पायलट निकम्मा, नकारा, धोखेबाज अब नहीं है

ऑल इंडिया कांग्रेस कमिटी के जनरल सेक्रेट्री केसी वेनुगोपाल ने बताया कि सचिन पायलट की इस मुलाकात के बाद सोनिया गांधी ने फैसला किया है कि पायलट और असंतुष्ट विधायकों की ओर से उठाए गए मुद्दों के समाधान के लिए पार्टी तीन सदस्यीय एक कमिटी का गठन करेगी. इसमें सभी मुद्दों पर विस्तार से चर्चा होगी और मंथन करने के बाद उचित रास्ता निकाला जाएगा. मुख्यमंत्री गहलोत ने सचिन पायलट को क्या क्या नहीं कहा. गहलोत ने सचिन पायलट पर बड़े बड़े आरोप भी लगाए. फिर 10 अगस्त को आखिर क्या हो गया कि अचानक सचिन पायलट ने राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से मिलकर सभी बातों को सुलटा लिया. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या बीजेपी ने सिरे से सचिन पायलट को नज़रंदाज़ करने का मन बना लिया? क्या सचिन पायलट को वसुंधरा राजे की नाराजगी से अवगत करा दिया गया? जिसके बाद सचिन पायलट ने घर वापसी का रास्ता अख्तियार करना अपनी समझदारी समझी.

खाया पिया कुछ नहीं गिलास तोड़ा बारह आन्ना

जयपुर(ब्यूरो):

चाहे राजस्थान प्राकरण में राहुल गांधी अकर्मण्य रहे और इस राजनैतिक संकट से अपनी पार्टी को उबारने के लिए कुछ नहीं कर पाये लेकिन वसुंधरा राजे की हलचल ने पायलट की अक्ल ठिकाने ला दी ऐसा लगता है। अब तक राजस्थान सियासी संकट में आलाकमान से निराश हो चुके कोंग्रेसी भी हतप्रभ हैं ओर कह रहे हैं की रानी साहिबा पहले ही आ जातीं तो इतने दिन न लगते। सच जानते हुए भी अब राहुल की बांछे खिल गईं हैं। सब ओर प्रचार प्रसार हो रहा है की यह राहुल की सूझबूझ ही थी जो राहुल ने इस संकट से कॉंग्रेस को उबार लिया।

सचिन पायलट की राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से मुलाक़ात के साथ पिछले एक महीने से चला आ रहा, राजस्थान का राजनीतिक संकट खत्म हो गया. अब सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायक अशोक गहलोत के साथ खड़े हो गए. पिछले एक महीने में कांग्रेस के अंदर खासा उठक पटक देखने को मिली. सचिन पायलट और उनके समर्थक विधायको की अपने ही अशोक गहलोत सरकार के खिलाफ नाराज़गी ने राजस्थान सरकार को संकट में डाल रखी थी. कभी बात थर्ड फ्रंट बनाने की हुई तो कभी सचिन पायलट और उनके समर्थकों की बीजेपी में शामिल होने की चली. सचिन समर्थक विधायकों ने गुरुग्राम के एक होटल में अपनी आवाज़ बुलंद की.

इस पूरे सियासी घटनाक्रम में बीजेपी की पैनी निगाह थी, राज्य बीजेपी इकाई में इस विषय मे लगातार बैठके भी होती रही. यहां तक की केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, ओम माथुर जैसे नेताओं ने सचिन पायलट को बीजेपी में आने तक का न्योता तक दे डाला. पार्टी के अंदर सचिन पायलट और उनके समर्थकों के प्रति भले ही सहानभूति के स्वर निकल रहे हो, लेकिन पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने चुप्पी साधे रखी.

सूत्रों के मुताबिक वसुंधरा राजे कभी भी सचिन पायलट और उनके समर्थकों को बीजेपी में लाने के पक्षधर नहीं रहीं. इस सियासी घटना पर वसुंधरा ने राज्य इकाई से अपना विरोध दर्ज करवा दिया. कहा जा रहा है कि प्रदेश अध्यक्ष सतीश पुनिया, गजेंद्र सिंह शेखावत, ओम माथुर और उनके समर्थक नेताओं के सामने उनकी बहुत ज्यादा चली नहीं.

वसुंधरा राजे अचानक 5 अगस्त को दिल्ली पहुंच गईं. फिर बीजेपी के बड़े नेताओं के साथ उनकी मैराथन बैठक शुरू हुई. वसुंधरा राजे 6 अगस्त को पार्टी संगठन महामंत्री बीएल संतोष से मुलाक़ात की. इन दोनों बड़े नेताओं के बीच ये बैठक तकरीबन 2 घंटे से ज्यादा चली. अगले ही दिन यानी 7 अगस्त को वसुंधरा राजे ने पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा से दिल्ली में उनके आवास में मुलाक़ात की. बैठक तकरीबन डेढ़ घंटे तक चली. वसुंधरा राजे अगले ही दिन पार्टी के वरिष्ठ नेता और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से मिली, ये बैठक भी दो घंटे से ज्यादा चली.

सूत्रों की मानें, तो वसुंधरा राजे ने पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को राजस्थान राजनीतिक घटनाक्रम पर अपनी राय से अवगत करा दिया. सूत्रों के मुताबिक, सचिन पायलट और उनके समर्थकों के बीजेपी में शामिल और सचिन पायलट के थर्ड फ्रंट को किसी भी तरीके के समर्थन पर वसुंधरा राजे ने अपनी नाराजगी पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के सामने रख दी. कहा ये भी जा रहा है कि राजे ने यहां तक कह दिया कि राज्य बीजेपी इकाई का एक बड़ा वर्ग सचिन पायलट और उनके समर्थकों के साथ खड़ा होने को तैयार नहीं हैं. हालांकि, इन बैठकों में वसुंधरा राजे ने राज्य कार्यकारणी में हुए बदलाव और उनके समर्थकों को शामिल नहीं करने पर भी अपनी नाराजगी जता दी.

6 से 8 अगस्त के बैठकों के साथ वसुंधरा राजे ने दिल्ली में अपना मोर्चा बुलंद कर दिया. ठीक दो दिन बाद अचानक सचिन पायलट ने राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से मुलाक़ात की और कहा गया कि पार्टी के अंदर सब कुछ ठीक ठाक है. ये ठीक ठाक कितना ठीक ठाक था, ये इस बात से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि सचिन पायलट को अशोक गहलोत से उपमुख्यमंत्री पद से हटा दिया था. साथ प्रदेश अध्यक्ष पद से उनकी छुट्टी कर दी गयी थी.

आलम ये था कि इस दौरान राजस्थान के मुख्यमंत्री गहलोत ने सचिन पायलट को क्या क्या नहीं कहा. गहलोत ने सचिन पायलट पर बड़े बड़े आरोप भी लगाए. फिर 10 अगस्त को आखिर क्या हो गया कि अचानक सचिन पायलट ने राहुल गांधी और प्रियंका गांधी से मिलकर सभी बातों को सुलटा लिया.

ऐसे में सवाल उठता है कि क्या बीजेपी ने सिरे से सचिन पायलट को नज़रंदाज़ करने का मन बना लिया? क्या सचिन पायलट को वसुंधरा राजे की नाराजगी से अवगत करा दिया गया? जिसके बाद सचिन पायलट ने घर वापसी का रास्ता अख्तियार करना अपनी समझदारी समझी.

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