कल्कि जयंती

श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को बड़ी धूमधाम से कल्कि जयंती मनाई जाती है। भगवान विष्णु के दस अवतार माने गए हैं जिसमे से नौ अवतार अवतरित हो चुके हैं और ये अवतार त्रेतायुग, सतयुग और द्वापर युग में हुए थे और दसवां अवतार कलयुग में प्रकट होगा। भगवान विष्णु के इस दसवे अवतार को कल्कि नाम दिया गया हैऔर माना जाता है यह अवतार भगवान विष्णु का आखिरी अवतार होगा। यह अवतार 64 कलाओं से युक्त होगा। कल्कि का यह अवतार जब कलयुग अपनी पूरी चरम सीमा पर होगा तब होगा और यह वक्त सतयुग और कलियुग के संधि का समय होगा, तब श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद जिले के संभल नामक स्थान पर विष्णुयशा नाम के एक ब्राह्राण परिवार मे जन्म लेकर इस दुनिया में आएंगे और वह देवदत्त नाम के सफेद घोड़े पर सवार होकरअपनी तलवार से दुष्टों पापियों का  संहार करेंगे फिर से धर्म की रक्षा करेंगे तभी सतयुग का प्रारम्भ होगा.कल्कि भगवान शिव के भक्त होंगे और इनके गुरु भगवान परशुराम जी होंगे।

dहरम/संस्कृति डेस्क, डेमोक्रेटिकफ्रंट॰कॉम, चंडीगढ़ :

पौराणिक मान्यता के अनुसार भगवान कल्कि का अवतरण कलियुग के अन्तिम समय में होगाअभी कलियुग का प्रथम चरण ही चल रहा है,भगवान कल्कि के अवतार लेते ही सतयुग का आरम्भ होगा। भगवान कृष्ण के प्रस्थान से कलियुग की शुरुआत हुई थी। नन्द वंश के राज से कलियुग में वृद्धि हुई, वहीं भगवान कल्कि के अवतार से कलियुग का अन्त होगा.कलियुग की अवधि 4,32,000 वर्ष बताई गई हैऔर वर्तमान में कलियुग के 5,119 साल पूरे हो चुके है इसलिए अभी इस अवतार के होने में काफी समय है।

इस घटना का जिक्र श्रीमद्गागवत महापुराण के 12वें स्कंद के 24वें श्लोक में है, जिसके अनुसार गुरु, सूर्य और चन्द्रमा जब एक साथ पुष्य नक्षत्र में प्रवेश करेंगे तो भगवान विष्णु अवतार कल्कि का जन्म होगा।

सम्भलग्राममुख्यस्य ब्राह्मणस्य महात्मनः।
भवने विष्णुयशसः कल्किः प्रादुर्भविष्यति।।

1. कलियुग में भगवान विष्णु कल्कि के रूप में जन्म लेंगे। धार्मिक मान्यता के अनुसार भगवान कल्कि कलियुग में फैले द्वेष का विनाश करके धर्म की स्थापना के लिए ही कल्कि अवतार लेंगे।

2. कल्कि अवतार कलियुग व सतयुग के संधिकाल में होगा। यह अवतार 64 कलाओं से युक्त होगा।

3. पुराणों के अनुसार उत्तरप्रदेश के मुरादाबाद जिले के शंभल नामक स्थान पर विष्णुयशा नामक तपस्वी ब्राह्मण के घर भगवान कल्कि पुत्र रूप में जन्म लेंगे।

4. कल्कि देवदत्त नामक घोड़े पर सवार होकर संसार से पापियों का विनाश करेंगे और धर्म की पुन:स्थापना करेंगे और पृथ्वी का उद्धार करेंगे। ऐसा माना जाता है कि कलियुग के अंतिम चरण में इनका जन्म होगा।

5. डूंगरपुर (राजस्थान) जिले के साबला गांव में एक हरि मंदिर है, जहां विष्णु के भावी अवतार कल्कि की मूर्तियां स्थापित हैं और रोजाना उनकी पूजा-अर्चना भी होती है।

6. कल्कि जयंती के दिन प्रातःकाल स्‍नानादि कार्यों से निवृत्त होकर व्रत का संकल्‍प लेने के पश्चात पूजा स्थान को साफ-स्वच्छ करके गंगा जल से भगवान कल्कि की प्रतिमूर्ति का अभिषेक करके एक चौकी पर लाल कपड़ा बिछाकर स्‍थापित करें।

7. दीप, धूप, पुष्‍प, अगरबत्‍ती और नैवेद्य आदि की मदद से पूजा करें। पूजा के उपरांत भगवान कल्कि को याद करते हुए संसार के सभी दुखों के विनाश की कामना करके सबसे अंत में प्रसाद वितरित करें।

8. उनका मंत्र- ‘जय कल्कि जय जगत्पते पद्मापति जय रमापते’ और उनका बीजमंत्र ‘जय श्री कल्कि जय माता की’ एक-एक माला का जाप यदि प्रतिदिन किया जाए तो आप स्वत: महसूस करेंगे कि वे आपके मानस में प्रकट होकर आपको परेशानियों से निकालने का रास्ता बता रहे हैं और आपके परिवार की रक्षा कर रहे हैं।
9. शास्त्रों के अनुसार जब धर्म के प्रति आस्था, सत्य, दया, क्षमा आदि का अभाव होगा और प्रकृति असंतुलित होगी, अतिवृष्टि से हानि, स्त्रियों में शालीनता ये सब परिस्थितियां बढ़ जाएंगी तब भगवान कल्कि के प्रकट होने का समय नजदीक रहेगा।

10. कल्कि जयंती पूजन के मुहूर्त- शुक्ल षष्ठी तिथि का प्रारंभ शुक्रवार को दोपहर 01.42 मिनट से शुरू होकर 14 अगस्त 2021, शनिवार, सुबह 11.50 मिनट पर षष्ठी तिथि का समापन होगा। इस वर्ष कल्कि जयंती शुक्रवार, 13 अगस्त 2021 की शाम 04.24 मिनट से शाम 07.02 मिनट तक पूजन मुहूर्त शुभ रहेगा।