मोहिनी एकादशी व्रत कथा

सनातन धर्म पंचांग के अनुसार हर महीने में दो बार एकादशी तिथि आती है, एक कृष्ण पक्ष में और एक शुक्ल पक्ष में। इस प्रकार पूरे साल में 24 एकादशी तिथि पड़ती हैं।  वैशाख माह में शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली एकादशी को मोहिनी एकादशी के नाम से जाना जाता है। भगवान विष्णु ने वैशाख शुक्ल एकादशी को मोहिनी स्वरूप धारण किया था। इसलिए इस दिन श्रद्धालु भगवान विष्णु के मोहिनी स्वरुप की पूजा कर व्रत रखते हैं। इस व्रत को करने से सभी दु:ख और पाप से मुक्ति मिलती है। ऐसी मान्यता है कि व्रत की कथा का पाठ करने मात्र से ही 1000 गायों के दान करने के बराबर पुण्य मिलता है। 

राजविरेन्द्र वशिष्ठ, डेमोक्रेटिक फ्रंट, धर्म /संस्कृति डेस्क, चंडीगढ़:

पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब देवताओं और असुरों के बीच समुद्र मंथन किया गया तो उससे अमृत कलश की प्राप्ति हुई। देवता और दानव दोनों ही पक्ष अमृत पान करना चाहते थे, जिसकी वजह से अमृत कलश की प्राप्ति को लेकर देवताओं और असुरों में विवाद छिड़ गया। 

विवाद की स्थिति इतनी बढ़ने लगी कि युद्ध की तरफ अग्रसर होने लगी। ऐसे में इस विवाद को सुलझाने और देवताओं में अमृत वितरित करने के लिए भगवान विष्णु ने एक सुंदर स्त्री का रूप धारण किया। इस सुंदर स्त्री का रूप देखकर असुर मोहित हो उठे। इसके बाद मोहिनी रूप धारण किए हुए विष्णु जी ने देवताओं को एक कतार में और दानवों को एक कतार में बैठ जाने को कहा और देवताओं को अमृतपान करवा दिया। अमृत पीकर सभी देवता अमर हो गए। 

पौराणिक मान्यता के अनुसार, जिस दिन भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण किया था, उस दिन वैशाख मास की शुक्ल एकादशी तिथि थी। इस दिन विष्णु जी ने मोहिनी रूप धारण किया था, इसलिए इस दिन को मोहिनी एकादशी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु के मोहिनी रूप की पूजा की जाती है।

धार्मिक मान्यता के अनुसार, मोहिनी एकादशी का व्रत करने वाले व्यक्ति को मोह के बंधन से दूर होने और मोक्ष पाने में मदद मिलती है। इस व्रत के प्रभाव से व्यक्ति सभी पापों से मुक्त हो जाता है। मान्यता है कि इस दिन व्रत कथा का पाठ या श्रवण करने से एक हजार गायों के दान के बराबर पुण्य की प्राप्ति होती है।

भगवान श्रीकृष्ण ने महाभारत के युद्ध में अर्जुन को न सिर्फ हथियार उठाने के लिए प्रेरित किया, बल्कि रणभूमि से योगेश्वर श्रीकृष्ण ने गीता का जो संदेश दिया वो आज भी जगत के जनमानस का मार्गदर्शन करता है। जीवन से सुख-दुख, विपदा और खुशी को उन्होंने गीता रुपी माला में श्लोकों के मोती बनाकर पिरोया और इस अनमोल माला को मानवमात्र के पथप्रदर्शन के लिए समर्पित कर दिया।

श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का संदेश दिया तो धर्मराज युधिष्ठिर को उन्होंने जीवन को बेहतर तरीके से जीने और समृद्धि के सूत्र बताए थे। भगवान श्रीकृष्ण के इन सूत्रों को आत्मसात कर आप भी अपने जीवन को सुखी, समृद्ध और खुशहाल बना सकते हैं। श्रीकृष्ण ने युधिष्ठिर से बेहतर जीवन के लिए घर में पांच वस्तुओं को रखने की बात कही थी।

एक बार युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से मोहिनी एकादशी व्रत के महत्व के बारे में बताने को कहा। तब भगवान श्रीकृष्ण ने बताया कि मोहिनी एकादशी व्रत वैशाख शुक्ल एकादशी व्रत को कहते हैं. इसकी कथा इस प्रकार है।

सरस्वती नदी के किनारे भद्रावती नाम का एक नगर था। जहां पर एक धनपाल नाम का वैश्य रहता था, जो धन-धान्य से परिपूर्ण था। वह सदा पुण्य कर्म में ही लगा रहता था। उसके पांच पुत्र थे। इनमें सबसे छोटा धृष्टबुद्धि था। वह पाप कर्मों में अपने पिता का धन लुटाता रहता था। एक दिन वह नगर वधू के गले में बांह डाले चौराहे पर घूमता देखा गया। इससे नाराज होकर पिता ने उसे घर से निकाल दिया तथा बंधु-बांधवों ने भी उसका साथ छोड़ दिया।

वह दिन-रात दु:ख और शोक में डूब कर इधर-उधर भटकने लगा। एक दिन वह किसी पुण्य के प्रभाव से महर्षि कौण्डिल्य के आश्रम पर जा पहुंचा। वैशाख का महीना था। कौण्डिल्य गंगा में स्नान करके आए थे। धृष्टबुद्धि शोक के भार से पीड़ित हो मुनिवर कौण्डिल्य के पास गया और हाथ जोड़कर बोला,  ब्राह्मण ! द्विजश्रेष्ठ ! मुझ पर दया कीजिए और कोई ऐसा व्रत बताइए जिसके पुण्य के प्रभाव से मेरी मुक्ति हो।’

तब ऋषि कौण्डिल्य ने बताया कि वैशाख मास के शुक्लपक्ष में मोहिनी नाम से प्रसिद्ध एकादशी का व्रत करो। इस व्रत के पुण्य से कई जन्मों के पाप भी नष्ट हो जाते हैं। धृष्टबुद्धि ने ऋषि की बताई विधि के अनुसार व्रत किया।  जिससे वह निष्पाप हो गया और दिव्य देह धारण कर श्री विष्णुधाम को चला गया।