छोटा परिवार – दुःखी परिवार

अजय नारायण शर्मा ‘अज्ञानी’, डेमोरेटिक फ्रंट। अध्यातम डेस्क :

सुनने में भला ही अजीब लग रहा हो लेकिन यह सत्य है।

      छोटे परिवार के कारण भविष्य में चाचा, ताऊ, मौसी, बुआ जैसे रिश्ते समाप्त हो जायेंगे। हमारी पीढ़ी अंतिम पीढ़ी है जिसके पास ये रिश्ते हैं।

       पहले संयुक्त परिवार होते थे तो बच्चों की देखभाल भी अच्छी होती थी और उन्हें संस्कार भी अच्छे मिलते थे। घर के बुजुर्ग बच्चों के सहारे और घर के बच्चे बुजुर्गो के सहारे अपना समय व्यतीत कर लेते थे। किसी की नौकरी भी छूट जाती या कोई बीमार पड़ जाता तो सब मिलकर उसकी पत्नी – बच्चों की देखभाल कर लेते थे।

       अधिक संतानें होती थी तो कोई फौज में जाकर देश की सेवा करता, कोई संन्यासी बनकर धर्म की सेवा करता, कोई खेतों में अन्न उगाता इस प्रकार सब मिलजुलकर परिवार, देश और धर्म की व्यवस्था संभालते। कभी किसी एक के साथ कोई अनहोनी हो जाती तो दुःख से उबरा जा सकता था। बाकी संतानों के सहारे जीवन व्यतीत कर लेते थे।

      आज बहुत से ऐसे उदाहरण मिल रहे हैं कि किसी के एक या दो बेटे थे या एक बेटा एक बेटी थी। बच्चे के बड़े होने के बाद दुर्घटनावश किसी की मृत्य हो जाती है तो पूरी जिंदगी माता पिता को अकेले गुजारनी पड़ती है। अधिक उम्र में और संतान उत्पत्ति की संभावना भी नहीं रहती। हम जो पेड़ लगाते हैं वह भी सभी नहीं पनप पाते। ईश्वर की इच्छा को कोई नहीं जान पाता। बच्चे हमारा भविष्य होते है।

हमारा भविष्य सुरक्षित रहे इसके लिए कम से कम तीन संताने तो अवश्य होनी चाहिए।  बाकी हरी इच्छा 🙏