दलित, मुस्लिम तुष्टीकरण में राजनैतिक भविष्य तलाशती कॉंग्रेस
बीजेपी से मुकाबले में लगातार पिछड़ती जा रही कांग्रेस अब अपने सियासी समीकरण को दुरुस्त करने की कवायद में जुट गई है। पहले पंजाब में दलित नेता चरणजीत चन्नी को मुख्यमंत्री बनाया और फिर उत्तराखंड में दलित सीएम का दांव चलने के बाद अब कांग्रेस गुजरात के दलित नेता जिग्नेश मेवाणी को पार्टी ने गले लगाया है। इस तरह से कांग्रेस अब बीजेपी से दो-दो हाथ करने के लिए पुन: अल्पसंख्यक और दलित एजेंडा सेट करती नजर आ रही है।
- कन्हैया कुमार भारतीय राजनीतिक कार्यकर्ता हैं, जिन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ के अध्यक्ष और अखिल भारतीय छात्र संघ के राष्ट्रीय नेता के रूप में कार्य किया। वह वर्तमान में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारी परिषद के सदस्य के रूप में कार्यरत थे।
- जिग्नेश मेवाणी एक वकील कार्यकर्ता और पूर्व पत्रकार हैं जो गुजरात विधानसभा में वडगाम निर्वाचन क्षेत्र के प्रतिनिधि के रूप में कार्यरत हैं। वह एक स्वतंत्र विधायक और राष्ट्रीय दलित अधिकार मंच के संयोजक हैं।
सारिका तिवारी, चंडीगढ़/ नयी दिल्ली :
कॉंग्रेस की द्विधा है की वह यह तय नहीं कर पा रही की उराजनीति करनी भी है या नहीं। दुविधाग्रस्त कॉंग्रेस अपना राजनीति भविष्य दलित और मुस्लिम तुष्टीकरण में तलाश रही है। एक पुरानी कहावत है कि राजनीति में कोई भी स्थायी शत्रु नहीं होता है। ताजा मामला जेएनयू के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष और CPI सदस्य कन्हैया कुमार और गुजरात के वडगाम से निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवाणी से जुड़ा हुआ है। कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवाणी आज (28 सितंबर) कांग्रेस ज्वाइन करने वाले हैं। ये दोनों युवा नेता हैं और इन्हें दक्षिणपंथी राजनीति का विरोध करने की वजह से देश में सुर्खियां मिलीं थीं।
कहा जा रहा है कि कन्हैया कुमार को कांग्रेस ज्वाइन कराने में चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने अहम भूमिका निभाई है। वह कुछ समय पहले जेडीयू के पूर्व नेता पवन वर्मा के आवास पर कन्हैया से मिले थे।
कांग्रेस में शामिल होने से क्या फर्क पड़ेगा:
कन्हैया और जिग्नेश युवा हैं और युवाओं के बीच काफी लोकप्रिय हैं। पीएम मोदी के खिलाफ कैंपेन में इन दोनों नेताओं के उतरने से कांग्रेस के लिए एक चुनावी माहौल तैयार होगा, जिसका फायदा कांग्रेस उठा सकती है। कहा जा रहा है कि इन दोनों नेताओं के महत्व को ना ही कम करके आंका जा सकता है और ना ही खारिज किया जा सकता है।
मेवाणी और कन्हैया कुमार हिंदुत्व की विचारधारा के खिलाफ बोल्ड तरीके से अपनी बात रखते हैं, ऐसे में ये दोनों कांग्रेस के लिए उपयोगी साबित हो सकते हैं। ऐसे में एंटी बीजेपी वोटरों के बीच कांग्रेस ये संदेश देने में भी कामयाब हो सकती है कि भाजपा की प्रमुख विरोधी पार्टी आज भी कांग्रेस ही है।
हालांकि, एक और तरह का वोटर है जिसके बीच मेवाणी और कुमार की मौजूदगी शायद ज्यादा काम न आए और इस वर्ग के बीच मेवाणी और कुमार सबसे अच्छे चेहरे भी नहीं हो सकते हैं।
इसका एक उदाहरण ये भी है कि एक युवा वोटर आर्थिक मोर्चे पर भाजपा से नाराज हो सकता है, लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा के मामलों में भाजपा का समर्थन भी करता है। ऐसे वोटरों को लुभाना मेवाणी और कुमार के लिए बड़ी चुनौती होगी।
कौन हैं कन्हैया कुमार:
कन्हैया कुमार बिहार के बेगूसराय के रहने वाले हैं और सीपीआई से प्रभावित परिवार से आते हैं। उन्होंने बेगूसराय से सीपीआई के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़ा था, लेकिन बीजेपी के गिरिराज सिंह से बड़े अंतर से हार गए थे। हालांकि, वह राष्ट्रीय जनता दल-कांग्रेस के उम्मीदवार से आगे रहे थे।
इसके बाद से उन्होंने बिहार में नागरिकता विरोधी (संशोधन) अधिनियम (CAA) के विरोध के दौरान कई रैलियों को संबोधित किया। हालांकि बिहार चुनाव अभियान के दौरान वह शांत दिखाई दिए।
अगले साल 2022 में यूपी, उत्तराखंड, पंजाब समेत कुल पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव होने है। ऐसे में कन्हैया कुमार और जिग्नेश मेवानी का साथ मिलना कांग्रेस को चुनावी रेस में कितना आगे ले जाता है, ये आगे की बात होगी।
बिहार से ताल्लुक रखने वाले जेएनयूएसयू के पूर्व अध्यक्ष कन्हैया कुमार देश विरोधी नारे लगाने के आरोप में शुरुआत से ही भाजपा सरकार के निशाने पर रहते हैं। बिहार में उनका अपना वोट बैंक है। आगामी 2024 में लोकसभा चुनाव और बिहार विधानसभा चुनाव में कन्हैया कुमार कांग्रेस के काफी काम आ सकते हैं।
ऐसी जानकारी मिली है कि गुजरात कांग्रेस के अध्यक्ष हार्दिक पटेल काफी दिनों से कन्हैया कुमार और गुजरात के निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवानी के संपर्क में है। सूत्रों से पता लगा है कि दोनों ने पार्टी में एंट्री के लिए अपनी सहमति दे दी है।
बिहार से ताल्लुक रखने वाले कन्हैया कुमार ने पिछले लोकसभा चुनाव में बिहार की बेगूसराय लोकसभा सीट से केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह के खिलाफ भाकपा के प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ा था, हालांकि वह हार गए थे। दूसरी तरफ, दलित समुदाय से ताल्लुक रखने वाले जिग्नेश गुजरात के वडगाम विधानसभा क्षेत्र से निर्दलीय विधायक हैं।
कौन हैं जिग्नेश मेवाणी:
जिग्नेश मेवाणी की राजनीति गुजरात के दलितों के बीच भाजपा के खिलाफ बढ़ रही नाराजगी से शुरू होती है। जिग्नेश मेवाणी इस समय उत्तरी गुजरात में बनासकांठा जिले के वडगाम निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। उन्होंने 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के समर्थन से सीट जीती थी।
2016 में हुई ऊना घटना के बाद मेवाणी ने दलितों द्वारा कई विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व किया था और वह गुजरात में दलितों के लिए भूमि अधिकारों के लिए भी लड़ रहे हैं। हालांकि, मेवाणी की राजनीति का दायरा सीमित है और वह राष्ट्रीय स्तर पर वोटरों को लुभाने में इतना कारगर साबित नहीं हो सकते हैं।