दिग्गज नेताओं को दरकिनार कर ‘नॉन पेर्फ़ोर्मर’ सिद्धू बने पंजाब प्रदेश कॉंग्रेस के अध्यक्ष
2019 के लोकसभा चुनावों में आठ संसदीय सीटें जीतने के बाद अमरिंदर सिंह का राजनीतिक क़द और बढ़ा और उन्होंने सिद्धू पर सीधा निशाना साधना शुरू किया। यहाँ तक कि अमरिंदर ने सिद्धू को एक नॉन-परफ़ॉर्मर तक कह डाला और उनसे स्थानीय निकाय विभाग वापस ले लिया गया। आज कॉंग्रेस अलाकमान ने पंजाब कॉंग्रेस के कई दिग्गज नेताओं , अपने पंजाब के मुख्यमन्त्री कैप्टन की सभी समझाइशों को दरकिनार करते हूए पूर्व क्रिकेटर, पूर्व भाजपाई और लफ़टार चेलेंग से प्रसिद्ध हुए, पाकिस्तान आर्मी प्रमुख के प्रिय सिद्धू को पंजाब की कमान सौंप दी है।
राजविरेन्द्र वशिष्ठ, चंडीगढ़:
पंजाब की राजनीति भी बाकी राज्यों की भांति जातीय समीकरणों से प्रेरित है। पंजाब के तीन हिस्सों में बांटने के बाद से अब तक यहाँ कोई भी हिन्दू मुख्यमंत्री नहीं बन पाया है। जहां स्वतन्त्रता के बाद से अर्थात 1947 से 1966 त मात्र एक सिक्ख पंजाब (आज कल के joint Punjab) का मुख्यमंत्र बना, वहीं 1966 से आज तक पंजाब में यह पद किसी भी हिन्दू के लिए संभव नहीं हो पाया है।
पंजाब में कॉंग्रेस और अकाली के अलावा आज तक कोई दूसरा दल सत्ता पर काबिज नहीं हो पाया है। अब इन दोनों को चुनौती मुफ्त की रेवड़ियाँ बांटने वाली आआपा से मिल रही है। 2017 के पिछले विधान सभा चुनावों में आआपा ने प्रदेश में बहुत अच्छा प्रदर्शन किया। जहां सत्तारूढ़ अकाली भाजपा गठबंधन 15(अकाली) + 3(भाजपा) मात्र 18 सीटें ले पायी वहीं आआपा ने अपने दम पर 20 सीटें निकाल लीं। तभी से आआपा कॉंग्रेस के लिए मुख्य चुनौती है।
2 017 के चुनावों से एन पहले भाजपा छोड़ आआपा से ठुकराये गए सिद्धू की हेलीकाप्टर उम्मीदवारी पर कैप्टन बहुत नाराज़ हुए थे। विधायक बन स्थानीय निकाय विभाग का मंत्रालय पाने के बाद से सिद्धू की फिजूल खर्ची के चर्चे होने लगे और विभाग के प्रति उनकी उदासीनता ने मुख्यमंत्री से रार बढ़ा दी थी। सिद्धू की मनमानियाँ और मुख्यमंत्री के प्रति उनकी नाफ़रमानियाँ दिन प्रतिदिन बढ़तीं ही जा रहीं थीं।
पाकिस्तान के नव नियुक्त प्रधानमंत्री पूर्व क्रिकेटर इमरान खान ने भारत में कई पूर्व खिलाड़ियों को शपथ ग्रहण समारोह में आमंत्रित किया। जहां पाकिस्तान के शत्रुतापूर्ण रवैये और आतंकवाद को प्रोत्साहित कर आए दिन जन साधारण पर हो रहे आक्रमणों और भारतीय सैनिकों के बलिदानों से आहत भारतीय खिलाड़ियों ने समारोह में जाने से माना कर दिया वहीं कैप्टन के रोकने पर भी सिद्धू मीडिया कर्मियों की ऊपस्थिति में बाघा बार्डर पैदल ही पार कर गए।
भारत की एकता अखंडता सैनिकों के बलिदान और स्वाभिमान को तार तार करने वाली वह तस्वीरें सामने आयीं जहां वह हमारी मातृभूमि ओर हमारे वीर सपूतों की अकारण हत्याओं के दोषी जनरल बाजवा को गलबहियाँ डाले हे दिखाई पड़े। वह दृश्य भारतीय राजनीति खासकर स्वतन्त्रता की लड़ाई का सेहरा बांधने वाली कॉंग्रेस के लिए बहत ही दुर्भाग्यपूर्ण था। हद तो भाजपा ने भी की थी, केंद्र सरकार ने आज तक सिद्ध को एक भी कारण बताओ नोटिस जारी नहीं किया, गिरफ्तार करना तो दूर की बात है।
समारोह में जाना सिद्धू की अपनी विवशता हो सकती है परंतु वहाँ शत्रु की तरह आचरण करने वाले जनरल बाजवा से गलबहियाँ डालनी कितनी आवश्यक थीं। उन दिनों सिद्धू के इस कुकृत्य से अधिक केंद्र सरकार के रवैये ने राष्ट्र और जवानों का मनोबल गिरने की कोशिश में कोई कसर नहीं छोड़ी।
पाकिस्तान से वापिस आ कर सिद्धू ने आलाकमान की शह पर मुख्य मंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की बेइज्जती करने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
कैप्टन की तमाम चेतावनियों और सबसे अधिक पंजाबी हिन्दू वोटों की परवाह न करते हुए आलामान ने सिद्धू को पंजाब कॉंग्रेस की कमान सौंप दी है। मजबूरी में ही सही अब कॉंग्रेस के पुराने माँझे हुए नेताओं के पास एक तथाथित ‘नॉन परफोर्मर का ठोकोप ताली और तुकबंदियों वाले ज्ञान को सुनने के अलावा कोई विकल्प नहीं है।