बजे से 1 बजे के बीच विशेषज्ञ परामर्श प्रदान करेंगी। डॉ वोहरा का कहना है कि भारत में युवा दंपत्तियों में फर्टिलिटी की समस्याएं लगातार बढ़ रही हैं। संतानप्राप्ति के इच्छुक दंपत्तियों और पूरे परिवार पर इसका गहरा मनोवैज्ञानिक और भावनात्मक असर होता है। भारत में फर्टिलिटी की दर हर साल घटती चली जा रही है और हर छः में से एक दंपत्ति को इन्फर्टिलिटी की समस्या है। आम तौर से लोग, खासकर वो, जो ज्यादा दूर स्थित होते हैं, शुरुआती संकेतों को नजरंदाज कर देते हैं, जिससे आगे चलकर गर्भधारण करने में मुश्किल उत्पन्न होती है। इसलिए, इन्फर्टिलिटी के जोखिम को कम करना मुख्यतः समय पर पहचान करने और उसका तत्काल इलाज करने पर निर्भर है।