पंजाब में चुनावों पर आलाकमान के फैसले पर टिकी कॉंग्रेस
पंजाब विधानसभा चुनाव 2022 के लिए कांग्रेस के आलाकमान ने सीएम के चेहरे का ऐलान करने का फैसला कर लिया है। इसके बाद राज्य में अटकलबाजी का एक नया दौर शुरू हो गया है। पीसीसी अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू और सीएम चरणजीत सिंह चन्नी दोनों ही सीएम चेहरे की रेस में हैं। दोनों नेताओं ने सार्वजनिक मंच से इस बात को स्वीकार किया है कि सीएम चेहरे को लेकर कांग्रेस आलाकमान जो भी फैसला करेगा, वो उन्हे मंजूर होगा।
संवाददाता चंडीगढ़, डेमोरेटिक फ्रंट :
पंजाब में कांग्रेस पार्टी ने घोषणा कर दी है कि छह फरवरी को राहुल गांधी मुख्यमंत्री का चेहरा घोषित कर देंगे। मुख्यमंत्री का चेहरा बनने के लिए कांग्रेस के पंजाब प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू ने अथक मेहनत की है। उन्होंने हर मंच पर पंजाब माडल को भी पेश किया। ईमानदारी का ढोल भी जमकर पीटा। पार्टी की तरफ से यह संकेत मिल रहे हैं कि चरणजीत सिंह चन्नी ही मुख्यमंत्री का चेहरा बनेंगे। इस घोषणा में भले ही अभी एक दिन का समय पड़ा हो, लेकिन चर्चा यह है कि कांग्रेस ने अगर सिद्धू को मुख्यमंत्री का चेहरा नहीं बनाया तो गुरु क्या करेंगे? सिद्धू पहले ही सबसे कड़े चुनावी मुकाबले से जूझ रहे हैं। उनका सेलिब्रिटी स्टेटस भी इस चुनावी रण में गुम हो चुका है और ऐसे में अगर कांग्रेस का मुख्यमंत्री चेहरा बनने की लालसा नहीं पूरी होती है तो बात कुछ यूं कही जाएगी कि सबकुछ गंवा कर होश में आए तो क्या हुआ?
टी-20 में अगर सुपर ओवर हो तो उसका रोमांच ही अलग होता है। अगर ऐसा ही कुछ राजनीति में देखने को मिले तो फिर क्या बात है। ऐसा ही एक सुपर ओवर अमृतसर में पंजाब कांग्रेस प्रधान नवजोत सिंह सिद्धू और शिअद के वरिष्ठ नेता व पूर्व मंत्री बिक्रम सिंह मजीठिया के बीच खेला जा रहा है। इस मैच का परिणाम भले ही 10 मार्च को आएगा, लेकिन इसकी चर्चा चारों तरफ है। हो भी क्यों नहीं, क्योंकि मजीठिया ने अपने ‘नागपाश’ में नवजोत सिंह सिद्धू को फांस जो लिया है। मजीठिया पर सिद्धू हमेशा ही हमलावर रहे। वह उन्हें अपने सामने लड़ने के लिए ललकारते रहे। मजीठिया ने जब मजीठा और अमृतसर पूर्वी विधानसभा सीटों से नामांकन किया तो सिद्धू ने उन्हें ललकारा। अगर हिम्मत है तो केवल अमृतसर से लड़कर देखें। दो हलके से क्यों लड़ रहे हैं। अब सिद्धू को क्या पता था कि माझा का जरनैल मजीठा छोड़कर उन्हीं के हलके में डेरा डाल लेगा।
कांग्रेस के पूर्व पंजाब प्रधान सुनील जाखड़ अगर चुप रहते हैं तो भी परेशानी और बोलते हैं तो और ज्यादा परेशानी। जाखड़ भले ही चुनाव न लड़ रहे हों, लेकिन बोल जरूर रहे हैं। जो सवाल वह उठा रहे हैं, वे जख्म करके उस पर नमक छिड़कने के समान हैं। उनका मुख्यमंत्री न बनने का दर्द इतना गहरा है कि वह कांग्रेस के लिए नासूर बन रहा है। सवाल भी ऐसे हैं, जिनके जवाब कांग्रेस के पास हैं ही नहीं। हों भी कैसे, कांग्रेस की राजनीति में सबसे बड़ा पक्ष है धर्मनिरपेक्षता का। सुनील जाखड़ पार्टी की उसी धार्मिक कट्टरता का शिकार हो गए हैं। सुनील जाखड़ इसलिए मुख्यमंत्री नहीं बन पाए, क्योंकि उनके सिर पर पगड़ी नहीं है। यह मुद्दा और किसी ने नहीं बल्कि सोनिया गांधी की सबसे करीबी अंबिका सोनी ने उठाया। शुरुआत तो अंबिका सोनी ने कर दी, लेकिन अब खत्म कहां पर होगी, इसके बारे में किसी को कुछ नहीं पता है।
इस बार विधानसभा चुनाव में मर्यादा की सारी सीमाएं टूट रही हैं। कल कौन किस पार्टी में होगा, इसके बारे में किसी को कुछ नहीं पता। कुछ दिन पहले राहुल गांधी के साथ मंच सांझा करने वाले पंजाब कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष एचएस हंसपाल आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए हैं। पूरी जिंदगी भारतीय जनता पार्टी में बिताने वाले मदन मोहन मित्तल अपने बेटे अरविंद मित्तल के साथ शिरोमणि अकाली दल में शामिल हो गए। 30 वषों से अधिक समय तक कांग्रेस का दामन पकड़ कर चलने वाले जगमोहन कंग अपने दोनों बेटों के साथ आम आदमी पार्टी में शामिल हो गए। कंग और मित्तल की कहानी एक जैसी ही है। दोनों ही अपने बेटों के लिए टिकट मांग रहे थे। पार्टी ने टिकट दिया नहीं तो वषों पुरानी निष्ठा को छोड़ कर दूसरी पार्टी में शामिल हो गए। दूसरी पार्टी ने भी टिकट तो नहीं दिया, लेकिन बेटों के लिए इतना तो करना ही था। है न बात पते की।