तवांग पर कब्जे की मंशा के पीछे ड्रैगन की है ये रणनीति

            अरुणाचल प्रदेश के तवांग सेक्टर में वास्तविक नियंत्रण रेखा के साथ-साथ यांगत्से के आसपास के इलाकों में भारत पर्यटन को बढ़ावा देने के साथ बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाने में जुटा है। सरकार के अधिकारियों ने पत्रकारों यह जानकारी देते हुए कहा कि चीन इसे लेकर काफी दबाव में है और 9 दिंसबर को हुई झड़प का एक कारण ये भी हो सकता है।

अरुणाचल प्रदेश के अंजॉ जिले में वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास किबिथू में सैन्य अभ्यास करते भारतीय सेना के जवानों की फाइल फोटो (PTI)
अरुणाचल प्रदेश के अंजॉ जिले में वास्तविक नियंत्रण रेखा के पास किबिथू में सैन्य अभ्यास करते भारतीय सेना के जवानों की फाइल फोटो

सारिका तिवारी, डेमोक्रेटिक फ्रंट, चंडीगढ़/नयी दिल्ली :

            अरुणाचल प्रदेश के तवांग पर चीन की नजरें लंबे समय से गढ़ी हुई थीं, यहां लगातार उसके सैनिकों का जमावड़ा हो रहा था और 9 दिसंबर को उसने अंदर घुसने की हिमाकत की जिसका भारतीय सेना ने मुंहतोड़ जवाब दिया। तवांग एक बेहद खूबसूरत जगह है जो प्राकृतिक सुंदरता के साथ-साथ धार्मिक महत्व के लिए भी प्रसिद्ध है। चीन की नई हरकत से सवाल उठता है कि उसकी इस इलाके पर नजर क्यों है, साथ ही ये भारत के लिए खास महत्व का क्यों है। 

            अरुणाचल प्रदेश का तवांग करीब 17 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित है। ये जगह सेना के लिए रणनीतिक रूप से खास महत्व की है। दोनों देशों के लिए ये जगह इसलिए भी खास है क्योंकि ये 1962 के भारत-चीन से जुड़ी हुई है। इस युद्ध में तवांग पर कब्जे के बाद चीन ने इसे खाली कर दिया था क्योंकि यह मैकमोहन लाइन के अंदर पड़ता है। लेकिन बाद में चीन की नीयत बदल गई और उसने मैकमोहन लाइन को मानने से इनकार कर दिया। 

            इसके बाद से ही चीन की तवांग पर बुरी निगाह बन गई, हालांकि उसके लिए दोबारा यहां पहुंचना आसान नहीं रह गया था। अब वह पुरानी रणनीति के तहत यहां तक पहुंचना चाहता है और इसी के तहत उसके करीब 600 सैनिकों ने यहां जमावड़ा लगाते हुए दबाव बनाने की कोशिश की। 9 दिसंबर को चीनी सैनिकों ने एक कदम आगे बढ़ते हुए घुसपैठ का दुस्साहस किया जिसका भारतीय सैनिकों ने करारा जवाब दिया। 

            दरअसल, तवांग पर कब्जे की मंशा के पीछे चीन की एक खास रणनीति है। इस पोस्ट पर काबिज होने के बाद वह तिब्बत के साथ-साथ एलएसी की निगरानी भी करना चाहता है। इसी रणनीति के तहत वह बार-बार इसके करीब पहुंचने की कोशिश करता है। बता दें कि तिब्बती धर्मगुरु का तवांग से खास रिश्ता है। 1959 में तिब्बत से निकलने के बाद मौजूदा दलाई लामा ने यहां कुछ दिन बिताए थे। यह बात भी चीन को चुभती है क्योंकि उसकी आंखों में दलाई लामा खटकते रहे हैं। 


            अगर तवांग पर चीन का कब्जा हो जाए तो यह भारत के लिए किस तरह खतरा बना सकता है, समझने की कोशिश करते हैं। चीन की तरफ से एलएसी पर भारत के लिए दो प्वाइंट सबसे अहम हैं। पहला है तवांग और दूसरा है चंबा घाटी। चंबा घाटी नेपाल-तिब्बत सीमा पर मौजूद है, वहीं तवांग चीन-भूटान जंक्शन पर मौजूद है। अगर चीन तवांग पर कब्जा कर लेता है तो अरुणाचल प्रदेश पर दावा ठोक सकता है जिसे वह अपना हिस्सा मानता है। 

            यही वजह है कि भारत इसे लेकर बेहद सतर्क रहता है। 1962 युपद्ध के घाव अभी भी ताजा हैं और भारत दोबारा उसे दोहराता हुआ नहीं देखना चाहेगा। भारत बिल्कुल भी नहीं चाहेगा की सामरिक महत्व की ये जगह उसके हाथ से निकल जाए। इसी को देखते हुए भारत ने पिछले कुछ वर्षों में इस पर खास ध्यान देते हुए निर्माण कार्य तेज किए हैं। इसके अलावा यहां सैनिकों की संख्या बढ़ाते हुए निगरानी भी तेज कर दी है। नए घटनाक्रम ने भारत की आशंका को सही साबित कर दिया है कि चीन पर कतई भरोसा नहीं किया जा सकता है। गलवान घाटी के बाद अब तवांग की घटना ने भारत को बेहद सतर्क कर दिया है। 

            भारतीय सेना ने सोमवार को जानकारी दी कि 9 दिसंबर को तवांग सेक्टर में LAC पर भारत और चीन के सैनिक आपस में भिड़ गए थे और आमने-सामने की इस झड़प में दोनों पक्षों के कुछ जवानों को मामूली चोटें भी आई थीं।

            रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने मंगलवार को संसद को बताया कि इस झड़प में न किसी भारतीय सैनिक की मृत्यु हुई है और न ही किसी को गंभीर चोट आई है। उन्होंने लोकसभा में कहा, “इस आमने-सामने की लड़ाई में दोनों पक्षों के कुछ सैनिकों को चोटें आईं। मैं इस सदन को बताना चाहता हूं कि हमारे किसी भी सैनिक की मौत नहीं हुई है और न ही कोई गंभीर चोट आई है। भारतीय सैन्य कमांडरों के समय पर हस्तक्षेप के कारण, पीएलए सैनिक अपने स्थानों पर पीछे हट गए हैं।