कृषि सुधार क़ानूनों के पश्चात अब सम्पत्ति क्षतिपूर्ति कानून के खिलाफ सडक़ों पर उतरी किसान सभा

सम्पत्ति क्षतिपूर्ति कानून के खिलाफ सडक़ों पर उतरी किसान सभा
सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर राष्ट्रपति को सौंपा ज्ञापन : बोले आंदोलन को कुचलने की साजिश रची तो परिणाम भुगतेगी सरकार
सतीश बंसल सिरसा 20 अप्रैल:

हरियाणा सरकार द्वारा पारित सम्पत्ति क्षतिपूर्ति कानून 2021 के विरोध में संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर जिले के किसानों द्वारा सडक़ों पर उतरकर सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर नारेबाजी की गई और जिला उपायुक्त के माध्यम से राष्ट्रपति को ज्ञापन सौंपा गया।

संयुक्त किसान मोर्चा के घटक हरियाणा किसान सभा के नेता रोशन सुचान, बलराज बणी, प्रितपाल सिद्धू और हरदेव जोश ने राष्ट्रपति को सौंपे ज्ञापन में आरोप लगाया कि प्रदेश सरकार ने बीती 18 मार्च को विधानसभा में विधेयक पारित कर आंदोलनों के दौरान होने वाली सम्पत्ति के नुक्सान की वसूली आंदोलनकारियों से किए जाने का प्रावधान किया है, जिसमें सरकार द्वारा पुलिस और प्रशासन को लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की आजादी को कुचलने के लिए असीमित शक्तियां दी गई हैं, जिससे आंदोलन करने वालों, समर्थकों, योजना बनाने वालों व सलाहकारों को सम्पत्ति के नुक्सान का दोषी करार देकर उनसे वसूली किए जाने का निरंकुश प्रावधान है। इसलिए आज प्रदेश के सभी जिलों में किसान सडक़ों पर उतरकर इस कानून को रद्द करने की मांग कर रहे हैं।

विधेयक के बारे में: 

  • नुकसान की वसूली: यह विधेयक किसी जनसमूह, चाहे वह कानूनी हो अथवा गैर-कानूनी, द्वारा लोक व्यवस्था में उत्पन्न विघ्न के दौरान किसी व्यक्ति विशेष द्वारा किये गए संपत्ति के नुकसान की वसूली का प्रावधान करता है, इसमें दंगे और हिंसक गतिविधियाँ शामिल हैं।
  • पीड़ितों को मुआवज़ा: यह पीड़ितों के लिये मुआवज़ा भी सुनिश्चित करता है।
  • विस्तृत दायरा: नुकसान की वसूली केवल उन लोगों से नहीं की जाएगी जो हिंसा में लिप्त थे, बल्कि उन लोगों से भी की जाएगी जो विरोध प्रदर्शनों का नेतृत्व या आयोजन करते हैं , योजना में शामिल होते हैं और जो विद्रोहियों को प्रोत्साहित करते हैं।
  • दावा अधिकरण स्थापित करना: विधेयक में देयता या क्षतिपूर्ति का निर्धारण,  आकलन और क्षतिपूर्ति का दावा करने हेतु दावा अधिकरण के गठन का प्रावधान किया गया है। 
  • संपत्ति की कुर्की/ज़ब्ती: किसी भी व्यक्ति जिसके खिलाफ हर्ज़ाना राशि का भुगतान करने हेतु दावा अधिकरण में अपील की गई है, उसकी संपत्ति या बैंक खाते को सील करने की शक्ति प्रदान की गई है।
  • अधिकरण के खिलाफ अपील: पीड़ित व्यक्ति दावा अधिकरण के निर्णयों के खिलाफ पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के समक्ष अपील दायर कर सकता है।
  • हर्ज़ाने को लेकर दावे से संबंधित कोई भी प्रश्न सिविल कोर्ट के क्षेत्राधिकार में शामिल नहीं होगा। 

सरकार का रुख:

  • सरकार की ज़िम्मेदारी: राज्य की संपत्ति की सुरक्षा करना राज्य सरकार की ज़िम्मेदारी है, चाहे वह संपत्ति निजी हो या सरकारी।
  • अधिकारों और उत्तरदायित्व  के मध्य संतुलन: लोकतंत्र में सभी को शांतिपूर्ण तरीके से बोलने और विरोध प्रकट करने का अधिकार है, लेकिन संपत्ति को नुकसान पहुंँचाने का अधिकार  किसी को भी नहीं है।
  • निवारण: हिंसक गतिविधियों को अंज़ाम देने और इसका आयोजन करने वालो के या इस प्रकार की गतिविधियों को रोकने हेतु सरकार के पास एक कानूनी ढांँचा होना चाहिये।

किसान नेताओं ने कहा कि प्रदेश सरकार शांतिपूर्वक चल रहे किसान आंदोलन को कुचलने की नाकाम कोशिश करने के लिए यह कानून लेकर आई है जबकि सरकार सडक़ों खुद खोद रही है। ऐसे दमनकारी कानून अंग्रेजी राज की याद दिलाते हैं, जिनके विरोध में शहीद भगत सिंह सरीखे नौजवानों को असैम्बली में बम फैंकने के लिए मजबूर होना पड़ा था। किसान आंदोलन शांतिपूर्वक चल रहा है और पिछले पांच महीनों से सम्पत्ति के नुक्सान की कोई घटना नहीं हुई है, परन्तु सरकार किसानों-मजदूरों के शांतिपूर्वक आंदोलनों पर पुलिस बल और हजारों मुकदमे दर्ज करके तानाशाहीका सबूत दे रही है, जिसे बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।

किसान सभा ने राष्ट्रपति से मांग कर सम्पत्ति क्षतिपूर्ति अधिनियम कानून 2021 को रद्द करने, किसानों पर बने मुकदमे रद्द करने ओर आंदोलन के दमन पर रोक लगाने की मांग कर प्रदेश सरकार को कड़ी चेतावनी देते हुए कहा कि अगर कोरोना के नाम पर आंदोलन कुचलने की कोशिश की तो सरकार को गंभीर परिणाम भुगतने होंगे।

इस अवसर पर किसान सभा के नेता हरजिन्द्र भंगु, एआईएसएफ नेता अरमनान, सुमेर गिल, नवदीप विर्क, रूढ़ सिंह, सतनाम सिंह, दविन्द्र सिंह, गुरमेज सिंह, कुलदीप सिंह, निर्मल सिंह, गुरनाम सिंह करीवाला के अलावा अखिल भारतीय किसान सभा की ओर से जगरूप सिंह चौबुर्जा, बलवीर कौर गांधी, का० सुरजीत सिंह, गुरतेज बराड़ एडवोकेट, बलवीर फौजी, हरकिशन कम्बोज, राजकुमार, पालासिंह चीमा आदि उपस्थित थे।

लोक संपत्ति नुकसान निवारण अधिनियम, 1984

  • इस अधिनियम के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति किसी भी सार्वजनिक संपत्ति को दुर्भावनापूर्ण कृत्य द्वारा नुकसान पहुँचाता है तो उसे पाँच साल तक की जेल अथवा जुर्माना या दोनों सज़ा से दंडित किया जा सकता है। अधिनियम के प्रावधान को भारतीय दंड संहिता में भी शामिल किया जा सकता है।
  • इस अधिनियम के अनुसार, लोक संपत्तियों में निम्नलिखित को शामिल किया गया है-
    • कोई ऐसा भवन या संपत्ति जिसका प्रयोग जल, प्रकाश, शक्ति या उर्जा के उत्पादन और वितरण में किया जाता है।
    • तेल प्रतिष्ठान।
    • खान या कारखाना।
    • सीवेज स्थल।
  • लोक परिवहन या दूर-संचार का कोई साधन या इस संबंध में उपयोग किया जाने वाला कोई भवन, प्रतिष्ठान और संपत्ति।

थॉमस समिति:

  • के.टी. थॉमस समिति ने सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान से जुड़े मामलों में आरोप सिद्ध करने की ज़िम्मेदारी की स्थिति को बदलने की सिफारिश की। न्यायालय को यह अनुमान लगाने का अधिकार देने के लिये कानून में संशोधन किया जाना चाहिये कि अभियुक्त सार्वजनिक संपत्ति को नष्ट करने का दोषी है।
    • दायित्व की स्थिति में बदलाव से संबंधित यह सिद्धांत,  यौन अपराधों तथा इस तरह के अन्य अपराधों पर लागू होता है। 
    • सामान्यतः कानून यह मानता है कि अभियुक्त तब तक निर्दोष है जब तक कि अभियोजन पक्ष इसे साबित नहीं करता।
  • न्यायालय द्वारा इस सुझाव को स्वीकार कर लिया गया। 

नरीमन समिति :

  • इस समिति की सिफारशें सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान की क्षतिपूर्ति से संबंधित थीं।
  • सिफारिशों को स्वीकार करते हुए न्यायालय ने कहा कि प्रदर्शनकारियों पर सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुँचाने का आरोप तय करते हुए संपत्ति में आई विकृति में सुधार करने के लिये क्षतिपूर्ति शुल्क लिया जाएगा।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने उच्च न्यायालयों को भी ऐसे मामलों में स्वतः संज्ञान लेने के दिशा-निर्देश जारी किये तथा सार्वजनिक संपत्ति के विनाश के कारणों को जानने तथा क्षतिपूर्ति की जाँच के लिये एक तंत्र की स्थापना करने को कहा।
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