चंडीगढ़ कांग्रेस की आंतरिक फूट कहीं पार्टी के लिए नुकसानदेय
गुट बन्दी तो बहुत दिन से सामने आने लगी थी परंतु जब से नई कार्यकारिणी की घोषणा हुई है तब से विरोध और नाराज़गी लगातार बढ़ती जा रही है । कल पार्टी के पूर्व महा सचिव संदीप भारद्वाज ने भी पवन बंसल और चावला के मन मानी करने के चलते पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया। चंडीगढ़ प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष प्रदीप छाबड़ा और वर्तमान अध्यक्ष आमने सामने की लड़ाई लड़ने पर उतारू हैं।
आंतरिक कलह से चंडीगढ़ कांग्रेस का नुक्सान होना निश्चित।
लेखन व सम्पादन सारिका तिवारी एवं छाया ‘पुरनूर’कोरल, चंडीगढ़:
चंडीगढ़ कॉंग्रेस की आंतरिक लड़ाई अब हर प्लेटफार्म पर नज़र आ रही है भले ही सोशल मीडिया ग्रुप हों या फिर मीडिया में । सूत्रों के अनुसार पार्टी के कुछ कार्यकर्ता जिन्हें छाबड़ा गुट का माना जाता है को व्हाट्सएप पर अध्यक्ष के फोन से मैसेज भेजे गए जिनमे उन्हें मुँह बन्द रखने की हिदायत दी गई।
कार्यकारिणी में कुछ सदस्य ऐसे भी शामिल हैं जो कि घोषणा किये जाने तक पार्टी के प्राथमिक सदस्य भी नहीं थे
रही बात पवन बंसल की उनके बारे में कुछ कांग्रेसी दबी आवाज़ में कहते हैं उनका व्यवहार दर्शाता है कि जैसे वह पार्टी के सदस्यों को अपना कर्मचारी मानते हों।
इसी सुर में प्रदीप छाबड़ा ने स्पष्ट रूप से कह दिया कि अपने आत्मसम्मान की कीमत पर वो किसी भी व्यक्ति विशेष के आगे झुकने को तैयार नहीं। अगर उनकी बात या विरोध का पार्टी संज्ञान नहीं लेती तो इससे स्पष्ट है कि पार्टी को कर्मठ कार्यकर्ता के अनुभव की ज़रूरत नहीं ।
वर्तमान विवाद एक दिन का नहीं बल्कि कई वर्ष की खींचतान का नतीजा है। छाबड़ा के नज़दीकियों का कहना है कि पवन बंसल के कोर ग्रुप के सदस्य जिन्हें अपनी वरीयता के अनुसार पद या टिकट नहीं मिल सका ने अपने अपने ढंग से दबाव बनाये रखते हैं। ऐसा ही छाबड़ा प्रकरण में हुआ , छोटी छोटी बातों की वजह से बंसल और छाबड़ा के बीच के विवाद बड़ा रूप लेने लगे। ऐसे ही एक दिन चंडीगढ़ का अध्यक्ष बदल दिया गया अब नए अध्यक्ष हैं सुभाष चावला। सुनने में आता है कि गुस्सा हो गए थे चावला कि पार्टी उन्हें तरज़ीह नहीं देती । जब बी बी बहल कांग्रेस अध्यक्ष बने उस समय भी चावला बहुत नाराज थे उस समय की अखबारें साक्षी हैं।
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सूत्रों के अनुसार पिछले साल लॉक डाउन के बाद सेक्टर 35 के होटल में दिल्ली से आये आम आदमी पार्टी के नेता संजय सिंह और दीपक वाजपेयी से सुभाष चावला मिले, वो क्यों मिले इसका जवाब उन्हीं के पास है। जिस कमरे में यह मुलाकात हुई वह कमरा एक मीडिया कर्मी के नाम से बुक था और बिल का भुगतान भी उसी मीडिया कर्मी के बैंक से हुआ।
कहा जाता है पवन कुमार बंसल ने सुभाष चावला को मनाने के लिए अध्यक्ष पद तोहफे मे दिलवाया।
दूसरी ओर अटकलें लगाई जा रही हैं कि हो सकता है। छाबड़ा भारतीय जनता पार्टी से हाथ मिला लें। इसी बाबत www.demokraticfront.com ने आज जब छाबड़ा से संपर्क किया तो उन्होंने ऐसी किसी भी संभावना से इनकार किया क्योंकि उनकी निष्ठा काँग्रेस के साथ है। वह पार्टी और पार्टी की विचारधारा के प्रति समर्पित हैं ।
विवाद पर बात करते हुए कहा पवन कुमार बंसल से हमेशा सामजस्य बिठाया लेकिन जहाँ बात आत्म सम्मान की है तो वो उनके लिए महत्वपूर्ण है। उनको शिकायत है कि पार्टी के कई कर्मठ सदस्यों को कार्यकारिणी में जगह देने से न केवल परहेज किया गया बल्कि उन्हें अपना मुंह बंद रखने तक की हिदायत दे दी गई। वर्तमान अध्यक्ष के इस रवैये की कड़ी निंदा करते हुए छाबड़ा ने कहा कि पार्टी को अपनी निजी सम्पति न समझें और मर्यादित तरीके से काम करें।
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सुनने में आया है कि वेणुगोपाल ने प्रस्तावित नामों की सूची (जिसमें वो नाम भी थे जो पूर्व अध्यक्ष द्वारा प्रस्तावित थे) हरीश रावत को भेज दी थी लेकिन जब चावला ने सूची की घोषणा की उनमें से एक भी नाम छाबड़ा के किसी करीबी का नहीं था।
विरोध तो गहरा रहा है।
चलते चलते बता दें संदीप भारद्वाज द्वारा जल्दी ही कोई खुलासा करने की संभावना है।