आलाकमान से कोई वैर नहीं, पायलट तेरी खैर नहीं – क्या सच ?
राजस्थान कांग्रेस में संकट कम होने का नाम नहीं ले रहा है। गहलोत गुट के कई विधायकों के इस्तीफा देने की खबर से हड़कंप मच गया है, विधायक दल की बैठक रद्द हो गई है। राजस्थान में सियासी ड्रामा शुरू है। गहलोत गुट के कई विधायक इस्तीफा देने की बात कर रहे हैं। ऐसे में ये तय माना जा रहा है कि गहलोत भले ही सीएम पद से इस्तीफा दें लेकिन वह अपने ही नजदीकी किसी नेता को सीएम पद पर बैठाने की फिराक में हैं। साथ ही आलाकमान से कोई वैर नहीं, पायलट तेरी खैर नहीं का नारा लगाया।
- विधायक दल की बैठक अब 19 अक्टूबर के बाद होगी
- जब तक कांग्रेस अध्यक्ष का फैसला नहीं हो जाता, तब तक कोई भी प्रस्ताव पारित नहीं होगा
- जो सीएम बनेगा वह 102 विधायकों में से ही हो। यानी पायलट गुट से सीएम मंजूर नहीं
सारिका तिवारी (राजनैतिक विश्लेषक), डेमोक्रेटिक फ्रंट, नयी दिल्ली/जयपुर :
राजस्थान में सियासत पल-पल बदल रही है। गहलोत गुट के विधायक प्रदेश की कमान सचिन पायलट को देने की चर्चा से नाराज हैं। करीब 92 विधायकों ने इस्तीफा तक दे दिया है। मल्लिकार्जुन खड़गे और अजय माकन बतौर पर्यवेक्षक राजस्थान में डेरा डाले हुए हैं। सूबे में मची सियासी उठापटक पर अजय माकन का बयान सामने आया है। उन्होंने कहा, मल्लिकार्जुन खड़गे और मैं यहां एआईसीसी पर्यवेक्षकों के रूप में सीएम की सुविधा के मुताबिक उनके आवास पर बैठक करने आए थे। जो विधायक हमसे बात करने नहीं आए उन्हें हम लगातार बात करने को कह रहे हैं।
माकन ने कहा, “पार्टी विधायकों की बैठक मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से पूछकर उनके आवास पर रखी गई थी। उन्होंने कहा कि बैठक शाम 7 बजे हो, लिहाजा उनकी सहूलियत के हिसाब से इसको तय किया गया. जो विधायक नहीं आए, उनको हम लगातार कह रहे हैं कि मैं और मल्लिकार्जुन खड़गे उनकी बात वन टू वन सुनेंगे। फिलहाल कोई फैसला नहीं हो रहा है। जो आप आप कहेंगे, वो हम जाकर दिल्ली बताएंगे।”
कांग्रेस के विधायक दल की बैठक से पहले गहलोत खेमे के विधायक और मंत्रियों का रुख साफ होने के बाद ताजा हालात पर चर्चा के लिए सीएम गहलोत होटल मेरियट पहुंच गए हैं. होटल मेरियट दोनों पर्यवेक्षक अजय माकन और मल्लिका अर्जुन खड़गे से ताजा हालात पर चर्चा कर रहे हैं।
मंत्री मेघवाल बोले-गहलोत ही रहेंगे सीएम
इससे पहले मंत्री गोविंद मेघवाल ने बड़ा बयान देते हुए कहा कि अशोक गहलोत ही मुख्यमंत्री बने रहे। अभी गहलोत ने अध्यक्ष का नामांकम नहीं भरा हैं। ऐसे में अभी रायशुमारी करने की क्या जरूरत पड़ गई। जिन विधायकों ने संकट में साथ दिया, अब उनके मन में क्या बीत रही होगी। धारीवाल के बंगले पर सभी मुद्दों पर चर्चा करेंगें.सियासी उठापटक के बीच विधायक गिर्राज सिंह मलिंगा का बड़ा बयान सामने आया है। गिर्राज सिंह मलिंगा ने कहा कि शांति धारीवाल के निवास पर मीटिंग का कोई औचित्य नहीं है। जब आलाकमान ने भेजे हैं पर्यवेक्षक तो उससे पहले मीटिंग करने का क्या मतलब।
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आलाकमान के संदेशवाहक- खड़े रहे, सुन नहीं पाए
केंद्रीय पर्यवेक्षक खड़गे व अजय माकन एक होटल में बैठे रहे। गहलोत ने उनसे मुलाकात की। बतौर प्रभारी माकन की भूमिका सवालों में है। संवादहीनता का फल था कि सियासी ड्रामे के बाद विधायकों ने माकन से बात करने से मना कर दिया।
- माकन ने सीएमआर में प्रतिनिधिमंडल से कहा- किसने बताया कि पायलट को सीएम बना रहे हैं? हम सिर्फ राय लेने आए हैं। बिना गहलोत व विधायकों की राय के कोई भी फैसला नहीं लिया जाएगा।
- खड़गे ने कहा- जो भी विधायकों ने किया, वह गलत है।
रविवार दाेपहर को गहलोत ने जैसलमेर में तनोट माता के दर्शन किए। कहा- मैंने सोनिया गांधी को 9 अगस्त को ही इस्तीफे की पेशकश कर दी थी। नया सीएम वही बनेगा, जो अगले चुनाव में सरकार बना सके।
विधायकों की 3 शर्तें
- विधायक दल की बैठक अब 19 अक्टूबर के बाद होगी।
- जब तक कांग्रेस अध्यक्ष का फैसला नहीं हो जाता, तब तक कोई भी प्रस्ताव पारित नहीं होगा।
- जो सीएम बनेगा वह 102 विधायकों में से ही हो। यानी पायलट गुट से सीएम मंजूर नहीं।
ये हालात राष्ट्रपति शासन की ओर इशारा : भाजपा
उपनेता प्रतिपक्ष राजेंद्र राठौड़ बोले- कांग्रेस के वीर विधायकों को वास्तव में त्यागपत्र देना है तो विधानसभा के नियम एवं प्रक्रियाओं के नियम 173 के अंतर्गत अपना इस्तीफा स्पीकर को सौंपें। राजस्थान के हालात राष्ट्रपति शासन की ओर इशारा कर रहे हैं। सीएम भी इस्तीफा दें। सीएम को भी इस्तीफा दे देना चाहिए।
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गहलोत समर्थकों ने आलाकमान के खिलाफ खुला मोर्चा क्यों खोला?
– गहलोत समर्थक विधायकों को लगता है कि पार्टी ने सीएम पद के लिए सचिन पायलट का नाम तय कर दिया है। अब मीटिंग सिर्फ औपचारिकता रह गई है। कैबिनेट मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास ने भी कहा कि जिसने 2020 में पार्टी तोड़ने की कोशिश की, उन्हें सीएम बनाना स्वीकार नहीं है। ऐसे में यह विरोध सीधे आलाकमान के फैसले का है।
क्या बगावत का अर्थ है कि आलाकमान पायलट के नाम पर मुहर लगा चुका है? बगावत के बाद भी क्या पायलट को सीएम बनाया जाएगा?
– यह बगावत सीधे तौर पर पायलट के खिलाफ है। विधायकों ने आलाकमान को बता दिया है कि उनकी राय नहीं मानेंगे। क्योंकि, सरकार पर संकट के समय जाे 102 विधायक पार्टी के साथ थे, उनको पार्टी में पद या सत्ता में मौका मिलना चाहिए। ऐसे में बड़ा सवाल है कि पायलट के नाम पर कैसे सहमित बनेगी? यदि फिर बगावत से बचने के लिए आलाकान दूसरा रास्ता चुनता है तो सीएम पद के लिए दो विकल्प हैं-
- गहलोत अध्यक्ष पद के लिए नामांकन ही न भरें और सीएम बने रहें। अध्यक्ष बने तो खुद सीएम पद छोड़ने की बात कह चुके हैं।
- तीसरे नाम पर सहमति बन सकती है। स्पीकर सीपी जोशी व प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा सीएम बन सकते हैं। ऐसा हुआ तो पायलट को दूसरी बार बड़ा झटका लगेगा।
- बगावत के बाद क्या सरकार संकट में आ गई है?
सरकार पर संकट तय है। अगर गहलोत गुट को मनाया जाता है तो फिर पायलट गुट में नाराजगी बढ़ेगी। पार्टी के लिए यह बड़ी खराब स्थिति है। वह भी उन हालात में जब राहुल 2024 की तैयारी के चलते भारत जोड़ो यात्रा निकाल रहे हैं।
क्या स्पीकर इस्तीफे स्वीकार करेंगे? क्या भाजपा फ्लोर टेस्ट की मांग कर सकती है?
– विधायकों ने सामूहिक इस्तीफा दिया है। इसमें लिखा है- ‘मैं अपनी इच्छा से इस्तीफा दे रहा हूं।’ तय है कि स्पीकर इसे जल्दी स्वीकार नहीं करेंगे। विधायकों को उनकी बात रखने का मौका मिलेगा। हालांकि, इतने इस्तीफों के बाद भाजपा फ्लोर टेस्ट की मांग जरूर कर सकती है।
गहलोत को बगावत से क्या मिलेगा? छवि पर क्या असर पड़ेगा? अध्यक्ष का चुनाव लड़ेंगे?
– गहलोत को गांधी परिवार का सबसे भरोसेमंद माना जाता है। वे राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए पार्टी आलाकमान के पसंदीदा चेहरे हैं। नए सीएम को लेकर फैसले से पहले उनके समर्थकों का शक्ति प्रदर्शन उनकी ताकत जरूर दर्शाता है। लेकिन बगावत से उनकी छवि पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। अब तक वह पायलट गुट को सियासी संकट का जिम्मेदार बताते हैं। अब उन्हीं के समर्थकों ने वैसी स्थिति खड़ी कर दी है। उनके गुट के विधायक अध्यक्ष का चुनाव लड़ने के खिलाफ हैं। गहलोत ने उनकी बात मानी तो संभव है कि वे नामांकन न भरें। वे पहले भी कह चुके- मैं अध्यक्ष नहीं बनना चाहता।
क्या राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव टलेंगे?
नहीं टलेंगे। लेकिन यह जरूर बात आ रही है कि शायद गहलोत राष्ट्रीय अध्यक्ष बनना नहीं चाहते थे। सीएम की कुर्सी ही उनकी पसंद रही होगी। यह भी एक कारण हो सकता है कि पार्टी में अब टूट की स्थिति देखने को मिल रही है।
अपने संघर्ष के लिए जूझ रही कांग्रेस के लिए कितना बड़ा झटका है?
कांग्रेस की सरकार अब दो ही राज्यों में रह गई है। राजस्थान ही सबसे बड़ा राज्य है। पंजाब में आलाकमान के फैसलों की वजह से ऐसी स्थिति बनी। पार्टी सत्ता से बाहर ही नहीं हुई बल्कि अधिकांश नेता पार्टी छोड़ कर चले गए। अगर राजस्थान में विधायक इस्तीफा वापस नहीं लेते हैं तो पार्टी के लिए अगले चुनाव तक संभलना मुश्किल होगा। रिपीट-2023 की मुहिम को बड़ा झटका है।