‘माता सीता जयंती ‘ : वैशाख माह की शुक्ल पक्ष की नवमी
हर साल वैशाख माह की शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को माता सीता का प्राकट्य दिवस मनाया जाता है। इस दिन को सीता नवमी और जानकी जयंती के नाम से जाना जाता है। शास्त्रों में सीता नवमी का महत्व भी राम नवमी के समान ही बताया गया है। इस बार सीता नवमी का पर्व 10 मई को पड़ रहा है। सीता नवमी को रामनवमी की तरह विशेष माना जाता है। इस दिन मां सीता और भगवान श्रीराम की पूजा करने से हर तरह के संकटों से मुक्ति मिलती है।
राजविरेन्द्र वशिष्ठ, डेमोक्रेटिक फ्रंट, धर्म /संस्कृति डेस्क, चंडीगढ़:
सनातन धर्म के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को सीता नवमी मनाई जाती है। इस साल ये पर्व 10 मई को आ रहा है। इसे भगवान श्रीराम की पत्नी सीता का प्राकट्य दिवस माना जाता है। कहते हैं कि मां सीता ने इसी दिन धरती पर अवतरण लिया था। सीता नवमी के दिन महिलाएं व्रत रखती हैं और श्रीराम एवं सीता की पूजा करती हैं। कहते हैं कि इस दिन व्रत रखने से 16 महान दान का फल मिलता है। आइए जानते हैं क्यों मनाई जाती है सीता नवमी और क्या है मां सीता से जुड़ी पौराणिक कथा?
नेपाल में खासकर इस पर्व को बड़े उत्साह से मनाया जाता है। नेपाल के जानकी मंदिर में इस दिन बहुत बड़ा आयोजन किया जाता है। कहा जाता है कि आज के दिन ही माता सीता भूमि के गर्भ से प्रकट हुई थी और इसी कारण इसे जानकी जयंती के नाम से जाना जाता है।
रामायण में ये कथा बहुत प्रसिद्द है कि एक बार जब जनकपुरी में भयानक अकाल पड़ा तो ऋषियों ने राजा जनक को भूमि यज्ञ करने की सलाह दी ताकि वर्षा हो सके। यज्ञ के पश्चात राजा जनक को स्वर्ण के हल से पृथ्वी को जोतना था। जब वे ऐसा कर रहे थे तो उनका हल एक जगह अटक गया। जब उस जगह को खोदा गया तो वहां से एक कन्या का प्राकट्य हुआ जिसे राजा जनक ने अपनी पुत्री के रूप में स्वीकार किया। उनकी पुत्री होने के कारण उस कन्या का नाम जानकी पड़ा और चूँकि उनका प्रादुर्भाव भूमि के खुदाई (सीतने) के कारण हुआ था, उनका एक नाम सीता भी पड़ा। बचपन में ही सीता ने भगवान् शिव का महान पिनाक धनुष उठा लिया था जिसे कभी कोई हिला भी नहीं पाया था। इसे देख कर राजा जनक ने सीता के स्वयंवर में ये शर्त रखी कि जो योद्धा पिनाक पर प्रत्यञ्चा चढ़ा देगा उसी से सीता का विवाह किया जाएगा। सभी राजाओं के असफल होने के बाद अंततः श्रीराम ने धनुष को भंग कर सीता से विवाह किया।
कम्ब रामायण के अनुसार सीता पिछले जन्म में वेदवती नाम की कन्या थी जो भगवान् विष्णु को अपने पति के रूप में पाने के लिए तपस्या कर रही थी। एक बार रावण घूमते हुए वहाँ आया और वेदवती की सुंदरता पर मुग्ध हो गया। वेदवती द्वारा रावण का प्रणय निवेदन अस्वीकार करने के बाद रावण ने उसके साथ दुष्कर्म करना चाहा जिससे बचने के लिए उसने यज्ञ-कुंड में कूद कर अपने प्राण त्याग दिए। उसके इस त्याग के कारण भगवान नारायण ने उसे वरदान दिया कि अगले जन्म में वो उन्हें पति के रूप में पा सकेगी। मृत्यु से पहले उसने रावण को श्राप दिया कि अगले जन्म में वो उसकी मृत्यु का कारण बनेगी। साथ ही उसने ये श्राप भी दिया कि अगर आज के पश्चात रावण किसी भी स्त्री के साथ बिना उसकी इच्छा के रमण करेगा तो तत्काल उसकी मृत्यु हो जाएगी। यही कारण था कि रावण ने सीता का हरण करने के बाद भी उसके साथ कोई दुर्व्यहवार नहीं किया। कई मान्यताओं के अनुसार, सीता रावण की पुत्री थी जिसके जन्म के तुरंत बाद रावण ने अनिष्ट की आशंका से उसका त्याग कर दिया था क्यूँकि उसे आशंका थी कि वेदवती ही सीता का जन्म लेकर आयी है।
सीता नवमी की पौराणिक कथा के अनुसार मारवाड़ क्षेत्र में एक वेदवादी श्रेष्ठ धर्मधुरीण ब्राह्मण निवास करते थे। उनका नाम देवदत्त था। उन ब्राह्मण की बड़ी सुंदर रूपगर्विता पत्नी थी, उसका नाम शोभना था। ब्राह्मण देवता जीविका के लिए अपने ग्राम से अन्य किसी ग्राम में भिक्षाटन के लिए गए हुए थे। इधर ब्राह्मणी कुसंगत में फंसकर व्यभिचार में प्रवृत्त हो गई। जब उसकी मृत्यु हुई तो उसका अगला जन्म चांडाल के घर में हुआ। पति का त्याग करने से वह चांडालिनी बनी, ग्राम जलाने से उसे भीषण कुष्ठ हो गया तथा व्यभिचार-कर्म के कारण वह अंधी भी हो गई। अपने कर्म का फल उसे भोगना ही था। इस प्रकार वह अपने कर्म के योग से दिनों दिन दारुण दुख प्राप्त करती हुई देश-देशांतर में भटकने लगी। एक बार दैवयोग से वह भटकती हुई कौशलपुरी पहुंच गई। संयोगवश उस दिन वैशाख मास, शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि थी। उस पवित्र दिन भूख-प्यास से व्याकुल वह दुखियारी लोगों से भोजन के लिए प्रार्थना करने लगी।
रोते-रोते वह स्त्री श्री कनक भवन के सामने बने एक हजार पुष्प मंडित स्तंभों से गुजरती हुई उसमें प्रविष्ट हुई। जहाँ एक भक्त ने उससे कहा- देवी! आज तो सीता नवमी है, भोजन में अन्न देने वाले को पाप लगता है, इसीलिए आज तो अन्न नहीं मिलेगा। कल पारणा करने के समय आना किंतु वह नहीं मानी। अधिक कहने पर भक्त ने उसे तुलसी एवं जल प्रदान किया। वह पापिनी भूख से मर गई। किंतु इसी बहाने अनजाने में उससे सीता नवमी का व्रत पूरा हो गया। व्रत पूरा होने से देवी ने उसे समस्त पापों से मुक्त कर दिया। इस व्रत के प्रभाव से वह पापिनी निर्मल होकर स्वर्ग में आनंदपूर्वक अनंत वर्षों तक रही। तत्पश्चात् वह कामरूप देश के महाराज जयसिंह की महारानी काम कला के नाम से विख्यात हुई। उसने अपने राज्य में अनेक देवालय बनवाए, जिनमें जानकी-रघुनाथ की प्रतिष्ठा करवाई।
अत: सीता नवमी पर जो श्रद्धालु माता जानकी का पूजन-अर्चन करते है, उन्हें सभी प्रकार के सुख-सौभाग्य प्राप्त होते हैं। श्रीजानकी नवमी पर श्रीजानकी जी की पूजा, व्रत, उत्सव, कीर्तन करने से उन परम दयामयी श्रीमती सीता जी की कृपा हमें अवश्य प्राप्त होती है तथा इस दिन जानकी स्तोत्र, रामचंद्रष्टाकम्, रामचरित मानस आदि का पाठ करने से मनुष्य के सभी कष्ट दूर हो जाते हैं।