हरियाणा सरकार प्रदेश के विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता का गला घोंट कर शिक्षा के क्षेत्र का राजनीतिकरण करने पर आमादा है: चन्द्र मोहन

हरियाणा के पूर्व उपमुख्यमंत्री चन्द्र मोहन ने आरोप लगाया है कि हरियाणा सरकार प्रदेश के विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता का गला घोंट कर शिक्षा के क्षेत्र का राजनीतिकरण करने पर आमादा है और विश्वविद्यालयों में एक विशेष पार्टी की विचारधारा को थोपना चाहती है जो लोकतंत्र के मूल्यों और परंपराओं के अनुरूप नहीं है।
चन्द्र मोहन हरियाणा सरकार के प्रदेश के विश्वविद्यालयों में द्वितीय श्रेणी एवं तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों की भर्ती हरियाणा पब्लिक सर्विस कमीशन और हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग द्वारा भर्ती किए जाने के फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि यह फैसला न केवल विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के निर्धारित मान दण्डो के विपरित है अपितु इन विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता के भी विरुद्ध है , जिस उद्देश्य के लिए इनका गठन किया गया है। इस प्रकार की परम्परा का प्रचलन करके उच्च शिक्षा के मन्दिरों की गरिमा को ठेस पहुंचाने का काम किया जा रहा है और अन्त में इस प्रक्रिया के जो दुष्प्ररिणाम सामने आएंगे उसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती है।
चन्द्र मोहन ने मांग की है कि इस अलोकतांत्रिक तरीके को थोपने के बारे में पुनर्विचार किया जाए और इन शिक्षण संस्थाओं को तबाह होने से बचाया जाए। उन्होंने कहा कि उच्च शिक्षण संस्थानों में पार्टी की नीतियों को लागू करने का यह फैसला उन होनहार विद्यार्थियों के भविष्य पर भी प्रश्न चिन्ह खड़ा करेगा जो लोकतंत्र के साथ साथ इन विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता पर अंकुश लगाए जाने के विरुद्ध हैं। उन्होंने कहा कि राज्य के विश्वविद्यालयों में असिस्टेंट प्रोफेसर से लेकर ग्रुप सी और ग्रुप डी की भर्तियों के सम्बन्ध में आए प्रदेश सरकार के फैसले का वह पुरजोर विरोध करते हैं और कर्मचारियों के भविष्य से खिलवाड़ करने की अनुमति कभी भी नहीं दी जा सकती है।
उन्होंने कहा कि एक तरफ केंद्र सरकार नयी शिक्षा नीति के अंतर्गत विश्वविद्यालयों को अधिक स्वायत्तता देने की पक्षधर है, वहीं प्रदेश सरकार विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता में अनावश्यक रूप से दखलअंदाजी कर रही है ।
चन्द्र मोहन ने कहा की हरियाणा बनने से लेकर आज तक विश्वविद्यालय जरूरत के अनुरूप भर्तियां करती आ रही हैं और इस प्रकार के राजनैतिक हस्तक्षेप से शिक्षा का स्तर सुधरने की अपेक्षा खराब होगा। इस लिए जनहित के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए इस फैसले को वापस लेकर शिक्षा के स्तर को बनाए रखने में सहयोग प्रदान करे और विश्वविद्यालयों की स्वायत्तता के साथ खिलवाड़ करना बंद करे।