भारत सरकार की नीतियों से तंग आकर देशव्यापी 1 लाख ईंट भट्ठा बंदी की घोषणा।

करणीदानसिंह राजपूत, डेमोक्रेटिक फ्रंट, श्रीगंगानगर :

 एक ईंट भट्ठे पर करीब डेढ दो सो स्त्री पुरूष मजदूरी करते हैं। इसके अलावा अन्य स्टाफ होता है। इससे लाखों परिवारों पर रोजगार का संकट हो जाएगा। इसके अलावा ढुलाई कार्य में भी लाखों लोगों पर संकट होगा। भवन निर्माण पर संकट होगा। ईंटभट्ठे बंद होने से बहुत उथल पुथल होगी। भारत में हजारों सालों से मिट्टी की ईंट को ही भवन निर्माण में सर्वोत्तम माना जाता रहा है। इसी पर लोगों का भरोसा है। 

अखिल भारतीय ईंट एवं टाइल निर्माता महासंघ ने देशव्यापी ईंट भट्ठा बंदी की घोषणा कर दी है।  नई दिल्ली में महासंघ की 23 जून 2022 को पूरे दिन चली बैठक  में देर शाम ऐलान किया गया कि आगामी सीजन के लिए ईंट भट्ठों के मालिक ना तो कोयला अथवा बायोवेस्ट (सरसों का गूणा/ तूडी) खरीदेंगे और ना ही अनुबंध कर श्रमिकों को अग्रिम भुगतान करेंगे। 

महासंघ की राजस्थान इकाई के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष और राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष रतन गणेशगढ़िया ने सरकारी नीतियों के अलावा अन्य जानकारी में  बताया कि नई दिल्ली में महासंघ कार्यालय इंडिया हैबिटेट सेंटर में सभी प्रदेशों के अध्यक्षों, महामंत्रियों और कार्यकारिणी सदस्यों ने ईंट भट्ठा उद्योग की विभिन्न समस्याओं पर विचार विमर्श कर संपूर्ण भारत में अगले सीजन 2022-23 में हड़ताल पर जाने का फैसला किया। 

ईंट भट्टों की विभिन्न समस्याओं का सरकार के स्तर पर समाधान होने तक यह हड़ताल जारी रहेगी। संपूर्ण भारत वर्ष में किसी भी भट्ठा मालिक द्वारा अगले सीजन के लिए ना तो कोयला/बायोवेस्ट खरीदा जाएगा और ना ही श्रमिकों को एडवांस भुगतान किया जाएगा।राष्ट्रीय महामंत्री ओमवीरसिंह भाटी के अनुसार सभी प्रदेश इकाइयों के अध्यक्षों तथा महामंत्रियों से इस हड़ताल को सफल बनाने के लिए प्रदेश और जिला स्तर पर भट्ठा मालिकों से संपर्क करने और उनकी बैठकें करने के निर्देश दिए गए हैं।

 राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष रतन गणेशगढ़िया ने बताया कि सरकार द्वारा पिछले कुछ समय से ईंट भट्ठा के लिए प्रदूषण नियंत्रण संबंधी आए रोज नए-नए नियम बनाकर लागू करने के निर्देश दिए जा रहे हैं। इससे भट्ठा मालिक दुविधा में हैं। वे एक निर्देश का पालन करते हैं तो कुछ दिन बाद नया निर्देश दे दिया जाता है। निर्देशों का पालन करने में ही भट्ठा मालिक उलझे रहते हैं। ईंट भट्ठों के प्रति सरकार की पर्यावरण संबंधी नीति स्पष्ट न होने से भट्ठों को चला पाना मुश्किल हो रहा है।यही नहीं सरकार ने जीएसटी की दर भी 1 प्रतिशत से बढ़ाकर 6 प्रतिशत कर दी है। इसमें भी रिवर्स चार्ज मेकैनिज्म (आरसीएम) का एक  प्रावधान किया है। इसमें भट्ठा मालिकों को निर्देश दिए गए हैं कि वे अपंजीकृत संस्थाओं से श्रमिकों को रखते हैं तथा कोयला/ बायोवेस्ट आदि वस्तुएं खरीदते हैं तो इसका टैक्स उनको ही देना पड़ेगा। यह प्रावधान सरासर ईंट भट्ठा मालिकों/संचालकों की आर्थिक रूप से कमर तोड़ देने वाला है। लिहाजा सर्वसम्मति से निर्णय लिया गया है कि आगामी एक  अक्टूबर से शुरू होने वाले नए सीजन के लिए ना तो लेबर से एग्रीमेंट किया जाएगा और ना ही भट्ठे चलाने के लिए आवश्यक सामग्री की खरीद की जाएगी। 

रतन गणेशगढ़िया के अनुसार देश भर में लगभग एक लाख भट्ठे हैं। राजस्थान में भट्ठों की संख्या लगभग तीन हजार है। श्रीगंगानगर और हनुमानगढ़ जिलों में 800 से अधिक भट्ठे हैं। इन पर हजारों श्रमिक परिवार काम करते हैं। मौजूदा सीजन 30 जून को समाप्त हो रहा है।बरसाती सीजन के 3 महीनों- जुलाई,अगस्त और सितंबर में ईंट भट्ठे बंद रहते हैं। हर वर्ष एक अक्टूबर से नया सीजन शुरू किए जाने से पहले ही अगस्त और सितंबर में लेबर से एग्रीमेंट कर भुगतान किया जाता है। इन्हीं महीनों में सीजन के लिए सरसों का गूणा (बायोवेस्ट) आदि सामग्री की भी खरीद की जाती है। 

आगामी नए सीजन में भट्टे शुरू नहीं हुए तो देशभर में हजारों- लाखों ईंट भट्ठा श्रमिक परिवारों के लिए रोजी रोटी का बड़ा संकट उत्पन्न हो जाएगा। सरकारी और गैर सरकारी विकास तथा निर्माण कार्य रुक सकते हैं।उल्लेखनीय है कि सरकार की अनेक प्रकार की विसंगतिपूर्ण नीतियों, आदेशों तथा निर्देशों से तंग आए हुए ईंट भट्ठा मालिक  दो-तीन वर्षों से संघर्षरत हैं। उन्होंने हर प्रकार से इन समस्याओं का सामना करने की कोशिश की लेकिन अब महासंघ का कहना है कि पानी सिर तक आ गया है। आखिरकार मजबूर होकर देशव्यापी ईंट भट्ठा बंदी का ऐलान करना पड़ा।