डेमोक्रेटिक फ्रंट संवाददाता। चण्डीगढ़ :
नीरी (नेशनल इनवायरमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इस्टीट्यूट), भारत सरकार की कोशिश है कि पटाखों के चलते प्रदूषण कम हो। इसलिए बेरियम नाइट्रेट और रेडलेड आक्साइड का उपयोग पटाखों में नहीं किया जा रहा। दीपावली के आसपास हवा की रफ्तार धीमी होती है। पटाखों में इन केमिकल के उपयोग से कार्बन डाईआक्साइड के कण कम ऊंचाई पर ही मौजूद रहते हैं। इसलिए सांस के साथ यह कण शरीर के अंदर प्रवेश कर जाते हैं, जोकि स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाते हैं। ये उपयोगी जानकारी दी जाने-माने लाइफस्टाइल एक्सपर्ट व पूर्व असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. एचके खरबंदा ने। उन्होंने बताया कि ग्रीन पटाखों में इन केमिकल की तुलना में 20 से 30 प्रतिशत तक कम प्रदूषण होता है। यही वजह है कि नीरी ग्रीन पटाखों के उत्पादन के पक्ष में है। इसलिए उत्पादकों को ग्रीन पटाखों के लोगो अनिवार्य रूप से लगाने के आदेश दिए हैं।
ग्रीन पटाखे न सिर्फ आकार में छोटे होते हैं, बल्कि इन्हें बनाने में रॉ मैटीरियल (कच्चा माल) का भी कम इस्तेमाल होता है। इन पटाखों में पार्टिक्यूलेट मैटर का विशेष ख्याल रखा जाता है ताकि धमाके के बाद कम से कम प्रदूषण फैले। ग्रीन क्रैकर्स से करीब 20 प्रतिशत पार्टिक्यूलेट मैटर निकलता है जबकि 10 प्रतिशत गैसें उत्सर्जित होती है। ये गैसें पटाखे की संरचना पर आधारित होती हैं। ग्रीन पटाखों के बॉक्स पर बने क्यूआर कोड को NEERI नाम के एप से स्कैन करके इनकी पहचान की जा सकती है।