राष्ट्रीय प्रेस दिवस 16 नवंबर, कितने नेताओं और राजनेताओं ने पत्रकारों को शुभकामनाएं दी?

  करणी दान सिंह राजपूत, डेमोक्रेटिक फ्रंट, सूरतगढ़ :

            कहते हैं कि नेताओं राजनेताओं और प्रेस का अटूट संबंध है।  यह अटूट संबंध किस तरह से है? किस प्रकार से है? कैसा है?आज प्रेस दिवस पर इस बंद अटैची को भी खोलना चाहिए। देखना चाहिए।समीक्षा करनी चाहिए।

            नेता और राजनेता अपनी हर छोटी बात को मीडिया के माध्यम से आम जनता तक पहुंचाते हैं।अधिक से अधिक लोगों तक बात पहुंचे यह भी सुनिश्चित करते हैं। पूरे साल भर नेताओं राजनेताओं के बयान और फोटो छपने चाहिए। वे ऐसी आशा करते हैं और प्रेस जगत के लोग भी उनकी आशाओं को पूरा करने के लिए दिन रात हर संभव कोशिश करते हैं।

            राजनेताओं के तो 365 दिन ही कोई न कोई पर्व कोई न कोई उद्घाटन कोई ना कोई समारोह होता रहता है लेकिन प्रेस के लिए साल भर में अधिकतम तीन-चार दिन ही आते हैं।

            अंतरराष्ट्रीय प्रेस दिवस, राष्ट्रीय प्रेस दिवस, हिंदी पत्रकारिता दिवस आदि।  अब इन 3 दिनों में नेताओं राजनेताओं की ओर से प्रेस को कितना याद किया गया?इसकी समीक्षा होनी चाहिए।

                                 राष्ट्रीय प्रेस दिवस पर कितने नेताओं या राजनेताओं ने पत्रकारों के कार्यालय या निवास पर पहुंचकर रूबरू होकर आमने सामने खड़े या बैठ कर बधाई दी शुभकामनाएं अर्पित की? कितने लोगों ने पत्रकारों को मोबाइल या  टेलीफोन पर बधाई दी? कितने नेताओं राजनेताओं ने व्हाट्सएप पर मैसेज करके शुभकामनाओं की रस्म निभाई?

            नेताओं और राजनेताओं को भी अपनी समीक्षा कर लेनी चाहिए। पत्रकारों को भी अपनी स्थिति का भान कर लेना चाहिए कि उनको क्या समझा जा रहा है? नेताओं और राजनेताओं के संपर्को में  उनकी स्थिति क्या है?

            पत्रकार खुद को प्रजातंत्र लोकतंत्र का चौथा पाया समझते हैं,खंभा समझते हैं। लेकिन असल में खुद ही समझते हैंअन्यत्र कोई नहीं समझता। चौथा खंबा है ही नहीं ना कहीं लिखा गया है।खुद ही कहते हैं चौथा खंभा और इस चौथे खंभे की मजबूती और असलियत का मालूम होना चाहिए। इसके लिए नेताओं और राजनेताओं की बात जो मैं यहां कर रहा हूं उसकी समीक्षा करनी चाहिए।

                                नेता और राजनेता पूरे साल भर तक पत्रकारों को उपयोग करते हैं लेकिन साल में 3 दिन हैं जिनमें वे बधाई और शुभकामनाएं देने का कर्तव्य भी पूरा नहीं कर पाते। पत्रकारों को प्रेस कॉन्फ्रेंस में जाते समय भी अपनी स्थिति का भान होना चाहिए। बिना आवश्यक कार्य के भी बिना किसी मैटर के भी प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाली जाती है और कहते हैं कि अभी बस आधा घंटे में शुरू होने वाली है। ऐसी स्थिति के अंदर पत्रकारों को भी सोचना और समझना चाहिए कि क्या प्रेस कॉन्फ्रेंस का विषय ऐसा है जिसमें तुरंत पहुंचने की आवश्यकता है? यदि ऐसा कोई विषय  नहीं है माहौल नहीं है तो उसमें अपनी उपस्थिति को देखना चाहिए कि वहां जाए या नहीं जाए?

            प्रेस कॉन्फ्रेंस में कागज यानी छोटी सी डायरी और एक पेंसिल बॉल पेन जो मिलता है या वह देते हैं उसको लेना भी बंद होना चाहिए।  जब प्रेस कॉन्फ्रेंस नहीं होती है तब साल में 362 दिन पत्रकार के पास में अपना ही कागज होता है और अपनी ही बॉल पेन होती है। इसलिए कम से कम यह अंतिम निर्णय कर लेना चाहिए कि प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपना ही कागज और अपनी ही कलम होगी।०0०