आज गुरु पूर्णिमा पर विशेष

अर्थात् (हमको) असत्य से सत्य की ओर ले चलो । अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो ।। मृत्यु से अमरता की ओर ले चलो ॥।

उषा केडिया , मैसूर (कर्नाटक)

उषा केडिया ,
मैसूर (कर्नाटक
)

      असत्य से सत्य की ओर अंधकार से प्रकाश की ओर मृत्यु से अमरता की ओर हमें केवल गुरु ही ले जा सकता है ।यहाँ प्रश्न आता है की गुरु ही क्यूँ हमें ले जा सकता है ???

        गुरु का शब्द दो वर्णों से बना है गु + रु = गुरु गु का अर्थ अंधकार और रु का अर्थ प्रकाश । गु – कौन गु वह चन्द्रमा है वह अज्ञान है जिसमें कोई प्रकाश नही और रु -वह सूर्य वह ईश्वर है जो स्वयं के ज्ञान से प्रकाशित है ।

         जैसा कि हम सभी जानते है चन्द्रमा के पास अपना कोई प्रकाश नहीं लेकिन उसने अपना मुख सूर्य के सामने रखा हुआ है चूँकि सूर्य में अपना प्रकाश है तो जब चन्द्रमा उसके सामने आ जाता है तो उसके ऊपर सूर्य का प्रकाश पड़ने लगता है और इस तरह जहाँ जहाँ सूर्य का प्रकाश पड़ता है वहाँ वहाँ से चन्द्रमा भी प्रकाशित हो जाता है और एक दिन पूर्ण प्रकाश को पा जाता है ,उस प्रकाश को पा अब वो काली रात ( अंधकार)में दुनिया को प्रकाशित करता है।

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        तो बात चल रही थी गुरु ही क्यूँ  हमें अंधकार से प्रकाश की ओर असत्य से सत्य की ओर और मृत्यु से अमरता की ओर ले जा सकता है ?? 

    उत्तर है क्यूँकि गुरु ने ही अपना मुख उस चन्द्रमा की तरह सूर्य रूपी ईश्वर की तरफ़ कर उससे प्रकाश प्राप्त किया है और अब वो ही केवल और केवल दुनिया के अंधकार को अपने ज्ञान द्वारा मिटा सकते है उनकी वाणी उस चन्द्रमा की तरह ही तपित हृदय को शीतलता प्रदान करती है ।

       इस प्रकृति पर लाखों करोड़ों लोग है किंतु सभी लोग तो गुरु की शरण में नही आते तो उनका जीवन उस काली रात की चादर सा ही रह जाता है और जो गुरु की शरण में आ जाते है उनका जीवन तारो सा हो जाता है जो काली रात में आसमान में चन्द्रमा के साथ झिलमिलाते है । 

        गुरु तो हमारी रूह है जो हमें बताते है कि तुम शरीर नही आत्मा हो , क्यूँकि मृत्यु के बाद शरीर तो वहीं पड़ा है तो फिर क्यूँ नही उसे गले लगते हो जिसके साथ ताउम्र सोते थे  उसके साथ एक रात भी सो नही पाते । क्यूँकि जिसके साथ तुम रहते थे वो आत्मा थी न की शरीर । गुरु बताते है कि हर आत्मा में ईश्वर है सभी आत्माओं को चाहे वह छोटा हो या बड़ा उसमें हमें उनके दर्शन कर उनको नमन करना है । गुरु पूर्ण है और उनके भावों को अपना कर हमें भी अपने जीवन के अंतिम लक्ष्य मोक्ष की तरफ़ आगे बढ़ना है ।